शिमला: हिमाचल एशिया का पहला राज्य है, जिसे ग्रीन कवर बढ़ाने के लिए कार्बन क्रेडिट मिला है. प्रदेश ने डेढ़ दशक के अंतराल में 20 करोड़ से अधिक पौधे लगाए हैं. बड़ी बात है कि इन पौधों की सर्वाइवल रेट भी अस्सी फीसदी है. इस समय हिमाचल प्रदेश में 27 फीसदी फॉरेस्ट कवर है. राज्य के कुल क्षेत्रफल का 66 फीसदी हिस्सा अलग-अलग तरह के जंगलों से ढंका है. आइये देखते हैं कि हिमाचल प्रदेश ने देश-दुनिया को हरियाली और ऑक्सीजन का तोहफा देने के लिए कितनी मेहनत की है.
हिमाचल में ग्रीन फैलिंग पर रोक- देवभूमि में धरती मां को हरियाली की चादर ओढ़ाने के लिए बेटी के जन्म पर बूटा लगाने की योजना सफलता से चल रही है. इसके अलावा हिमाचल में फॉरेस्ट कवर बढ़ाने के लिए अलग-अलग योजनाएं चल रही हैं. हिमाचल ने देश के सामने मिसाल पेश करते हुए ग्रीन फैलिंग (पेड़ काटने) पर रोक लगाई है और यहां किसी भी हरे पेड़ की टहनी काटने की भी इजाजत नहीं है. हिमाचल प्रदेश का लक्ष्य अपने ग्रीन कवर को 33 फीसदी तक करने का है.
हिमाचल में चल रही कई योजनाएं- हिमाचल में कई तरह की वन योजनाएं (Forest scheme in Himachal) लागू हैं. ग्रीन कवर बढ़ाने के लिए पिछले साल 15,000 हेक्टेयर वन भूमि पर पौधा रोपण का लक्ष्य निर्धारित किया गया था. इससे पूर्व 2019 में ये लक्ष्य 9000 हेक्टेयर भूमि पर पौधरोपण का था. हिमाचल में सामुदायिक वन संवर्धन योजना, विद्यार्थी वन मित्र योजना, वन समृद्धि-जन समृद्धि योजना, एक बूटा बेटी के नाम योजनाएं (ek boota beti ke naam) चल रही हैं. इसके अलावा हर साल वन महोत्सव में भी पौधों का रोपण किया जाता है.
हिमाचल में हर साल बढ़ रहा फॉरेस्ट एरिया- हिमाचल प्रदेश में वनों की विविधता भी देश के अन्य राज्यों के लिए प्रेरक है. यहां के जंगलों में औषधीय पौधों सहित अन्य जीवनोपयोगी पौधे रोपे जाते हैं. हिमाचल प्रदेश के कुल क्षेत्रफल का 66 प्रतिशत से अधिक क्षेत्र अलग-अलग किस्म के पेड़ों से ढका है. स्टेट फॉरेस्ट रिपोर्ट 2019 के अनुसार राज्य के फॉरेस्ट कवर एरिया में 333.52 वर्ग किलोमीटर की बढ़ोतरी हुई है. बेशक देश के दक्षिणी राज्यों के मुकाबले पहाड़ी राज्य हिमाचल की वन एरिया में बढ़ोतरी अपेक्षाकृत कम है, लेकिन हिमाचल का अधिकांश क्षेत्र वनों से ढका है.
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हिमाचल के पास कार्बन क्रेडिट स्टेट का गौरव- हिमाचल प्रदेश को वर्ष 2014 में वर्ल्ड बैंक से एशिया का पहला कार्बन क्रेडिट राज्य होने का गौरव हासिल है. उस समय इनाम के तौर पर विश्व बैंक से हिमाचल प्रदेश को 1.93 करोड़ रुपए की राशि मिली थी. हिमाचल ने अपने ग्रीन कवर को 30 फीसदी करने का लक्ष्य रखा है. साल 2019 में शुरू हुई थी एक बूटा, बेटी के नाम योजना- प्रदेश की जनता को हरियाली के आंदोलन से जोड़ने के लिए राज्य सरकार ने सितंबर 2019 में एक बूटा, बेटी के नाम योजना शुरू की थी. योजना शुरू होने के बाद जिस परिवार में बेटी का जन्म हुआ है, वहां वन विभाग पांच पौधे देता है. ये पौधे बेटी के नाम रोपे जाते हैं. परिवार को पौधों के आलावा एक किट भी दी जाती है, जिसमें 5 ट्री गार्ड, 20 किलोग्राम खाद व बच्ची की नेमप्लेट होती है.
30 हजार परिवार बेटियों के नाम पर लगा चुके हैं पौधे- परिवार के सदस्य पौधे की देखभाल करते हैं. साथ ही पंचायतें, वन विभाग व स्थानीय प्रशासन इस काम में मदद करता है. एक किट की कीमत 1775 रुपए के करीब है. लगाए गए पौधे की नियमित देखभाल सुनिश्चित की जाती है. अब तक प्रदेश में तीस हजार परिवार इस योजना में अपनी बिटिया के नाम पौधा लगा चुके हैं. हिमाचल में पौधरोपण को पुण्य से जोड़ा गया है.
