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Kullu Dussehra: भगवान रघुनाथ को चढ़ता है दूध व लुच्ची का भोग, तुंग की लकड़ी की करते हैं दातुन

हिमाचल के जिला कुल्लू के मुख्यालय ढालपुर में 5 अक्टूबर से अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा 2022 (International Kullu Dussehra 2022) मनाया जाएगा. जिसकी तैयारियां जोरों पर चल रही हैं. कुल्लू दशहरा को लेकर श्रद्धालुओं में खास उत्साह है. तीन साल के लंबे अंतराल के बाद यह उत्सव मनाया जाएगा. बता दें कि इस उत्सव में भगवान रघुनाथ की विशेष महत्ता (Importance of Lord Raghunath in Kullu) है. भगवान रघुनाथ से जुड़ी कहानियों को जानने के लिए पढ़ें ये खबर...

Importance of Lord Raghunath in Kullu.
अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा में भगवान रघुनाथ.
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Published : Oct 4, 2022, 9:56 AM IST

कुल्लू: हिमाचल प्रदेश का अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा (International Kullu Dussehra 2022) 5 अक्टूबर को जिले में धूमधाम से मनाया जाएगा. ऐसे में कुल्लू के ढालपुर मैदान में जहां अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा उत्सव की तैयारियां की जा रही हैं तो वहीं, देवी-देवताओं ने भी अपने मंदिरों से प्रस्थान करना शुरू कर दिया है. ताकि दशहरा उत्सव में जिला कुल्लू के देवी-देवता साल के बाद मिलन कर सकें. इसी कड़ी में रघुनाथ मंदिर कमेटी ने भी दशहरा पर्व और रघुनाथ की रथ यात्रा को लेकर तैयारियां शुरू कर दी (Importance of Lord Raghunath in Kullu) है.

भगवान रघुनाथ 7 दिनों तक जहां ढालपुर में अपने अस्थाई शिविर में विराजमान रहेंगे. तो वहीं, रोजाना की पूजा-अर्चना भी अस्थाई शिविर में पारंपरिक तरीके से निभाई जाएगी. जहां दशहरा उत्सव में भगवान रघुनाथ को दूध और लुच्ची का भोग लगेगा तो वहीं, भगवान रघुनाथ की 4 पहर की पूजा-अर्चना भी की जाएगी और श्रद्धालुओं भगवान रघुनाथ के दर्शन करेंगे.

देवी-देवताओं के लिए भोग की व्यवस्था: दशहरा उत्सव में जहां सभी देवी-देवताओं के अस्थाई शिविरों में भोग की व्यवस्था रहेगी तो वहीं, श्रद्धालुओं के लिए भी भंडारा आयोजित किए जाएंगा. भगवान रघुनाथ के अस्थाई शिविर में भी रोजाना श्रद्धालुओं के लिए भंडारे की व्यवस्था की जाती है और भगवान को भी विशेष रूप से भोग लगाया जाता है.

भगवान रघुनाथ को चढ़ता है ये भोग: ढालपुर मैदान में अस्थाई शिविर में भगवान रघुनाथ, भगवान नृसिंह, माता सीता, शालीग्राम व हनुमान भगवान को अस्थायी शिविर में सुबह से रात तक पांच बार दूध और लुच्ची यानी मैदा से बनी रोटी का भोग लगाया जा रहा (Prasad for Lord Raghunath in kullu dussehra ) है. वहीं, दिन में एक बार दाल व चावल का भोग लगाया जाएगा.

Importance of Lord Raghunath in Kullu.
भगवान रघुनाथ.

सभी भगवान के बनाए गए अलग शिविर: भगवान रघुनाथ के पुजारी दिनेश किशोर के अनुसार भगवान रघुनाथ, माता सीता, नृसिंह, शालीग्राम व हनुमान भगवान के लिए भोजन ग्रहण करने को अलग-अलग अस्थायी शिविर हैं. इनमें यह सभी विराजमान होते हैं और उन्हें भोजन परोसा जाता है. जब भोग लगाया जाता है तब उस स्थान का पर्दा बंद कर दिया जाता है. जब तक भगवान भोजन ग्रहण करते हैं, तब तक पुजारी माला जपता है.

Importance of Lord Raghunath in Kullu.
भगवान रघुनाथ.

