शिमला: कर्ज लेकर घी पीने को चार्वाक ने बुरा नहीं माना था. हिमाचल सरकार की गाड़ी कर्ज के सहारे ही चल रही है. लगातार बढ़ रहे वित्तीय बोझ के कारण जयराम ठाकुर के नेतृत्व वाली सरकार ने खर्च चलाने के लिए एक हजार करोड़ रुपए का लोन लेने जा रही थी. इसके लिए बिड भी जारी कर दी थी. फिर ऐसा हुआ कि जिस ब्याज दर पर कर्ज मिल रहा था, वो अधिक थी. पहले से ही कर्ज पर भारी भरकम ब्याज चुका रही राज्य सरकार ने हाथ पीछे खींच लिए. फैसला हुआ कि ये कर्ज न लिया जाए. वहीं, इस बीच राज्य सरकार को केंद्र से एक राहत मिली.
केंद्र से राज्य सरकार को चार हजार करोड़ रुपए (Himachal State Debt status) से अधिक की राहत मिल गई. ऐसे में राज्य सरकार ने लोन लेने का फैसला बदल दिया. हालांकि सरकार को ये लोन लेना ही होगा, लेकिन अब इसके लिए कुछ इंतजार किया जा सकता है. प्रदेश सरकार ने पहले पांच-पांच सौ करोड़ रुपए की दो किश्तों में लोन लेना था. इसके लिए तय नियमों के अनुसार रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के जरिए बिड हो चुकी थी, परंतु लोन पर ब्याज दर अधिक होने के कारण राज्य सरकार ने अब ये आइडिया छोड़ दिया.
हालांकि हिमाचल के पूर्ण राज्यत्व दिवस से एक दिन पहले ये पैसा आ जाना (Debt on Himachal government) था. यानी 24 जनवरी को हिमाचल सरकार के खाते में लोन का पैसा आ जाना था. उधर, केंद्र सरकार ने मौजूदा वित्त वर्ष की आखिरी तिमाही में हिमाचल सरकार की लोन लिमिट को बढ़ा दिया. इस वित्त वर्ष की आखिरी तिमाही जनवरी से मार्च महीने की है. इस आखिरी तिमाही हिमाचल सरकार को केंद्र की तरफ से चार हजार करोड़ रुपए से अधिक के लोन की मंजूरी मिल गई है. ये कुल राशि 4078 करोड़ रुपए की है. इससे पहले राज्य सरकार की लोन लिमिट 5000 करोड़ रुपए की थी.
इसमें से 4000 करोड़ रुपए का लोन लिया (DEBT BURDEN ON HIMACHAL) जा चुका है. एक हजार करोड़ रुपए का लोन दिसंबर तक की लिमिट से लेना अभी बाकी है. चूंकि हिमाचल प्रदेश में सरकार ने नए वेतन आयोग का लाभ कर्मचारियों को देना था और उसके लिए खजाने में पैसा चाहिए था तो सरकार ने हर माह लोन लेने से परहेज किया. वैश्विक महामारी कोरोना के दौरान नए रूप में केंद्र सरकार दिसंबर तक की लिमिट पहले तय करती है. इसके बाद आखिरी तिमाही में यानी जनवरी से मार्च तक के तीन महीनों के लिए अलग से लिमिट तय होती है.