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Nepotism in Himachal BJP: वंशवाद की फसल बोने को आतुर भाजपा नेता, लेकिन आलाकमान पूरा नहीं होने दे रहा अरमान

हिमाचल भाजपा में कई राजनीतिक परिवार, जिनमें प्रेम कुमार धूमल, जेपी नड्डा, महेश्वर सिंह आदि हैं, अपनी अगली पीढ़ी को चुनावी समर में उतारने का इंतजार कर रहे हैं. हिमाचल में वंशवाद की राजनीति (Dynasticism in himachal bjp) का लोकसभा में तो कुछ खास असर नहीं दिखता, लेकिन विधानसभा चुनावों (assembly election in himachal) में हमेशा ही भाजपा के लिए परेशानी का कारण रहा है. उपचुनाव में भाजपा ने वंशवाद को दरकिनार करते हुए यह संदेश दिया कि वर्तमान या पूर्व राजनेता के परिवार जनों को चुनावी मैदान में नहीं उतारा जाएगा. ऐसे में पार्टी के इस रुख से नेताओं को जरूर निराशा हुई.

politics on nepotism in himachal
फोटो.
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Published : Dec 31, 2021, 8:07 PM IST

Updated : Jan 4, 2022, 1:22 PM IST

शिमला: प्रदेश में कई भाजपा नेता वंशवाद की फसल बोने को तैयार बैठे हैं, लेकिन पार्टी हाईकमान के कड़े तेवर देखते हुए इन नेताओं के अरमान पूरे नहीं हो पा रहे हैं. बेटे-बेटियों को राजनीति में एडजस्ट करने की इच्छा को पार्टी हाईकमान पूरा नहीं होने दे रही है. हालांकि हाईकमान के कड़े रुख के बावजूद पार्टी और पंचायत स्तर पर नेताओं के बेटे-बेटियां खुलकर मोर्चा संभाले हुए हैं.
हाल ही में तीन विधानसभा सीटों और एक लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव में भाजपा हाईकमान की तरफ से वंशवाद (Dynasticism in himachal bjp) के नाम पर जुब्बल-कोटखाई से पूर्व मंत्री और भाजपा के दिग्गज नेता नरेंद्र बरागटा के पुत्र चेतन बरागटा का टिकट काट दिया गया. इसके बाद प्रदेश में भाजपा की तरफ से स्पष्ट संदेश दिया गया कि किसी भी स्थिति में वर्तमान या पूर्व राजनेता के परिवार जनों को चुनावी मैदान में नहीं उतारा जाएगा. पार्टी के इस रुख उन नेताओं को जरूर निराशा हुई है जो पार्टी की छत्रछाया में अपने बच्चों को का भविष्य संवारने का सपना देख रहे हैं.

भाजपा में वर्तमान स्थिति पर विचार करें तो प्रदेश सरकार के वरिष्ठ मंत्री महेंद्र सिंह की राजनीतिक विरासत उनके बेटे या बेटी कौन संभालेगा, इसको लेकर चर्चा खूब है. दोनों ही पार्टी में पदाधिकारी हैं. महेंद्र सिंह का बेटे रजत ठाकुर पूर्व में भाजयुमो प्रदेश महामंत्री के पद पर रहे और वर्तमान में भी प्रदेश मीडिया सह प्रभारी हैं. हैरत की बात तो यह है कि रजत ठाकुर ठाकुर को प्रदेश मीडिया सह प्रभारी का दायित्व प्रदेश कार्यकारिणी घोषित होने के एक महीने बाद दिया गया है. कैबिनेट मंत्री महेंद्र सिंह की बेटी वंदना गुलेरिया वर्तमान में भाजपा महिला मोर्चा की प्रदेश महामंत्री हैं. इसके अलावा जिला परिषद सदस्य भी हैं. वंदना गुलेरिया इससे पहले जिला परिषद सदस्य का चुनाव भी हार चुकी हैं.

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बीजेपी राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और उनका बड़ा बेटा गिरीश नड्डा.

महेंद्र सिंह सहित उनके परिवार के तीन सदस्य वर्तमान में भाजपा के बैनर तले राजनीति में सक्रिय हैं. चेतन बरागटा को टिकट ना देने का हाईकमान का फैसला उनके सपनों को भी तोड़ सकता है. इसी तरह से पार्टी का हर नेता जो अब भाजपा हाईकमान के आयु वाले फैक्टर से बाहर होता दिख रहा है, उन सभी को उम्मीद थी कि वे अगली पीढ़ी को राजनीति में लाएंगे, लेकिन इस फैसले के बाद बैकफुट पर आ गए हैं. भारतीय जनता पार्टी ने जुब्बल कोटखाई में प्रत्याशी को परिवारवाद के नाम पर टिकट न देकर एक उदाहरण पूरे प्रदेश में पेश कर दिया है. वहीं, भविष्य में भाजपा के कई नेताओं को अपनी अगली पीढ़ी को राजनीति में लाने के लिए यह उदाहरण बाधा बनता दिख रहा है.