तुंग पेड़ की लकड़ी की दातुन करते हैं रघुनाथ: खाना खाने के बाद भगवान भगवान रघुनाथ तुंग नामक पेड़ की लकड़ी की दातुन भी करते हैं. उसके बाद सभी देवी-देवता अपने-अपने स्थान पर विराजमान होते हैं और शिविर में आराम भी करते (Lord raghunath in kullu dussehra ) हैं. भगवान रघुनाथ की अस्थायी शिविर में चार पहर पूजा-अर्चना भी होती है.

भगवान रघुनाथ का डेली रूटीन: भगवान रघुनाथ के मुख्य छड़ीबरदार महेश्वर सिंह का कहना है अयोध्या की तर्ज पर दशहरा उत्सव में, अन्य दिन भी भगवान रघुनाथ की हर परंपरा का निर्वहन होता है. इंसान की तरह ही भगवान रघुनाथ भी अपनी दिनचर्या पूरी करते हैं. इस बार भी दशहरा उत्सव में भगवान रघुनाथ की सभी रीतियों का पारंपरिक तरीके से पालन किया जाएगा.

Importance of Lord Raghunath in Kullu.
भगवान रघुनाथ.

ऐसे बनाया जाता है भगवान रघुनाथ का भोग: भगवान को चढ़ने वाला लुच्ची का भोग रोटी ज्यादातर आगरा, मथुरा के अलावा ओडिशा और बंगाल में काफी प्रसिद्ध है. बंगाल में लुच्ची एकदम सफेद तली जाती है. जबकि ब्रज में इसे हल्का ब्राउन तला जाता है. इसके अतिरिक्त बंगाल में यह आलू या बैंगन की सूखी सब्जियों के साथ परोसी जाती है. जबकि ब्रज में यह आलू मसाला करी के साथ परोसी जाती है. इसे बनाने के लिए मैदा और नमक को आपस में गर्म पानी से गूंथा जाता है. उसके बाद इसे तेल में पूरी की तरह तला जाता है.

Importance of Lord Raghunath in Kullu.
भगवान रघुनाथ.

कुल्लू दशहरे में लगाए जाते हैं ये स्टॉल: अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव के दौरान यहां पर खाने पीने के लिए भी बाजार सजाया जाता है. जिसमें चाइनीज डिश के अलावा कुल्लवी डिश सिड्डू भी लोकप्रिय है. यहां पर सिड्डू, कचोरी व चाइनीज डिश के भी स्टॉल विशेष रूप से लगाए जाते हैं. जहां पर दशहरा उत्सव में घूमने आए लोग खाने-पीने की चीजों का भी आनंद लेते हैं.

ये भी पढ़ें: कौन है राजघराने की महाभारत वाली 'दादी'? जानें उनके बिना क्यों शुरू नहीं होता अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा

कुल्लू: हिमाचल प्रदेश का अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा (International Kullu Dussehra 2022) 5 अक्टूबर को जिले में धूमधाम से मनाया जाएगा. ऐसे में कुल्लू के ढालपुर मैदान में जहां अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा उत्सव की तैयारियां की जा रही हैं तो वहीं, देवी-देवताओं ने भी अपने मंदिरों से प्रस्थान करना शुरू कर दिया है. ताकि दशहरा उत्सव में जिला कुल्लू के देवी-देवता साल के बाद मिलन कर सकें. इसी कड़ी में रघुनाथ मंदिर कमेटी ने भी दशहरा पर्व और रघुनाथ की रथ यात्रा को लेकर तैयारियां शुरू कर दी (Importance of Lord Raghunath in Kullu) है.

भगवान रघुनाथ 7 दिनों तक जहां ढालपुर में अपने अस्थाई शिविर में विराजमान रहेंगे. तो वहीं, रोजाना की पूजा-अर्चना भी अस्थाई शिविर में पारंपरिक तरीके से निभाई जाएगी. जहां दशहरा उत्सव में भगवान रघुनाथ को दूध और लुच्ची का भोग लगेगा तो वहीं, भगवान रघुनाथ की 4 पहर की पूजा-अर्चना भी की जाएगी और श्रद्धालुओं भगवान रघुनाथ के दर्शन करेंगे.

