शिमला: छोटे पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश पर कर्ज का बड़ा (Debt burden on Himachal Government) बोझ है. हिमाचल इस समय 62 हजार करोड़ रुपये सें भी अधिक के कर्ज में डूबा है. कर्ज का ये बोझ निरंतर बढ़ता जा रहा है. इस बीच, कांग्रेस और भाजपा की सरकारें बारी-बारी सत्तासीन हुई, लेकिन किसी भी सरकार के पास कर्ज से निपटने की कोई जादुई छड़ी नहीं पाई गई. वर्ष 2017 में दिसंबर में जब जयराम ठाकुर ने सत्ता की कमान संभाली थी, तो ऐलान किया था कि एक-एक पैसे को दांत से पकड़ा जाएगा.
मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने सरकारी खर्च कम करने और मितव्यतता बरतने की बात कही थी, लेकिन सरकार ने माननीयों का यात्रा भत्ता बढ़ाने के साथ ही लोन लिमिट भी पचास लाख रुपये से एक करोड़ कर दी. कोरोना काल में आर्थिक गतिविधियां ठप होकर रह गई. केंद्र और वित्तायोग की उदार सहायता के कारण हिमाचल प्रदेश किसी तरह से अपनी आर्थिक गाड़ी खींचता रहा. अब 4 मार्च को मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर (Jairam government Budget) अपने कार्यकाल का अंतिम बजट पेश करेंगे. ऐसे में फिर से ये सवाल तैर रहा है कि क्या सीएम जयराम ठाकुर इस बजट में कोई जादुई छड़ी लेकर आएंगे?
यदि हिमाचल के आर्थिक परिदृश्य को देखें, तो यहां राजस्व जुटाने के साधन न के बराबर हैं. राजस्व को लेकर केवल आबकारी और कराधान विभाग के आसरे ऊंट के मुंह में जीरे वाली बात ही है. आइए, हिमाचल की आर्थिक हालत और पूर्व में किए गए उपायों के आलोक में आने वाली स्थिति का आकलन करते हैं. मौजूदा हालत देखें, तो हिमाचल प्रदेश पर 62 हजार करोड़ रुपये से अधिक का कर्ज है.
वेतन और पेंशन में खर्च हो जाता है बजट का अधिकांश हिस्सा: हिमाचल के बजट का अधिकांश हिस्सा कर्मचारियों के वेतन और पेंशनर्स (Pensioners in Himachal) की पेंशन अदा करने में खर्च हो जाता है. इधर, हिमाचल सरकार ने नए वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू कर कर्मचारियों व पेंशनर्स को और अधिक वित्तीय लाभ दिए हैं. इससे भी सालाना कम से कम साढ़े छह हजार करोड़ रुपये का बोझ खजाने पर और पड़ेगा. वहीं, सरकार ने बिजली बिलों में भी राहत दी है. उसके बाद आसार हैं कि सरकार किसानों के लिए भी कोई ऐलान कर सकती है.
नहीं सुधरी सरकारी खजाने की सेहत: ये बात सही है कि हिमाचल प्रदेश के करीब-करीब सभी बजट टैक्स फ्री रहे हैं, लेकिन आय बढ़ाने के लिए कोई क्रांतिकारी या ठोस उपाय अब तक नहीं हुआ है. यहां एक दिलचस्प घटना का जिक्र करना जरूरी होगा. ये घटना हिमाचल की अलग-अलग सरकारों और अफसरशाही से जुड़ी है. वीरभद्र सिंह, प्रेम कुमार धूमल और फिर बाद में जयराम सरकार में भी एक अफसर ऐसा था, जिसने नौ साल वित्त विभाग की कमान संभाली, परंतु खजाने की सेहत नहीं सुधरी.
उस अफसर का नाम श्रीकांत बाल्दी है और वे हिमाचल के मुख्य सचिव भी बने. रिटायरमेंट के बाद उनको भारी-भरकम वेतन के साथ रियल एस्टेट अथॉरिटी यानी रेरा का चेयरमैन बना दिया गया. उन्होंने नौ साल खजाने की चाबी संभाली थी. संक्षेप में उनके कार्यकाल को देखना जरूरी है. वर्ष 2007 में सत्ता में आई प्रेम कुमार धूमल की सरकार के समय में वर्ष 2011 में श्रीकांत बाल्दी वित्त महकमें के मुखिया बनाए गए. फिर वीरभद्र सिंह सरकार के समय भी वही वित्त सचिव थे.
