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सदन में नहीं दिखेंगे 'राजनीति के राजा', 34 साल बाद वीरभद्र सिंह के बिना हिमाचल विधानसभा का सेशन

राजनीति के राजा कहे जाने वाले हिमाचल प्रदेश के पूर्व सीएम राजा वीरभद्र सिंह इस बाद सदन में मौजूद नहीं होंगे. देह से स्मृति हुए कांग्रेस के दिग्गज नेता वीरभद्र सिंह को हिमाचल विधानसभा याद करेगी. सेहत खराब होने के बावजूद वे हमेशा सदन में आते रहे. सदन में वीरभद्र सिंह की मौजूदगी हमेशा कांग्रेस के लिए बूस्टर का काम करती थी. उनका दुनिया से गुजर जाना कांग्रेस और हिमाचल की राजनीति के लिए बड़ा नुकसान है.

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Published : Aug 1, 2021, 1:09 PM IST

शिमला: साढ़े तीन दशक तक हिमाचल की विधानसभा (Himachal Assembly) को अपनी मौजूदगी से गुलजार करने वाले राजनीति के राजा इस बार सदन में नहीं होंगे. कुल 34 साल में ये पहली दफा है जब सदन में किसी न किसी रूप में मौजूद रहने वाले वीरभद्र सिंह (Virbhadra Singh) की इस बार स्मृतियां ही गूंजेंगी. देह से स्मृति हुए कांग्रेस के दिग्गज नेता वीरभद्र सिंह को हिमाचल विधानसभा याद करेगी. सोमवार को विधानसभा का मानसून सेशन (Monsoon Session) शुरू हो रहा है. सेशन में पहले ही दिन वीरभद्र सिंह और नरेंद्र बरागटा (Narinder Bragta) को श्रद्धा सुमन अर्पित किए जाएंगे.

वीरभद्र सिंह छह बार हिमाचल के सीएम रहे. वे नेता प्रतिपक्ष भी रहे और इस बार अर्की से विधायक थे. सेहत नासाज होने के बावजूद वे सदन में आते रहे. बजट सेशन में सभी ने वो दृश्य भी देखा जब वीरभद्र सिंह को सांस लेने में तकलीफ हो रही थी तो पिछली सीट से उठकर विक्रमादित्य सिंह (MLA Vikramaditya Singh) आगे आए और उन्हें सहारा दिया. तब वीरभद्र सिंह ने विक्रमादित्य का हाथ चूमकर अपना स्नेह प्रकट किया था. चाहे सीएम की कुर्सी पर रहते हुए बजट पेश करना और विपक्ष के हमलों का जवाब देना हो या फिर विपक्ष में रहते हुए सत्ता पक्ष को घेरना, वीरभद्र सिंह की मौजूदगी हमेशा से कांग्रेस के लिए बूस्टर का काम करती थी. अब न तो सदन में वीरभद्र सिंह की हाजिर जवाबी देखने को मिलेगी और न ही उनका कड़क स्वभाव. अलबत्ता हिमाचल विधानसभा के भीतर व परिसर के आसपास उनकी स्मृतियां जरूर तैरती रहेंगी.

वीडियो.

किसी भी राजनेता के लिए ये दुर्लभ उपलब्धि है कि वो साढ़े तीन दशक तक लगातार सदन में सक्रिय रहे. छह बार हिमाचल के मुख्यमंत्री रहे वीरभद्र सिंह ने 21 साल और 11 दिन इस पद को संभाला. इस तरह से 21 साल तक तो वे सदन के नेता के तौर पर हिमाचल विधानसभा में रहे हैं. फिर 1998 व 2007 में विपक्ष में नेता प्रतिपक्ष रहे. मौजूदा विधानसभा में वे विधायक के तौर पर थे. चूंकि उनकी सेहत ठीक नहीं रहती थी, लिहाजा मुकेश अग्निहोत्री (Mukesh Agnihotri) सदन में कांग्रेस की अगुवाई करते हैं.

