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शिंकुला टनल निर्माण के लिए सर्वे, चिनूक हेलीकॉप्टर ने 500 किलो वजनी एंटीना लेकर ट्रायल उड़ान भरी

अटल टनल रोहतांग से भी साढ़े तीन किलोमीटर अधिक लंबी शिंकुला टनल के लिए हवाई सर्वे वायुसेना के सबसे अत्याधुनिक हेलीकॉप्टर चिनूक के जरिए होगा. वीरवार को वायुसेना के चिनूक हेलीकॉप्टर ने स्टिंगरी हेलीपैड से शिंकुला की तरफ उड़ान भरकर इलाके का जायजा लिया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भारत माला परियोजना की कड़ी में शिंकुला टनल मील का पत्थर साबित होगी.

डिडाइन फोटो
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Published : Oct 16, 2020, 9:30 AM IST

Updated : Oct 16, 2020, 12:38 PM IST

लाहौल-स्पीति: अटल टनल रोहतांग से भी साढ़े तीन किलोमीटर अधिक लंबी शिंकुला टनल के लिए हवाई सर्वे वायुसेना के सबसे अत्याधुनिक हेलीकॉप्टर चिनूक के जरिए होगा. वीरवार को वायुसेना के चिनूक हेलीकॉप्टर ने स्टिंगरी हेलीपैड से शिंकुला की तरफ उड़ान भरकर इलाके का जायजा लिया. स्तींगरी हेलीपैड में एंटीना बांधकर चिनूक ने हवाई सर्वे का ट्रायल किया.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भारत माला परियोजना की कड़ी में शिंकुला टनल मील का पत्थर साबित होगी. इस टनल के बनने से मनाली-कारगिल-लेह सड़क मार्ग में साल भर यातायात खुला रह सकेगा. 16 हजार 600 फीट ऊंचे शिंकुला दर्रा के नीचे से 12 हजार फीट की ऊंचाई पर दुनिया की सबसे लंबी 13.5 किलोमीटर टनल होगी.

वीडियो

जोजिला के बाद अब देश में दूसरी बार किसी टनल निर्माण के सर्वे में डेनमार्क की एयरबोर्न इलेक्ट्रो मैग्नेटिक तकनीक का इस्तेमाल होगा. शिंकुला टनल के हवाई सर्वे के लिए इस 500 किलो वजनी एंटीना को बांधकर 16 से 17 हजार फीट की ऊंचाई पर चिनूक हेलीकॉप्टर जांस्कर रेंज में शुक्रवार से उड़ान भरेगा.

जोजिला सुरंग के बाद देश में दूसरी बार जियो फिजिकल सर्वे के लिए एयरबोर्न इलेक्ट्रो मैग्नेटिक तकनीक का इस्तेमाल हो रहा है. इस तकनीक में करीब 500 किलो वजन के एंटीना को बांधकर चिनूक हेलीकॉप्टर शिंकुला दर्रा के साथ जांस्कर रेंज में उड़ान भरेगा. एंटीना जमीन से करीब 60 मीटर दूर रहकर पहाड़ के भूगर्भ में 700 मीटर तक स्कैन करेगा.

इलेक्ट्रो मैग्नेटिक तरंगों के जरिए एंटीना भूगर्भ के स्ट्राटा की हर तस्वीर मॉनिटर को प्रेषित करेगी. एंटीना के भेजे इनपुट के आधार पर टनल निर्माण की रूपरेखा तैयार होगी. डेनमार्क की इस तकनीक का इस्तेमाल 17 किलोमीटर लंबी जोजिला सुरंग के बाद अब 13.5 किलोमीटर लंबी शिंकुला सुरंग में हो रही है.

