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हाईकोर्ट का अहम फैसला, पेंशन के लिए गिनी जाएगी सरकारी नौकरी में अनुबंध सेवा अवधि

सरकारी नौकरी में अनुबंध सेवा अवधि भी पेंशन के लिए गिनी जाएगी. हाईकोर्ट ने इस संदर्भ में गुरुवार को एक अहम फैसला दिया है. हाईकोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति तरलोक सिंह चौहान व न्यायमूर्ति सीबी बारोवालिया की खंडपीठ ने ये फैसला सुनाया है.

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हिमाचल हाईकोर्ट
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Published : Dec 26, 2019, 8:31 PM IST

शिमला: सरकारी नौकरी में अनुबंध सेवा अवधि भी पेंशन के लिए गिनी जाएगी. हाईकोर्ट ने इस संदर्भ में गुरुवार को एक अहम फैसला दिया है. हाईकोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति तरलोक सिंह चौहान व न्यायमूर्ति सीबी बारोवालिया की खंडपीठ ने ये फैसला सुनाया है. अदालत में दाखिल याचिका के अनुसार एक आयुर्वेदिक डॉक्टर की विधवा शीला देवी ने पारिवारिक पेंशन प्रदान करने का आग्रह किया था. याचिका में दिए तथ्यों के अनुसार प्रार्थी के पति को वर्ष 1999 में आयुर्वेदिक डॉक्टर के पद पर अनुबंध के आधार पर नियुक्ति मिली थी.

वर्ष 2009 को उसकी सेवाओं को नियमित कर दिया गया था. 23 जनवरी 2011 को प्रार्थी के पति का देहांत हो गया था. प्रार्थी की ओर से राज्य सरकार के समक्ष पेंशन के लिए आवेदन दिया गया था. जिसे राज्य सरकार की ओर से यह कहकर रद्द कर दिया गया था कि प्रार्थी के पति को अनुबंध के आधार पर नियुक्ति प्रदान की गई थी और अनुबंध के आधार पर दी गई सेवाओं को पेंशन के लिए नहीं गिना जा सकता. खंडपीठ ने प्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा विभिन्न मामलों में दिए गए फैसलों का अवलोकन करने के पश्चात यह पाया कि प्रार्थी का पेंशन दिए जाने के लिए दायर किया गया मामला जायज है.

न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि जीवन के अच्छे दिनों में कम सैलरी पर अनुबंध के आधार पर दी गई सेवाओं से राज्य सरकार को ही लाभ हुआ है. इस दौरान दी गई सेवाओं को पेंशन के लिए न गिना जाना राज्य सरकार के अनुचित व्यापारी जैसे व्यवहार को दर्शाता है. कानून इसकी अनुमति प्रदान नहीं करता है न्यायालय ने प्रार्थी के पति द्वारा अनुबंध के आधार पर दी गई सेवाओं को पेंशन के लिए न्याय संगत पाते हुए राज्य सरकार को यह आदेश जारी किए कि वह प्रार्थी उसके द्वारा दाखिल की गई याचिका के 3 वर्ष पहले से पेंशन अदा करे.

ये भी पढ़ें: सरकार के जश्न पर बरसे पीसीसी चीफ, कहा- जनता से किए एक भी वादे नहीं हुए पूरे

शिमला: सरकारी नौकरी में अनुबंध सेवा अवधि भी पेंशन के लिए गिनी जाएगी. हाईकोर्ट ने इस संदर्भ में गुरुवार को एक अहम फैसला दिया है. हाईकोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति तरलोक सिंह चौहान व न्यायमूर्ति सीबी बारोवालिया की खंडपीठ ने ये फैसला सुनाया है. अदालत में दाखिल याचिका के अनुसार एक आयुर्वेदिक डॉक्टर की विधवा शीला देवी ने पारिवारिक पेंशन प्रदान करने का आग्रह किया था. याचिका में दिए तथ्यों के अनुसार प्रार्थी के पति को वर्ष 1999 में आयुर्वेदिक डॉक्टर के पद पर अनुबंध के आधार पर नियुक्ति मिली थी.

