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मंडी में दांव पर साख, किला बचाने को मंत्रियों सहित अधिकांश समय तक डटे रहे जयराम

हिमाचल प्रदेश में 30 अक्टूबर को होने वाले उपचुनाव के लिए प्रचार प्रसार थम गए हैं. इस उपचुनाव को 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव का सेमीफाइनल माना जा रहा है. सीएम जयराम ठाकुर का पूरा फोकस मंडी लोकसभा सीट पर है. वहीं, कांग्रेस की स्थिति देखें तो प्रतिभा सिंह सहानुभूति वोटों की आस लगाए हुए हैं. यदि मंडी सीट पर कोई उलटफेर होता है तो यह भाजपा और खासकर मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के लिए अबतक का सबसे बड़ा सियासी झटका साबित होगा.

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Published : Oct 27, 2021, 7:41 PM IST

Updated : Oct 28, 2021, 6:12 AM IST

शिमला: हिमाचल में उपचुनाव 2022 के विधानसभा चुनाव का सेमीफाइनल है. यह चुनाव मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर का राजनीतिक भविष्य तय करेंगे. अगले साल हिमाचल में विधानसभा चुनाव हैं. कुल मिलाकर मौजूदा स्थिति यह है कि मुख्यमंत्री पर सबसे अधिक दबाव मंडी लोकसभा सीट को लेकर है. यह मंडी में पार्टी की अस्मिता और मुख्यमंत्री के सियासी कौशल की भी परीक्षा है. यही कारण है कि मुख्यमंत्री का मेन फोकस मंडी लोकसभा सीट पर है.

यह चुनाव उनके लिए कितनी अहमियत रखता है इसका पता ऐसे लगाया जा सकता है कि खुद जयराम ठाकुर अब तक 15 दिन तक मंडी लोकसभा क्षेत्र के विभिन्न इलाकों में जनसभाएं कर चुके हैं. अकेले करसोग में 74 हजार वोटों को साधने के लिए मुख्यमंत्री ने 2 जनसभाएं की. यही नहीं मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के विश्वसनीय काबीना मंत्री महेंद्र ठाकुर, राजेंद्र गर्ग, गोविंद सिंह ठाकुर और रामलाल मारकंडा सहित संसदीय क्षेत्र के सभी विधायक भी मंडी के चुनावी रण में डटे रहे.

तर्क दिया जा रहा है कि अर्की और फतेहपुर सीट पहले भी कांग्रेस के पास थी. वहीं जुब्बल-कोटखाई में स्व. नरेंद्र बरागटा के बेटे चेतन बरागटा के बागी तेवर अपना लेने पर पार्टी मुश्किल में है. ऐसे में फेस सेविंग और हाईकमान के समक्ष 2017 के प्रचंड बहुमत को जस्टिफाई करने के लिए मंडी लोकसभा सीट पर विजय बहुत जरूरी हो गई है. खुद मुख्यमंत्री की प्रतिष्ठा इसलिए दाव पर क्योंकि मंडी उनका गृह जिला है और हिमाचल के राजनीतिक इतिहास में पहली बार मंडी से कोई नेता मुख्यमंत्री बना है.

वहीं, कांग्रेस की स्थिति देखें तो प्रतिभा सिंह सहानुभूति वोटों की आस लगाए हुए हैं. यदि मंडी सीट पर कोई उलटफेर होता है तो यह भाजपा और खासकर मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के लिए अबतक का सबसे बड़ा सियासी झटका साबित होगा. कारण यह है कि तीन विधानसभा सीटों के उपचुनाव में नतीजों के उलटफेर को जस्टिफाई करने के लिए प्रदेश भाजपा के पास तर्क होंगे, लेकिन मंडी की हार को आलाकमान के सामने किसी भी रूप में तर्क देकर बचा नहीं जा सकता. पृष्ठभूमि यह है कि मंडी लोकसभा सीट 2 बार से भाजपा के पास है खुद पीएम नरेंद्र मोदी की नजर इस परिणाम पर रहेगी. मंडी में लगातार दो बार भाजपा की जीत के पीछे पीएम मोदी की रैलियां भी बड़ा फैक्टर रही हैं.

