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चीटिंयों की डोर पर माता ने तैयार किया था इस मंदिर का नक्शा, अस्पताल से लौटाए मरीज भी यहां होते हैं ठीक!

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Published : Jun 30, 2019, 5:40 PM IST

इस मंदिर को लेकर कई मान्यताएं हैं. कहा जाता है कि जब किसी के घर पर संतान सुख से वंचित दंपतियों को चिंडी माता मंदिर आने पर संतान सुख प्राप्त होता है. गंभीर बीमारी से ग्रसित व्यक्ति चिंडी माता के दर्शन मात्र से ही कई रोगों से मुक्त हो जाता है. कहा जाता है कि सदियों पहले चिंडी सहित आसपास के क्षेत्रों में फैली असाध्य बीमारी भी माता के चमत्कार से दूर हुई थी.

चिंडी माता मंदिर


करसोग: आधुनिक युग के इस दौर में भी चिंडी माता के प्रति श्रद्धालुओं की आस्था पहले जैसी ही कायम है. माता के चमत्कारी करिश्मों की कहानियों के चलते आज भी हर साल दिल्ली सहित कलकत्ता और मुंबई से श्रद्धालु चिंडी मंदिर में माता के दर्शन करने आते हैं.

करसोग से 13 किलोमीटर पीछे शिमला मार्ग पर स्थित चिंडी नामक स्थान पर स्थित प्राचीन चिंडी माता मंदिर है. मान्यता है कि यहां देवी माता कन्या रूप में प्रकट हुई थी. माता ने मंदिर साथ बने तालाब व भंडार गृह का निर्माण खुद चींटियों की डोर पर किया था. माता की शक्तियों से प्रभवित होकर सुकेत रियासत के राजा ललित सेन भी दंडवत प्रणाम करने चिंडी माता के मंदिर पहुंचे थे.

इस मंदिर को लेकर कई मान्यताएं हैं. कहा जाता है कि जब किसी के घर पर संतान सुख से वंचित दंपतियों को चिंडी माता मंदिर आने पर संतान सुख प्राप्त होता है. गंभीर बीमारी से ग्रसित व्यक्ति चिंडी माता के दर्शन मात्र से ही कई रोगों से मुक्त हो जाता है. कहा जाता है कि सदियों पहले चिंडी सहित आसपास के क्षेत्रों में फैली असाध्य बीमारी भी माता के चमत्कार से दूर हुई थी.

मंदिर कमेटी चिंडी के प्रधान नानकचंद शर्मा का कहना है कि यहां जो भी श्रद्धालु आते हैं माता उनकी हर मनोकामना को पूर्ण करती है. निसंतान दम्पतियों को यहां संतान की प्राप्ति होती है. मनोकामना पूरी होने के बाद श्रद्धालु मंदिर में माता रानी के नाम से भंडारे लगाते हैं. इस मंदिर की खासियत ये है कि माता मंदिर के साथ लगते तालाब व भंडार गृह का निर्माण खुद चींटियों की डोर पर करवाया है. इस बात की जानकारी माता ने पहले ही स्थानीय पंडित को सपने में आकर दी थी.

इतनी बार मंदिर के बाहर निकलती है माता
चिंडी माता साल में दो बार ही बाहर निकलती है. हर तीसरे साल में माता तीन बार मंदिर से बाहर निकलती हैं. जब भी माता मंदिर से बाहर आती हैं, करसोग सहित दूर-दूर से श्रद्धालु दर्शन के लिए मंदिर पहुंचते हैं. चिंडी माता का मेला हर साल 2 से 4 अगस्त को चंकरंठ नामक स्थान पर लगता है. इसके बाद क्षेत्र में होने वाले करियाला कार्यक्रम के समय भी माता मंदिर से बाहर आती हैं.

