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हाईकोर्ट का शिमला MC को आदेश, NGT के आदेशों से पहले नियमों के अनुसार निर्णय लें

Himachal High Court ने एनजीटी के आदेशों का बार-बार हवाला देकर नक्शा स्वीकृत न करने पर नगर निगम शिमला को आदेश दिए कि वह प्रार्थियों के आवेदन पर फिर से विचार करे. कोर्ट ने प्रार्थियों के आवेदन पर एनजीटी के आदेशों से पहले के नियमों के अनुसार निर्णय लेने के आदेश दिए हैं. Himachal High Court Orders MC Shimla.

Himachal High Court
हिमाचल हाईकोर्ट के आदेश
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Published : Aug 25, 2022, 7:22 AM IST

शिमला: प्रदेश हाईकोर्ट ने एनजीटी के आदेशों का बार-बार हवाला देकर नक्शा स्वीकृत न करने पर नगर निगम शिमला को आदेश दिए कि वह प्रार्थियों के आवेदन पर फिर से विचार (Himachal High Court Orders MC Shimla.) करे. न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान व न्यायाधीश वीरेंद्र सिंह की खंडपीठ ने फैसले में कहा कि नगर निगम सहित राज्य सरकार ने कानून के अनुसार नक्शे पास करने की बजाए ढाई मंजिला वाले एनजीटी के आदेशों के कारण खुद में एक प्रकार का भय मनोविकार पैदा कर लिया है. इसी कारण सरकार व नगर निगम भवन उप नियमों को संशोधित करने के लिए आगे नहीं बढ़ रहे हैं.

कोर्ट ने प्रार्थियों के आवेदन पर एनजीटी के आदेशों से पहले के नियमों के अनुसार निर्णय लेने के आदेश दिए (National Green Tribunal stay in Shimla) हैं. मामले के अनुसार याचीकार्ताओं ने 3 अगस्त 2017 को होटल का नक्शा नगर निगम के पास स्वीकृति के लिए जमा करवाया. उन्होंने आवेदन के साथ लगभग 5 लाख रुपए की फीस भी जमा करवा दी. नक्शे के मुताबिक दो भवन चार मंजिल जमा पार्किंग के व चार कॉटेज दो मंजिल जमा पार्किंग के थे. इससे पहले की प्रार्थियों के नक्शे स्वीकृत हो पाते, एनजीटी ने 16 नवंबर 2017 को एक सामान्य दिशा -निर्देश जारी कर भवन निर्माणों पर ढाई मंजिलों की शर्त लगा दी.

25 नवंबर 2017 को एनजीटी के आदेशों का हवाला देते हुए नगर निगम ने नक्शा प्रार्थियों को वापिस कर (Himachal High Court) दिया. 14 दिसंबर को सरकार के विधि विभाग ने एनजीटी के आदेशों की जांच पड़ताल की और कहा कि एनजीटी के आदेश उन मामलों में लागू नहीं होते जिनके नक्शे अनुमोदन, संशोधन और स्वीकृति के लिए 16 नवंबर 2017 से पहले पेश किए जा चुके थे, लेकिन विधानसभा चुनाव को लेकर कोड ऑफ कंडक्ट लगने के कारण उन पर विचार नहीं किया जा सका. सरकार के इस स्पष्टीकरण को देखते हुए प्रार्थियों ने फिर से 17 फरवरी 2018 को नक्शा स्वीकृति के लिए जमा करवा दिया.

सरकार सहित निगम व टीसीपी के विभिन्न विभागों के धक्के खाकर आखिरकार मामला हाउस प्लान अप्रूवल कमेटी की 45वीं बैठक के समक्ष रखा गया. अबकी बार फिर से नक्शे वापिस करते हुए कारण बताया गया कि प्रार्थियों ने 3 अगस्त 2017 को नक्शे जमा करवाए थे जो कुछ त्रुटियों के कारण एनजीटी के 16 नवंबर 2017 के आदेशों से पहले संशोधित नहीं किए जा सके. इसलिए एनजीटी के आदेशानुसार ढाई मंजिल वाले नक्शे न होने के कारण उन्हें अस्वीकृत कर दिया (NGT rules in himachal) गया. इसके पश्चात जगह-जगह के धक्के खाने और मुख्यमंत्री तक के पास गुहार लगाने के बाद प्रार्थियों ने एक बार फिर से 17 अप्रैल 2019 को त्रुटियां दूर कर नक्शे निगम के पास जमा करवाये.

अनेकों बहानों से मामला लटकता गया और 4 दिसंबर 2020 को सरकार ने एनजीटी के आदेशों का हवाला देते हुए नक्शे को स्वीकृति देने से मना कर दिया और प्रार्थियों को सुझाव दिया कि वह एनजीटी के आदेशानुसार तय मापदंडों के भीतर नक्शा स्वीकृति के लिए जमा करवा सकते (NGT rules in shimla) हैं. सरकार व निगम की इस कार्रवाई से व्यथित होकर प्रार्थियों ने हाईकोर्ट के समक्ष न्याय के लिए गुहार लगाई.

कोर्ट ने प्रार्थियों की याचिका को मंजूर करते हुए आश्चर्य प्रकट किया कि प्रार्थियों के मामले में ही कैसे एनजीटी के आदेश लगाए जा सकते हैं जबकि रिकॉर्ड में सामने आया है कि निगम ने ऐसे अनेकों मामलों में स्वीकृति प्रदान की है, जिनमें एनजीटी के आदेशों से पहले कुछ त्रुटियां और कमियां रह गई थी. सरकार ने भी बिना दिमाग का इस्तेमाल किए प्रार्थियों के आवेदन को अस्वीकृत किया.

