शिमला: दुनियाभर में आत्महत्या के खिलाफ प्रतिबद्धता और कार्रवाई के लिए 2003 से हर साल 10 सितंबर को विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस (world suicide prevention day) मनाया जाता है. इसे मनाने का उद्देश्य लोगों को इसके प्रति जागरूक करना है. हमारे देश में हर साल एक लाख से अधिक लोग आत्महत्या करते हैं. हिमाचल प्रदेश में भी आत्महत्या के मामले थम नहीं रहे हैं. आये दिन कहीं न कहीं से आत्महत्या के मामले सामने आ रहे हैं.
कहते हैं खोया हुआ हर जीवन किसी न किसी का साथी, संतान, माता-पिता, दोस्त या सहकर्मी होता है. लगभग आत्महत्या के अधिकतर मामलों में लोग गहरे अवसाद में होते हैं. आखिर आत्महत्या की पीछे क्या कारण है, इसे जानने के लिए ईटीवी भारत की टीम ने आईजीएमसी में मनोचिकित्सक डॉ. देवेश शर्मा (Psychiatrist at IGMC Dr Devesh Sharma) से विशेष बात की.
हिमाचल में आत्महत्या करने के कारण: हिमाचल में आत्महत्या के काफी मामले सामने आए हैं. प्राय: इसे नौकरी का खोना या परिवारिक कलह माना जा रहा है, लेकिन आत्महत्या को लेकर आईजीएमसी में मनोचिकित्सा विभाग में सहायक प्रोफेसर डॉ. देवेश शर्मा ने खुलासा किया है कि आत्महत्या के पीछे कई कारण छुपे होते हैं. देवेश शर्मा कहते हैं कि एक ही कारण से व्यक्ति आत्महत्या करे ऐसा कहना सही नहीं है. आत्महत्या करने वालों में 80 से 90 फीसदी मानसिक रोग से पीड़ित होते हैं. जैसे- डिप्रेशन, सिजोफ्रेनिया, मूड डिसऑर्डर, नशे का दुरुपयोग इत्यादि शामिल (Reasons for committing suicide in Himachal) है.
आत्महत्या करने से कैसे बचाएं: मनोचिकित्सक डॉ. देवेश शर्मा का कहना है कि आत्महत्या करने वाला पहले से ही महत्वपूर्ण संकेत दे देता है. जैसे- जिंदगी भारी लगना, जीने की इच्छा न रहना, अपने आप को नुकसान पहुंचाना, भूख न लगना, नींद न आना इत्यादि. उन्होंने कहा कि कई बार व्यक्ति गलती से भी आत्महत्या कर लेता है. ऐसा जो बच गए हैं वो अनुभव साझा करते हैं. उन्होंने कहा कि समय पर संकेतों को समझ कर किसी को आत्महत्या करने से बचाया जा सकता (Experts on World Suicide Prevention Day) है.
ऐसे की आत्महत्या: मनोचिकित्सक ने बताया कि हर सप्ताह अब लोगों द्वारा आत्महत्या करने के मामले सामने आ रहे हैं. उन्होंने बताया कि 2022 में अब तक 86 महिलाओं को आत्महत्या के लिए उकसाया गया, जबकि 33 पुरूषों ने भी आत्महत्या के लिए उकसाने के कारण अपनी जान गंवाई. इनमें पुलिस ने आत्महत्या के उकसाने से जुड़ी आइपीसी की धारा 306 में कारवाई की. इसके अलावा इसी अवधि में 1325 लोगों ने जहर खाकर या गले में फंदा डालकर आत्महत्या की. इनमें 956 पुरूष, 369 महिलाएं शामिल रहीं. इनमें पुलिस ने सीआरपीसी की धारा 174 के तहत कारवाई की.
2022 में अब तक के आत्महत्या उकसाने के मामले: बीबीएन 14, बिलासपुर 13, चंबा 5, हमीरपुर 11, कांगड़ा 22, किन्नौर 0, कुल्लू 3, लाहौल 0, मंडी 19, नुरपुर 4, शिमला 10, सिरमौर 6, सोलन 4 और ऊना 8. जिसकी कुल संख्या 119 है.
2022 में 174 सीआरपीसी के मामले: बीबीएन 68, बिलासपुर 83, चंबा 41, हमीरपुर 100, कांगड़ा 232, किन्नौर 21, कुल्लू 57, लाहौल 2, मंडी 143, नुरपुर 69, शिमला 153, सिरमौर 113, सोलन 114 और ऊना 129. कुल संख्या 1325.
आत्महत्या के कारण: वर्ष 2021 में कुल 886 लोगों ने आत्महत्याएं की. इनमें वित्तीय दिवालियापन 17, विवाह संबंधी 65, पारिवारिक 179, नशा 21, बेरोजगारी 33, स्वास्थ्य 184, परीक्षा में फेल 2, प्रेम प्रसंग 28, अन्य कारणों से 357 आत्महत्या हुई.
2022 के अब तक के आत्महत्या मामले: बद्दी 65, बिलासपुर 57, चंबा 31, हमीरपुर 65, कांगड़ा 206, किन्नौर 13, कुल्लू 40, लाहौल 0, मंडी 111, शिमला 80, सिरमौर 72, सोलन 71, ऊना 75. कुल संख्या 886.
साढ़े पांच साल में 3260 लोगों ने मौत को लगाया गले: पिछले साढ़े पांच साल में 3260 लोगों ने मौत को गले लगाया है. आंकड़े गवाह है कि मजदूर, गृहिणियां, निजी क्षेत्र के कर्मचारी, छात्र ज्यादा संख्या में आत्मघाती कदम उठा रहे हैं. इसके लिए पारिवारिक रिश्तों में आई दरार, नैतिक मूल्यों में गिरावट, नशे का चलन, संस्कार की कमी, रोजगार के साधनों का अभाव और कृषि, पशुपालन से विमुख होना जैसी कई वजह सामने आई हैं.
क्या कार्रवाई करती है पुलिस: अगर कहीं किसी ने जहरीला पदार्थ निगल लिया या फंदा लगाया तो पुलिस सीआरपीसी की धारा 174 के तहत कार्रवाई करती है. अगर स्वजन आरोप लगाते हैं कि आत्महत्या के लिए उकसाया गया या प्रताड़ना से तंग आकर कदम उठाया तो आइपीसी की धारा 306 यानी आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला दर्ज होता है. ऐसा तभी होता है अगर पुलिस को मौके से कोई सुसाइड नोट या अन्य सबूत मिले हों.
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