नाहन: सपना था बड़ा होकर इंजीनियर बनूंगा, लेकिन घर की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ नहीं थी. माता-पिता के पांच बच्चे थे, चार बेटियां व एक बेटा स्वयं मैं. पिताजी खेती-बाड़ी के साथ-साथ पंडताई का कार्य करते हैं. घर में कोई निश्चित मासिक आय के साधन भी नहीं थे. इन सबके बावजूद पिताजी ने हम सभी भाई बहनों को अच्छी शिक्षा दिलाई. यह कहना है हितेश दत्त शर्मा का. हितेश, पुत्र लक्ष्मी दत्त शर्मा जोकि गांव फांदी बोरीवाला डाकघर कोलर तहसील पांवटा साहिब जिला सिरमौर, हिमाचल प्रदेश के निवासी हैं.
हितेश बताते हैं कि उन्होंने वर्ष 2015 में बीटेक मैकेनिकल की, जिसके बाद 3 साल तक निजी क्षेत्र में नौकरी की जहां उन्हे 15,000 प्रति माह वेतन मिल रहा था, जिससे वह संतुष्ट नहीं थे. हितेश शुरू से ही किसी का नौकर न बनकर स्वयं मालिक बनकर अन्यों को रोजगार के साधन उपलब्ध करवाना चाहते थे. मार्च 2020 में कोरोना महामारी के चलते लॉकडाउन लग गया तभी हितेश की नौकरी भी छूट गई, जिसके बाद उन्होंने रोजगार के लिए यूट्यूब पर सर्च किया. जहां उन्हें पपीते का बगीचा लगाने की प्रेरणा मिली. इसके लिए उन्होंने कृषि व बागवानी विभाग की अधिकारियों से संपर्क कर जानकारी हासिल की.
जिसके बाद हितेश ने ऑर्गेनिक खेती (organic farming) करने की मन में ठानी ताकि लोगों को जहर मुक्त व औषधीय गुणों से युक्त प्राकृतिक तौर पर तैयार किए गए पपीते उपलब्ध करवा सकें. उन्होंने सितम्बर 2020 में इंडिया मार्ट से एक पैकेट 10 ग्राम रेड लेडी ताइवान नामक पपीते की प्रजाति का बीज (red lady taiwan papaya seeds) 3000 रुपए देकर ऑनलाइन मंगवाया और उसके पौधे तैयार किए जिसके बाद लगभग दो बीघा भूमि पर 400 पौधे रोपित किए.
एक वर्ष में ही हितेश के बगीचे में पपीते के पौधे फलदायक हो गए, जिनमें अभी 40 से 50 किलोग्राम फल प्रति पौधा लगा है. सितंबर माह में ही उन्होंने एक क्विंटल पपीता को 50 रुपए प्रति किलो के हिसाब से बेचा. हितेश बताते हैं कि उन्होंने ऑनलाइन शॉपिंग प्लेटफॉर्म पर भी अपने उत्पादों को रजिस्टर किया है, जिसके माध्यम से ग्राहक ऑनलाइन डिमांड करते हैं. इसके अतिरिक्त वह नाहन व पांवटा की स्थानीय मार्केट में भी पपीता पहुंचा रहे हैं.
उन्होंने बताया कि वह अपने बगीचे में शून्य लागत प्राकृतिक खेती (zero cost natural farming) के तहत कार्य कर रहे हैं, जिसमें किसी भी प्रकार कि रासायनिक खाद या दवाई का स्प्रे नहीं किया जाता है. वह अपने पौधों की जड़ों में गोबर की खाद, सूखा घास, पराली डालते हैं ताकि जमीन में नमी बनी रहे और पौधों के मित्र जीव भी जीवित रह सकें. पौधों में बीमारियों से बचाने के लिए वह घनामृत, जीवामृत और खट्टी लस्सी का प्रयोग करते हैं. इस पपीते के बगीचे में मल्टी क्रॉपिंग के तहत उन्होंने मूली, स्ट्रॉबरी, गोभी तथा मटर की फसल शून्य लागत प्राकृतिक खेती के अंतर्गत की है.
हितेश बताते हैं कि पपीते के पौधे की आयु 4 से 5 वर्ष की होती है, लेकिन यह पौधा 2 वर्ष तक अच्छी पैदावार दे सकता है. पपीते का पौधा 15 से 40 डिग्री तक तापमान और समुद्र तल से 800 मीटर तक अच्छा फलता फूलता है. वह बताते हैं कि इस सीजन के दिसंबर माह तक 8 से 10 टन और अगले वर्ष मार्च माह तक भी 8 से 10 टन पपीते के फल का उत्पादन उनके बगीचे में हो सकता है.
उन्होंने बताया कि मुख्यमंत्री खेत संरक्षण योजना (Chief Minister Farm Protection Scheme) के तहत सोलर फेंसिंग के लिए 3 लाख जबकि प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के तहत टपक सिंचाई के लिए 50,000 रुपये स्वीकृत हुए जिस पर उन्हें प्रदेश सरकार की ओर से 80 प्रतिशत अनुदान भी मिला है. हितेश बताते हैं कि पपीता जहां खाने के लिए स्वादिष्ट होता है वहीं, इसमें अनेकों औषधीय गुण भी विद्यमान हैं. पपीते का सेवन शुगर, कैंसर और डेंगू बुखार में भी लाभदायक है. इसके अतिरिक्त, पपीते के पत्ते शरीर में प्लेटलेट की संख्या को बढ़ाने में भी रामबाण हैं.
हितेश का कहना है कि शिक्षित युवाओं को रोजगार के लिए अन्य प्रदेशों में न जाकर हिमाचल में ही स्वरोजगार के साधन तलाशने चाहिए. इसके लिए प्रदेश सरकार ने मुख्यमंत्री स्वावलंबन योजना (Mukhyamantri Swavalamban Yojana), बागवानी और कृषि विभाग से संबंधित अनेक कल्याणकारी योजनाएं चला रखी हैं. जिसका लाभ बेरोजगार उठाकर अपनी आर्थिकी को सुदृढ़ कर स्वाभिमान के साथ अपना जीवन व्यतीत कर सकते हैं.
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