वर्ष 2009 को उसकी सेवाओं को नियमित कर दिया गया था. 23 जनवरी 2011 को प्रार्थी के पति का देहांत हो गया था. प्रार्थी की ओर से राज्य सरकार के समक्ष पेंशन के लिए आवेदन दिया गया था. जिसे राज्य सरकार की ओर से यह कहकर रद्द कर दिया गया था कि प्रार्थी के पति को अनुबंध के आधार पर नियुक्ति प्रदान की गई थी और अनुबंध के आधार पर दी गई सेवाओं को पेंशन के लिए नहीं गिना जा सकता. खंडपीठ ने प्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा विभिन्न मामलों में दिए गए फैसलों का अवलोकन करने के पश्चात यह पाया कि प्रार्थी का पेंशन दिए जाने के लिए दायर किया गया मामला जायज है.

न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि जीवन के अच्छे दिनों में कम सैलरी पर अनुबंध के आधार पर दी गई सेवाओं से राज्य सरकार को ही लाभ हुआ है. इस दौरान दी गई सेवाओं को पेंशन के लिए न गिना जाना राज्य सरकार के अनुचित व्यापारी जैसे व्यवहार को दर्शाता है. कानून इसकी अनुमति प्रदान नहीं करता है न्यायालय ने प्रार्थी के पति द्वारा अनुबंध के आधार पर दी गई सेवाओं को पेंशन के लिए न्याय संगत पाते हुए राज्य सरकार को यह आदेश जारी किए कि वह प्रार्थी उसके द्वारा दाखिल की गई याचिका के 3 वर्ष पहले से पेंशन अदा करे.

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हाईकोर्ट का अहम फैसला, पेंशन के लिए गिनी जाएगी सरकारी नौकरी में अनुबंध सेवा अवधि
शिमला। सरकारी नौकरी में अनुबंध सेवा अवधि भी पेंशन के लिए गिनी जाएगी। हाईकोर्ट ने इस संदर्भ में गुरूवार को एक अहम फैसला दिया है। हाईकोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति तरलोक सिंह चौहान व न्यायमूर्ति सीबी बारोवालिया की खंडपीठ ने ये फैसला सुनाया। अदालत में दाखिल एक याचिका के अनुसार एक आयुर्वेदिक डॉक्टर की विधवा शीला देवी ने पारिवारिक पेंशन प्रदान करने का आग्रह किया था। याचिका में दिए तथ्यों के अनुसार प्रार्थी के पति को वर्ष 1999 में आयुर्वेदिक डॉक्टर के पद पर अनुबन्ध के आधार पर नियुक्ति मिली थी। वर्ष 2009 को उसकी सेवाओं को नियमित कर दिया गया था। 23 जनवरी 2011 को प्रार्थी के पति का देहांत हो गया था। प्रार्थी की ओर से राज्य सरकार के समक्ष पेंशन के लिए आवेदन दिया गया था। जिसे राज्य सरकार की ओर से यह कहकर रद्द कर दिया गया था कि प्रार्थी के पति को अनुबंध के आधार पर नियुक्ति प्रदान की गई थी और अनुबंध के आधार पर दी गई सेवाओं को पेंशन के लिए नहीं गिना जा सकता।  खंडपीठ ने प्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा विभिन्न मामलों में दिए गए फैसलों का अवलोकन करने के पश्चात यह पाया कि प्रार्थी का पेंशन दिए जाने के लिए दायर किया गया मामला जायज है। न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि जीवन के अच्छे दिनों में कम सैलरी पर अनुबंध के आधार पर दी गई सेवाओं से राज्य सरकार को ही लाभ हुआ है। इस दौरान दी गई सेवाओं को पेंशन के लिए न गिना जाना राज्य सरकार के अनुचित व्यापारी जैसे व्यवहार को दर्शाता है। कानून इसकी अनुमति प्रदान नहीं करता है। न्यायालय ने प्रार्थी के पति द्वारा अनुबंध के आधार पर दी गई सेवाओं को पेंशन के लिए न्याय संगत पाते हुए राज्य सरकार को यह आदेश जारी किए कि वह प्रार्थी उसके द्वारा दाखिल की गई याचिका के  3 वर्ष  पहले से पेंशन अदा करे। 
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