सुंदरनगर बुलाया था माता को और मांगनी पड़ी थी माफी
कहते हैं कि चिंडी माता कभी भी अपने क्षेत्र को छोड़कर बाहर नहीं गई. एक बार सुकेत रियासत के राजा ललित सेन ने चिंडी माता की सुंदरनगर बुलाने की जिद की थी और उसे माता की नाराजगी झेलनी पड़ी थी. उस दौरान पूरे सुकेत से देवी और देवता राजा के बुलावे पर सुंदरनगर जाते थे और राजा ने चिंडी माता को भी सुंदरनगर आने का बुलावा भेजा. कारदारों ने भारी मन से माता को जैसे ही मंदिर को चौखट से बाहर निकाला माता के प्रकोप से अष्ट धातु की मूर्ति काली पड़ गई, लेकिन राजा के आदेशों को टाला नहीं जा सकता था.

सुंदरनगर की ओर निकला माता का रथ जैसे ही पांगणा स्थित नाले पर पहुंचा, उसी वक्त राजा के साथ अजीबो-गरीब घटनाएं घटने लगी. जिसके बाद राजा को माता की भविष्यवाणी हुई और रथ को संदेश के बाद यहीं से वापिस मंदिर लाया गया. राजा ललित सेन खुद दंडवत होकर माता से माफी मांगने मंदिर पहुंचे थ. आज भी क्षेत्र के लोगों से ये बात सुनी जा सकती है.


करसोग: आधुनिक युग के इस दौर में भी चिंडी माता के प्रति श्रद्धालुओं की आस्था पहले जैसी ही कायम है. माता के चमत्कारी करिश्मों की कहानियों के चलते आज भी हर साल दिल्ली सहित कलकत्ता और मुंबई से श्रद्धालु चिंडी मंदिर में माता के दर्शन करने आते हैं.

करसोग से 13 किलोमीटर पीछे शिमला मार्ग पर स्थित चिंडी नामक स्थान पर स्थित प्राचीन चिंडी माता मंदिर है. मान्यता है कि यहां देवी माता कन्या रूप में प्रकट हुई थी. माता ने मंदिर साथ बने तालाब व भंडार गृह का निर्माण खुद चींटियों की डोर पर किया था. माता की शक्तियों से प्रभवित होकर सुकेत रियासत के राजा ललित सेन भी दंडवत प्रणाम करने चिंडी माता के मंदिर पहुंचे थे.

इस मंदिर को लेकर कई मान्यताएं हैं. कहा जाता है कि जब किसी के घर पर संतान सुख से वंचित दंपतियों को चिंडी माता मंदिर आने पर संतान सुख प्राप्त होता है. गंभीर बीमारी से ग्रसित व्यक्ति चिंडी माता के दर्शन मात्र से ही कई रोगों से मुक्त हो जाता है. कहा जाता है कि सदियों पहले चिंडी सहित आसपास के क्षेत्रों में फैली असाध्य बीमारी भी माता के चमत्कार से दूर हुई थी.

मंदिर कमेटी चिंडी के प्रधान नानकचंद शर्मा का कहना है कि यहां जो भी श्रद्धालु आते हैं माता उनकी हर मनोकामना को पूर्ण करती है. निसंतान दम्पतियों को यहां संतान की प्राप्ति होती है. मनोकामना पूरी होने के बाद श्रद्धालु मंदिर में माता रानी के नाम से भंडारे लगाते हैं. इस मंदिर की खासियत ये है कि माता मंदिर के साथ लगते तालाब व भंडार गृह का निर्माण खुद चींटियों की डोर पर करवाया है. इस बात की जानकारी माता ने पहले ही स्थानीय पंडित को सपने में आकर दी थी.

इतनी बार मंदिर के बाहर निकलती है माता
चिंडी माता साल में दो बार ही बाहर निकलती है. हर तीसरे साल में माता तीन बार मंदिर से बाहर निकलती हैं. जब भी माता मंदिर से बाहर आती हैं, करसोग सहित दूर-दूर से श्रद्धालु दर्शन के लिए मंदिर पहुंचते हैं. चिंडी माता का मेला हर साल 2 से 4 अगस्त को चंकरंठ नामक स्थान पर लगता है. इसके बाद क्षेत्र में होने वाले करियाला कार्यक्रम के समय भी माता मंदिर से बाहर आती हैं.

