शिमला: प्रदेश में कोरोना के नए मामलों में रोजाना इजाफा हो रहा है. ऐसे में प्रदेश सरकार ने सख्ती और बढ़ा दी है. हिमाचल की सीमा में प्रवेश करने वालों को कोरोना निगेटिव रिपोर्ट या वैक्सीनेशन का प्रमाणपत्र लाना अनिवार्य है. यह रिपोर्ट 72 घंटे से ज्यादा पुरानी नहीं होनी चाहिए.
कोरोना से ठीक हुए मरीजों को अब और गंभीर बीमारी होने का खतरा मंडराने लगा है. कोरोना से रिकवर हुए लोग अब टीबी की चपेट में आ रहे हैं. इसे लेकर अब केंद्र सरकार ने गाइडलाइन जारी कर दी है और स्वास्थ्य विभाग सतर्क हो गया है. विभाग ने टीबी की टेस्टिंग शुरू कर दी है. कई जगहों पर टेस्टिंग में 40 फीसदी तक लोग टीबी से संक्रमित पाए गए हैं. यह टेस्टिंग कोरोना संकमित या उसके बाद रिकवर हो चुके लोगों की हो रही है.
हालांकि केंद्र सरकार ने भी सभी आईएलआई (इंफ्लूएंजा लाइक इलनेस) और एसएआरआई (सीवियर एक्यूट रेस्पायरेटरी इन्फेक्शन) पेशेंट की भी टीबी स्क्रीनिंग करने के निर्देश दिए हैं. टीबी और कोविड-19 दोनों ही ऐसे संक्रामक रोग हैं, जो सबसे पहले फेफड़ों पर हमला करता है. दोनों ही बीमारियों के लक्षण एक जैसे यानी खांसी, बुखार और सांस लेने में तकलीफ होना है. टीबी के संक्रमण के बाद बीमारी काफी धीमी गति से विकसित होती है, जबकि कोरोना तेजी से मरीज के फेफड़ों को संक्रमित करता है.
टीबी मरीज में इस तरह के मिलते हैं लक्षण
1. दो हफ्ते से अधिक समय से खांसी
2. दो हफ्ते तक बुखार आना
3. तेजी से शरीर का वजन घटना
4. रात में सोते वक्त पसीना आना
केंद्र से जारी गाइडलाइन में इस बात का भी उल्लेख किया गया है. तमाम शोध में विशेषज्ञों ने पाया है की टीबी का सक्रिय (एक्टिव) और छिपा हुआ संक्रमण (लेटेंट) हिस्ट्री सार्स-कोविड बीमारी के लिए सर्वाधिक जोखिम कारक है. इससे कोविड संक्रमण की संवेदनशीलता काफी बढ़ जाती है और तेजी से गंभीर लक्षणों के साथ बीमारी उभरकर सामने आती है. टीबी से संक्रमित लोगों को कोविड-19 बीमारी होने का खतरा ज्यादा है. इस जोखिम की स्थिति से निपटने के लिए टीबी-कोविड जांच प्रक्रिया अपनाया जाना जरूरी हो गया है.
टीबी का इलाज पूरी तरह मुमकिन है. सरकारी अस्पतालों और डॉट्स सेंटरों में इसका फ्री इलाज होता है. सबसे जरूरी है कि इलाज पूरी तरह टीबी ठीक हो जाने तक चले. बीच में छोड़ देने से बैक्टीरिया में दवाओं के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो जाती है और इलाज काफी मुश्किल हो जाता है. आम दवाएं असर नहीं करतीं. अगर 3 हफ्ते से ज्यादा खांसी है तो डॉक्टर को दिखाएं. दवा का पूरा कोर्स करें, वह भी नियमित तौर पर होनी चाहिए.
प्रदेश में 1 से 14 साल तक के 394 बच्चे भी टीबी की चपेट में हैं. ज्यादातर कोरोना संक्रमित होने के बाद टीबी की चपेट में आए हैं. ऐसे में अब विभाग के लिए यह चिंता का विषय बन गया है कि बच्चों में भी कोरोना के बाद टीबी काफी तेजी से फैल रहा है.
किस जिला में कितने टीबी के मरीज
जिला | टीबी के मरीज |
कांगड़ा | 1762 |
शिमला | 1430 |
सोलन | 1237 |
मंडी | 1284 |
बिलासपुर | 271 |
चंबा | 692 |
हमीरपुर | 556 |
कुल्लू | 717 |
किन्नौर | 73 |
सिरमौर | 530 |
ऊना | 412 |
लाहौल स्पीति | 16 |
कुल | 8980 |
इस संबंध में आईजीएमसी के एचओडी पलमोनरी मेडिसन में प्रोफेसर डॉ. माल्या सरकार ने बताया कि कोरोना के बाद टीबी के मामलों में बढ़ोतरी हुई है. कोरोना संक्रमित मरीज या इससे रिकवर हो चुके व्यक्ति को टीबी हो सकती है. कोरोना और टीबी दोनों फेफड़ों को जकड़ रहा है. ऐसे में लोगों से अपील है कि यदि उन्हें कोरोना हुआ है और खांसी दो हफ्ते से ज्यादा है या फिर वजन कम हो रहा है तो वह तुरंत टीबी की जांच करवाएं. यह सभी अस्पतालों में निशुल्क की जाती है. इसका पूरा इलाज भी फ्री किया जा रहा है. हम टीबी मुक्त करने के लक्ष्य की ओर बढ़ रहे हैं. भारत सरकार का 2025 तक टीबी मुक्त करने का लक्ष्य है. यह तभी संभव है जब व्यक्ति लक्षण आने पर तुरंत टीबी की जांच करवाएं.
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