यदि भाजपा के पक्ष की बातें की जाए तो सत्ता में रहना, मंडी की सभी 10 विधानसभा सीटों भाजपा का परचम, मुख्यमंत्री का मंडी से होना और चुनाव प्रबंधन की कमान महेंद्र सिंह ठाकुर के हाथ में रहना, यह सब भाजपा के मजबूत पक्ष हैं. इसके अलावा गौर करने वाली बात है कि महेंद्र सिंह ठाकुर जिस भी चुनाव में प्रभारी रहे हैं, भाजपा ने वह चुनाव हमेशा जीता है. खुद मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर हर जनसभा में मंडी को लेकर भावुक राग छेड़ देते हैं. वहीं, भाजपा के खिलाफ जा रही बातों पर गौर करें तो महंगाई, पेट्रोल-डीजल के दाम, बेरोजगारी और कोरोना के कारण छोटे कारोबारियों की कमर टूटने से लोगों में सत्ता पक्ष के प्रति नाराजगी है. अंदर खाते पार्टी के निष्ठावान कार्यकर्ता और पदाधिकारी इसलिए नाराज हैं कि सत्ता में आने के बाद भाजपा अपने ही लोगों को भूल जाती है. यह नाराजगी अंडर करंट की तरह है. यह सही है कि चुनाव अब प्रबंधन का खेल अधिक है.

भाजपा हो या कोई अन्य दल, वे समाज में ऐसे क्षेत्रों में घुसपैठ करते हैं जहां प्रभावशाली लोग आम वोटर्स पर अपनी छाप छोड़ते हैं. यह सही है कि भाजपा के पास सुगठित कैडर है. बूथ पालक से लेकर ब्लॉक, मंडल, जिले और फिर प्रदेश स्तर पर भाजपा के पास सिल सिलेवार तरीके से काम करने के लिए मैन पावर है. यह सारी बातें कांग्रेस के पास नहीं है. ऐसे में कांग्रेस के लिए इन चुनावों में अपनी नैया को पार लगाना मुश्किल होगा. अलबत्ता वीरभद्र सिंह के पास वीरभद्र सिंह के कद का सहारा है और रामपुर, किन्नौर और मंडी के पहाड़ी इलाकों में परंपरागत वोट बैंक कांग्रेस के पक्ष में जाता है.

बड़ी बात यह है कि 2017 में सत्ता में आने के बाद भाजपा ने कोई भी उपचुनाव नहीं हारा लोकसभा चुनाव में सभी 4 सीटों के बाद पच्छाद और धर्मशाला का उपचुनाव भी जीता. भाजपा इस उपलब्धि को हर बार बढ़ा-चढ़ा कर पेश करती रही है. फिर जयराम ठाकुर पहली बार मुख्यमंत्री बने हैं और दलित चेहरे के रूप में सुरेश कश्यप भी पहली बार पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष बनाए गए. इन दोनों के समक्ष खुद को साबित करने की भी चुनौती है. इससे पहले सतपाल सिंह सत्ती लंबे समय तक भाजपा अध्यक्ष रहे और उनकी अगुवाई में पार्टी ने विधानसभा तथा लोकसभा चुनाव में शानदार जीत हासिल की है. सुरेश कश्यप भी इसी कारण जी-जान से चुनाव प्रचार में डटे हुए हैं.

कारगिल युद्ध पर बयान देकर प्रतिभा सिंह ने कांग्रेस और खुद के पैरों पर जो कुल्हाड़ी मारी थी उसे बाद में कवर अप किया. इस तरह क्षेत्रफल के लिहाज से भारत की दूसरी सबसे बड़ी लोकसभा सीट में यूं तो भाजपा कंफर्टेबल है, लेकिन वोट डालने से पहले की रात बहुत से समीकरण बदलते देखे गए हैं. प्रतिभा सिंह पहले भी मंडी से सांसद रही हैं. खुशाल ठाकुर पहली बार चुनाव मैदान में है. रिटायर ब्रिगेडियर खुशाल सिंह ठाकुर कारगिल वॉर में हीरो रहे हैं. उनके पक्ष में कारगिल हीरो, पूर्व सैनिक, फोरलेन संघर्ष समिति जैसे फैक्टर हैं. वे सैनिक कल्याण निगम में भी रहे हैं. इस तरह पूरे प्रदेश के सैनिकों व सैन्य परिवारों के लिए एक आदर्श हैं. कांग्रेस में नेताओं ने तल्ख बयानी करके जरूर पार्टी को ही डैमेज किया है. जैसे कौल सिंह का बयान कि ब्रिगेडियर खुशाल ठाकुर अपनी पंचायत में भी बढ़त नहीं ले पाएंगे. विक्रमादित्य सिंह अपनी मां की विजय के लिए बहुत प्रयास कर रहे हैं. इसी तरह विक्रमादित्य सिंह ने भी अपने बयानों में सेना के खिलाफ जो टिप्पणियां की है उससे कांग्रेस का काम खराब हुआ है. फिलहाल कांग्रेस के पास खोने के लिए कुछ नहीं है. वहीं भाजपा का सब कुछ दांव पर लगा है.

