मंडी: आषाढ़ सक्रांति पर मंडी के रोहांडा स्थित बड़ा देव कमरूनाग के मंदिर में सरानाहुली उत्सव बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया गया. इस मौके पर लाखों की संख्या में श्रद्धालुओं ने पैदल सफर कर मंदिर में मंडी के बड़ा देव कमरूनाग के दरबार में हाजरी लगाई. इसके साथ ही श्रद्धालुओं ने यहां पर बनी पवित्र झील की पूजा अर्चना की और अपनी मनोकामना की प्राप्ति पर झील में अपनी आस्थानुसार पैसे व जेवर चढ़ाए.
मान्यता है कि बड़ा देव कमरूनाग से जो भी श्रद्धालु पूरी आस्था के साथ कुछ मांगते हैं तो बड़ा देव उनकी मनोकामना को जरूर पूरा करते हैं. मनोकामना पूरी होने पर श्रद्धालु कमरूनाग के मंदिर में हाजरी भरना और यहां पर स्थित पवित्र झील में चढ़ावा चढ़ाना कभी नहीं भूलते. इस मौक पर देव कमरूनाग के मंदिर परिसर में एक मेले का भी आयोजन किया जाता है. जिसका भी श्रद्धालु भरपूर आनंद उठाते हैं.
आध्यात्मिक शांति प्राप्त करने बाहरी राज्यों से आते हैं श्रद्धालु
बड़ा देव कमरूनाग के पुजारी नीलमणी ने बताया कि उनकी पूरी कमेटी देवता की पौराणिक परंपराओं का निर्वहन करने के लिए वचनबद्ध हैं और उनके अनुसार भविष्य में भी इसे ऐसे ही संजोकर रखा जाएगा. इस मौके पर मंडी जिला के ही नहीं बल्कि समूचे हिमाचल प्रदेश से श्रद्धालु यहां पर पहुंच कर देव कमरूनाग के दर्शन से निहाल होते हैं. बाहरी राज्यों से भी श्रद्धालु बड़ा देव कमरूनाग की कमरूघाटी में पहुंच कर आध्यात्मिक शांति को प्राप्त करते हैं.
बड़ा देव कमरूनाग के दरबार में पूरी होती है श्रद्धालुओं की मुरादें
श्रद्धालुओं के अनुसार बड़ा देव कमरूनाग से वह जो भी मन्नत मांगते हैं वो अवश्य पूरी होती है. इससे श्रद्धालुओं की अटूट आस्था बड़ा देव कमरूनाग के साथ जुड़ी हुई है. अपनी मनोकामना पूर्ण होने पर श्रद्धालु मंदिर में आते हैं व इसके साथ यहां पर पवित्र झील की पूजा भी करते हैं और श्रद्धानुसार झील में पैसा और सोने चांदी के जेवर आदि भेंट करते हैं.
बता दें कि बड़ा देव कमरूनाग का मंदिर रोहांडा की उंची चोटी पर स्थित है और यहीं पर एक बड़ी झील है. ऐसा माना जाता है कि मंदिर की इस झील में पैसे और सोना चांदी सदियों से चढ़ाया जाता है. ऐसा अनुमान है कि झील में अरबों रुपये की राशि और जेवर मौजूद हैं जो कि अपने आप में एक रहस्य है. कमरूनाग मंदिर पहुंचने के लिए कई स्थानों से पैदल रास्ते हैं जिनको पार कर श्रद्धालु देवता के मंदिर तक पहुंचते हैं. हालांकि अब कुछ स्थानों से सड़क सुविधा भी दी गई है, जिससे लोगों को कठिन पैदल चढ़ाई चढ़ने से निजात मिली है. जबकि कुछ लोग एक दिन पहले यहां पहुंच कर रात यहीं बिताते हैं.
बारिश के देवता के रूप में पूजे जाते हैं देव कमरूनाग
देव कमरूनाग को बारिश का देवता भी माना जाता है. जब कभी सूखे की स्थिति पैदा हो जाए तो जनपद के लोग देवता के दरबार जाकर बारिश की गुहार लगाते हैं. वहीं, लोग अपनी मनोकामनाओं को लेकर भी देवता के दर पर पहुंचते हैं. लोगों की देव कमरूनाग के प्रति अटूट आस्था है.
श्रीकृष्ण ने वरदान में मांग लिया था कमरूनाग का सिर
दंत कथाओं के अनुसार महाभारत काल के रत्तन यक्ष ही देव कमरूनाग हैं. रत्तन यक्ष महाभारत के युद्ध में कौरवों की ओर से युद्ध में शामिल होने के लिए जा रहे थे. इस बात की भनक भगवान श्रीकृष्ण को लग गई. उन्हें रत्तन यक्ष की शक्ति का अंदाजा था. ऐसे में पांडव कौरवों को कुरूक्षेत्र के रण में हराने में असमर्थ होते.
मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने छलपूर्वक रत्तन यक्ष की परीक्षा लेते हुए उनका सिर वरदान में मांग लिया. रत्तन यक्ष ने महाभारत का युद्ध देखने की इच्छा जाहिर की. इसे स्वीकार करते हुए श्रीकृष्ण ने युद्ध स्थल के बीचो बीच उनका सिर बांस के डंडे से ऊंचाई पर बांध दिया. युद्ध के बाद पांडवों ने कमरूनाग के रूप में रत्तन यक्ष को अपना आराध्यदेव माना. पांडवों के हिमालय प्रवास के दौरान कमरूनाग की पहाड़ियों में स्थापित कर दिया.