शिमलाः हिमाचल कांग्रेस प्रभारी रजनी पाटिल ने हिमाचल की जयराम सरकार से कोरोना संकट काल में मनरेगा मजदूरों को 200 दिन का रोजगार देने की मांग की है. उन्होंने कहा कि महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार कानून 2005 (मनरेगा) ने काफी हद तक ग्रामीण भारत को आत्मनिर्भर व स्वावलंबी बनाया है.
रजनी पाटिल ने कहा कि केंद्र सरकार राजनीतिक दुर्भावना से मनरेगा की निरंतर आलोचना करती रही है, लेकिन अंतत: अब इसकी सत्यता व सार्थकता को देखते हुए मोदी सरकार को इसे स्वीकारना पड़ा है. मनरेगा समाज की अंतिम पंक्ति में खड़े पिछड़े व वंचितों को आर्थिक तौर पर आत्मनिर्भर बनाने के सबूत के तौर पर कारगर साबित हुआ है. 2 सितंबर 2005 में पारित मनरेगा कानून समाज की समस्याओं को समझने व परखने के बाद भारतीय ग्रामीण समाज में लगातार उठाई जा रही समस्याओं व मांगों का परिणाम व प्रमाण है.
रजनी पाटिल ने कहा कि कांग्रेस पार्टी ने ग्रामीण भारत को आत्मनिर्भर बनाने के लिए मनरेगा शुरू किया था. 2004 में मनरेगा योजना कांग्रेस पार्टी की घोषणा पत्र का संकल्प थी. यूपीए सरकार ने ग्रामीण भारत की जरूरतों के अनुरूप इसे लागू करके दिखाया था.
वहीं, मात्र विरोध व राजनीतिक दुर्भावना से मनरेगा की लोकप्रियता से विचलित मोदी सरकार ने इस कारगर योजना को विफलता का जीवित स्मारक करार देते हुए इस योजना को दबाने व बिगाड़ने का भरपूर प्रयास किया है. यह अलग बात है कि अब कोविड-19 के संकट में मनरेगा की उपयोगिता के कारण इसे लागू करने पर विवश होना पड़ा है.
रजनी पाटिल ने कहा कि यह योजना कोविड-19 संकट के दौरान हिमाचल प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए बेहद कारगर साबित हो रही है. रजनी पाटिल ने मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर से मांग की है कि अब मनरेगा को जनता की जरूरत व मांग के अनुरूप प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में कम से कम 200 दिनों के लिए लागू किया जाए, ताकि कोविड संकट में फंसी जनता को जहां एक ओर इसका आर्थिक लाभ मिल सके. वहीं, दूसरी ओर ग्रामीण क्षेत्रों का मूलभूत शुरुआती विकास ढांचा विकसित हो सके.