भाजपा का मंडी सीट पर फोकस इस कदर है कि 28 सितंबर को आचार संहिता लागू होने बाद से ही मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर मंडी रवाना हो गए थे. 27 अक्टूबर तक जयराम ठाकुर ने 15 दिनों से अधिक समय तक मंडी जिला में ही चुनाव प्रचार किया. इसके अलावा मंडी संसदीय क्षेत्र पर जयराम ठाकुर का मेन फोकस रहा. जयराम ठाकुर हाल ही के दिनों की बात करें तो जयराम ठाकुर 14 से 20 अक्टूबर तक को लगातार मंडी में ही डटे रहे. उन्होंने कुल मिलाकर 68 छोटी बड़ी जनसभाओं को संबोधित किया. इसके अलावा केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने भी प्रदेश में 10 जनसभाओं को संबोधित किया. प्रदेश प्रभारी अविनाश राय खन्ना ने 24, सह प्रभारी संजय टंडन ने 21 और प्रदेशाध्यक्ष सुरेश कश्यप ने 40 जनसभाओं को संबोधित किया है.

हालांकि, राष्ट्रीय स्तर पर दोनों ही दलों के बड़े नेता चुनाव प्रचार में नहीं कूदे. एक लोकसभा सीट और तीन विधानसभा सीट में प्रचार को लेकर मोटे तौर पर देखें तो सत्ता में होने के कारण भाजपा का हाथ मजबूत है. पार्टी को केवल संगठन के कुछ समर्पित कार्यकर्ताओं की नाराजगी, महंगाई सहित एंटी इनकंबेंसी जैसे फैक्टर्ज का भय है, लेकिन यह स्थापित तथ्य है कि मतदान से ऐन पहले की रात साम-दाम-दंड-भेद की रणनीति अपनाई जाती है और मौजूदा समय में यह रणनीति भाजपा के पक्ष में जा रही है. यह तय है कि मंडी लोकसभा सीट मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर का राजनीतिक भविष्य बनाएगी या बिगड़ेगी.

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शिमला: हिमाचल में उपचुनाव 2022 के विधानसभा चुनाव का सेमीफाइनल है. यह चुनाव मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर का राजनीतिक भविष्य तय करेंगे. अगले साल हिमाचल में विधानसभा चुनाव हैं. कुल मिलाकर मौजूदा स्थिति यह है कि मुख्यमंत्री पर सबसे अधिक दबाव मंडी लोकसभा सीट को लेकर है. यह मंडी में पार्टी की अस्मिता और मुख्यमंत्री के सियासी कौशल की भी परीक्षा है. यही कारण है कि मुख्यमंत्री का मेन फोकस मंडी लोकसभा सीट पर है.

यह चुनाव उनके लिए कितनी अहमियत रखता है इसका पता ऐसे लगाया जा सकता है कि खुद जयराम ठाकुर अब तक 15 दिन तक मंडी लोकसभा क्षेत्र के विभिन्न इलाकों में जनसभाएं कर चुके हैं. अकेले करसोग में 74 हजार वोटों को साधने के लिए मुख्यमंत्री ने 2 जनसभाएं की. यही नहीं मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के विश्वसनीय काबीना मंत्री महेंद्र ठाकुर, राजेंद्र गर्ग, गोविंद सिंह ठाकुर और रामलाल मारकंडा सहित संसदीय क्षेत्र के सभी विधायक भी मंडी के चुनावी रण में डटे रहे.

