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कुल्लू दशहरा उत्सवः मुहल्ले के दिन देवधुनों से सराबोर हुई अठारह करड़ू की सौह

देव महाकुंभ अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा उत्सव में शुक्रवार को देवी-देवता अपने अस्थाई शिविर से बाहर निकले और ढोल-नगाड़ों की थाप पर भगवान रघुनाथ के कैंप व नरसिंह भगवान की चानणी तक पहुंचे. छठे दिन लंका पर विजय के लिए शक्ति से रक्षा की अपील की जाती है. वहीं, राजा की चनणी के पास दिन भर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहा.

Kullu Dussehra Festival
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Published : Oct 30, 2020, 8:27 PM IST

कुल्लूः जिला कुल्लू में शुक्रवार को ढालपुर मैदान देवी-देवताओं की देवधुन से गूंज उठा. अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा उत्सव में मुहल्ला पर्व के दिन यहां आए सभी देवी-देवता अपने अस्थाई शिविर से बाहर निकले और ढोल-नगाड़ों की थाप पर भगवान रघुनाथ के कैंप व नरसिंह भगवान की चानणी तक पहुंचे, जबकि अन्य देवी-देवता पुष्प रूप में यहां पहुंचे.

इस दौरान देवी-देवताओं की रथ यात्रा से ढालपुर मैदान सराबोर रहा. यही नहीं सभी देवी-देवताओं का भगवान रघुनाथ के रजिस्टर में बाकायदा एंट्री होने के बाद अठारह करड़ू देवी-देवताओं का रथ व पुष्प के रूप में देव महामिलन भी हुआ. बता दें कि इस देव महामिलन को मुहल्ला कहते हैं. इसके बाद देवी-देवताओं के दशहरा पर्व में रघुनाथ के दरबार में शक्ति का आह्वान हुआ.

वीडियो.

दशहरा पर्व में इस शक्ति आह्वान को विधिवत रूप से किया गया. देवी हिडिंबा माता फूलों का गुच्छा जिसे शेश (प्रसाद) कहा जाता है, मिलने पर ही मुहल्ला पर्व शुरू हुआ. मुहल्ला उत्सव में देवी-देवता भगवान रघुनाथ जी के कैंप पर हाजिरी भरी, लेकिन सबसे पहले देवी हडिंबा का नाम दर्ज हुआ. देवी-देवता राजा की चानणी के पास भी हाजरी देते हैं.

इसके बाद देवी-देवताओं से लिया गया शेश राजा की गद्दी पर रखा गया और राजा अपनी राजगद्दी को छोड़कर साधारण कुर्सी पर बैठे. इसके बाद शक्ति का आह्वान हुआ. परंपरा के अनुसार शक्ति रूपी ब्राह्मण ने भागवान रघुनाथ जी के समक्ष शेर की सवारी में तलवार के साथ नाचते हुए ढाई फेरे लगाए.

इस दिन लंका पर विजय के लिए शक्ति से रक्षा की अपील की जाती है. वहीं, राजा की चनणी के पास दिन भर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहा. शाम के समय बारी-बारी से आए देवी-देवता अलग ही नजारा पेश कर रहे थे. वहीं, देवी-देवताओं ने एक-दूसरे के साथ भव्य मिलन भी किया. इसके अलावा देर रात को भगवान रघुनाथ के मंदिर में भी देव आयोजन हुआ.

दशहरा उत्सव के छठे दिन भी धूमधाम से राजा की जलेब संपन्न हुई. कुल्लू दशहरा पर्व अनूठी परंपरा का संगम है. बता दें कि शेष भारत में दशहरा पर्व समाप्त होता है तो कुल्लू में शुरू होता है. इसके पीछे धारणा यह है कि रावण पूर्णिमा के दिन मारा गया था. इसलिए कुल्लू का दशहरा पर्व पूर्णिमा से सात दिन पहले शुरू होता है और सातवें दिन लंका दहन में रावण को परंपरा अनुसार भेदा जाता है. बहरहाल, छठे दिन कुल्लू के समस्त देवी-देवता रावण का सफाया करने के लिए मुहल्ला में एकत्र होते हैं और शक्ति का आह्वान कर सातवें दिन लंका पर चढ़ाई करते हैं.