वीरभद्र सिंह करीब 13 साल तक विपक्ष में रहे. हिमाचल में 2012 से 2017 तक वीरभद्र सिंह मुख्यमंत्री थे. ये सीएम के तौर पर उनकी छठी पारी थी. 2017 के चुनाव में वे अर्की से लड़े और जीते. अपनी सीट उन्होंने बेटे विक्रमादित्य सिंह को दी. इस तरह सदन में उम्रदराज नेता वीरभद्र सिंह व उनके बेटे विक्रमादित्य सिंह के रूप में पिता-पुत्र की जोड़ी ने प्रवेश किया. बीमार होने के बावजूद भी वीरभद्र सिंह सदन में आते रहे. अपने अंतिम बजट भाषण में उन्होंने चार घंटे से भी अधिक समय तक अंग्रेजी में बजट पेश किया. बाद में कहा कि थकना उनका स्वभाव नहीं है और वे अभी भी रिज तक दौड़ लगा सकते हैं. कह सकते हैं कि हिमाचल विधानसभा उनके इसी अंदाज को बहुत मिस करेगी.

वीरभद्र सिंह 8 अप्रैल 1983 से 5 मार्च 1990 तक लगातार दो बार सीएम रहे, फिर साल 1990 के चुनाव में कांग्रेस पराजित हुई तो शांता कुमार के नेतृत्व में भाजपा की सरकार आई. तब वीरभद्र सिंह विपक्ष में रहे. बाबरी ढांचे के विध्वंस के बाद जब शांता कुमार की सरकार गिरा दी गई तो 1993 में जीतकर कांग्रेस ने फिर से वीरभद्र को नेता चुना. तब वीरभद्र सिंह ने 3 दिसंबर 1993 से 23 मार्च 1998 तक सीएम के तौर कुर्सी संभाली और सदन में अपनी छाप छोड़ी.

वीरभद्र सिंह वर्ष 1998 से 2003 तक वह सदन में नेता प्रतिपक्ष रहे. फिर 6 मार्च 2003 से 30 दिसंबर 2007 तक उन्होंने सीएम की कुर्सी संभाली. बाद में 2007 में प्रदेश में भाजपा की सरकार बनी. वीरभद्र सिंह रोहड़ू से विधायक चुने गए थे. इसी बीच, 2009 में वह मंडी सीट से लोकसभा चुनाव जीत कर सांसद बने. वर्ष 2012 में वीरभद्र सिंह फिर से प्रदेश की राजनीति में लौटे. परिसीमन आयोग की रिपोर्ट लागू होने के बाद वीरभद्र सिंह का पारंपरिक रोहड़ू चुनाव क्षेत्र आरक्षित हो गया. लिहाजा वह शिमला ग्रामीण से चुनाव जीत कर सीएम बने.

ये भी पढ़ें: कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष राठौर का बयान: मेरे नेतृत्व में लड़ा जाएगा 2022 विधानसभा चुनाव

वीरभद्र सिंह ने 25 दिसंबर 2012 से 27 दिसंबर 2017 तक ये पद संभाला. अंतिम विधानसभा चुनाव उन्होंने अर्की से लड़ा और जीत हासिल की. यदि आंकड़ों के आइने में देखा जाए तो वीरभद्र सिंह छह बार सीएम रहे. इस सूची में उनसे आगे सिक्किम के सीएम पवन कुमार चामलिंग हैं. पश्चिमी बंगाल के ज्योति बसु, अरुणाचल प्रदेश के गेगांप अपांग, ओड़ीशा के नवीन पटनायक, मणिपुर के ललथनहवला ही वीरभद्र सिंह से अधिक समय सीएम रहे हैं.