बाद में जयराम सरकार के समय में शुरू में उन्हीं के पास वित्त विभाग था. उनकी देखरेख में हिमाचल के आठ बजट आए. उस समय डॉ. बाल्दी स्वीकार करते थे कि हिमाचल की सबसे बड़ी समस्या कर्ज है. उनके अनुसार पर्यटन, पारदर्शी खनन और पॉवर सेक्टर से हिमाचल की आर्थिक सेहत कुछ हद तक सुधर सकती है. हिमाचल प्रदेश पर कर्ज हर सरकार के समय में बढ़ा है. प्रेम कुमार धूमल की सरकार ने वर्ष 2012 में सत्ता छोड़ी, तो हिमाचल प्रदेश पर 28,760 करोड़ रुपये का कर्ज था.
लगातार बढ़ रहा कर्ज: दस साल बाद ये कर्ज दोगुना हो चुका है. फिर, 2017 में वीरभद्र सिंह सरकार के समय कर्ज का बोझ 47,906 करोड़ रुपये हो गया था. पिछले बजट सत्र के दौरान हिमाचल विधानसभा में दिलचस्प और तथ्यात्मक आंकड़े आए थे. हिमाचल में कर्ज के मर्ज को समझने के लिए उसका जिक्र जरूरी है. हिमाचल प्रदेश राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंध संशोधन विधेयक पर पिछले साल बजट सत्र में जमकर हंगामा हुआ था. इस बिल के अनुसार राज्य की सालाना लोन लिमिट जीएसडीपी के तीन प्रतिशत से बढ़ाकर पांच प्रतिशत की जानी थी.
बिल को पेश करते समय कैबिनेट मंत्री सुरेश भारद्वाज ने कहा था कि कांग्रेस सरकार के समय की गल्तियों को भी जयराम सरकार ही ठीक कर रही है. यही नहीं, वीरभद्र सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार के समय लिए गए 19,199 करोड़ रुपए के लोन में से जयराम सरकार ने 19,486 करोड़ रुपये वापिस किए हैं. सुरेश भारद्वाज ने तथ्य पेश करते हुए कहा था कि एफआरबीएम (फिस्कल रिस्पांसिबिलिटी एंड बजट मैनेजमेंट) एक्ट में प्रावधान है कि यदि फिस्कल डेफिसिट स्टेट जीडीपी से अधिक हो जाए, तो अधिक खर्च को लेकर विधानसभा में बिल के जरिए कानूनी रूप दिया जाना चाहिए.
भाजपा ने कांग्रेस पर फोड़ा था कर्ज का ठीकरा: सुरेश भारद्वाज ने कहा कि पूर्व में वीरभद्र सिंह सरकार ने 2012-13 में तयशुदा तीन फीसदी से अधिक खर्च किया था. तब 2012-13 में फिस्कल डेफेसिट से 3.60 फीसदी, 2013-14 में 4.23 फीसदी और 2014-15 में तीन फीसदी की बजाय 4.05 फीसदी खर्च किया. सुरेश भारद्वाज ने कहा था कि कांग्रेस सरकार ने इसे कानूनी रूप भी नहीं दिया था. इसके लिए न तो सदन में संशोधन बिल लाया और न ही चर्चा की. सुरेश भारद्वाज ने कहा था कि जयराम सरकार कांग्रेस सरकार की उस गल्ती को भी सुधार रही है.
मार्च 18, 2021 को बजट सेशन में सुरेश भारद्वाज (Suresh bhardwaj on congress) ने कर्ज का ठीकरा भी कांग्रेस सरकार पर फोड़ा और कहा कि पूर्व में प्रेम कुमार धूमल के नेतृत्व वाली सरकार ने 2012 में जब सत्ता छोड़ी थी, तो प्रदेश पर 28760 करोड़ रुपए का कर्ज था. बाद में कांग्रेस सरकार के समय यह 47906 करोड़ रुपये हो गया. सुरेश भारद्वाज ने कहा कि नियमों के अनुसार प्रदेश सरकार 2018-19 में मार्केट लोन 5737 करोड़ ले सकती थी, लेकिन सरकार ने कुल 4120 करोड़ कर्ज लिया.
