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आशा वर्करों का फूटा गुस्सा: सरकार को दी चेतावनी, कहा- काम के बदले दाम दो वरना काम बंद - वेतन बढ़ाने की मांग आशा कार्यकर्ता

प्रदेश की आशा वर्करों ने सरकार से वेतन बढ़ाने की मांग की है. उन्होंने कहा कि 6 मार्च को प्रदेश सरकार ने वेतन में 750 रुपए की वृद्धि की थी, लेकिन यह भी अभी तक नहीं मिला है. इतने कम वेतन में आशा वर्करों का गुजारा नहीं हो पा रहा है.

आशा वर्करों की प्रेसवार्ता
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Published : Jul 30, 2021, 5:19 PM IST

शिमला: प्रदेश की अशा वर्करों का गुस्सा अब सरकार पर फूटा है. शिमला में आयोजित प्रेस वार्ता के दौरान हिमाचल प्रदेश आशा वर्कर संघ की अध्यक्ष सत्या रांटा ने कहा कि आशा वर्करों को मात्र एक दिन के 60 रुपए मिलते हैं. आशा वर्करों ने सरकार को चेताते हुए कहा कि उन्हें काम के बदलें सरकार दाम दें, वरना पूरे प्रदेश में काम बंद कर दिया जाएगा. सरकार द्वारा दिए जा रहे न्यूनतम वेतन से आशा वर्कर मानसिक तनाव में आ रही हैं.

संघ का कहना है कि सरकार द्वारा काम इतना ज्यादा दिया गया है कि आशा वर्कर एक दिन में पूरा भी नहीं कर सकती हैं. एक आशा वर्कर सुई से लेकर डॉक्टर तक का काम कर रही है. फिर भी 2 हजार रुपए में गुजारा करना पड़ रहा है. इसके अलावा उन्हें 1500 से 1600 के करीब सेंटर से इनसेंटिव मिलता है. इतने कम वेतन में आशा वर्करों का गुजारा नहीं हो पा रहा है.

वीडियो.

6 मार्च को प्रदेश सरकार ने वेतन में 750 रुपए की वृद्धि की थी, लेकिन यह भी अभी तक नहीं मिला है. सत्या रांटा का कहना है कि सरकार द्वारा आशा वर्करों के काम की सरकार सराहना तो कर रही है, लेकिन उन्हें कितनी परेशानियां झेलनी पड़ रही हैं, इसका उन्हें पता नहीं है. प्रदेश भर में 7 हजार 964 आशा वर्कर काम कर रही हैं. अगर कोई आशा वर्कर घर से बाहर ड्यूटी के दौरान खाना भी खा लेती है तो भी 70 रुपए में मिलता है और सरकार द्वारा 60 रुपए दिए जाते हैं.

वहीं, 1 हजार की जनसंख्या में एक आशा वर्कर काम करती है, लेकिन सरकार द्वारा एक आशा वर्कर से 2 हजार जनसंख्या का काम करवाया जा रहा है. कुछ आशा वर्कर ऐसी है जो विधवा हैं और कुछ एकल नारी हैं. उन महिलाओं को सबसे ज्यादा दिक्कतें आ रही हैं. आशा वर्करों का रूटीन का काम कोविड का कार्य, वैक्सीनेशन सेंटर में ड्यूटी देना, गर्भवती महिलाओं का चेकअप करना, बच्चों की प्रतिरक्षा (Immunization) करना, कैंसर मरीज का सर्वे करना, आंखों में दिक्कत वाले लोगों का सर्वे करना आदि है.

आशा कार्यकर्ताओं को मनरेगा वालों से भी कम दिहाड़ी दी जा रही है. आशा वर्कर ग्रांउड स्तर पर काम कर रही है. सुबह से लेकर शाम तक आशा वर्करों को ड्यूटी पर जाना पड़ता है. सबसे ज्यादा दिक्कतें किन्नौर और लाहौल स्पीति में आशा वर्करों को आती हैं जो बर्फ के बीच ड्यूटी में जा रही हैं. सत्या रांटा का कहना है कि अगर सरकार द्वारा उनकी मांगे नहीं मानी गई तो प्रदेश भर में आशा वर्कर भूख हड़ताल पर बैठेगी. उन्होंने बताया कि उनकी मांगों को लेकर स्वास्थ्य विभाग को भी अवगत करवाया गया है और अब मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर को मांग पत्र सौंपा जाएगा.

आशा वर्करों के लिए ड्यूटी का समय भी तय नहीं है. सुबह से लेकर शाम तक 35 किलोमीटर तक आशा वर्कर काम पर दौड़ती रहती है. अगर कई बार काम पूरा ना हुआ तो फिर अधिकारियों की डांट सुननी पड़ती है. पहले भी एक बार डयूटी के दौरान एक महिला गिर गई थी, जिसके चलते उसकी मौत हो गई थी. वहीं, एक महिला की मानसिक तनाव में आने के चलते मौत हुई है. आशा वर्करों के लिए डयूटी का समय तय किया जाना चाहिए.

आशा वर्करों का कहना है कि सरकार द्वारा एक महीने में मोबाइल रिचार्ज करने के लिए 150 रुपए दिए जाते हैं. आशा वर्कर मोबाइल रिचार्ज करने के लिए भी अपने पैसे खर्च कर रही हैं. सरकार द्वारा दिए गए आशा वर्करों के लिए मोबाइल फोन भी नहीं चल रहे हैं. मोबाइल में कभी डाटा अपलोड नहीं होता है और कई बार इसमें अन्य खराबी रहती है. इसको लेकर स्वास्थ्य विभाग को भी अवगत करवाया है. आशा वर्करों को इतनी दिक्कतें आ गई है कि एक तरफ बच्चों की ऑनलाइन कक्षा लगानी पड़ती है, दूसरी तरफ अपने फोन से सर्वे को लेकर काम करना पड़ता है.

