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बंजार के लोग बुनियादी सुविधाओं से वंचित, पालकी में डाल अस्पताल पहुंचाए जा रहे मरीज

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Published : Jan 22, 2020, 9:59 AM IST

Updated : Jan 22, 2020, 10:49 AM IST

कुल्लू के उपमंडल बंजार की नोहंडा पंचायत के नाही गांव में बीती शाम एक गर्भवती महिला को जब पीड़ा हुई तो ग्रामीणों ने उसे पालकी में डालकर पहले 3 किलोमीटर पैदल चल कर मुख्य सड़क तक पहुंचाया. उसके बाद उसे बंजार अस्पताल की ओर भेजा गया. लोगों ने सरकार से सड़क बनाने की मांग की है.

Banjar are deprived of basic facilities
Banjar are deprived of basic facilities

कुल्लूः जिला कुल्लू के उपमंडल बंजार की तीर्थन घाटी के कई गांव अभी भी बुनियादी सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं. वहीं, यहां पर प्रदेश सरकार की ओर से किए जा रहे विकास के दावों की भी पोल खुल रही है. तीर्थन घाटी के नोहंडा पंचायत के कई गांव अब भी सड़क नहीं होने से मुश्किलें झेल रहे हैं. कई बार मरीजों को पालकी में बैठाकर मुख्य सड़क तक पहुंचाना पड़ता है. ऐसे में मरीज को अस्पताल पहुंचाने में देरी हो जाती है. जो मरीज पर भारी पड़ सकती है.

तीर्थन घाटी की नोहंडा पंचायत के नाही गांव में बीती शाम एक गर्भवती महिला को प्रसव पीड़ा के बाद ग्रामीणों ने पालकी में डालकर पहले 3 किलोमीटर पैदल चल कर मुख्य सड़क तक पहुंचाया. उसके बाद उसे बंजार अस्पताल भेजा गया.

वीडियो.

गनीमत रही कि मौसम साफ था.मौसम खराब होने से गर्भवती महिला समेत परिजनों की मुसीबतें और बढ़ सकती थी. ग्राम पंचायत नोहण्डा कहने को तो विश्व धरोहर ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क का प्रवेश द्वार है. जहां पर जैविक विविधता का अनमोल खजाना छिपा पड़ा है, लेकिन इस क्षेत्र के सैंकड़ों बाशिंदे आजतक आजादी के सात दशक बाद भी विकास से दूर है.

पंचायत के गांव दारन, शूंगचा, घाट, लाकचा, नाहीं, शालींगा, टलींगा, डींगचा, खरुंगचा और झनियार गांव के सैंकड़ों लोग अभी तक सरकार व प्रशासन से उम्मीद लगाए बैठे हैं कि कब तक उनकी दहलीज तक भी सड़क पहुंच जाए. लोगों का कहना है कि पंचायत में सड़क, पीने के पानी, स्वास्थ्य और शिक्षा की मूलभूत सुविधाएं भी नहीं मिल पा रही है.

यहां के लोग अभी तक अपनी पीठ पर बोझ ढोने को मजबूर है. यही नहीं जब गांव में कोई व्यक्ति बीमार पड़ जाए तो मरीज को दुर्गम पहाड़ी के रास्तों से लकड़ी की पालकी में उठा कर सड़क तक पहुंचाना पड़ता है. इस क्षेत्र से पढ़ाई करने वाले छात्र-छात्राओं को हाई स्कूल व इससे आगे की पढ़ाई करने के लिए प्रतिदिन करीब दो से पांच घंटे तक का सफर पैदल तय करना होता है.

नाहीं गांव के लोगों का कहना है कि यहां के स्कूलों में भी शिक्षा के स्तर को बेहतर किए जाने की जरुरत है. लोगों ने सरकार व प्रशासन से बुनियादी सुविधाएं दिए जाने की मांग की है.

