करसोग/मंडीः चौतरफा दुख से घिरे परिवार के लिए मासूम का इलाज परेशानी बन गया है. उम्र का लंबा हिस्सा देख चुके दादा दादी कलेजे के टुकड़े के उपचार को दर दर भटक रहे हैं, लेकिन डॉक्टरों को भी कोई ईलाज ही नहीं सूझ रहा है.
इस तरह तीन वर्षीय मासूम की बीमारी दिन प्रति दिन बढ़ता ही जा रही है. जिगर के टुकड़े को कष्ट में देखकर बुजुर्ग दादा दादी पीड़ा से कराह रहे हैं. ऐसे में अब दादा दादी के लिए कोई भी महरम और हौसला काम नहीं कर रहा है. ये दुख भरी कहानी है करसोग के कांणी मंदला की मासूम दिव्या की. दिव्या का जन्म तीन साल पहले सीजेरियन से हुआ था. घर में लक्ष्मी के कदम पड़ने से माता सन्तोष और पिता प्रेम कुमार काफी खुश थे,
लेकिन समय को तो कुछ और ही मंजूर था. सीजेरियन से जब बेटी का जन्म हुआ तो उस दौरान उसे कट लग गया और डॉक्टरों ने परिवार को कट के खुद व खुद ठीक होने का भरोसा दिया, लेकिन सीजीरियन के समय दिव्या के कान के नीचे लगा कट ठीक नहीं हुआ. जिसका बाद में ऑपरेशन करना पड़ा. भाग्य की विडंबना देखिए कि ऑपरेशन कामयाब नहीं हुआ और कान के नीचे गिल्टी आ गई. जिस पर डॉक्टरों ने दिव्या को चंडीगढ़ ले जाने की सलाह दी.
दिव्या को चंडीगढ़ ले जाने पर गिल्टी को कैंसर बताया गया और एक साल तक इलाज करने के बाद डॉक्टरों ने भी हाथ खड़े कर दिए और परिवार वालों को बेटी को घर पर ही सेवा करने को कह दिया. ऐसे में परिवारों वालों पर मानों दुखों का पहाड़ ही टूट पड़ा हो, लेकिन दादा दादी ने हिम्मत नहीं हारी और नन्हीं सी जान को गोद में उठाकर शिमला तो कभी सोलन और चंडीगढ़ में सरकारी और प्राइवेट हॉस्पिटल में ईलाज के लिए भटक रहे हैं.
यही नहीं जड़ी बूटी का भी इलाज किया गया, लेकिन तीन साल की दिव्या का कहीं से आराम नहीं मिला. दादा दादी का कहना है कि पिछले करीब तीन सालों में इलाज पर 6 लाख का खर्च आ चुका है पर कहीं से दिव्या को आराम नहीं मिला. ऐसे में मासूम को पीड़ा में कराहती देखर पूरा परिवार दुख के दिन झेल रहा है.
दादी कार्तिकी देवी ने बताया कि दिव्या के उपचार को पिछले तीन सालों से सरकारी से लेकर प्राइवेट तक के चक्कर काट रहे हैं, लेकिन कहीं भी इलाज नहीं हुआ है. उनका कहना है कि दिव्या को शिमला, सोलन और चंडीगढ़ में जाकर इलाज करवा चुके हैं, जिस पर करीब 6 लाख का खर्च आ चुका है. दिव्या की बीमारी दिन प्रति दिन बढ़ती ही जा रही है, जिस पर डॉक्टर अब घर पर ही सेवा करने की सलाह दे रहे हैं.
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