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सिरमौरी संस्कृति को बचाने में जुटे कलाकार, जालग में हो रहा भड़ाल्टू नृत्य के परिधानों का निर्माण

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Published : Aug 3, 2022, 6:40 PM IST

सिरमौर जिले के राजगढ़ उपमंडल की उपतहसील पझौता वादी की तलहटी में बसे ग्राम जालग में इन दिनों आदिकालीन भड़ाल्टू नृत्य के परिधानों के निर्माण का कार्य किया जा रहा है. यह कार्य अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त लोक कलाकार जोगेंद्र हाब्बी अपने निजी संसाधनों से करवा (Costumes of Bhadaltu dance) रहे हैं. परिधानों के निर्माण के साथ-साथ जोगेंद्र हाब्बी सांस्कृतिक दल के कलाकारों को परिधानों के निर्माण का भी प्रशिक्षण दे रहे हैं. पढ़ें पूरी खबर...

भड़ाल्टू नृत्य के परिधानों का निर्माण
भड़ाल्टू नृत्य के परिधानों का निर्माण

नाहन: सिरमौर जिले के राजगढ़ उपमंडल की उपतहसील पझौता वादी की तलहटी में बसे ग्राम जालग में स्थित हाब्बी मान सिंह कला केंद्र में इन दिनों आदिकालीन भड़ाल्टू नृत्य के परिधानों के निर्माण का कार्य किया जा रहा है. यह कार्य अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त लोक कलाकार जोगेंद्र हाब्बी अपने निजी संसाधनों से करवा (Costumes of Bhadaltu dance) रहे हैं. भड़ाल्टू नृत्य के परिधानों के निर्माण के साथ-साथ जोगेंद्र हाब्बी सांस्कृतिक दल के कलाकारों को परिधानों के निर्माण का भी प्रशिक्षण दे रहे हैं.

चूड़ेश्वर मंडल के प्रेस सचिव गोपाल हाब्बी ने बताया कि सिरमौर जनपद सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है. यहां सिरमौरी नाटी के अलावा ठोडा नृत्य, बूढ़ा नृत्य, हारूल नृत्य जैसी अनेकों समृद्ध नृत्य विधाएं विद्यमान है, जिन्हें संजोए रखना हम अपना कर्तव्य समझते हैं. पिछले 30-32 वर्षों से सांस्कृतिक दल के कलाकारों ने पद्मश्री विद्यानंद सरैक के प्रयासों व जोगेंद्र हाब्बी के विशेष योगदान से सिंहटू नृत्य, डग्याली नाच, भड़ाल्टू नृत्य जैसी आदिम एवं जनजातीय झलक प्रदान करने वाली विलुप्त लोक सांस्कृतिक विधाओं पर शोध एवं अध्ययन कर लोक सांस्कृतिक जगत के समक्ष लोक संस्कृति का नायाब नमूना प्रस्तुत कर सिरमोर की लोक संस्कृतिक विरासत को और ऊंचे आयाम प्रदान किए.

इस कड़ी में परिधान निर्माण की श्रृंखला में सिंहटू, डग्याली व भड़ाल्टू नृत्य के परिधानों में पारंपरिकता, मौलिकता और आकर्षण के साथ-साथ जनजातीय झलक दिलाने में जोगेंद्र हाब्बी व गोपाल हाब्बी एक अलग दृष्टिकोण रखते हैं. इस कड़ी में पिछले पांच-छह वर्षों से जोगेंद्र हाब्बी द्वारा लोक कलाकारों के सहयोग से भड़ाल्टू नृत्य के नए परिधानों का निर्माण किया जा रहा है. गत वर्ष नवंबर माह में भड़ाल्टू नृत्य के परिधानों के लिए भेड़ बकरी की खालों को साफ कर मुलायम करने का कार्य चरणबद्ध तरीके से किया जा रहा है.

हाब्बी ने बताया कि प्रथम चरण में सिरमौर व शिमला जनपद के अनेकों गांव से भेड़ बकरियों की व्यर्थ पड़ी खालों को एकत्र किया गया. दूसरे चरण में खालों को साबुन से साफ किया गया ओर तेल व घी लगाकर तीन चार महीने तक घर के अंदर रखा गया. वर्तमान में तीसरे चरण में खालों को मुलायम करने का कार्य किया जा रहा है. खालों के मुलायम हो जाने पर चतुर्थ व पंचम चरण में इन खालों से परिधानों का निर्माण किया जाएगा. इस सारी प्रक्रिया में लगभग एक वर्ष का समय लग जाना स्वभाविक है.

चूड़ेश्वर सांस्कृतिक मंडल का लक्ष्य शीघ्र अति शीघ्र परिधान निर्माण के कार्य को पूर्ण करना है, ताकि हाटी समुदाय के जनजातीय भड़ाल्टू नृत्य को नए आकर्षण के साथ जनमानस के समक्ष और बेहतरीन ढंग से प्रदर्शित किया जा सके. भड़ाल्टू नृत्य सिरमौर के हाटी समुदाय का जनजातीय नृत्य है. गौरतलब है कि सिरमौर के गिरिपार क्षेत्र का हाटी समुदाय पिछले कई दशकों से सरकार से सिरमौर के गिरि पार क्षेत्र को जनजातीय दर्जा देने की मांग कर रहा है.