तर्क दिया जा रहा है कि अर्की और फतेहपुर सीट पहले भी कांग्रेस के पास थी. वहीं जुब्बल-कोटखाई में स्व. नरेंद्र बरागटा के बेटे चेतन बरागटा के बागी तेवर अपना लेने पर पार्टी मुश्किल में है. ऐसे में फेस सेविंग और हाईकमान के समक्ष 2017 के प्रचंड बहुमत को जस्टिफाई करने के लिए मंडी लोकसभा सीट पर विजय बहुत जरूरी हो गई है. खुद मुख्यमंत्री की प्रतिष्ठा इसलिए दाव पर क्योंकि मंडी उनका गृह जिला है और हिमाचल के राजनीतिक इतिहास में पहली बार मंडी से कोई नेता मुख्यमंत्री बना है.

वहीं, कांग्रेस की स्थिति देखें तो प्रतिभा सिंह सहानुभूति वोटों की आस लगाए हुए हैं. यदि मंडी सीट पर कोई उलटफेर होता है तो यह भाजपा और खासकर मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के लिए अबतक का सबसे बड़ा सियासी झटका साबित होगा. कारण यह है कि तीन विधानसभा सीटों के उपचुनाव में नतीजों के उलटफेर को जस्टिफाई करने के लिए प्रदेश भाजपा के पास तर्क होंगे, लेकिन मंडी की हार को आलाकमान के सामने किसी भी रूप में तर्क देकर बचा नहीं जा सकता. पृष्ठभूमि यह है कि मंडी लोकसभा सीट 2 बार से भाजपा के पास है खुद पीएम नरेंद्र मोदी की नजर इस परिणाम पर रहेगी. मंडी में लगातार दो बार भाजपा की जीत के पीछे पीएम मोदी की रैलियां भी बड़ा फैक्टर रही हैं.

यदि भाजपा के पक्ष की बातें की जाए तो सत्ता में रहना, मंडी की सभी 10 विधानसभा सीटों भाजपा का परचम, मुख्यमंत्री का मंडी से होना और चुनाव प्रबंधन की कमान महेंद्र सिंह ठाकुर के हाथ में रहना, यह सब भाजपा के मजबूत पक्ष हैं. इसके अलावा गौर करने वाली बात है कि महेंद्र सिंह ठाकुर जिस भी चुनाव में प्रभारी रहे हैं, भाजपा ने वह चुनाव हमेशा जीता है. खुद मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर हर जनसभा में मंडी को लेकर भावुक राग छेड़ देते हैं. वहीं, भाजपा के खिलाफ जा रही बातों पर गौर करें तो महंगाई, पेट्रोल-डीजल के दाम, बेरोजगारी और कोरोना के कारण छोटे कारोबारियों की कमर टूटने से लोगों में सत्ता पक्ष के प्रति नाराजगी है. अंदर खाते पार्टी के निष्ठावान कार्यकर्ता और पदाधिकारी इसलिए नाराज हैं कि सत्ता में आने के बाद भाजपा अपने ही लोगों को भूल जाती है. यह नाराजगी अंडर करंट की तरह है. यह सही है कि चुनाव अब प्रबंधन का खेल अधिक है.

भाजपा हो या कोई अन्य दल, वे समाज में ऐसे क्षेत्रों में घुसपैठ करते हैं जहां प्रभावशाली लोग आम वोटर्स पर अपनी छाप छोड़ते हैं. यह सही है कि भाजपा के पास सुगठित कैडर है. बूथ पालक से लेकर ब्लॉक, मंडल, जिले और फिर प्रदेश स्तर पर भाजपा के पास सिल सिलेवार तरीके से काम करने के लिए मैन पावर है. यह सारी बातें कांग्रेस के पास नहीं है. ऐसे में कांग्रेस के लिए इन चुनावों में अपनी नैया को पार लगाना मुश्किल होगा. अलबत्ता वीरभद्र सिंह के पास वीरभद्र सिंह के कद का सहारा है और रामपुर, किन्नौर और मंडी के पहाड़ी इलाकों में परंपरागत वोट बैंक कांग्रेस के पक्ष में जाता है.

बड़ी बात यह है कि 2017 में सत्ता में आने के बाद भाजपा ने कोई भी उपचुनाव नहीं हारा लोकसभा चुनाव में सभी 4 सीटों के बाद पच्छाद और धर्मशाला का उपचुनाव भी जीता. भाजपा इस उपलब्धि को हर बार बढ़ा-चढ़ा कर पेश करती रही है. फिर जयराम ठाकुर पहली बार मुख्यमंत्री बने हैं और दलित चेहरे के रूप में सुरेश कश्यप भी पहली बार पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष बनाए गए. इन दोनों के समक्ष खुद को साबित करने की भी चुनौती है. इससे पहले सतपाल सिंह सत्ती लंबे समय तक भाजपा अध्यक्ष रहे और उनकी अगुवाई में पार्टी ने विधानसभा तथा लोकसभा चुनाव में शानदार जीत हासिल की है. सुरेश कश्यप भी इसी कारण जी-जान से चुनाव प्रचार में डटे हुए हैं.