पुराना रिकॉर्ड देखा जाए तो हिमाचल ने वर्ष 2013-14 में 1.66 करोड़, वर्ष 2014-15 में 1.35 करोड़ और वर्ष 2015-16 में 1.22 करोड़ पौधे रोपे हैं. इसी तरह 2016-17 में 1.10 करोड़, 2017-18 में 1.18 करोड़, 2018-19 में 1.26 करोड़, 2019-20 में 1.45 करोड़, 2020-21 में 1.20 करोड़ के करीब पौधे रोपे गए.
हिमाचल में रोपे जाते हैं औषधीय पौधे- हिमाचल में औषधीय पौधों को रोपने (medicinal plants in himachal) का अभियान भी साथ-साथ चलता है. औषधीय पौधों के तहत अर्जुन, हरड़, बहेड़ा व आंवला सहित अन्य पौधे रोपे जाते हैं. बंदरों को जंगलों में आहार उपलब्ध करवाने के लिए यहां जंगली फलदार पौधे भी रोपे जाते हैं. हिमाचल में सरकारी व गैर सरकारी संस्थाओं ने वर्ष 2013-14 में 45.30 लाख, वर्ष 2014-15 में 46.70 लाख और वर्ष 2015-16 में 43 लाख औषधीय पौधे लगाए हैं. इसके बाद के सीजन में भी औषधीय पौधों के रोपण का औसतन आंकड़ा यही है.
फॉरेस्ट सर्वे रिपोर्ट में हिमाचल के आंकड़े- फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया (forest survey of india) की पूर्व की रिपोर्ट्स बताती हैं कि हिमाचल में जनवरी 2015 से फरवरी 2019 की समय अवधि में राज्य की 959.63 हैक्टेयर वन भूमि को गैर वानिकी कामों के लिए परिवर्तित किया गया. अभी 2019 के बाद की रिपोर्ट पब्लिक डोमेन में आने वाली है. इससे पूर्व की रिपोर्ट के अनुसार हिमाचल का ग्रीन कवर 333 वर्ग किलोमीटर बढ़ा है. रिपोर्ट बताती है कि हिमाचल में वर्ष 2017 के मुकाबले वनों से ढके क्षेत्र में 333.52 वर्ग किलोमीटर की बढ़ोतरी हुई है.
फॉरेस्ट कवर बढ़ाने में योजनाएं निभा रहीं अहम भूमिका- राज्य में हरियाली बढ़ाने में अलग-अलग योजनाओं की अहम भूमिका रही है. हिमाचल में 2017-18 में कैंप एरिया सहित 9725 हैक्टेयर भूमि में पौधरोपण किया गया. वर्ष 2019 में वन विभाग ने जनता, सामाजिक संस्थाओं, शैक्षणिक संस्थाओं (Government and non government organizations in Himachal) आदि के सहयोग से 25 लाख 34 हजार से अधिक पौधों को रोपा. रिपोर्ट के मुताबिक राज्य में फारेस्ट एरिया 37,033 वर्ग किमी है. इसमें से 1898 वर्ग किमी रिजर्व फारेस्ट है. इसके अलावा 33130 वर्ग किलोमीटर प्रोटेक्टिड फॉरेस्ट एरिया व 2005 वर्ग किमी अवर्गीकृत वन क्षेत्र है. हिमाचल में संरक्षित वन क्षेत्र में 5 नेशनल पार्क, 28 वन्य प्राणी अभ्यारण्य तथा 3 प्रोटेक्टिड क्षेत्र हैं. इन क्षेत्रों में वन्य प्राणियों व प्राकृतिक वनस्पतियों को संरक्षित किया गया है.
हिमाचल के जंगल में पौधों की 116 अलग-अलग प्रजातियां- पूर्व की बात करें तो 2017 में हिमाचल में फारेस्ट कवर 15433.52 वर्ग किमी था. यह राज्य के क्षेत्रफल का 27.72 प्रतिशत है. रिकार्डेड फारेस्ट एरिया 37033 वर्ग किलोमीटर है. यह प्रदेश के कुल क्षेत्रफल का 66.52 फीसदी है. प्रदेश के जंगलों में पेड़ों की 116 अलग-अलग प्रजातियां देखने को मिलती हैं. औषधीय प्रजातियों की संख्या 109 है. फॉरेस्ट फायर यानी जंगल की आग के नजरिए से देखें तो हिमाचल के जंगलों का 4.6 फीसदी भाग इस दृष्टि से अति संवेदनशील है. 220 वर्ग किमी से अधिक के जंगल फॉरेस्ट फायर के मामले में संवेदनशील हैं.
फॉरेस्ट कवर 33 फीसदी बढ़ाने का लक्ष्य- राज्य के वन मंत्री राकेश पठानिया (Forest Minister Rakesh Pathania) का कहना है कि विभाग का लक्ष्य अपने फॉरेस्ट कवर को 33 फीसदी करना है. उन्होंने बताया कि बेटी के नाम पौधा लगाने से भारत की प्रकृति को पूजने की परंपरा को भी पोषण देगा. न केवल माता-पिता बल्कि बेटियों का भी पौधों से सहज लगाव होगा.
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