वीरभद्र सिंह का राजनीतिक कद इतना बड़ा रहा है कि सदन में उनकी उपस्थिति ही कांग्रेस के लिए आत्मविश्वास का कारण होती थी. कांग्रेस वीरभद्र सिंह के मार्गदर्शन में ही सदन में अपनी रणनीति बनाती थी, लेकिन नियती ने कांग्रेस और राजनीति से वीरभद्र सिंह को छीन लिया है. इस बार 34 साल बाद ये पहला मौका होगा, जब राजनीति के राजा वीरभद्र सिंह सदन में नहीं होंगे. इस बार सिर्फ उनकी स्मृतियां शेष रहेंगी.

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शिमला: साढ़े तीन दशक तक हिमाचल की विधानसभा (Himachal Assembly) को अपनी मौजूदगी से गुलजार करने वाले राजनीति के राजा इस बार सदन में नहीं होंगे. कुल 34 साल में ये पहली दफा है जब सदन में किसी न किसी रूप में मौजूद रहने वाले वीरभद्र सिंह (Virbhadra Singh) की इस बार स्मृतियां ही गूंजेंगी. देह से स्मृति हुए कांग्रेस के दिग्गज नेता वीरभद्र सिंह को हिमाचल विधानसभा याद करेगी. सोमवार को विधानसभा का मानसून सेशन (Monsoon Session) शुरू हो रहा है. सेशन में पहले ही दिन वीरभद्र सिंह और नरेंद्र बरागटा (Narinder Bragta) को श्रद्धा सुमन अर्पित किए जाएंगे.

वीरभद्र सिंह छह बार हिमाचल के सीएम रहे. वे नेता प्रतिपक्ष भी रहे और इस बार अर्की से विधायक थे. सेहत नासाज होने के बावजूद वे सदन में आते रहे. बजट सेशन में सभी ने वो दृश्य भी देखा जब वीरभद्र सिंह को सांस लेने में तकलीफ हो रही थी तो पिछली सीट से उठकर विक्रमादित्य सिंह (MLA Vikramaditya Singh) आगे आए और उन्हें सहारा दिया. तब वीरभद्र सिंह ने विक्रमादित्य का हाथ चूमकर अपना स्नेह प्रकट किया था. चाहे सीएम की कुर्सी पर रहते हुए बजट पेश करना और विपक्ष के हमलों का जवाब देना हो या फिर विपक्ष में रहते हुए सत्ता पक्ष को घेरना, वीरभद्र सिंह की मौजूदगी हमेशा से कांग्रेस के लिए बूस्टर का काम करती थी. अब न तो सदन में वीरभद्र सिंह की हाजिर जवाबी देखने को मिलेगी और न ही उनका कड़क स्वभाव. अलबत्ता हिमाचल विधानसभा के भीतर व परिसर के आसपास उनकी स्मृतियां जरूर तैरती रहेंगी.

वीडियो.

किसी भी राजनेता के लिए ये दुर्लभ उपलब्धि है कि वो साढ़े तीन दशक तक लगातार सदन में सक्रिय रहे. छह बार हिमाचल के मुख्यमंत्री रहे वीरभद्र सिंह ने 21 साल और 11 दिन इस पद को संभाला. इस तरह से 21 साल तक तो वे सदन के नेता के तौर पर हिमाचल विधानसभा में रहे हैं. फिर 1998 व 2007 में विपक्ष में नेता प्रतिपक्ष रहे. मौजूदा विधानसभा में वे विधायक के तौर पर थे. चूंकि उनकी सेहत ठीक नहीं रहती थी, लिहाजा मुकेश अग्निहोत्री (Mukesh Agnihotri) सदन में कांग्रेस की अगुवाई करते हैं.