हिमाचल भाजपा में कई राजनीतिक परिवार, जिनमें प्रेम कुमार धूमल, जेपी नड्डा, महेश्वर सिंह आदि हैं, अपनी अगली पीढ़ी को चुनावी समर में उतारने का इंतजार कर रहे हैं. हालांकि धूमल परिवार से अनुराग ठाकुर पहले ही देश में राजनीतिक ऊंचाइयों को छू रहे हैं. इसके अलावा हमीरपुर से ही पूर्व भाजपा नेता स्व. जगदेव ठाकुर के परिवार से भी नरेंद्र ठाकुर वर्तमान में भाजपा विधायक हैं. जिन नेताओं के परिवार के सदस्य पार्टी हाईकमान के रुख के चलते भाजपा की छत्रछाया में नहीं आ पाए हैं. उनको पंचायती राज चुनावों के माध्यम से लॉन्च कर दिया गया है.

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पूर्व मुख्यमंत्री प्रो. प्रेम कुमार धूमल के साथ केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर.

ये भी पढ़ें: New Year celebration in shimla: जश्न की फुल तैयारी, ज्यादातर होटल पैक, पुलिस ने संभाला मोर्चा

महेश्वर सिंह के दोनों बेटे दानवेंद्र सिंह और हितेश्वर सिंह राजनीति में प्रवेश कर चुके हैं. बड़ा बेटा दानवेंद्र सिंह नगर परिषद पार्षद हैं. छोटा बेटा हितेश्वर सिंह पूर्व में दो बार जिला परिषद सदस्य रह चके हैं और इनकी पत्नी विभा सिंह भी वर्तमान में धाऊगी से जिला परिषद सदस्य हैं. वर्तमान में शिक्षा मंत्री गोविंद सिंह ठाकुर के पिता स्व. ठाकुर कुंज लाल भी पूर्व में बागवानी मंत्री रहे हैं. जयराम के कैबिनेट मंत्री वीरेंद्र कंवर ने भी अपने बेटे को पंचायती राज में उतार दिया है. उन्होंने अपने बेटे को पंचायत प्रधान के पद से राजनीति में प्रवेश करवाया है. सरकार के मुख्य सचेतक विक्रम जरयाल का पुत्र अभिमन्यु जरयाल को जिला परिषद सदस्य है.

politics on nepotism in himachal
पूर्व सांसद महेश्वर सिंह और उनके दोनों बेटे.

पूर्व स्पीकर गुलाब सिंह ठाकुर ने भी अपने बेटे सुमेंद्र सिंह ठाकुर को राजनीति में प्रवेश की कोशिश की, लेकिन वह जिला परिषद चुनाव हार गए हैं. ठियोग से पूर्व में भाजपा विधायक रहे स्व. राकेश वर्मा की पत्नी भी जिला परिषद रह चुकी हैं और 2022 के विधानसभा चुनाव की भाजपा टिकट की प्रबल दावेदार मानी जा रही हैं. कांगड़ा से सांसद किशन कपूर ने अपने बेटे शाश्वत कपूर को धर्मशाला उपचुनाव में भाजपा टिकट पर चुनाव मैदान में उतारने की पूरी कोशिश की, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली. इसके अलावा ज्वाली से विधायक अर्जुन ठाकुर का पुत्र भी जिला परिषद सदस्य है. पूर्व मंत्री स्व.चौधरी विद्यासागर प्रदेश सचिव भारतीय जनता पार्टी.

हिमाचल में वंशवाद की राजनीति का लोकसभा में तो कुछ खास असर नहीं दिखता, लेकिन विधानसभा चुनावों (assembly election in himachal) में हमेशा ही भाजपा के लिए परेशानी का कारण रहा है. पार्टी हाईकमान द्वारा किसी अन्य व्यक्ति को टिकट मिलने की सूरत में स्थापित नेता उसे हराने की पूरी कोशिश करते हैं. ताकि अगली बार होने वाले विधानसभा चुनावों में स्थापित नेता के परिवार के किसी सदस्य को पार्टी के टिकट पर चुनावी मैदान में उतारा जा सके. लंबे समय तक एक ही परिवार के पास पार्टी की कमान रहने की सूरत में उस क्षेत्र विशेष में पार्टी की स्थिति कमजोर और परिवार की स्थिति मजबूत होना शुरू हो जाती है. ऐसे में पार्टी की स्थापित व्यवस्था भी खत्म होना का डर रहता है. ऐसे में क्या 2022 में उन्हीं के परिवार से विधानसभा का टिकट किसी और सदस्य को मिलेगा या नहीं, इस पर सवाल खड़े होते दिख रहे हैं.