जयराम सरकार में कर्ज की स्थिति: इसी तरह अगले वित्तीय वर्ष में बाजार लोन की सीमा 9187 करोड़ रुपये थी और सरकार ने केवल 6000 करोड़ रुपये ही लिए. यही नहीं, जयराम सरकार ने तीन साल में वीरभद्र सिंह सरकार के समय लिए गए 19199 करोड़ के कर्ज में से एक बड़ा अमाउंट वापिस भी लौटाया है. उन्होंने कहा कि मौजूदा बिल में भी 2019-20 के अधिक खर्च को रेगुलर करने का प्रावधान है. वर्ष 2012 से 2017 तक पांच साल के अंतराल में कांग्रेस ने 18787 करोड़ का कर्ज लिया था.
हिमाचल के पास आर्थिक संसाधन न के बराबर: वहीं, हिमाचल सरकार के पूर्व वित्त सचिव केआर भारती का कहना है कि राज्य के पास आर्थिक संसाधन न के बराबर हैं. वैसे तो समाज को नशा मुक्त बनाने के लिए कई लोग शराबबंदी की वकालत करते हैं, लेकिन किसी राज्य के लिए ऐसा करना काफी कठिन है, क्योंकि खजाने में एक बड़ा हिस्सा शराब की बिक्री से आता है. हिमाचल में आबकारी विभाग राजस्व का बड़ा जरिया है, लेकिन उससे कर्ज का बोझ कम करना काफी मुश्किल है.
अलबत्ता हिमाचल प्रदेश को पर्यटन सेक्टर में नवाचार करना चाहिए. केआर भारती ने कहा कि कर्ज के बोझ को दूर करना बड़ा जटिल मसला है. केंद्र से यदि बेलआउट पैकेज की मांग की जाए, तो अन्य राज्य भी अलग-अलग तरह की मांग करेंगे. वित्तायोग से मिलने वाली सहायता भी कम पड़ती है. अब नए वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू करने से खजाने पर और अधिक बोझ पड़ेगा.
ऐसे उतर सकता है सारा कर्ज: वहीं, हिमाचल भाजपा के वरिष्ठ नेता रमेश ध्वाला (Himachal BJP leader Ramesh dhawala) का कहना है कि हिमाचल प्रदेश को खैर के पेड़ों की बिक्री से सारा कर्ज उतर सकता है. खैर के पेड़ों के कटान पर प्रतिबंध है. ध्वाला का कहना है कि इसी तरह जंगलों में सूखे पेड़ बेचे जाने चाहिए. ध्वाला का तो यहां तक कहना है कि अकेले कांगड़ा जिला के वनों में खैर के पेड़ राज्य का सारा कर्ज उतार सकते हैं. वरिष्ठ मीडिया कर्मी राजेश मंढोत्रा का कहना है कि हिमाचल को वित्तायोग ने सुझाया है कि पर्यटन सेक्टर पर फोकस कर राजस्व कमाया जा सकता है.
पावर सेक्टर में भी संभावनाएं हैं, लेकिन हाइड्रो पावर सेक्टर में सक्रियता से काम करने की जरूरत है. राजेश का कहना है कि हिमाचल प्रदेश के पास बेहद सीमित आर्थिक संसाधन हैं. बजट का बड़ा हिस्सा सरकारी कर्मियों के वेतन पर खर्च हो जाता है. ऐसे में कर्ज के मर्ज का इलाज आसान नहीं है. इन परिस्थितियों में लगता नहीं कि सीएम जयराम ठाकुर के नेतृत्व वाली सरकार के पास कोई जादू की छड़ी है, जिसे वे बजट भाषण में घुमा सकें. पिछली बार बजट का आकार पचास हजार करोड़ रुपये से अधिक था. इस बार ये आंकड़ा 55 हजार करोड़ रुपये तक जा सकता है, परंतु कर्ज के मर्ज का इलाज संभव नहीं दिखाई दे रहा.
ये भी पढ़ें: स्विट्जरलैंड को मात देगी अटल टनल, सवा साल में आए 17 लाख सैलानी: रामलाल मारकंडा