कारगिल युद्ध पर बयान देकर प्रतिभा सिंह ने कांग्रेस और खुद के पैरों पर जो कुल्हाड़ी मारी थी उसे बाद में कवर अप किया. इस तरह क्षेत्रफल के लिहाज से भारत की दूसरी सबसे बड़ी लोकसभा सीट में यूं तो भाजपा कंफर्टेबल है, लेकिन वोट डालने से पहले की रात बहुत से समीकरण बदलते देखे गए हैं. प्रतिभा सिंह पहले भी मंडी से सांसद रही हैं. खुशाल ठाकुर पहली बार चुनाव मैदान में है. रिटायर ब्रिगेडियर खुशाल सिंह ठाकुर कारगिल वॉर में हीरो रहे हैं. उनके पक्ष में कारगिल हीरो, पूर्व सैनिक, फोरलेन संघर्ष समिति जैसे फैक्टर हैं. वे सैनिक कल्याण निगम में भी रहे हैं. इस तरह पूरे प्रदेश के सैनिकों व सैन्य परिवारों के लिए एक आदर्श हैं. कांग्रेस में नेताओं ने तल्ख बयानी करके जरूर पार्टी को ही डैमेज किया है. जैसे कौल सिंह का बयान कि ब्रिगेडियर खुशाल ठाकुर अपनी पंचायत में भी बढ़त नहीं ले पाएंगे. विक्रमादित्य सिंह अपनी मां की विजय के लिए बहुत प्रयास कर रहे हैं. इसी तरह विक्रमादित्य सिंह ने भी अपने बयानों में सेना के खिलाफ जो टिप्पणियां की है उससे कांग्रेस का काम खराब हुआ है. फिलहाल कांग्रेस के पास खोने के लिए कुछ नहीं है. वहीं भाजपा का सब कुछ दांव पर लगा है.

भाजपा का मंडी सीट पर फोकस इस कदर है कि 28 सितंबर को आचार संहिता लागू होने बाद से ही मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर मंडी रवाना हो गए थे. 27 अक्टूबर तक जयराम ठाकुर ने 15 दिनों से अधिक समय तक मंडी जिला में ही चुनाव प्रचार किया. इसके अलावा मंडी संसदीय क्षेत्र पर जयराम ठाकुर का मेन फोकस रहा. जयराम ठाकुर हाल ही के दिनों की बात करें तो जयराम ठाकुर 14 से 20 अक्टूबर तक को लगातार मंडी में ही डटे रहे. उन्होंने कुल मिलाकर 68 छोटी बड़ी जनसभाओं को संबोधित किया. इसके अलावा केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने भी प्रदेश में 10 जनसभाओं को संबोधित किया. प्रदेश प्रभारी अविनाश राय खन्ना ने 24, सह प्रभारी संजय टंडन ने 21 और प्रदेशाध्यक्ष सुरेश कश्यप ने 40 जनसभाओं को संबोधित किया है.

हालांकि, राष्ट्रीय स्तर पर दोनों ही दलों के बड़े नेता चुनाव प्रचार में नहीं कूदे. एक लोकसभा सीट और तीन विधानसभा सीट में प्रचार को लेकर मोटे तौर पर देखें तो सत्ता में होने के कारण भाजपा का हाथ मजबूत है. पार्टी को केवल संगठन के कुछ समर्पित कार्यकर्ताओं की नाराजगी, महंगाई सहित एंटी इनकंबेंसी जैसे फैक्टर्ज का भय है, लेकिन यह स्थापित तथ्य है कि मतदान से ऐन पहले की रात साम-दाम-दंड-भेद की रणनीति अपनाई जाती है और मौजूदा समय में यह रणनीति भाजपा के पक्ष में जा रही है. यह तय है कि मंडी लोकसभा सीट मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर का राजनीतिक भविष्य बनाएगी या बिगड़ेगी.

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Last Updated : Oct 28, 2021, 6:12 AM IST
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