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बड़ा सवाल: वेतन और पेंशन पर खर्च हो रहा बजट का बड़ा हिस्सा, क्या एक लाख करोड़ हो जाएगा हिमाचल का कर्ज

हिमाचल कर्ज के जाल से नहीं निकल पा रहा है. कारण ये है कि सरकार के पास संसाधन कम है, खर्च ज्यादा और वेतन-पेंशन का बड़ा बोझ. हिमाचल प्रदेश की आर्थिक स्थिति (Himachal Pradesh economic condition) ऐसी नहीं है कि राज्य अपने बूते विकास के लिए संसाधन जुटा सके. हिमाचल की सरकारें केंद्रीय मदद और एक्सटर्नल एडेड प्रोडक्ट्स पर ही अधिकांश रूप से निर्भर करती हैं. हिमाचल पर इस समय 65 हजार करोड़ के करीब कर्ज (Debt on Himachal government) है. यह निरंतर बढ़ता जा रहा है. ऐसे में आशंका जताई जा रही है कि आने वाले दस साल या उससे पहले ही ये कर्ज एक लाख करोड़ रुपये पार हो जाएगा.

Debt on Himachal government
एक लाख करोड़ हो जाएगा हिमाचल का कर्ज.
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Published : Jul 1, 2022, 7:42 PM IST

शिमला: छोटा पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश निरंतर बड़े कर्ज के बोझ (Debt on Himachal government) तले दबता जा रहा है. इस समय हिमाचल प्रदेश में करीब 65 हजार करोड़ रुपये का कर्ज है. राज्य सरकार ने इसी दौरान एक हजार करोड़ रुपये का कर्ज और लेने की अधिसूचना जारी की है.

हिमाचल के पास खुद के आर्थिक संसाधन न के बराबर हैं. यदि कर्ज लेने की रफ्तार यही रही तो आने वाले समय में हिमाचल प्रदेश पर एक लाख करोड़ रुपये का कर्ज हो जाएगा. ऐसा इसलिए कि हिमाचल सरकार के बजट का बड़ा हिस्सा कर्मचारियों के वेतन और पेंशनर्स की पेंशन पर खर्च (Himachal budget spent on salary and pension) हो जाता है. फिर एक हिस्सा लिए गए कर्ज को लौटाने और एक हिस्सा कर्ज के ब्याज की अदायगी पर चला जाता है. इस तरह विकास कार्यों के लिए बहुत कम राशि बचती है.

इन पर निर्भर है हिमाचल का विकास: हिमाचल सरकार प्रदेश में विकास के लिए केंद्र और केंद्रीय योजनाओं सहित एक्सटर्नल फंडिड प्रोजेक्ट्स पर निर्भर करती है. अभी राहती का बात है कि हिमाचल प्रदेश को वित्त आयोग की तरफ से रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट और केंद्र की तरफ से जीएसटी का हिस्सा मिलता है. आने वाले समय में तय नियमों के अनुसार रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट का पैसा धीरे-धीरे कम होता जाएगा. इसी तरह अभी केंद्र से जीएसटी कंपनसेशन का पैसा मिलने पर भी संशय है.

ऐसे में हिमाचल को अपनी आर्थिक गाड़ी (Himachal State Debt status) कर्ज लेकर ही चलानी होगी. इससे भी बड़ी चिंता की बात है कि हिमाचल सरकार ने नए वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू किया है. उसके बाद राज्य सरकार पर पांच हजार करोड़ रुपये के एरियर के भुगतान का भी बोझ आएगा. इसके अलावा सरकार ने कर्मचारियों को कई वित्तीय लाभ दिए हैं. ऐसे में राज्य सरकार का खर्च निरंतर बढ़ेगा और आमदनी बढ़ने के आसार खास नहीं हैं.