एयरबोर्न इलेक्ट्रो मैग्नेटिक सर्वे की मदद से टनल निर्माण के दौरान अटल टनल निर्माण के दौरान पेश आईं मुश्किलों का सामना नहीं करना पड़ेगा. जियो फिजिकल सर्वे से पहले पता चल जाएगा कि किस इलाके में हार्ड या साफ्ट रॉक है. भूगर्भ में कहीं पानी की मूवमेंट तो नहीं है. लिहाजा, इस तकनीक से जिओ फिजिकल सर्वे के बाद टनल निर्माण का काम निर्धारित लक्ष्य में पूरा हो पाएगा. इससे देश के धन और वक्त दोनों की बचत होगी.

लाहौल-स्पीति: अटल टनल रोहतांग से भी साढ़े तीन किलोमीटर अधिक लंबी शिंकुला टनल के लिए हवाई सर्वे वायुसेना के सबसे अत्याधुनिक हेलीकॉप्टर चिनूक के जरिए होगा. वीरवार को वायुसेना के चिनूक हेलीकॉप्टर ने स्टिंगरी हेलीपैड से शिंकुला की तरफ उड़ान भरकर इलाके का जायजा लिया. स्तींगरी हेलीपैड में एंटीना बांधकर चिनूक ने हवाई सर्वे का ट्रायल किया.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भारत माला परियोजना की कड़ी में शिंकुला टनल मील का पत्थर साबित होगी. इस टनल के बनने से मनाली-कारगिल-लेह सड़क मार्ग में साल भर यातायात खुला रह सकेगा. 16 हजार 600 फीट ऊंचे शिंकुला दर्रा के नीचे से 12 हजार फीट की ऊंचाई पर दुनिया की सबसे लंबी 13.5 किलोमीटर टनल होगी.

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जोजिला के बाद अब देश में दूसरी बार किसी टनल निर्माण के सर्वे में डेनमार्क की एयरबोर्न इलेक्ट्रो मैग्नेटिक तकनीक का इस्तेमाल होगा. शिंकुला टनल के हवाई सर्वे के लिए इस 500 किलो वजनी एंटीना को बांधकर 16 से 17 हजार फीट की ऊंचाई पर चिनूक हेलीकॉप्टर जांस्कर रेंज में शुक्रवार से उड़ान भरेगा.

जोजिला सुरंग के बाद देश में दूसरी बार जियो फिजिकल सर्वे के लिए एयरबोर्न इलेक्ट्रो मैग्नेटिक तकनीक का इस्तेमाल हो रहा है. इस तकनीक में करीब 500 किलो वजन के एंटीना को बांधकर चिनूक हेलीकॉप्टर शिंकुला दर्रा के साथ जांस्कर रेंज में उड़ान भरेगा. एंटीना जमीन से करीब 60 मीटर दूर रहकर पहाड़ के भूगर्भ में 700 मीटर तक स्कैन करेगा.

इलेक्ट्रो मैग्नेटिक तरंगों के जरिए एंटीना भूगर्भ के स्ट्राटा की हर तस्वीर मॉनिटर को प्रेषित करेगी. एंटीना के भेजे इनपुट के आधार पर टनल निर्माण की रूपरेखा तैयार होगी. डेनमार्क की इस तकनीक का इस्तेमाल 17 किलोमीटर लंबी जोजिला सुरंग के बाद अब 13.5 किलोमीटर लंबी शिंकुला सुरंग में हो रही है.

एयरबोर्न इलेक्ट्रो मैग्नेटिक सर्वे की मदद से टनल निर्माण के दौरान अटल टनल निर्माण के दौरान पेश आईं मुश्किलों का सामना नहीं करना पड़ेगा. जियो फिजिकल सर्वे से पहले पता चल जाएगा कि किस इलाके में हार्ड या साफ्ट रॉक है. भूगर्भ में कहीं पानी की मूवमेंट तो नहीं है. लिहाजा, इस तकनीक से जिओ फिजिकल सर्वे के बाद टनल निर्माण का काम निर्धारित लक्ष्य में पूरा हो पाएगा. इससे देश के धन और वक्त दोनों की बचत होगी.

Last Updated : Oct 16, 2020, 12:38 PM IST
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