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कुल्लूः जिला कुल्लू में शुक्रवार को ढालपुर मैदान देवी-देवताओं की देवधुन से गूंज उठा. अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा उत्सव में मुहल्ला पर्व के दिन यहां आए सभी देवी-देवता अपने अस्थाई शिविर से बाहर निकले और ढोल-नगाड़ों की थाप पर भगवान रघुनाथ के कैंप व नरसिंह भगवान की चानणी तक पहुंचे, जबकि अन्य देवी-देवता पुष्प रूप में यहां पहुंचे.

इस दौरान देवी-देवताओं की रथ यात्रा से ढालपुर मैदान सराबोर रहा. यही नहीं सभी देवी-देवताओं का भगवान रघुनाथ के रजिस्टर में बाकायदा एंट्री होने के बाद अठारह करड़ू देवी-देवताओं का रथ व पुष्प के रूप में देव महामिलन भी हुआ. बता दें कि इस देव महामिलन को मुहल्ला कहते हैं. इसके बाद देवी-देवताओं के दशहरा पर्व में रघुनाथ के दरबार में शक्ति का आह्वान हुआ.

वीडियो.

दशहरा पर्व में इस शक्ति आह्वान को विधिवत रूप से किया गया. देवी हिडिंबा माता फूलों का गुच्छा जिसे शेश (प्रसाद) कहा जाता है, मिलने पर ही मुहल्ला पर्व शुरू हुआ. मुहल्ला उत्सव में देवी-देवता भगवान रघुनाथ जी के कैंप पर हाजिरी भरी, लेकिन सबसे पहले देवी हडिंबा का नाम दर्ज हुआ. देवी-देवता राजा की चानणी के पास भी हाजरी देते हैं.

इसके बाद देवी-देवताओं से लिया गया शेश राजा की गद्दी पर रखा गया और राजा अपनी राजगद्दी को छोड़कर साधारण कुर्सी पर बैठे. इसके बाद शक्ति का आह्वान हुआ. परंपरा के अनुसार शक्ति रूपी ब्राह्मण ने भागवान रघुनाथ जी के समक्ष शेर की सवारी में तलवार के साथ नाचते हुए ढाई फेरे लगाए.

इस दिन लंका पर विजय के लिए शक्ति से रक्षा की अपील की जाती है. वहीं, राजा की चनणी के पास दिन भर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहा. शाम के समय बारी-बारी से आए देवी-देवता अलग ही नजारा पेश कर रहे थे. वहीं, देवी-देवताओं ने एक-दूसरे के साथ भव्य मिलन भी किया. इसके अलावा देर रात को भगवान रघुनाथ के मंदिर में भी देव आयोजन हुआ.

दशहरा उत्सव के छठे दिन भी धूमधाम से राजा की जलेब संपन्न हुई. कुल्लू दशहरा पर्व अनूठी परंपरा का संगम है. बता दें कि शेष भारत में दशहरा पर्व समाप्त होता है तो कुल्लू में शुरू होता है. इसके पीछे धारणा यह है कि रावण पूर्णिमा के दिन मारा गया था. इसलिए कुल्लू का दशहरा पर्व पूर्णिमा से सात दिन पहले शुरू होता है और सातवें दिन लंका दहन में रावण को परंपरा अनुसार भेदा जाता है. बहरहाल, छठे दिन कुल्लू के समस्त देवी-देवता रावण का सफाया करने के लिए मुहल्ला में एकत्र होते हैं और शक्ति का आह्वान कर सातवें दिन लंका पर चढ़ाई करते हैं.

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