राजगढ़/सिरमौरः देवभूमि हिमाचल के पांरपरिक पर्वों और रीति रिवाजों के अनूठे उदाहरण देखने को मिलते हैं. प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों मे देव पंरपराओं पर आधारित देवठन पर्व मनाया जाता है. एकादशी तिथी को देवठन पर्व मनाया जाता है. जिला सिरमौर के राजगढ़ व आसपास के क्षेत्रों में देवठन पर्व मनाने के लिए सभी तैयारियां पूरी कर ली गईं हैं. पांच दिनों तक चलने वाला देवठन पर्व बुधवार को शुरू होगा.
घैणा पूजन के साथ आरंभ होगा पर्व
यहां देवठन पर्व के लिए हर गांव में कुल देवता या ग्राम देवता के मंदिर सुबह से ही सजने शुरू हो जाते हैं. पर्व को लेकर देव गांव के मुख्य लोग और देव पुजारी व्रत रखते हैं. सभी देव मूर्तियों और मंदिरों को साफ करके सजाया जाता है. संध्या काल में मंदिर परिसर में आग का अलाव किया जाता है. इसे स्थानीय भाषा मे 'घैना' कहा जाता है. उसके बाद मंदिर मे देव पूजा के बाद घैना पूजन किया जाता है.
रात भर होता है घैना जागना
इसके बाद रात भर जागरण का आयोजन किया जाता है. इसे स्थानीय भाषा मे 'घैना जागना' कहा जाता है. पूरी रात जागरण के बाद अगली सुबह देव पूजा होती है. देव पूजा के समय देवता का गुरू देव वाणी के माध्यम से अपने क्षेत्र के लोगों आगामी समय के लिए क्या करना है, इसका भी आदेश देता है कुछ स्थानों पर देवता का गुर रात भर से जल रहे आग के घैने पर नाचता है और इसे स्थानीय भाषा मे घैना छापना कहते हैं. पूरे दिन देव दर्शन का कार्यक्रम चलता है. साथ ही देवता अपने भक्तों को आर्शिवाद देते हैं.
एकादशी से लेकर पूर्णिमा तक चलेगा देवठन पर्व
रात को जागरण के समय मंनोरजन के लिए करियाला यानि लोक नाट्य का आयोजन होता है, जिसमें महाभारत, रामायण का स्थानीय भाषा में मंचन होता है और यहां रामायण व महाभारत को लोक गीतों में गाया जाता है. इसे स्थानीय भाषा में 'नाटी' कहा जाता है. यहां पूरे क्षेत्र में देवठन मनाने के लिए कोई एक तिथि निर्धारित नहीं है.
पांच दिनो तक घरों में बनेंगे पांरपरिक व्यजंन
यहां यह सिलसिला एकादशी तिथि से लेकर पूर्णिमा तक चलता है और हर गांव में अलग-अलग दिन देवठन मनाया जाता है. यानि पहाड़ी क्षेत्रों में देवठन का पर्व पांच दिनों तक चलता है. इन पांच दिनों तक घरों में पांरपरिक व्यजंन जैसे पटांडे, सिडकू, अस्कली, लुश्के पूड़े, आदि बनाए जाते हैं.
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