देवी-देवताओं के लिए भोग की व्यवस्था: दशहरा उत्सव में जहां सभी देवी-देवताओं के अस्थाई शिविरों में भोग की व्यवस्था रहेगी तो वहीं, श्रद्धालुओं के लिए भी भंडारा आयोजित किए जाएंगा. भगवान रघुनाथ के अस्थाई शिविर में भी रोजाना श्रद्धालुओं के लिए भंडारे की व्यवस्था की जाती है और भगवान को भी विशेष रूप से भोग लगाया जाता है.

भगवान रघुनाथ को चढ़ता है ये भोग: ढालपुर मैदान में अस्थाई शिविर में भगवान रघुनाथ, भगवान नृसिंह, माता सीता, शालीग्राम व हनुमान भगवान को अस्थायी शिविर में सुबह से रात तक पांच बार दूध और लुच्ची यानी मैदा से बनी रोटी का भोग लगाया जा रहा (Prasad for Lord Raghunath in kullu dussehra ) है. वहीं, दिन में एक बार दाल व चावल का भोग लगाया जाएगा.

Importance of Lord Raghunath in Kullu.
भगवान रघुनाथ.

सभी भगवान के बनाए गए अलग शिविर: भगवान रघुनाथ के पुजारी दिनेश किशोर के अनुसार भगवान रघुनाथ, माता सीता, नृसिंह, शालीग्राम व हनुमान भगवान के लिए भोजन ग्रहण करने को अलग-अलग अस्थायी शिविर हैं. इनमें यह सभी विराजमान होते हैं और उन्हें भोजन परोसा जाता है. जब भोग लगाया जाता है तब उस स्थान का पर्दा बंद कर दिया जाता है. जब तक भगवान भोजन ग्रहण करते हैं, तब तक पुजारी माला जपता है.

Importance of Lord Raghunath in Kullu.
भगवान रघुनाथ.

तुंग पेड़ की लकड़ी की दातुन करते हैं रघुनाथ: खाना खाने के बाद भगवान भगवान रघुनाथ तुंग नामक पेड़ की लकड़ी की दातुन भी करते हैं. उसके बाद सभी देवी-देवता अपने-अपने स्थान पर विराजमान होते हैं और शिविर में आराम भी करते (Lord raghunath in kullu dussehra ) हैं. भगवान रघुनाथ की अस्थायी शिविर में चार पहर पूजा-अर्चना भी होती है.

भगवान रघुनाथ का डेली रूटीन: भगवान रघुनाथ के मुख्य छड़ीबरदार महेश्वर सिंह का कहना है अयोध्या की तर्ज पर दशहरा उत्सव में, अन्य दिन भी भगवान रघुनाथ की हर परंपरा का निर्वहन होता है. इंसान की तरह ही भगवान रघुनाथ भी अपनी दिनचर्या पूरी करते हैं. इस बार भी दशहरा उत्सव में भगवान रघुनाथ की सभी रीतियों का पारंपरिक तरीके से पालन किया जाएगा.

Importance of Lord Raghunath in Kullu.
भगवान रघुनाथ.

ऐसे बनाया जाता है भगवान रघुनाथ का भोग: भगवान को चढ़ने वाला लुच्ची का भोग रोटी ज्यादातर आगरा, मथुरा के अलावा ओडिशा और बंगाल में काफी प्रसिद्ध है. बंगाल में लुच्ची एकदम सफेद तली जाती है. जबकि ब्रज में इसे हल्का ब्राउन तला जाता है. इसके अतिरिक्त बंगाल में यह आलू या बैंगन की सूखी सब्जियों के साथ परोसी जाती है. जबकि ब्रज में यह आलू मसाला करी के साथ परोसी जाती है. इसे बनाने के लिए मैदा और नमक को आपस में गर्म पानी से गूंथा जाता है. उसके बाद इसे तेल में पूरी की तरह तला जाता है.

Importance of Lord Raghunath in Kullu.
भगवान रघुनाथ.

कुल्लू दशहरे में लगाए जाते हैं ये स्टॉल: अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव के दौरान यहां पर खाने पीने के लिए भी बाजार सजाया जाता है. जिसमें चाइनीज डिश के अलावा कुल्लवी डिश सिड्डू भी लोकप्रिय है. यहां पर सिड्डू, कचोरी व चाइनीज डिश के भी स्टॉल विशेष रूप से लगाए जाते हैं. जहां पर दशहरा उत्सव में घूमने आए लोग खाने-पीने की चीजों का भी आनंद लेते हैं.

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