शिमला: चुनावी साल में हिमाचल प्रदेश की राजनीति कई रंग बदल रही है. सत्ता का सिंहासन हासिल करने के लिए कांग्रेस पार्टी निरंतर ओल्ड पेंशन स्कीम को लेकर वादे और दावे कर रही है. नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री, प्रचार कमेटी के प्रमुख सुखविंद्र सिंह सुक्खू सहित युवा नेता विक्रमादित्य सिंह सत्ता में आते ही ओल्ड पेंशन स्कीम लागू करने का दावा कर रहे हैं. दावे और वादे (BJP and Congress regarding OPS in Himachal) में उस समय एक और आयाम जुड़ गया, जब नेता प्रतिपक्ष ने ऊना जिले में एक कसम खाई. मुकेश अग्निहोत्री ने देश और दुनिया में विख्यात शक्तिपीठ मां चिंतपूर्णी की कसम खाते हुए वादा किया कि सत्ता में आने पर तुरंत ओपीएस लागू की जाएगी.
1 लाख 10 हजार कर्मचारी कर रहे ओपीएस की मांग: हिमाचल प्रदेश में इस समय न्यू पेंशन स्कीम के तहत 1.10 लाख कर्मचारी आते हैं. ये सभी खुद के लिए ओपीएस की मांग कर रहे हैं. कांग्रेस शासित राज्यों में राजस्थान ने सबसे पहले ओपीएस की घोषणा की. उसके बाद छत्तीसगढ़ और फिर झारखंड ने भी ऐलान कर दिया. अब हिमाचल में चुनावी साल में कांग्रेस जोर-शोर से हर मंच पर ओपीएस लागू करने की बात कह रही है. मुकेश अग्निहोत्री ने तो यहां तक कहा कि जयराम ठाकुर के दरबार में जाने से कुछ नहीं होगा. कांग्रेस ही ओपीएस की मांग को पूरा कर सकती है.
कर्मचारियों की जो सबसे बड़ी मांग ओपीएस: इस समय कर्मचारियों की जो सबसे बड़ी मांग है वो ओल्ड पेंशन स्कीम को लागू करने की है. इसके अलावा नियुक्ति की तिथि से सीनियोरिटी दिए जाने को लेकर भी कर्मचारी सरकार पर दबाव बना रहे हैं. इस मसले को लेकर कई पेंच हैं. पहले अनुबंध सेवाकाल की अवधि आठ साल थी. फिर कम होते-होते ये अब दो साल हो गई है. ऐसे में कई कर्मचारी देर से नियमित हुए तो कुछ जल्दी हो गए. इस तरह नियुक्ति की तिथि से सीनियोरिटी वास्तव में संवेदनशील मसला है. पूर्व में प्रेम कुमार धूमल ने 2017 के चुनाव प्रचार में इसे लेकर वादा किया था. धूमल ने कहा था कि सत्ता में आने के बाद नियुक्ति की तिथि से सीनियोरिटी का लाभ देने पर सरकार गंभीरता से काम करेगी. फिलहाल, इनमें बड़ा मुद्दा ओपीएस है.
हिमाचल प्रदेश में नियमित कर्मचारियों सहित, अनुबंध आधार पर नियुक्त कर्मचारी व आउटसोर्स कर्मचारियों सहित जितने भी अन्य वर्ग हैं, उन्हें मिलाकर कुल कर्मचारियों की संख्या ढाई लाख से अधिक है. प्रदेश में पौने दो लाख के करीब पेंशनर्स हैं. बजट का बड़ा हिस्सा इनके वेतन और पेंशन में खर्च हो जाता है. वहीं, ओल्ड पेंशन स्कीम को लेकर हिमाचल सरकार असमंजस की स्थिति में है. ओपीएस लागू करने का वादा करने से पहले सरकार को बजट व अन्य सारे पहलुओं की जांच करनी है. सरकार ने इसके लिए कमेटी का गठन तो किया है, लेकिन संभावनाएं कम लग रही हैं कि भाजपा सरकार कुछ करेगी.
ओपीएस को लेकर सीएम जयराम ने कही ये बात: वहीं, मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने मंगलवार (cm jairam statement on ops) को चंबा जिला के डलहौजी में ओपीएस से जुड़ी एक बड़ी बात कही. सीएम जयराम ठाकुर ने कहा कि कांग्रेस वादा और दावा करती है, लेकिन जमीनी हकीकत को भी समझना जरूरी है. सीएम ने कहा कि हाल ही में जयपुर में नार्थ जोन काउंसिल की मीटिंग में राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत ने केंद्रीय गृह मंत्री से कहा कि हम अपने बूते ओपीएस का लाभ नहीं दे पाएंगे, लिहाजा केंद्र सरकार इसमें मदद करे. जयराम ठाकुर ने कहा कि वर्ष 2003 में हिमाचल में कांग्रेस सरकार सत्तासीन थी, उसी दौरान राज्य में एनपीएस यानी न्यू पेंशन स्कीम लागू हुई थी. इस तरह सीएम जयराम ठाकुर की बातों से ये संकेत मिल रहे हैं कि राज्य सरकार इसमें सिर्फ कमेटी गठन तक ही सीमित न रह जाए.
ओपीएस को लागू करना इतना सरल नहीं: सीएम ने डलहौजी में कहा कि कर्मचारियों (cm jairam statement on ops) को मांग करने का हक है, लेकिन जिस तरह की प्रदेश की परिस्थितियां हैं, उसे लेकर ओपीएस की मांग पूरी होती है या नहीं, उस पर कुछ कहना कठिन है. वरिष्ठ मीडिया कर्मी ओपी वर्मा के अनुसार राज्य सरकार पर कर्ज का बोझ है. ओपीएस को लागू करना इतना सरल नहीं है. इसमें कई तकनीकी पेंच हैं. अलबत्ता राजनीतिक रूप से इसे इस्तेमाल करना आसान है. कांग्रेस हो या भाजपा, ओपीएस को लागू करने के रास्ते में कई अड़चनें हैं.
वोट बैंक को लुभाने के लिए भाजपा और कांग्रेस में होड़: उधर, चुनावी साल में प्रदेश के सबसे बड़े वोट बैंक को लुभाने के लिए भाजपा और कांग्रेस में होड़ मची हुई है. भाजपा भी कर्मचारियों को लुभाने के लिए कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रही. हाल ही में जयराम ठाकुर सरकार ने यूनिवर्सिटी और कॉलेज शिक्षकों के लिए यूजीसी स्केल का तोहफा दे दिया है. इससे सरकार पर 337 करोड़ रुपए का बोझ पड़ेगा. इसके अलावा सरकार ने कर्मचारियों की कई मांगों को स्वीकार किया है. नए वेतन कमीशन को लागू करने के बाद एरियर को लेकर ही सरकार पर एक हजार करोड़ रुपए का बोझ पड़ा है. लेकिन हालात ये हैं कि सरकारी कर्मचारियों के इतने वर्ग हैं कि एक को खुश करें तो दूसरा नाराज हो जाता है.
उल्लेखनीय है कि राज्य सरकार पर 65 हजार करोड़ रुपए का कर्ज होने वाला है. राज्य सरकार के बजट का चालीस फीसदी से अधिक हिस्सा वेतन और पेंशन पर खर्च होता है. ओपीएस लागू करने में कितना बोझ पड़ेगा और उसका स्वरूप क्या होगा, इस पर सरकार में मंथन तो चला है, लेकिन चुनाव से पहले सरकार कोई घोषणा करेगी, इसकी संभावना कम है.
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