कैसी है हिमाचल की आर्थिक स्थिति: आइए, देखते हैं कि इस समय हिमाचल सरकार की आर्थिक स्थिति (Himachal Pradesh economic condition) क्या है और आने वाला समय कैसे संकट से भरपूर होगा. हिमाचल पर इस समय करीब 65 हजार करोड़ रुपये का कर्ज है. पांच साल पहले जब वीरभद्र सिंह के नेतृत्व वाली सरकार सत्ता से हटी थी तो हिमाचल प्रदेश पर कर्ज का बोझ 47906 करोड़ रुपये था. उससे पहले जब प्रेम कुमार धूमल के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने 2012 में सत्ता छोड़ी तो हिमाचल प्रदेश पर 28760 करोड़ रुपये का कर्ज था.

स्थिति चिंताजनक: ऐसे में कह सकते हैं कि दस साल में हिमाचल प्रदेश पर दोगुने से अधिक कर्ज हो गया है. यानी हिमाचल पर दस साल में 36 हजार करोड़ रुपये से अधिक का कर्ज बढ़ गया. अब स्थिति चिंताजनक इसलिए है कि हिमाचल सरकार ने नए वेतन आयोग को लागू किया है. सरकारी कर्मियों को एरियर देना है और पेंशनर्स को भी बढ़ी हुई पेंशन भी हर महीने देय होती है. ऐसे में आने वाले दस साल या उससे पहले ही ये कर्ज एक लाख करोड़ रुपये पार हो जाएगा.

ये है बजट के सौ रुपये का हाल: हिमाचल प्रदेश में मार्च 2022 को सीएम जयराम ठाकुर ने पचास हजार करोड़ रुपये से अधिक का बजट पेश किया था. यदि बजट को सौ रुपये के मानक पर देखा जाए तो हिमाचल के बजट का बड़ा हिस्सा सरकारी कर्मियों के वेतन व पेंशन पर खर्च हो रहा है. सरकारी कर्मियों के वेतन पर सौ रुपये में से 25.31 रुपये खर्च हो रहे हैं. इसी तरह पेंशन पर 14.11 रुपये खर्च किए जा रहे हैं.

इसके अलावा हिमाचल को ब्याज की अदायगी पर 10 रुपये, लोन की अदायगी पर 6.64 रुपये चुकाने पड़ रहे हैं. इसके बाद सरकार के पास विकास के लिए महज 43.94 रुपये ही बचते हैं. ये हाल तब है, जब अभी नए वेतन आयोग की देनदारियों पर बात नहीं हुई है. अकेले एरियर के पांच हजार करोड़ रुपये से अधिक की रकम बनती है.

नौ सौ करोड़ से अधिक की मदद का सहारा: हिमाचल सरकार को वित्त आयोग के रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट के तौर पर नौ सौ करोड़ रुपये हर महीने मिलते हैं. कर्मचारियों के वेतन पर हर महीने 1200 करोड़ रुपये के करीब खर्च होता है. इसका अधिकांश भार रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट उठा लेता है. यदि हिमाचल सरकार को ये सहारा भी न मिले तो प्रदेश का कर्ज के बोझ तले डूबना तय है.

मौजूदा सरकार ने अब तक करीब 20 हजार करोड़ रुपये का कर्ज (Debt burden on Himachal ) लिया है. अभी हिमाचल सरकार ने एक हजार करोड़ रुपये के कर्ज के लिए और अधिसूचना जारी की है. ये कर्ज 600 करोड़ व 400 करोड़ रुपये की दो किश्तों में लिया जाएगा. हालांकि रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट की मदद के कारण हिमाचल सरकार ने तय लिमिट में ही कर्ज लिया है, लेकिन सरकार बिना कर्ज लिए नहीं चल सकती.

क्या कहते हैं आर्थिक विशेषज्ञ: आर्थिक विशेषज्ञ राजीव सूद का कहना है कि राज्य सरकार को आय के नए संसाधन तलाशने पर गंभीरता से काम करना चाहिए. पर्यटन सेक्टर में काफी संभावनाएं हैं. इसके अलावा कैग रिपोर्ट में हिमाचल सरकार को कृषि व सिंचाई सुविधाओं पर फोकस करने की सलाह दी जा चुकी है. यही नहीं, वित्त आयोग के चेयरमैन एनके सिंह ने भी जयराम सरकार को पर्यटन पर ध्यान देने की सलाह दी गई है. खासकर अनछुए पर्यटन स्थलों को विकसित करने के लिए कहा गया है.