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शिमला: प्रदेश में कई भाजपा नेता वंशवाद की फसल बोने को तैयार बैठे हैं, लेकिन पार्टी हाईकमान के कड़े तेवर देखते हुए इन नेताओं के अरमान पूरे नहीं हो पा रहे हैं. बेटे-बेटियों को राजनीति में एडजस्ट करने की इच्छा को पार्टी हाईकमान पूरा नहीं होने दे रही है. हालांकि हाईकमान के कड़े रुख के बावजूद पार्टी और पंचायत स्तर पर नेताओं के बेटे-बेटियां खुलकर मोर्चा संभाले हुए हैं.
हाल ही में तीन विधानसभा सीटों और एक लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव में भाजपा हाईकमान की तरफ से वंशवाद (Dynasticism in himachal bjp) के नाम पर जुब्बल-कोटखाई से पूर्व मंत्री और भाजपा के दिग्गज नेता नरेंद्र बरागटा के पुत्र चेतन बरागटा का टिकट काट दिया गया. इसके बाद प्रदेश में भाजपा की तरफ से स्पष्ट संदेश दिया गया कि किसी भी स्थिति में वर्तमान या पूर्व राजनेता के परिवार जनों को चुनावी मैदान में नहीं उतारा जाएगा. पार्टी के इस रुख उन नेताओं को जरूर निराशा हुई है जो पार्टी की छत्रछाया में अपने बच्चों को का भविष्य संवारने का सपना देख रहे हैं.

भाजपा में वर्तमान स्थिति पर विचार करें तो प्रदेश सरकार के वरिष्ठ मंत्री महेंद्र सिंह की राजनीतिक विरासत उनके बेटे या बेटी कौन संभालेगा, इसको लेकर चर्चा खूब है. दोनों ही पार्टी में पदाधिकारी हैं. महेंद्र सिंह का बेटे रजत ठाकुर पूर्व में भाजयुमो प्रदेश महामंत्री के पद पर रहे और वर्तमान में भी प्रदेश मीडिया सह प्रभारी हैं. हैरत की बात तो यह है कि रजत ठाकुर ठाकुर को प्रदेश मीडिया सह प्रभारी का दायित्व प्रदेश कार्यकारिणी घोषित होने के एक महीने बाद दिया गया है. कैबिनेट मंत्री महेंद्र सिंह की बेटी वंदना गुलेरिया वर्तमान में भाजपा महिला मोर्चा की प्रदेश महामंत्री हैं. इसके अलावा जिला परिषद सदस्य भी हैं. वंदना गुलेरिया इससे पहले जिला परिषद सदस्य का चुनाव भी हार चुकी हैं.

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बीजेपी राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और उनका बड़ा बेटा गिरीश नड्डा.

महेंद्र सिंह सहित उनके परिवार के तीन सदस्य वर्तमान में भाजपा के बैनर तले राजनीति में सक्रिय हैं. चेतन बरागटा को टिकट ना देने का हाईकमान का फैसला उनके सपनों को भी तोड़ सकता है. इसी तरह से पार्टी का हर नेता जो अब भाजपा हाईकमान के आयु वाले फैक्टर से बाहर होता दिख रहा है, उन सभी को उम्मीद थी कि वे अगली पीढ़ी को राजनीति में लाएंगे, लेकिन इस फैसले के बाद बैकफुट पर आ गए हैं. भारतीय जनता पार्टी ने जुब्बल कोटखाई में प्रत्याशी को परिवारवाद के नाम पर टिकट न देकर एक उदाहरण पूरे प्रदेश में पेश कर दिया है. वहीं, भविष्य में भाजपा के कई नेताओं को अपनी अगली पीढ़ी को राजनीति में लाने के लिए यह उदाहरण बाधा बनता दिख रहा है.