हाब्बी ने कहा कि हाटी समुदाय को जनजातीय दर्जा (Tribal status to Hati community) देने का कार्य तो केंद्र सरकार का है, लेकिन हम तो पिछले दो-तीन दशकों से हाटी क्षेत्र की विलुप्त कलाओं को संजोने का कार्य कर रहे हैं और इन्हें संजोने का कार्य आगे भी जारी रखेंगे. उन्होंने कहा कि हमारा लक्ष्य हाटी समुदाय (Hati community of sirmaur) की समृद्ध संस्कृति व विलुप्त लोक कलाओं को संजोने, सहेजने व आम जनमानस के समक्ष प्रदर्शित करना है, ताकि आधुनिकता की चकाचौंध में व्यस्त युवा वर्ग अपनी समृद्ध पुरातन संस्कृति को न भूलें.

नाहन: सिरमौर जिले के राजगढ़ उपमंडल की उपतहसील पझौता वादी की तलहटी में बसे ग्राम जालग में स्थित हाब्बी मान सिंह कला केंद्र में इन दिनों आदिकालीन भड़ाल्टू नृत्य के परिधानों के निर्माण का कार्य किया जा रहा है. यह कार्य अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त लोक कलाकार जोगेंद्र हाब्बी अपने निजी संसाधनों से करवा (Costumes of Bhadaltu dance) रहे हैं. भड़ाल्टू नृत्य के परिधानों के निर्माण के साथ-साथ जोगेंद्र हाब्बी सांस्कृतिक दल के कलाकारों को परिधानों के निर्माण का भी प्रशिक्षण दे रहे हैं.

चूड़ेश्वर मंडल के प्रेस सचिव गोपाल हाब्बी ने बताया कि सिरमौर जनपद सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है. यहां सिरमौरी नाटी के अलावा ठोडा नृत्य, बूढ़ा नृत्य, हारूल नृत्य जैसी अनेकों समृद्ध नृत्य विधाएं विद्यमान है, जिन्हें संजोए रखना हम अपना कर्तव्य समझते हैं. पिछले 30-32 वर्षों से सांस्कृतिक दल के कलाकारों ने पद्मश्री विद्यानंद सरैक के प्रयासों व जोगेंद्र हाब्बी के विशेष योगदान से सिंहटू नृत्य, डग्याली नाच, भड़ाल्टू नृत्य जैसी आदिम एवं जनजातीय झलक प्रदान करने वाली विलुप्त लोक सांस्कृतिक विधाओं पर शोध एवं अध्ययन कर लोक सांस्कृतिक जगत के समक्ष लोक संस्कृति का नायाब नमूना प्रस्तुत कर सिरमोर की लोक संस्कृतिक विरासत को और ऊंचे आयाम प्रदान किए.

इस कड़ी में परिधान निर्माण की श्रृंखला में सिंहटू, डग्याली व भड़ाल्टू नृत्य के परिधानों में पारंपरिकता, मौलिकता और आकर्षण के साथ-साथ जनजातीय झलक दिलाने में जोगेंद्र हाब्बी व गोपाल हाब्बी एक अलग दृष्टिकोण रखते हैं. इस कड़ी में पिछले पांच-छह वर्षों से जोगेंद्र हाब्बी द्वारा लोक कलाकारों के सहयोग से भड़ाल्टू नृत्य के नए परिधानों का निर्माण किया जा रहा है. गत वर्ष नवंबर माह में भड़ाल्टू नृत्य के परिधानों के लिए भेड़ बकरी की खालों को साफ कर मुलायम करने का कार्य चरणबद्ध तरीके से किया जा रहा है.

हाब्बी ने बताया कि प्रथम चरण में सिरमौर व शिमला जनपद के अनेकों गांव से भेड़ बकरियों की व्यर्थ पड़ी खालों को एकत्र किया गया. दूसरे चरण में खालों को साबुन से साफ किया गया ओर तेल व घी लगाकर तीन चार महीने तक घर के अंदर रखा गया. वर्तमान में तीसरे चरण में खालों को मुलायम करने का कार्य किया जा रहा है. खालों के मुलायम हो जाने पर चतुर्थ व पंचम चरण में इन खालों से परिधानों का निर्माण किया जाएगा. इस सारी प्रक्रिया में लगभग एक वर्ष का समय लग जाना स्वभाविक है.

चूड़ेश्वर सांस्कृतिक मंडल का लक्ष्य शीघ्र अति शीघ्र परिधान निर्माण के कार्य को पूर्ण करना है, ताकि हाटी समुदाय के जनजातीय भड़ाल्टू नृत्य को नए आकर्षण के साथ जनमानस के समक्ष और बेहतरीन ढंग से प्रदर्शित किया जा सके. भड़ाल्टू नृत्य सिरमौर के हाटी समुदाय का जनजातीय नृत्य है. गौरतलब है कि सिरमौर के गिरिपार क्षेत्र का हाटी समुदाय पिछले कई दशकों से सरकार से सिरमौर के गिरि पार क्षेत्र को जनजातीय दर्जा देने की मांग कर रहा है.

हाब्बी ने कहा कि हाटी समुदाय को जनजातीय दर्जा (Tribal status to Hati community) देने का कार्य तो केंद्र सरकार का है, लेकिन हम तो पिछले दो-तीन दशकों से हाटी क्षेत्र की विलुप्त कलाओं को संजोने का कार्य कर रहे हैं और इन्हें संजोने का कार्य आगे भी जारी रखेंगे. उन्होंने कहा कि हमारा लक्ष्य हाटी समुदाय (Hati community of sirmaur) की समृद्ध संस्कृति व विलुप्त लोक कलाओं को संजोने, सहेजने व आम जनमानस के समक्ष प्रदर्शित करना है, ताकि आधुनिकता की चकाचौंध में व्यस्त युवा वर्ग अपनी समृद्ध पुरातन संस्कृति को न भूलें.

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