हिमाचल में इस समय कोरोना के बाद बड़ी संख्या में सैलानी आ रहे हैं. टूरिज्म हिमाचल की आर्थिकी के लिए बड़ा सहारा हो सकता है. पूर्व वित्त सचिव केआर भारती का कहना है कि हिमाचल एक पहाड़ी राज्य है और यहां पर्यटन तथा खेती-बागवानी के अलावा आय के खास साधन नहीं हैं. ये सही है कि केंद्रीय मदद मिलती है, लेकिन हिमाचल को अपने आर्थिक संसाधन खुद जुटाने होंगे.

शिमला: छोटा पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश निरंतर बड़े कर्ज के बोझ (Debt on Himachal government) तले दबता जा रहा है. इस समय हिमाचल प्रदेश में करीब 65 हजार करोड़ रुपये का कर्ज है. राज्य सरकार ने इसी दौरान एक हजार करोड़ रुपये का कर्ज और लेने की अधिसूचना जारी की है.

हिमाचल के पास खुद के आर्थिक संसाधन न के बराबर हैं. यदि कर्ज लेने की रफ्तार यही रही तो आने वाले समय में हिमाचल प्रदेश पर एक लाख करोड़ रुपये का कर्ज हो जाएगा. ऐसा इसलिए कि हिमाचल सरकार के बजट का बड़ा हिस्सा कर्मचारियों के वेतन और पेंशनर्स की पेंशन पर खर्च (Himachal budget spent on salary and pension) हो जाता है. फिर एक हिस्सा लिए गए कर्ज को लौटाने और एक हिस्सा कर्ज के ब्याज की अदायगी पर चला जाता है. इस तरह विकास कार्यों के लिए बहुत कम राशि बचती है.

इन पर निर्भर है हिमाचल का विकास: हिमाचल सरकार प्रदेश में विकास के लिए केंद्र और केंद्रीय योजनाओं सहित एक्सटर्नल फंडिड प्रोजेक्ट्स पर निर्भर करती है. अभी राहती का बात है कि हिमाचल प्रदेश को वित्त आयोग की तरफ से रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट और केंद्र की तरफ से जीएसटी का हिस्सा मिलता है. आने वाले समय में तय नियमों के अनुसार रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट का पैसा धीरे-धीरे कम होता जाएगा. इसी तरह अभी केंद्र से जीएसटी कंपनसेशन का पैसा मिलने पर भी संशय है.

ऐसे में हिमाचल को अपनी आर्थिक गाड़ी (Himachal State Debt status) कर्ज लेकर ही चलानी होगी. इससे भी बड़ी चिंता की बात है कि हिमाचल सरकार ने नए वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू किया है. उसके बाद राज्य सरकार पर पांच हजार करोड़ रुपये के एरियर के भुगतान का भी बोझ आएगा. इसके अलावा सरकार ने कर्मचारियों को कई वित्तीय लाभ दिए हैं. ऐसे में राज्य सरकार का खर्च निरंतर बढ़ेगा और आमदनी बढ़ने के आसार खास नहीं हैं.

कैसी है हिमाचल की आर्थिक स्थिति: आइए, देखते हैं कि इस समय हिमाचल सरकार की आर्थिक स्थिति (Himachal Pradesh economic condition) क्या है और आने वाला समय कैसे संकट से भरपूर होगा. हिमाचल पर इस समय करीब 65 हजार करोड़ रुपये का कर्ज है. पांच साल पहले जब वीरभद्र सिंह के नेतृत्व वाली सरकार सत्ता से हटी थी तो हिमाचल प्रदेश पर कर्ज का बोझ 47906 करोड़ रुपये था. उससे पहले जब प्रेम कुमार धूमल के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने 2012 में सत्ता छोड़ी तो हिमाचल प्रदेश पर 28760 करोड़ रुपये का कर्ज था.

