करसोग: जनजातीय क्षेत्र किन्नौर के किसान भी सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती की राह पर अपने कदम बढ़ा रहे हैं. इसी कड़ी में किन्नौर जिला से विभिन्न खंडों से 20 महिलाओं की टीम करसोग की उप तहसील के पज्यानु गांव में प्राकृतिक खेती के बारे में जानने पहुंची है.
इस दौरान कृषि विभाग के विषय वार्ता विशेषज्ञ रामकृष्ण चौहान और मास्टर ट्रेनर लीना शर्मा ने किसानों की महिला समूह को सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती की बारिकियों को लेकर अवगत करवाया. महिला किसानों की टीम को फील्ड में जाकर प्राकृतिक तरीके से बिजाई करने सहित जीवामृत, घनजीवामृत, दशपर्णी, सप्तधान्य व बीजामृत बनाने की तकनीक सिखाई गई.
करसोग में पज्यानु पहला ऐसा गांव बनने की दिशा की ओर अग्रसर हैं. सभी किसानों ने रासायनिक खेती को छोड़ कर सुभाष पालेकर तकनीक को अपनाया है. वहीं, आसपास के थाच, फेगेल, छंडियारा गांव के किसानों ने भी रासायनिक खेती के किनारा करना शुरू कर दिया है.
कृषि विभाग भी प्राकृतिक खेती के प्रचार प्रसार के लिए निरंतर कार्य कर रहा है. इसके तहत करसोग के सभी गांव में कैम्प लगाकर किसानों को फील्ड में जाकर ट्रेनिंग दी जा रही है. किन्नौर से आई टीम को ट्रेनिंग देने के दौरान विषय वार्ता विशेषज्ञ रामकृष्ण चौहान सहित एटीएम करसोग लेखराज, एटीएम किन्नौर सौरभ वालिया आदि उपस्थित थे.
विषय वार्ता विशेषज्ञ कृषि विभाग रामकृष्ण चौहान ने कहा कि किन्नौर जिला के विभिन्न क्षेत्रों से किसान पज्यानु में प्राकृतिक खेती की जानकारी लेने आए हैं. किन्नौर में अभी बड़े स्तर पर शून्य लागत खेती पर कार्य शुरू नहीं हुआ है. किसानों को सेब और सब्जियों की प्राकृतिक तरीके से पैदावार लेने की ट्रेनिंग दी गई.
2 हजार बीघा जमीन में की जा रही प्राकृतिक खेती:
करसोग में किसान धीरे-धीरे रासायनिक खेती को छोड़ रहे हैं. वर्तमान में 2 हजार कृषि योग्य भूमि सुभाष पालेकर खेती के दायरे में आ चुकी है. खरीफ सीजन में 4 हजार बीघा भूमि को सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती के दायरे में लाए जाने का लक्ष्य रखा गया है. रासायनिक खाद की तुलना में ये तकनीकी काफी सस्ती है.
इसमें किसानों को किसी भी तरह की खाद खेतों में डालने की जरूरत नहीं होती है. इसके अलावा किसानों को खेत मे गोबर डालने की भी आवश्यकता नहीं है. इसके लिए देसी प्रजाति के गौवंश के गोबर एवं मूत्र से जीवामृत, घन जीवामृत व बीजामृत बनाया जाता है.
इनका खेत में उपयोग करने से मिट्टी में पोषक तत्वों की वृद्धि के साथ-साथ जैविक गतिविधियों का विस्तार होता है. बीजामृत का इस्तेमाल बीजों को उपचारित करने में किया जाता है. इस विधि से खेती करने वाले किसान को बाजार से किसी प्रकार की खाद और कीटनाशक रासायन खरीदने की जरूरत नहीं पड़ती है.
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