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कुल्लू दशहरा की शान बढ़ा रहे देवता आदि ब्रह्मा, भारथा कार्यक्रम में साल भर की होती है भविष्यवाणी

अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा उत्सव विश्व भर में एक अनूठे देवोत्सव के तौर पर पहचान बना चुका है. ऐसे ही देवताओं में खोखण के देवता आदि ब्रह्मा है, जो सदियों से दशहरा उत्सव में शिरकत कर रहे हैं.

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Published : Oct 13, 2019, 10:04 AM IST

Updated : Oct 13, 2019, 11:44 AM IST

कुल्लू: अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा उत्सव विश्व भर में एक अनूठे देवोत्सव के तौर पर पहचान बना चुका है. इस उत्सव की सबसे अहम कड़ी मेले में सदियों से शिरकत कर रहे सैकड़ों देवी-देवता माने जाते हैं. ऐसे ही देवताओं में खोखण के देवता आदि ब्रह्मा हैं, जो सदियों से दशहरा उत्सव में शिरकत कर रहे हैं.

इन देवी-देवताओं ने जिला के अधिष्ठाता देवता भगवान रघुनाथ के सम्मान को कायम रखने में कोई कसर नहीं छोड़ी है और मान-सम्मान की खातिर कई चुनौतियों को भी पार किया है. आदि ब्रह्मा उन देवताओं में एक माने जाते हैं, जिन्होंने दशहरा उत्सव व भगवान रघुनाथ पर समय-समय पर आई चुनौतियों के दौरान साथ दिया था. यही वजह है कि उत्सव के दौरान आज भी आदि ब्रह्मा को विशेष दर्जा व मान-सम्मान मिलता है.

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करीब 1900 बीघा भूमि के मालिक कहे जाने वाले देवता आदि ब्रह्मा ऐतिहासिक ढालपुर मैदान में भगवान रघुनाथ के शिविर से पश्चिम की ओर विराजमान रहते हैं और उत्सव के दौरान सातों दिन देवता के अस्थायी शिविर में हर रोज सैकड़ों श्रद्धालु भोजन ग्रहण करते हैं.

देवता के कारकूनों की मानें तो जनश्रृति के अनुसार खोखण में उक्त देवता के अवतरित होने की अद्भुत कहानी है. आदि ब्रह्मा करीब 18 पंचायतों के अराध्य देवता माने जाते हैं और साल भर में अनेक कार्यक्रम भी होते हैं. चैत्र महीने में देवता के दरबार में भारथा का भी आयोजन होता है और इस दौरान साल भर की भविष्यवाणी होती है.

देवता के कारकूनों के अनुसार दशहरा उत्सव के दौरान भी देवता के शिविर में श्रद्धालुओं के लिए सात दिन लगातार देव भोज की व्यवस्था की जाती है. बहरहाल, दशहरा उत्सव की शान देवता आदि ब्रह्मा सदियों ने बढ़ाने में अहम भूमिका निभा रहे हैं.

कुल्लू: अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा उत्सव विश्व भर में एक अनूठे देवोत्सव के तौर पर पहचान बना चुका है. इस उत्सव की सबसे अहम कड़ी मेले में सदियों से शिरकत कर रहे सैकड़ों देवी-देवता माने जाते हैं. ऐसे ही देवताओं में खोखण के देवता आदि ब्रह्मा हैं, जो सदियों से दशहरा उत्सव में शिरकत कर रहे हैं.

इन देवी-देवताओं ने जिला के अधिष्ठाता देवता भगवान रघुनाथ के सम्मान को कायम रखने में कोई कसर नहीं छोड़ी है और मान-सम्मान की खातिर कई चुनौतियों को भी पार किया है. आदि ब्रह्मा उन देवताओं में एक माने जाते हैं, जिन्होंने दशहरा उत्सव व भगवान रघुनाथ पर समय-समय पर आई चुनौतियों के दौरान साथ दिया था. यही वजह है कि उत्सव के दौरान आज भी आदि ब्रह्मा को विशेष दर्जा व मान-सम्मान मिलता है.