सुंदरनगर बुलाया था माता को और मांगनी पड़ी थी माफी
कहते हैं कि चिंडी माता कभी भी अपने क्षेत्र को छोड़कर बाहर नहीं गई. एक बार सुकेत रियासत के राजा ललित सेन ने चिंडी माता की सुंदरनगर बुलाने की जिद की थी और उसे माता की नाराजगी झेलनी पड़ी थी. उस दौरान पूरे सुकेत से देवी और देवता राजा के बुलावे पर सुंदरनगर जाते थे और राजा ने चिंडी माता को भी सुंदरनगर आने का बुलावा भेजा. कारदारों ने भारी मन से माता को जैसे ही मंदिर को चौखट से बाहर निकाला माता के प्रकोप से अष्ट धातु की मूर्ति काली पड़ गई, लेकिन राजा के आदेशों को टाला नहीं जा सकता था.

सुंदरनगर की ओर निकला माता का रथ जैसे ही पांगणा स्थित नाले पर पहुंचा, उसी वक्त राजा के साथ अजीबो-गरीब घटनाएं घटने लगी. जिसके बाद राजा को माता की भविष्यवाणी हुई और रथ को संदेश के बाद यहीं से वापिस मंदिर लाया गया. राजा ललित सेन खुद दंडवत होकर माता से माफी मांगने मंदिर पहुंचे थ. आज भी क्षेत्र के लोगों से ये बात सुनी जा सकती है.

Intro:करसोग के चिंडी माता मंदिर में दिल्ली, कलकत्ता और मुंबई से आते हैं श्रद्धालु, मनोकामना पूर्ण होने पर लगाते हैं भंडाराBody:यहां चीटिंयों की डोर पर माता ने खुद तैयार किया था मंदिर का नक्शा, अस्पताल से छोड़े गए मरीज मंदिर में आने पर हुए हैं ठीक
करसोग के चिंडी माता मंदिर में दिल्ली, कलकत्ता और मुंबई से आते हैं श्रद्धालु, मनोकामना पूर्ण होने पर लगाते हैं भंडारा
करसोग
मशीनी युग के इस दौर में चिंडी माता के प्रति श्रद्धालुओं की आस्था पहले जैसी ही कायम है। माता के चमत्कारी करिश्मों से आज भी हर साल दिल्ली सहित कलकत्ता और मुंबई से श्रद्धालु चिंडी मंदिर में माता के दर्शन करने आते हैं। करसोग से 13 किलोमीटर पीछे शिमला मार्ग पर स्थित चिंडी नामक स्थान पर माता रानी का ये प्रसिद्ध प्राचीन मंदिर है। मान्यता है कि यहां माता कन्या रूप में प्रकट हुई थी और माता ने मंदिर साथ बने तालाब व भंडार के निर्माण खुद चींटियों की डोर बनाकर किया था। अदभुत शक्तियों से प्रभवित होकर सुकेत रियासत के राजा ललित सेन भी दंडवत प्रणाम करने चिंडी माता पहुंचे थे। करसोग के सबसे प्राचीन मंदिरों में एक चिंडी माता मंदिर को लेकर सदियों से लेकर चली आ रही मान्यताएं आज भी बरकरार है। कहते हैं कि जब किसी के यहां संतान प्राप्ति नहीं होती तो ऐसे दंपतियों को चिंडी माता मंदिर आने पर संतान सुख प्राप्त हुआ है , इसी तरह के गंभीर रोगों से ग्रसित व्यक्ति जो अपनी अंतिम सांस गिन रहा हो और जिसे अस्पताल से भी वापिस लौटाया गया हो , चिंडी माता के दर्शन करने मात्र से बड़े से बड़े असाध्य रोग भी दूर हुए हैं। अब भी इसी मान्यता के साथ हजारों श्रद्धालुओं की मंदिर में आने पर मनोकामना पूर्ण होती है। जिसके बाद श्रद्धालु माता का आभार प्रकट करने के लिए मंदिर में भंडारे भी लगाते हैं। सदियों पहले भी चिंडी सहित आसपास के क्षेत्रों में अशाध्य बीमारी फैली थी, जो माता के प्रताप से दूर हुई थी। मंदिर कमेटी चिंडी के प्रधान नानकचंद शर्मा का कहना है कि यहां जो भी श्रद्धालु आते हैं माता उनकी हर मनोकामना को पूर्ण करती है। उन्होंने बताया कि निसंतान दम्पतियों को यहां आने पर पुत्र रत्न को प्राप्ति होती है। इसी तरह से माता के चमत्कारों से अस्पताल से छोड़े जाने वाले मरीज भी मंदिर आने पर स्वस्थ होकर वापिस लौटे हैं। उन्होंने कहा कि मनोकामना पूरी होने के बाद श्रद्धालु मंदिर में माता रानी के नाम से भंडारे लगाते है। इस मंदिर की खासियत ये है कि यहां जिस स्थान पर माता विराजमान है और यहां साथ लगते तालाब व भंडार का निर्माण माता ने खुद चींटियों को डोर पर करवाया है। इस बात की जानकारी माता ने पहले ही स्थानीय पंडित को स्वप्न में आकर दे दी थी।
इतनी बार मंदिर के बाहर निकलती है माता:

चिंडी माता साल दो बार और तीसरे साल में तीन बार ही मंदिर से बाहर निकलती है। चिंडी माता का मेला हर साल 2 से 4 अगस्त को चंकरंठ नामक स्थान पर लगता है। उस दौरान माता तीन दिन के लिए मंदिर से बाहर आती है। इसके बाद क्षेत्र में होने वाले करियाला के समय भी माता मंदिर से बाहर आती है। हर तीसरे साल में माता तीन बार मंदिर से बाहर निकलती है। जब भी माता मंदिर से बाहर आती है, करसोग सहित दूर दूर से श्रद्धालु दर्शन के लिए मंदिर पहुंचते हैं।
सुंदरनगर बुलाया था माता को और मांगनी पड़ी थी माफी:
कहते हैं कि चिंडी माता कभी भी अपने क्षेत्र को छोड़कर बाहर नहीं गई। एक बार सुकेत रियासत के राजा ललित सेन ने चिंडी माता की सुंदरनगर बुलाने की जिद की थी और उसे माता की नाराजगी झेलनी पड़ी थी। उस दौरान पूरे सुकेत से देवी और देवता राजा के बुलावे पर सुंदरनगर जाते थे और राजा ने चिंडी माता को भी सुंदरनगर आने का बुलावा भेजा। कारदारों ने भारी मन से माता को जैसे ही मंदिर को चौखट से बाहर निकाला माता के प्रकोप से अष्ट धातु की मूर्ति काली पड़ गई, लेकिन राजा के आदर्शों को टाला नहीं जा सकता था, इसके बाद जैसे ही माता का रथ पांगणा स्थित नाले पर पहुंचा, उसी वक्त राजा के साथ अजीबो गरीब घटनाएं घटने लगी। जिसके बाद राजा को माता की भविष्यवाणी हुई और रथ को संदेश के बाद यहीं से वापिस मंदिर लाया गया। राजा ललित सेन खुद दंडवत होकर माता से माफी मांगने मंदिर पहुंचे थे। आज भी क्षेत्र के लोगों से ये बात सुनी जा सकती है।


Conclusion:मंदिर कमेटी चिंडी के प्रधान नानकचंद शर्मा का कहना है कि यहां जो भी श्रद्धालु आते हैं माता उनकी हर मनोकामना को पूर्ण करती है। उन्होंने बताया कि निसंतान दम्पतियों को यहां आने पर पुत्र रत्न को प्राप्ति होती है। इसी तरह से माता के चमत्कारों से अस्पताल से छोड़े जाने वाले मरीज भी मंदिर आने पर स्वस्थ होकर वापिस लौटे हैं। उन्होंने कहा कि मनोकामना पूरी होने के बाद श्रद्धालु मंदिर में माता रानी के नाम से भंडारे लगाते है। इस मंदिर की खासियत ये है कि यहां जिस स्थान पर माता विराजमान है और यहां साथ लगते तालाब व भंडार का निर्माण माता ने खुद चींटियों को डोर पर करवाया है। इस बात की जानकारी माता ने पहले ही स्थानीय पंडित को स्वप्न में आकर दे दी थी।
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