ये भी पढ़ें- मुझे बेटा ही दीजो! यहां एक बाण से तय होता है किसके घर में पैदा होंगे कितने बेटे

कुल्लूः जिला कुल्लू के उपमंडल बंजार की तीर्थन घाटी के कई गांव अभी भी बुनियादी सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं. वहीं, यहां पर प्रदेश सरकार की ओर से किए जा रहे विकास के दावों की भी पोल खुल रही है. तीर्थन घाटी के नोहंडा पंचायत के कई गांव अब भी सड़क नहीं होने से मुश्किलें झेल रहे हैं. कई बार मरीजों को पालकी में बैठाकर मुख्य सड़क तक पहुंचाना पड़ता है. ऐसे में मरीज को अस्पताल पहुंचाने में देरी हो जाती है. जो मरीज पर भारी पड़ सकती है.

तीर्थन घाटी की नोहंडा पंचायत के नाही गांव में बीती शाम एक गर्भवती महिला को प्रसव पीड़ा के बाद ग्रामीणों ने पालकी में डालकर पहले 3 किलोमीटर पैदल चल कर मुख्य सड़क तक पहुंचाया. उसके बाद उसे बंजार अस्पताल भेजा गया.

वीडियो.

गनीमत रही कि मौसम साफ था.मौसम खराब होने से गर्भवती महिला समेत परिजनों की मुसीबतें और बढ़ सकती थी. ग्राम पंचायत नोहण्डा कहने को तो विश्व धरोहर ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क का प्रवेश द्वार है. जहां पर जैविक विविधता का अनमोल खजाना छिपा पड़ा है, लेकिन इस क्षेत्र के सैंकड़ों बाशिंदे आजतक आजादी के सात दशक बाद भी विकास से दूर है.

पंचायत के गांव दारन, शूंगचा, घाट, लाकचा, नाहीं, शालींगा, टलींगा, डींगचा, खरुंगचा और झनियार गांव के सैंकड़ों लोग अभी तक सरकार व प्रशासन से उम्मीद लगाए बैठे हैं कि कब तक उनकी दहलीज तक भी सड़क पहुंच जाए. लोगों का कहना है कि पंचायत में सड़क, पीने के पानी, स्वास्थ्य और शिक्षा की मूलभूत सुविधाएं भी नहीं मिल पा रही है.

यहां के लोग अभी तक अपनी पीठ पर बोझ ढोने को मजबूर है. यही नहीं जब गांव में कोई व्यक्ति बीमार पड़ जाए तो मरीज को दुर्गम पहाड़ी के रास्तों से लकड़ी की पालकी में उठा कर सड़क तक पहुंचाना पड़ता है. इस क्षेत्र से पढ़ाई करने वाले छात्र-छात्राओं को हाई स्कूल व इससे आगे की पढ़ाई करने के लिए प्रतिदिन करीब दो से पांच घंटे तक का सफर पैदल तय करना होता है.

नाहीं गांव के लोगों का कहना है कि यहां के स्कूलों में भी शिक्षा के स्तर को बेहतर किए जाने की जरुरत है. लोगों ने सरकार व प्रशासन से बुनियादी सुविधाएं दिए जाने की मांग की है.

ये भी पढ़ें- मुझे बेटा ही दीजो! यहां एक बाण से तय होता है किसके घर में पैदा होंगे कितने बेटे

Intro:यहां पालकी में डाल अस्पताल पहुंचाए जा रहे मरीज
बंजार की तीर्थंन घाटी में सरकारी दावे हुए हवाBody:




जिला कुल्लू के उपमंडल बंजार की तीर्थन घाटी के कई गांव अभी भी मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं। वहीं यहां पर प्रदेश सरकार द्वारा किए जा रहे विकास के दावों की भी पोल खुल रही है। तीर्थन घाटी के नोहंडा पंचायत के कई गांव अभी भी सड़क सुविधा से दूर है। जिसके चलते यहां आज भी कई मरीजों को पालकी में बैठाकर पहले मुख्य सड़क तक पहुंचाया जा रहा है। उसके बाद उन्हें बंजार अस्पताल पहुंचना पड़ रहा है। जिससे यह साफ पता चलता है कि प्रदेश सरकार के दावे यहां हवा हो रहे हैं। तीर्थंन घाटी की नोहंडा पंचायत के कई गांव में अभी तक सड़क ही नहीं पहुंच पाई है। बीती शाम के समय भी एक गर्भवती महिला को जब पीड़ा हुई तो ग्रामीणों ने उसे पालकी में डालकर नाही गांव से पहले 3 किलोमीटर पैदल चल मुख्य सड़क तक पहुंचाया। उसके बाद उसे बंजार अस्पताल की ओर भेजा गया। वही मौसम की स्थिति अगर खराब होती तो गर्भवती महिला व उसके परिजनों को भी खासी दिक्कतों का सामना करना पड़ता। ग्राम पंचायत नोहण्डा कहने को तो विश्व धरोहर ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क का प्रवेश द्वार है जहां पर जैविक विविधता का अनमोल खजाना छिपा पड़ा है। लेकिन इस क्षेत्र के सैंकड़ों बाशिंदे आजतक आजादी के सात दशक बाद भी विकास से कोसों दूर है। यहां के लोग अभी तक सड़क, रास्तों, पानी, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी कई मूलभूत सुविधाओं से बंचित्त है। इस पंचायत के गांव दारन, शूंगचा, घाट, लाकचा, नाहीं, शालींगा, टलींगा, डींगचा, खरुंगचा और झनियार आदि गांव के सैंकड़ों लोग अभी तक सरकार व प्रशासन से उम्मीद लगाए बैठे है कि कब तक उनकी दहलीज तक भी सड़क पहुंच जाए। यहां के लोग अभी तक अपनी पीठ पर बोझ ढोने को मजबुर है। यही नहीं जब गांव में कोई व्यक्ति बीमार पड़ जाए तो मरीज को दुर्गम पहाड़ी पगडंडी रास्तों से लकड़ी की पालकी में उठा कर सड़क तक पहुंचाना पड़ता है। इस क्षेत्र से पढ़ाई करने वाले छात्र-छात्राओं को हाई स्कूल व इससे आगे की पढ़ाई करने के लिए प्रतिदिन करीब दो से पांच घंटे तक का सफर पैदल तय करना होता है।
नाहीं गांव के निवासी लोभु राम, लाल सिंह, वार्ड पंच शालिनी देवी, दुनी चन्द, दलीप, मोहर सिंह, नरेश कुमार, पिन्टू राम, डाबे राम, कर्म सिंह, किशोरी लाल, खेम चन्द, दिवान चन्द, राजेश कैथ, सुरेश, तारा चन्द व नवल किशोर आदि का कहना है कि यहाँ पर सरकार ने प्राइमरी और मिडल स्कूल तो खोल दिए हैं लेकिन अध्यापकों और सुविधाओं की कमी के कारण बच्चों की पढ़ाई का स्तर काफी हद तक गिर गया है। यहां के प्राइमरी स्कूल की चौथी कक्षा का छात्र पहली कक्षा का पाठ भी ठीक से नहीं पढ़ पाता है। जिस कारण उनके बच्चों का भविष्य अंधकारमय हो रहा है। यहां के प्राइमरी स्कूल में पहले 37 बच्चे पड़ते थे लेकिन अब मात्र 26 बच्चे पड़ रहे है। अभिभावकों को अपने बच्चों के भविष्य की चिन्ता सत्ता रही है। कुछ ने अपने बच्चों को यहां से अन्य नजदीकी स्कूलों तथा कुछ लोगो ने निजी स्कूलों में दाखिला ले लिया है।

Conclusion:

नाहीं गांव के निवासी लोभु राम का कहना है कि अध्यापक की कमी बारे उन्होंने मुख्यमंत्री संकल्प सेवा में भी शिकायत दर्ज की थी। जहां से उन्हे समाधान भी मिला और एक अध्यापक के नियुक्ति आदेश भी यहाँ के लिए हुए थे।लेकिन वह अध्यापक सिर्फ एक दिन इलाका और स्कूल भवन को देखकर वापिस चला गया है जो आजतक बापिस नही आया।
Last Updated : Jan 22, 2020, 10:49 AM IST
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