ये भी पढ़ें: सरकार तक को कर्ज दे सकता है वन विभाग, हाईकोर्ट ने कहा वन संपदा के संरक्षण पर सुझाव दे डिपार्टमेंट

शिमला: प्रदेश हाईकोर्ट ने एनजीटी के आदेशों का बार-बार हवाला देकर नक्शा स्वीकृत न करने पर नगर निगम शिमला को आदेश दिए कि वह प्रार्थियों के आवेदन पर फिर से विचार (Himachal High Court Orders MC Shimla.) करे. न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान व न्यायाधीश वीरेंद्र सिंह की खंडपीठ ने फैसले में कहा कि नगर निगम सहित राज्य सरकार ने कानून के अनुसार नक्शे पास करने की बजाए ढाई मंजिला वाले एनजीटी के आदेशों के कारण खुद में एक प्रकार का भय मनोविकार पैदा कर लिया है. इसी कारण सरकार व नगर निगम भवन उप नियमों को संशोधित करने के लिए आगे नहीं बढ़ रहे हैं.

कोर्ट ने प्रार्थियों के आवेदन पर एनजीटी के आदेशों से पहले के नियमों के अनुसार निर्णय लेने के आदेश दिए (National Green Tribunal stay in Shimla) हैं. मामले के अनुसार याचीकार्ताओं ने 3 अगस्त 2017 को होटल का नक्शा नगर निगम के पास स्वीकृति के लिए जमा करवाया. उन्होंने आवेदन के साथ लगभग 5 लाख रुपए की फीस भी जमा करवा दी. नक्शे के मुताबिक दो भवन चार मंजिल जमा पार्किंग के व चार कॉटेज दो मंजिल जमा पार्किंग के थे. इससे पहले की प्रार्थियों के नक्शे स्वीकृत हो पाते, एनजीटी ने 16 नवंबर 2017 को एक सामान्य दिशा -निर्देश जारी कर भवन निर्माणों पर ढाई मंजिलों की शर्त लगा दी.

25 नवंबर 2017 को एनजीटी के आदेशों का हवाला देते हुए नगर निगम ने नक्शा प्रार्थियों को वापिस कर (Himachal High Court) दिया. 14 दिसंबर को सरकार के विधि विभाग ने एनजीटी के आदेशों की जांच पड़ताल की और कहा कि एनजीटी के आदेश उन मामलों में लागू नहीं होते जिनके नक्शे अनुमोदन, संशोधन और स्वीकृति के लिए 16 नवंबर 2017 से पहले पेश किए जा चुके थे, लेकिन विधानसभा चुनाव को लेकर कोड ऑफ कंडक्ट लगने के कारण उन पर विचार नहीं किया जा सका. सरकार के इस स्पष्टीकरण को देखते हुए प्रार्थियों ने फिर से 17 फरवरी 2018 को नक्शा स्वीकृति के लिए जमा करवा दिया.

सरकार सहित निगम व टीसीपी के विभिन्न विभागों के धक्के खाकर आखिरकार मामला हाउस प्लान अप्रूवल कमेटी की 45वीं बैठक के समक्ष रखा गया. अबकी बार फिर से नक्शे वापिस करते हुए कारण बताया गया कि प्रार्थियों ने 3 अगस्त 2017 को नक्शे जमा करवाए थे जो कुछ त्रुटियों के कारण एनजीटी के 16 नवंबर 2017 के आदेशों से पहले संशोधित नहीं किए जा सके. इसलिए एनजीटी के आदेशानुसार ढाई मंजिल वाले नक्शे न होने के कारण उन्हें अस्वीकृत कर दिया (NGT rules in himachal) गया. इसके पश्चात जगह-जगह के धक्के खाने और मुख्यमंत्री तक के पास गुहार लगाने के बाद प्रार्थियों ने एक बार फिर से 17 अप्रैल 2019 को त्रुटियां दूर कर नक्शे निगम के पास जमा करवाये.

अनेकों बहानों से मामला लटकता गया और 4 दिसंबर 2020 को सरकार ने एनजीटी के आदेशों का हवाला देते हुए नक्शे को स्वीकृति देने से मना कर दिया और प्रार्थियों को सुझाव दिया कि वह एनजीटी के आदेशानुसार तय मापदंडों के भीतर नक्शा स्वीकृति के लिए जमा करवा सकते (NGT rules in shimla) हैं. सरकार व निगम की इस कार्रवाई से व्यथित होकर प्रार्थियों ने हाईकोर्ट के समक्ष न्याय के लिए गुहार लगाई.

कोर्ट ने प्रार्थियों की याचिका को मंजूर करते हुए आश्चर्य प्रकट किया कि प्रार्थियों के मामले में ही कैसे एनजीटी के आदेश लगाए जा सकते हैं जबकि रिकॉर्ड में सामने आया है कि निगम ने ऐसे अनेकों मामलों में स्वीकृति प्रदान की है, जिनमें एनजीटी के आदेशों से पहले कुछ त्रुटियां और कमियां रह गई थी. सरकार ने भी बिना दिमाग का इस्तेमाल किए प्रार्थियों के आवेदन को अस्वीकृत किया.

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