शिमला: राजधानी शिमला के लिए बल्क जलापूर्ति योजना को भारत सरकार के पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने सैद्धांतिक मंजूरी दे दी है. इससे शिमला शहर के पांच वार्डों में इस वर्ष के अन्त तक 24 घंटे जलापूर्ति शुरू हो जाएगी. 250 मिलियन डाॅलर (1813 करोड़ रुपये) का शिमला बल्क वाटर सप्लाई प्रोजेक्ट विश्व बैंक द्वारा फाइनेंस किया जा रहा है. इसमें विश्व बैंक 160 मिलियन डाॅलर (1160.32 करोड़ रुपये) की वित्तीय सहायता देगा और शेष राशि 90 मिलियन डाॅलर (652.68 करोड़ रुपये) का वहन हिमाचल सरकार करेगी. इस प्रोजेक्ट के तहत सतलुज नदी से पानी उठाने की योजना है, जिससे शिमला शहर को 67 एमएलडी ( 6.7 करोड़ लीटर) अतिरिक्त पानी शिमला शहर को मिलेगा.
शहरी विकास मंत्री सुरेश भारद्वाज ने कहा है कि शिमला बल्क वाटर सप्लाई प्रोजेक्ट को फॉरेस्ट क्लीयरेंस मिल गई है. इस प्रोजेक्ट के बनने से शिमला में सप्ताह भर 24 घंटे वाटर सप्लाई मिलने लगेगी. इसके अलावा शिमला के कुछ क्षेत्रों में सीवरेज सिस्टम का भी विस्तार किया जाएगा. उन्होंने कहा कि यह राज्य के लिए एक प्रमुख परियोजना है जो कि वर्ष 2050 तक शहर की पानी की जररूत को पूरा करेगी.
सुरेश भारद्वाज ने इस योजना के लिए केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेन्द्र यादव का आभार व्यक्त किया. उन्होंने इस कार्य में योगदान के लिए प्रदेश के वन विभाग और शिमला जल प्रबंधन निगम लिमिटेड (एसजेपीएनएल) के सभी संबंधित अधिकारियों एवं कर्मचारियों को भी बधाई दी. उन्होंने कहा कि शिमला शहर को 24 घंटे जलापूर्ति प्रदेश सरकार की प्रतिबद्धता है. शिमला के पांच वार्डों में इस वर्ष के अन्त तक 24 घंटे जलापूर्ति शुरू हो जाएगी. उन्होंने कहा कि इस योजना में शिमला जिले की सुन्नी तहसील के शकरोड़ी गांव के पास सतलुज नदी से पानी उठाने की योजना बनाई गई है जिसमें संजौली में 1.6 किलोमीटर की ऊंचाई तक उठाने और 22 किलोमीटर की पाइप बिछाने से 67 एमएलडी पानी की वृद्धि शामिल है.
इस योजना के अन्तर्गत नगर निगम शिमला में वितरण पाइप नेटवर्क को सप्ताह भर 24 घंटे जलापूर्ति प्रणाली में स्तरोन्नत करने का भी प्रावधान है. इसके अतिरिक्त, शिमला के मैहली, पंथाघाटी, टुटू और मशोबरा क्षेत्रों में मलनिकासी प्रणाली प्रदान की जाएगी. यह राज्य के लिए एक प्रमुख परियोजना होगी जो शिमला में बेहतर जलापूर्ति और मलनिकासी प्रणाली प्रदान करने का प्रयास करेगी और वर्ष 2050 तक शहर की आवश्यकताओं को पूरा करेगी.
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