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2004 में हिमाचल के जंगलों में विचरण कर रहे थे 700 तेंदुए, अब 17 साल बाद इनकी गिनती करेगा वन विभाग - हिमाचल में वन्य प्राणियों की संख्या

हिमाचल में इंसान और जंगली जानवरों के बीच टकराव को समझने और उसका समाधान निकालने के लिए तेंदुओं व अन्य वन्य प्राणियों की गणना (Leopard in Himachal forest) का अहम रोल है. शहरी क्षेत्रों में तेंदुओं की ज्यादा हलचल को देखते हुए अब वन्य प्राणी विभाग (Wildlife Department in Himachal) जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (Geological Survey of India) के साथ मिलकर तेंदुओं की गिनती करेगा. हिमाचल में 2004 में आखिरी बार तेंदुओं की गणना हुई थी.

Forest department will count leopard in Himachal.
हिमाचल में तेंदुए की गिनती करेगा वन विभाग.
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Published : Dec 2, 2021, 9:41 PM IST

शिमला: विगत एक दशक में हिमाचल प्रदेश इंसान और जंगली जानवरों के टकराव को लेकर सुर्खियों में बना हुआ है. जंगली जानवरी इनसानी बस्तियों में आ रहे हैं. हाल ही में शिमला में दो बच्चों को तेंदुए ने अपना शिकार बनाया है. इंसान और जंगली जानवरों के बीच टकराव को समझने और उसका समाधान निकालने के लिए तेंदुओं व अन्य वन्य प्राणियों की गणना (Leopard in Himachal forest) का अहम रोल है.

हिमाचल में 2004 में आखिरी बार तेंदुओं की गणना हुई थी. उस समय प्रदेश में सात सौ के करीब तेंदुए पाए गए थे, लेकिन उसके बाद सत्रह साल से हिमाचल प्रदेश में इनकी गणना नहीं हुई है. अब वन्य प्राणी विभाग (Wildlife Department in Himachal) जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (Geological Survey of India) के साथ मिलकर तेंदुओं की गिनती करेगा. यही नहीं, वन्य प्राणी विंग तेंदुओं के साथ भालुओं की गणना में भी जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया का मदद लेगा.

बता दें कि वन्य प्राणी किसी भी देश की समृद्ध वन्य संपदा का पैमाना होते हैं. हिमाचल में वन्य प्राणियों के संरक्षण में ऐसे अध्ययन बहुत उपयोगी हैं. हिमाचल प्रदेश का फॉरेस्ट कवर (Forest cover of Himachal Pradesh) बेशक निरंतर बढ़ रहा है, लेकिन यहां वन्य प्राणी भी इनसानी बस्तियों की तरफ आ रहे हैं. इंसान और जंगली जानवरों का टकराव बढ़ने के प्रमुख कारण तलाशने की जरूरत है. तेंदुओं के स्वभाव में कौन से परिवर्तन आ रहे हैं और उनके नरभक्षी होने का क्या कारण है? ये अध्ययन वन्य प्राणियों के संसार को समझने में मदद करता है. ऐसे अध्ययन का पहला चरण वन्य प्राणियों की गणना को ही माना जाता है.

राज्य सरकार के वन मंत्री राकेश पठानिया (Forest Minister Rakesh Pathania on Leopard in Himachal) का कहना है कि वन्य प्राणी विंग निरंतर वनों में विचरण करने वाले अलग अलग जीवों को लेकर अध्ययन करता है. अब तेंदुओं की गणना का काम फिर से किया जा रहा है. पूर्व आईएएफएस अधिकारी डॉ. केएस तंवर के अनुसार हिमाचल में वन्य प्राणियों की संख्या (Number of wildlife in Himachal) बढ़ रही है. ऐसे में उनकी गणना करना बहुत जरूरी है. वन्य प्राणियों की संख्या बढ़ती है तो वे इंसानी बस्तियों का रुख करते हैं.

ये भी पढ़ें: हिमाचल में कोरोना वैक्सीनेशन की दूसरी डोज लगाने के लक्ष्य का 98% हासिल, CM ने अधिकारियों को दिये ये आदेश

हिमाचल में कई शहर ऐसे हैं, जिनके साथ जंगल भी लगते हैं. शिमला शहर की ही बात की जाए तो इसके सभी उपनगरों के आसपास घने और कम घने जंगल हैं. यदि व्यस्क तेंदुओं की जोड़ी इन वनों में आ जाए तो उनके शावक भी होंगे. शावकों को लेकर ये वन्य प्राणी बहुत संवेदनशील होते हैं. शिमला शहर में इन दिनों जंगलों के आसपास तेंदुए (Leopards around forests in Shimla) विचरण करते हुए दिखाई दे रहे हैं. ऐसे में ये पता लगाया जाना बहुत जरूरी है कि इनकी संख्या कितनी है और इनके स्वभाव में कैसे परिवर्तन आ रहे हैं.

