सराज/मंडीः मनरेगा में कार्यरत मजदूरों के साथ प्रदेश सरकार बंधुआ मजदूरों की तरह बर्ताव कर रही है. ये बात मुख्यमंन्त्री के विधानसभा क्षेत्र सराज के एक जिला परिषद सदस्य संत राम ने कही. मनरेगा मजदूरों के साथ हो रहे व्यवहार को लेकर उक्त सदस्य ने हिमाचल प्रदेश के उच्च न्यायलय के माननीय न्यायधीश को सरकार व ग्रामीण विकास विभाग की मनमानियों के खिलाफ एक शिकायत पत्र लिख कर उक्त शिकायत को जनहित याचिका के रूप में स्वीकार करने का आग्रह किया है.
संतराम का कहना है कि वो स्वयं भूगौलिक दृष्टि से एक दुर्गम व हिमबाधित क्षेत्र के निवासी हैं. उनका पूरा क्षेत्र वर्ष में 6 मास तक बर्फ से बाधित रहता है. जिस कारण मनरेगा में उनके क्षेत्र को सीमित रोजगार ही मिल पाता है. उनका कहना है कि मनरेगा कानून के स्पष्ट प्रावधानों व कोरोना काल में सरकार की ओर से दिए जा रहे निर्देशों के बावजूद क्षेत्र के ज्यादातर कामगारों को अब तक मात्र 14 व 28 दिनों का रोजगार ही उपलब्ध करवाया गया है.
काम न मिलने के कारण लोगों को गम्भीर आर्थिक दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. उन्होंने न्यायालय को कुछ तथ्य पेश करते हुए लिखा है कि कोरोना काल में मनरेगा मजदूरों को 120 के बजाय 200 दिनों तक रोजगार देना सुनिश्चित किया जाए. काम के लिए आवेदन करते समय सम्बंधित कर्मचारी को रसीद देने के लिए कानूनी तौर पर बाध्य किया जाए.
संत राम ने कहा कि केंद्र सरकार ने मनरेगा मजदूरों की दिहाड़ी में 20 रुपये की वृद्धि की है, लेकिन प्रदेश सरकार मात्र 20 रुपये के स्थान पर 13 रुपये बढ़ाकर 205 रुपये की जगह के 198 रुपए के हिसाब से भुगतान कर रही है. संतराम ने माननीय उच्च न्यायलय से उक्त जनहित याचिका को स्वीकार कर मनरेगा मजदूरों के हालत को सुधारने का आग्रह किया है.
संतराम जिला परिषद सदस्य के साथ-साथ ग्रामीण कामगार संगठन हिमाचल प्रदेश के अध्यक्ष भी है, व मनरेगा कानूनों को लागू करवाने के लिए लंबे अरसे से आंदोलन करते रहे हैं. मंडी जिला में संतराम श्रमिकों के हकों के लिए कई बार भूख हड़ताल व आमरण अनशन का सहारा लेकर मनरेगा मजदूरों को हक दिलवाने के लिए प्रयासरत रहे है.
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