पढ़ें- डिजिटल साथी कार्यक्रम में शिक्षा मंत्री ने डोनेट किए 25 स्मार्टफोन, लोगों से की ये अपील

शिमला: प्रदेश की अशा वर्करों का गुस्सा अब सरकार पर फूटा है. शिमला में आयोजित प्रेस वार्ता के दौरान हिमाचल प्रदेश आशा वर्कर संघ की अध्यक्ष सत्या रांटा ने कहा कि आशा वर्करों को मात्र एक दिन के 60 रुपए मिलते हैं. आशा वर्करों ने सरकार को चेताते हुए कहा कि उन्हें काम के बदलें सरकार दाम दें, वरना पूरे प्रदेश में काम बंद कर दिया जाएगा. सरकार द्वारा दिए जा रहे न्यूनतम वेतन से आशा वर्कर मानसिक तनाव में आ रही हैं.

संघ का कहना है कि सरकार द्वारा काम इतना ज्यादा दिया गया है कि आशा वर्कर एक दिन में पूरा भी नहीं कर सकती हैं. एक आशा वर्कर सुई से लेकर डॉक्टर तक का काम कर रही है. फिर भी 2 हजार रुपए में गुजारा करना पड़ रहा है. इसके अलावा उन्हें 1500 से 1600 के करीब सेंटर से इनसेंटिव मिलता है. इतने कम वेतन में आशा वर्करों का गुजारा नहीं हो पा रहा है.

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6 मार्च को प्रदेश सरकार ने वेतन में 750 रुपए की वृद्धि की थी, लेकिन यह भी अभी तक नहीं मिला है. सत्या रांटा का कहना है कि सरकार द्वारा आशा वर्करों के काम की सरकार सराहना तो कर रही है, लेकिन उन्हें कितनी परेशानियां झेलनी पड़ रही हैं, इसका उन्हें पता नहीं है. प्रदेश भर में 7 हजार 964 आशा वर्कर काम कर रही हैं. अगर कोई आशा वर्कर घर से बाहर ड्यूटी के दौरान खाना भी खा लेती है तो भी 70 रुपए में मिलता है और सरकार द्वारा 60 रुपए दिए जाते हैं.

वहीं, 1 हजार की जनसंख्या में एक आशा वर्कर काम करती है, लेकिन सरकार द्वारा एक आशा वर्कर से 2 हजार जनसंख्या का काम करवाया जा रहा है. कुछ आशा वर्कर ऐसी है जो विधवा हैं और कुछ एकल नारी हैं. उन महिलाओं को सबसे ज्यादा दिक्कतें आ रही हैं. आशा वर्करों का रूटीन का काम कोविड का कार्य, वैक्सीनेशन सेंटर में ड्यूटी देना, गर्भवती महिलाओं का चेकअप करना, बच्चों की प्रतिरक्षा (Immunization) करना, कैंसर मरीज का सर्वे करना, आंखों में दिक्कत वाले लोगों का सर्वे करना आदि है.

आशा कार्यकर्ताओं को मनरेगा वालों से भी कम दिहाड़ी दी जा रही है. आशा वर्कर ग्रांउड स्तर पर काम कर रही है. सुबह से लेकर शाम तक आशा वर्करों को ड्यूटी पर जाना पड़ता है. सबसे ज्यादा दिक्कतें किन्नौर और लाहौल स्पीति में आशा वर्करों को आती हैं जो बर्फ के बीच ड्यूटी में जा रही हैं. सत्या रांटा का कहना है कि अगर सरकार द्वारा उनकी मांगे नहीं मानी गई तो प्रदेश भर में आशा वर्कर भूख हड़ताल पर बैठेगी. उन्होंने बताया कि उनकी मांगों को लेकर स्वास्थ्य विभाग को भी अवगत करवाया गया है और अब मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर को मांग पत्र सौंपा जाएगा.

आशा वर्करों के लिए ड्यूटी का समय भी तय नहीं है. सुबह से लेकर शाम तक 35 किलोमीटर तक आशा वर्कर काम पर दौड़ती रहती है. अगर कई बार काम पूरा ना हुआ तो फिर अधिकारियों की डांट सुननी पड़ती है. पहले भी एक बार डयूटी के दौरान एक महिला गिर गई थी, जिसके चलते उसकी मौत हो गई थी. वहीं, एक महिला की मानसिक तनाव में आने के चलते मौत हुई है. आशा वर्करों के लिए डयूटी का समय तय किया जाना चाहिए.

आशा वर्करों का कहना है कि सरकार द्वारा एक महीने में मोबाइल रिचार्ज करने के लिए 150 रुपए दिए जाते हैं. आशा वर्कर मोबाइल रिचार्ज करने के लिए भी अपने पैसे खर्च कर रही हैं. सरकार द्वारा दिए गए आशा वर्करों के लिए मोबाइल फोन भी नहीं चल रहे हैं. मोबाइल में कभी डाटा अपलोड नहीं होता है और कई बार इसमें अन्य खराबी रहती है. इसको लेकर स्वास्थ्य विभाग को भी अवगत करवाया है. आशा वर्करों को इतनी दिक्कतें आ गई है कि एक तरफ बच्चों की ऑनलाइन कक्षा लगानी पड़ती है, दूसरी तरफ अपने फोन से सर्वे को लेकर काम करना पड़ता है.

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