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करीब 1900 बीघा भूमि के मालिक कहे जाने वाले देवता आदि ब्रह्मा ऐतिहासिक ढालपुर मैदान में भगवान रघुनाथ के शिविर से पश्चिम की ओर विराजमान रहते हैं और उत्सव के दौरान सातों दिन देवता के अस्थायी शिविर में हर रोज सैकड़ों श्रद्धालु भोजन ग्रहण करते हैं.

देवता के कारकूनों की मानें तो जनश्रृति के अनुसार खोखण में उक्त देवता के अवतरित होने की अद्भुत कहानी है. आदि ब्रह्मा करीब 18 पंचायतों के अराध्य देवता माने जाते हैं और साल भर में अनेक कार्यक्रम भी होते हैं. चैत्र महीने में देवता के दरबार में भारथा का भी आयोजन होता है और इस दौरान साल भर की भविष्यवाणी होती है.

देवता के कारकूनों के अनुसार दशहरा उत्सव के दौरान भी देवता के शिविर में श्रद्धालुओं के लिए सात दिन लगातार देव भोज की व्यवस्था की जाती है. बहरहाल, दशहरा उत्सव की शान देवता आदि ब्रह्मा सदियों ने बढ़ाने में अहम भूमिका निभा रहे हैं.

Intro:कुल्लू दशहरा की शान बढ़ा रहे देवता आदि ब्रम्हाBody:
अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा उत्सव विश्व भर में एक अनूठे देवोत्सव के तौर पर पहचान बना चुका है। इस उत्सव की सबसे अहम कड़ी इसमें सदियों से शिरकत कर रहे सैकड़ों देवी-देवता माने जाते हैं। इन देवी-देवताओं ने जिला के अधिष्ठाता देवता भगवान रघुनाथ के सम्मान को कायम रखने में कोई कसर नहीं छोड़ी है और मान-सम्मान की खातिर कई चुनौतियों को भी पार किया है। ऐसे ही देवताओं में खोखण के देवता आदि ब्रह्मा भी एक जो सदियों से दशहरा उत्सव में शिरकत कर रहे हैं। आदि ब्रह्मा उन देवताओं में एक माने जाते हैं जिन्होंने दशहरा उत्सव व भगवान रघुनाथ पर समय-समय पर आई चुनौतियों के दौरान साथ दिया था। लिहाजा, उत्सव के दौरान इसी के चलते आज भी विशेष दर्जा व मान-सम्मान मिलता है। करीब मोहरों सहित 1900 बीघा भूमि के मालिक कहे जाने वाले देवता आदि ब्रह्मा ऐतिहासिक ढालपुर मैदान में भगवान रघुनाथ के शिविर से पश्चिम की ओर विराजमान रहते हैं और उत्सव के दौरान सातों दिन देवता के अस्थायी शिविर में हर रोज सैकड़ों श्रद्धालु भोजन ग्रहण करते हैं। इसके अलावा देवता के दर पर आशीष लेने के लिए भी भक्त दूर-दूर से उमड़ते हैं। देवता के कारकूनों की मानें तो जनश्रृति के अनुसार खोखण में उक्त देवता के अवतरित होने की अद्भुंत कहानी है। कारकूनों के अनुसार इन्हे करीब 18 पंचायतों का अराध्य देवता माना जाता है। देवता के मंदिर में साल भर में अनेक कार्यक्त्रम भी होते हैं। चैत्र महीने में देवता के दरबार में भारथा का भी आयोजन होता है और इस दौरान साल भर की भविष्यवाणी होती है। Conclusion:देवता के कारकूनों के अनुसार दशहरा उत्सव के दौरान भी देवता के शिविर में श्रद्धालुओं के लिए सात दिन लगातार देव भोज की व्यवस्था की जाती है। बहरहाल, दशहरा उत्सव की शान देवता आदि ब्रह्मा सदियों ने बढ़ाने में अहम भूमिका निभा रहे है।
Last Updated : Oct 13, 2019, 11:44 AM IST
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