शिमला: हिमालयन क्षेत्रों में जलवायु परिवर्तन और ग्लेशियरों पर पड़ रहे उसके प्रभाव पर शिमला (himachal climate change conference) में विशेषज्ञ मंथन करेंगे. पर्यावरण विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा शनिवार को शिमला के होटल पीटरहॉफ (conference in Hotel Peterhoff Shimla) में 'सुदृढ़ हिमालय-सुरक्षित भारत' विषय पर दो दिवसीय सम्मेलन करने जा रहा है. इस सम्मेलन मे जर्मनी की जीआईजेड संस्था का तकनीकी सहयोग रहेगा और हिमालय क्षेत्र मे कार्य कर रहे 50 से अधिक एक्सपर्ट विभिन्न सेशन में भाग लेंगे.
दो दिवसीय इस सम्मेलन मे जर्मनी के भारत में राजदूत भी शामिल होंगे. सम्मेलन में विशेषज्ञ किस तरह ग्लेशियर को बचाया जा सके और प्राकृतिक आपदाओं से बचाव को लेकर चर्चा करेंगे. साथ ही, इसके लिए रोडमैप भी तैयार करेंगे. प्रदेश के मुखिया जयराम ठाकुर सम्मेलन का शुभारंभ करेंगे.
अतिरिक्त मुख्य सचिव प्रबोध सक्सेना ने बताया कि इस सम्मेलन का मुख्य उद्देश्य हिमालयी क्षेत्र में हो रहे जलवायु परिवर्तन और ग्लेशियर्स पर पड़ने वाले उसके प्रभाव पर चर्चा होगी. उन्होंने बताया कि इस सम्मेलन मे विशेषज्ञों द्वारा 5 विभिन्न सेशन में अपने विचार व रिपोर्ट पेश की जाएगी. उन्होंने बताया कि इस सम्मेलन से निकलने वाले निष्कर्ष से आने वाले समय मे ग्लेशियर्स को बचाने व प्राकृतिक आपदा (natural calamities in himachal) के लिए तैयारी जैसे विषय पर मदद मिलेगी.
बता दें कि हिमाचल प्रदेश में हर साल जलवायु परिवर्तन की वजह से ग्लेशियर्स की संख्या में कमी दर्ज की जा रही है. ग्लेशियर्स पिघलने (status of glacier in himachal) से प्राकृतिक आपदा का भी खतरा बढ़ गया है. पिछले 20 साल में ग्लेशियर के क्षेत्र में 4 से 5 प्रतिशत की कमी आई है. प्रदूषण और अन्य कारणों से बढ़ रहे तापमान से हिमाचल के ग्लेशियर लगातार पिघल रहे हैं. जिससे झीलें बन रही है जिससे बड़ा खतरा भी पैदा हो सकता है.
सिक्योर हिमालय प्रोजेक्ट 2018 से 2024 तक है. एक अरब 27 करोड़ रुपये की इस परियोजना का उद्देश्य जैव विविधता का संरक्षण, आजीविका में विविधता लाना है. इसके अलावा वन्य जीव एवं समुदाय के बीच के अंतर्विरोध व संघर्ष को कम करना भी इसका मुख्य लक्ष्य है. सिक्योर हिमालय परियोजना हिम तेंदुए के संरक्षण में भी मददगार है. जीआईजेड के साथ मिलकर प्रदेश सरकार धरातल से जुड़े लोगों को इस परियोजना के प्रति जागरूक करेगी. इस परियोजना के तहत उपलब्ध आजीविका के साधनों को मजबूत करना तथा नव आजीविका के साधनों की संभावनाओं को तलाशने पर कार्य किया जा रहा है. ताकि वनों के ऊपर से लोगों की निर्भरता कम की जा सके और वनों को सुरक्षित रखा जा सके.
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