हिमाचल भाजपा में कई राजनीतिक परिवार, जिनमें प्रेम कुमार धूमल, जेपी नड्डा, महेश्वर सिंह आदि हैं, अपनी अगली पीढ़ी को चुनावी समर में उतारने का इंतजार कर रहे हैं. हालांकि धूमल परिवार से अनुराग ठाकुर पहले ही देश में राजनीतिक ऊंचाइयों को छू रहे हैं. इसके अलावा हमीरपुर से ही पूर्व भाजपा नेता स्व. जगदेव ठाकुर के परिवार से भी नरेंद्र ठाकुर वर्तमान में भाजपा विधायक हैं. जिन नेताओं के परिवार के सदस्य पार्टी हाईकमान के रुख के चलते भाजपा की छत्रछाया में नहीं आ पाए हैं. उनको पंचायती राज चुनावों के माध्यम से लॉन्च कर दिया गया है.

politics on nepotism in himachal
पूर्व मुख्यमंत्री प्रो. प्रेम कुमार धूमल के साथ केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर.

ये भी पढ़ें: New Year celebration in shimla: जश्न की फुल तैयारी, ज्यादातर होटल पैक, पुलिस ने संभाला मोर्चा

महेश्वर सिंह के दोनों बेटे दानवेंद्र सिंह और हितेश्वर सिंह राजनीति में प्रवेश कर चुके हैं. बड़ा बेटा दानवेंद्र सिंह नगर परिषद पार्षद हैं. छोटा बेटा हितेश्वर सिंह पूर्व में दो बार जिला परिषद सदस्य रह चके हैं और इनकी पत्नी विभा सिंह भी वर्तमान में धाऊगी से जिला परिषद सदस्य हैं. वर्तमान में शिक्षा मंत्री गोविंद सिंह ठाकुर के पिता स्व. ठाकुर कुंज लाल भी पूर्व में बागवानी मंत्री रहे हैं. जयराम के कैबिनेट मंत्री वीरेंद्र कंवर ने भी अपने बेटे को पंचायती राज में उतार दिया है. उन्होंने अपने बेटे को पंचायत प्रधान के पद से राजनीति में प्रवेश करवाया है. सरकार के मुख्य सचेतक विक्रम जरयाल का पुत्र अभिमन्यु जरयाल को जिला परिषद सदस्य है.

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पूर्व सांसद महेश्वर सिंह और उनके दोनों बेटे.

पूर्व स्पीकर गुलाब सिंह ठाकुर ने भी अपने बेटे सुमेंद्र सिंह ठाकुर को राजनीति में प्रवेश की कोशिश की, लेकिन वह जिला परिषद चुनाव हार गए हैं. ठियोग से पूर्व में भाजपा विधायक रहे स्व. राकेश वर्मा की पत्नी भी जिला परिषद रह चुकी हैं और 2022 के विधानसभा चुनाव की भाजपा टिकट की प्रबल दावेदार मानी जा रही हैं. कांगड़ा से सांसद किशन कपूर ने अपने बेटे शाश्वत कपूर को धर्मशाला उपचुनाव में भाजपा टिकट पर चुनाव मैदान में उतारने की पूरी कोशिश की, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली. इसके अलावा ज्वाली से विधायक अर्जुन ठाकुर का पुत्र भी जिला परिषद सदस्य है. पूर्व मंत्री स्व.चौधरी विद्यासागर प्रदेश सचिव भारतीय जनता पार्टी.

हिमाचल में वंशवाद की राजनीति का लोकसभा में तो कुछ खास असर नहीं दिखता, लेकिन विधानसभा चुनावों (assembly election in himachal) में हमेशा ही भाजपा के लिए परेशानी का कारण रहा है. पार्टी हाईकमान द्वारा किसी अन्य व्यक्ति को टिकट मिलने की सूरत में स्थापित नेता उसे हराने की पूरी कोशिश करते हैं. ताकि अगली बार होने वाले विधानसभा चुनावों में स्थापित नेता के परिवार के किसी सदस्य को पार्टी के टिकट पर चुनावी मैदान में उतारा जा सके. लंबे समय तक एक ही परिवार के पास पार्टी की कमान रहने की सूरत में उस क्षेत्र विशेष में पार्टी की स्थिति कमजोर और परिवार की स्थिति मजबूत होना शुरू हो जाती है. ऐसे में पार्टी की स्थापित व्यवस्था भी खत्म होना का डर रहता है. ऐसे में क्या 2022 में उन्हीं के परिवार से विधानसभा का टिकट किसी और सदस्य को मिलेगा या नहीं, इस पर सवाल खड़े होते दिख रहे हैं.

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Last Updated : Jan 4, 2022, 1:22 PM IST
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