डॉ. तंवर का कहना है कि वन्य प्राणियों के भोजन की आदतों में बदलाव पर भी अध्ययन जरूरी है. इनकी दिनचर्या और ये कौन से स्थलों को अधिक पसंद करते हैं, इस बारे में अध्ययन का दस्तावेजीकरण आवश्यक है. इसके लिए सबसे पहले गणना का काम होना चाहिए. यहां बता दें कि पिछले कुछ समय में शिमला में ही तेंदुए ने दो बच्चों (leopard attack on child in shimla) को मार डाला. वन्य प्राणी विंग तेंदुओं के हिंसक और नरभक्षी होने के कारणों (cannibalistic leopards in himachal) का पता लगा रहा है. उधर, आम जनता ने तेंदुओं के हमलों का शिकार होने पर प्रभावित परिवार के लिए दस लाख रुपए की मुआवजा राशि की मांग की है. अभी ये राशि चार लाख रुपए है.

ये भी पढ़ें: अंबेडकर कॉनक्लेव 2021: बाबा साहब के प्रशासनिक योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता- राज्यपाल आर्लेकर

शिमला: विगत एक दशक में हिमाचल प्रदेश इंसान और जंगली जानवरों के टकराव को लेकर सुर्खियों में बना हुआ है. जंगली जानवरी इनसानी बस्तियों में आ रहे हैं. हाल ही में शिमला में दो बच्चों को तेंदुए ने अपना शिकार बनाया है. इंसान और जंगली जानवरों के बीच टकराव को समझने और उसका समाधान निकालने के लिए तेंदुओं व अन्य वन्य प्राणियों की गणना (Leopard in Himachal forest) का अहम रोल है.

हिमाचल में 2004 में आखिरी बार तेंदुओं की गणना हुई थी. उस समय प्रदेश में सात सौ के करीब तेंदुए पाए गए थे, लेकिन उसके बाद सत्रह साल से हिमाचल प्रदेश में इनकी गणना नहीं हुई है. अब वन्य प्राणी विभाग (Wildlife Department in Himachal) जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (Geological Survey of India) के साथ मिलकर तेंदुओं की गिनती करेगा. यही नहीं, वन्य प्राणी विंग तेंदुओं के साथ भालुओं की गणना में भी जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया का मदद लेगा.

बता दें कि वन्य प्राणी किसी भी देश की समृद्ध वन्य संपदा का पैमाना होते हैं. हिमाचल में वन्य प्राणियों के संरक्षण में ऐसे अध्ययन बहुत उपयोगी हैं. हिमाचल प्रदेश का फॉरेस्ट कवर (Forest cover of Himachal Pradesh) बेशक निरंतर बढ़ रहा है, लेकिन यहां वन्य प्राणी भी इनसानी बस्तियों की तरफ आ रहे हैं. इंसान और जंगली जानवरों का टकराव बढ़ने के प्रमुख कारण तलाशने की जरूरत है. तेंदुओं के स्वभाव में कौन से परिवर्तन आ रहे हैं और उनके नरभक्षी होने का क्या कारण है? ये अध्ययन वन्य प्राणियों के संसार को समझने में मदद करता है. ऐसे अध्ययन का पहला चरण वन्य प्राणियों की गणना को ही माना जाता है.

राज्य सरकार के वन मंत्री राकेश पठानिया (Forest Minister Rakesh Pathania on Leopard in Himachal) का कहना है कि वन्य प्राणी विंग निरंतर वनों में विचरण करने वाले अलग अलग जीवों को लेकर अध्ययन करता है. अब तेंदुओं की गणना का काम फिर से किया जा रहा है. पूर्व आईएएफएस अधिकारी डॉ. केएस तंवर के अनुसार हिमाचल में वन्य प्राणियों की संख्या (Number of wildlife in Himachal) बढ़ रही है. ऐसे में उनकी गणना करना बहुत जरूरी है. वन्य प्राणियों की संख्या बढ़ती है तो वे इंसानी बस्तियों का रुख करते हैं.

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हिमाचल में कई शहर ऐसे हैं, जिनके साथ जंगल भी लगते हैं. शिमला शहर की ही बात की जाए तो इसके सभी उपनगरों के आसपास घने और कम घने जंगल हैं. यदि व्यस्क तेंदुओं की जोड़ी इन वनों में आ जाए तो उनके शावक भी होंगे. शावकों को लेकर ये वन्य प्राणी बहुत संवेदनशील होते हैं. शिमला शहर में इन दिनों जंगलों के आसपास तेंदुए (Leopards around forests in Shimla) विचरण करते हुए दिखाई दे रहे हैं. ऐसे में ये पता लगाया जाना बहुत जरूरी है कि इनकी संख्या कितनी है और इनके स्वभाव में कैसे परिवर्तन आ रहे हैं.

डॉ. तंवर का कहना है कि वन्य प्राणियों के भोजन की आदतों में बदलाव पर भी अध्ययन जरूरी है. इनकी दिनचर्या और ये कौन से स्थलों को अधिक पसंद करते हैं, इस बारे में अध्ययन का दस्तावेजीकरण आवश्यक है. इसके लिए सबसे पहले गणना का काम होना चाहिए. यहां बता दें कि पिछले कुछ समय में शिमला में ही तेंदुए ने दो बच्चों (leopard attack on child in shimla) को मार डाला. वन्य प्राणी विंग तेंदुओं के हिंसक और नरभक्षी होने के कारणों (cannibalistic leopards in himachal) का पता लगा रहा है. उधर, आम जनता ने तेंदुओं के हमलों का शिकार होने पर प्रभावित परिवार के लिए दस लाख रुपए की मुआवजा राशि की मांग की है. अभी ये राशि चार लाख रुपए है.

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