स्थिति चिंताजनक: ऐसे में कह सकते हैं कि दस साल में हिमाचल प्रदेश पर दोगुने से अधिक कर्ज हो गया है. यानी हिमाचल पर दस साल में 36 हजार करोड़ रुपये से अधिक का कर्ज बढ़ गया. अब स्थिति चिंताजनक इसलिए है कि हिमाचल सरकार ने नए वेतन आयोग को लागू किया है. सरकारी कर्मियों को एरियर देना है और पेंशनर्स को भी बढ़ी हुई पेंशन भी हर महीने देय होती है. ऐसे में आने वाले दस साल या उससे पहले ही ये कर्ज एक लाख करोड़ रुपये पार हो जाएगा.

ये है बजट के सौ रुपये का हाल: हिमाचल प्रदेश में मार्च 2022 को सीएम जयराम ठाकुर ने पचास हजार करोड़ रुपये से अधिक का बजट पेश किया था. यदि बजट को सौ रुपये के मानक पर देखा जाए तो हिमाचल के बजट का बड़ा हिस्सा सरकारी कर्मियों के वेतन व पेंशन पर खर्च हो रहा है. सरकारी कर्मियों के वेतन पर सौ रुपये में से 25.31 रुपये खर्च हो रहे हैं. इसी तरह पेंशन पर 14.11 रुपये खर्च किए जा रहे हैं.

इसके अलावा हिमाचल को ब्याज की अदायगी पर 10 रुपये, लोन की अदायगी पर 6.64 रुपये चुकाने पड़ रहे हैं. इसके बाद सरकार के पास विकास के लिए महज 43.94 रुपये ही बचते हैं. ये हाल तब है, जब अभी नए वेतन आयोग की देनदारियों पर बात नहीं हुई है. अकेले एरियर के पांच हजार करोड़ रुपये से अधिक की रकम बनती है.

नौ सौ करोड़ से अधिक की मदद का सहारा: हिमाचल सरकार को वित्त आयोग के रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट के तौर पर नौ सौ करोड़ रुपये हर महीने मिलते हैं. कर्मचारियों के वेतन पर हर महीने 1200 करोड़ रुपये के करीब खर्च होता है. इसका अधिकांश भार रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट उठा लेता है. यदि हिमाचल सरकार को ये सहारा भी न मिले तो प्रदेश का कर्ज के बोझ तले डूबना तय है.

मौजूदा सरकार ने अब तक करीब 20 हजार करोड़ रुपये का कर्ज (Debt burden on Himachal ) लिया है. अभी हिमाचल सरकार ने एक हजार करोड़ रुपये के कर्ज के लिए और अधिसूचना जारी की है. ये कर्ज 600 करोड़ व 400 करोड़ रुपये की दो किश्तों में लिया जाएगा. हालांकि रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट की मदद के कारण हिमाचल सरकार ने तय लिमिट में ही कर्ज लिया है, लेकिन सरकार बिना कर्ज लिए नहीं चल सकती.

क्या कहते हैं आर्थिक विशेषज्ञ: आर्थिक विशेषज्ञ राजीव सूद का कहना है कि राज्य सरकार को आय के नए संसाधन तलाशने पर गंभीरता से काम करना चाहिए. पर्यटन सेक्टर में काफी संभावनाएं हैं. इसके अलावा कैग रिपोर्ट में हिमाचल सरकार को कृषि व सिंचाई सुविधाओं पर फोकस करने की सलाह दी जा चुकी है. यही नहीं, वित्त आयोग के चेयरमैन एनके सिंह ने भी जयराम सरकार को पर्यटन पर ध्यान देने की सलाह दी गई है. खासकर अनछुए पर्यटन स्थलों को विकसित करने के लिए कहा गया है.

हिमाचल में इस समय कोरोना के बाद बड़ी संख्या में सैलानी आ रहे हैं. टूरिज्म हिमाचल की आर्थिकी के लिए बड़ा सहारा हो सकता है. पूर्व वित्त सचिव केआर भारती का कहना है कि हिमाचल एक पहाड़ी राज्य है और यहां पर्यटन तथा खेती-बागवानी के अलावा आय के खास साधन नहीं हैं. ये सही है कि केंद्रीय मदद मिलती है, लेकिन हिमाचल को अपने आर्थिक संसाधन खुद जुटाने होंगे.

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