वीरभद्र सिंह करीब 13 साल तक विपक्ष में रहे. हिमाचल में 2012 से 2017 तक वीरभद्र सिंह मुख्यमंत्री थे. ये सीएम के तौर पर उनकी छठी पारी थी. 2017 के चुनाव में वे अर्की से लड़े और जीते. अपनी सीट उन्होंने बेटे विक्रमादित्य सिंह को दी. इस तरह सदन में उम्रदराज नेता वीरभद्र सिंह व उनके बेटे विक्रमादित्य सिंह के रूप में पिता-पुत्र की जोड़ी ने प्रवेश किया. बीमार होने के बावजूद भी वीरभद्र सिंह सदन में आते रहे. अपने अंतिम बजट भाषण में उन्होंने चार घंटे से भी अधिक समय तक अंग्रेजी में बजट पेश किया. बाद में कहा कि थकना उनका स्वभाव नहीं है और वे अभी भी रिज तक दौड़ लगा सकते हैं. कह सकते हैं कि हिमाचल विधानसभा उनके इसी अंदाज को बहुत मिस करेगी.

वीरभद्र सिंह 8 अप्रैल 1983 से 5 मार्च 1990 तक लगातार दो बार सीएम रहे, फिर साल 1990 के चुनाव में कांग्रेस पराजित हुई तो शांता कुमार के नेतृत्व में भाजपा की सरकार आई. तब वीरभद्र सिंह विपक्ष में रहे. बाबरी ढांचे के विध्वंस के बाद जब शांता कुमार की सरकार गिरा दी गई तो 1993 में जीतकर कांग्रेस ने फिर से वीरभद्र को नेता चुना. तब वीरभद्र सिंह ने 3 दिसंबर 1993 से 23 मार्च 1998 तक सीएम के तौर कुर्सी संभाली और सदन में अपनी छाप छोड़ी.

वीरभद्र सिंह वर्ष 1998 से 2003 तक वह सदन में नेता प्रतिपक्ष रहे. फिर 6 मार्च 2003 से 30 दिसंबर 2007 तक उन्होंने सीएम की कुर्सी संभाली. बाद में 2007 में प्रदेश में भाजपा की सरकार बनी. वीरभद्र सिंह रोहड़ू से विधायक चुने गए थे. इसी बीच, 2009 में वह मंडी सीट से लोकसभा चुनाव जीत कर सांसद बने. वर्ष 2012 में वीरभद्र सिंह फिर से प्रदेश की राजनीति में लौटे. परिसीमन आयोग की रिपोर्ट लागू होने के बाद वीरभद्र सिंह का पारंपरिक रोहड़ू चुनाव क्षेत्र आरक्षित हो गया. लिहाजा वह शिमला ग्रामीण से चुनाव जीत कर सीएम बने.

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वीरभद्र सिंह ने 25 दिसंबर 2012 से 27 दिसंबर 2017 तक ये पद संभाला. अंतिम विधानसभा चुनाव उन्होंने अर्की से लड़ा और जीत हासिल की. यदि आंकड़ों के आइने में देखा जाए तो वीरभद्र सिंह छह बार सीएम रहे. इस सूची में उनसे आगे सिक्किम के सीएम पवन कुमार चामलिंग हैं. पश्चिमी बंगाल के ज्योति बसु, अरुणाचल प्रदेश के गेगांप अपांग, ओड़ीशा के नवीन पटनायक, मणिपुर के ललथनहवला ही वीरभद्र सिंह से अधिक समय सीएम रहे हैं.

वीरभद्र सिंह का राजनीतिक कद इतना बड़ा रहा है कि सदन में उनकी उपस्थिति ही कांग्रेस के लिए आत्मविश्वास का कारण होती थी. कांग्रेस वीरभद्र सिंह के मार्गदर्शन में ही सदन में अपनी रणनीति बनाती थी, लेकिन नियती ने कांग्रेस और राजनीति से वीरभद्र सिंह को छीन लिया है. इस बार 34 साल बाद ये पहला मौका होगा, जब राजनीति के राजा वीरभद्र सिंह सदन में नहीं होंगे. इस बार सिर्फ उनकी स्मृतियां शेष रहेंगी.

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