मंडी: आजाद भारत के इतिहास में भारतीय सेना के जवानों ने दुश्मनों के साथ बहुत से युद्ध लड़े. हर युद्ध में हिमाचल के जवानों ने दुश्मनों को मुंहतोड़ जबाव दिया. जब भी देवभूमि हिमाचल के वीर जवानों की बात आती है तो मंडी के नाचन विधानसभा क्षेत्र के राजेश चौहान, जगदीश, गुरदास व श्याम लाल का नाम बड़े फक्र के साथ लिया जाता है.
सरकार ने इन शहीदों के नाम पर घर तक सड़क, स्कूल को इनके नाम का दर्जा, गांव में स्वास्थ्य केंद्र खोलने जैसी कई घोषणाएं की, लेकिन दो दशक बीत जाने के बाद भी कोई घोषणाएं पूरी नहीं हुई.
नाचन विधानसभा क्षेत्र की ग्राम पंचायत चौक के रहने वाले राजेश चौहान 1995 में 24 रेडिमेंट पंजाब में भर्ती हुए थे, लेकिन सेना में चार साल सेवाएं देने के बाद साल 1999 में जम्मू-कश्मीर के कारगिल में पाकिस्तानी सेना के साथ लोहा लेते हुए वो वीरगति को प्राप्त हो गए थे.
शहीद होने के बाद सरकार द्वारा शहीद के घर तक सड़क मार्ग तो निकाल दिया गया, लेकिन 21 वर्ष बीत जाने के बावजूद उनके नाम की पट्टिका नहीं लग पाई है. वहीं, सरकार द्वारा शहीद की याद में धनोटू चौक पर पार्क और स्मारक बनाने का वादा भी राजनीति का शिकार होने के कारण आज तक अधूरा ही रह गया.
नाचन विधानसभा क्षेत्र की ग्राम पंचायत छात्तर के कंडयाह गांव निवासी शहीद जगदीश कुमार ने कारगिल युद्ध में अपने प्राणों की आहुति दी थी. साल 1994 में शहीद जगदीश की रेजिमेंट डोगरा में तैनाती हुई थी और वो 31 जुलाई 2000 में कश्मीर के गुरेज सेक्टर में वीरगति को प्राप्त हुए थे.
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सरकार द्वारा शहीद के घर तक सड़क तो पहुंचा दी गई है, लेकिन मार्ग आजतक तक पक्का नहीं हो पाया है. सरकार की शहीदों के प्रति उदासीनता के चलते गांव वालों ने अपने खर्च पर गांव के एंट्री प्वाइंट पर शहीद जगदीश कुमार के नाम का गेट बनाया है. हालांकि वादे को लेकर सरकार द्वारा साईं स्कूल का नाम भी शहीद के नाम पर रखा गया है.
कारगिल में शहीद हुए ग्राम पंचायत दयारगी के छलखी गांव के रहने वाले शहीद गुरदास सेना की आर्टिलरी बटालियन में भर्ती होने के बाद 31 जुलाई 1999 को शहीद हुए थे. शहीद के परिवार के साथ सरकार ने स्थानीय स्कूल का नाम, स्वास्थ्य केंद्र खोलने, प्रतिमा लगाने और घर तक सड़क का वादा किया था, लेकिन 21 वर्ष बीत जाने के बाद भी ये सम्मान शहीद और इसके परिवार को नहीं मिल पाया है.
नाचन विधानसभा क्षेत्र की ग्राम पंचायत अप्पर बैहली के गांव लोअर बैहली से चौथे शहीद श्याम लाल का परिवार भी अपने वीर शहीद सपूत के नाम का एक बोर्ड लगने का इंतजार कर रहा हैं. साल1995 में 6 पैरा कमांडो रेजिमेंट में भर्ती हुए श्याम लाल मात्र 24 वर्ष की आयु में 30 मई 2001 को श्रीनगर के सूरनकोट में आतंकियों के साथ लोहा लेते हुए शहीद हो गए थे.
शहीद के परिवार को मुआवजा तो मिला, लेकिन सरकार द्वारा शहीद के परिवार को दी जाने वाली अन्य सुविधाएं आज तक नहीं मिल पाई हैं. सरकार ने शहीद के नाम पर एक हैंडपंप तो लगा दिया, लेकिन उसमें से भी मटमैला पानी निकलता है.
हैरानी की बात ये है कि शहादत के 19 वर्षों बाद भी शहीद के गांव व घर को जाने के लिए रास्ते पर शहीद के नाम का एक बोर्ड तक नहीं लगया है. ऐसे में परिवार ने अमर शहीद श्याम लाल के नाम से रास्ता और स्मारक बनाने की गुहार केंद्र व प्रदेश सरकार से लगाई है.
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