हमीरपुर: इन दिनों समाज सेवा को कई नजरों से देखा जाता है. प्रदेश में विधानसभा चुनाव नजदीक हैं ऐसे में प्रदेश के कोने-कोने में समाजसेवियों के बाढ़ है. लोगों के बीच जाकर समाज सेवक खूब ढिंढोरा पीटा जा रहा है, लेकिन निस्वार्थ सेवा के उदाहरण आपको कम ही देखने को मिलेंगे. ऐसा ही एक अनुकरणीय उदाहरण है बंगाल के कोलकाता के मूल निवासी शांतनु कुमार. हिमाचल में छोटी सी दुकान चलाकर शांतनु कुमार लावारिस शवों के लिए कंधा बने हुए हैं.
हमीरपुर के समाजसेवी शांतनु कुमार करीब दो दशक से लावारिस लाशों को अपने कंधों पर उठाकर न केवल उनका अंतिम संस्कार करवाते हैं. बल्कि अपने खर्चे पर हरिद्वार जाकर अस्थियां को रीति-रिवाज के साथ गंगा में विसर्जित करते हैं.
शांतनु ने बताया कि अब तक वो करीब 2024 लावारिस शवों का अंतिम संस्कार करवा चुके हैं. जिला के युवा समाजसेवी शांतनु कुमार समाजसेवा में जुटे हुए हैं. अपने ही खर्च पर हरिद्वार जाकर हर की पौड़ी ब्रह्मा कुंड में हिंदू शास्त्र के अनुसार पिंड दान करवाते हैं. समाजसेवी शांतनु कुमार ग्यारह ब्राह्मणों को भी भोजन एवं वस्त्र दान करते हैं. हरिद्वार में कोई भी गरीब परिवार अस्थि विसर्जन के लिए जाता है तो शांतनु वहां फोन कर हरिद्वार का पूरा खर्च माफ करवा देते हैं.
समाजसेवा के लिए नहीं की शादी: शांतनु कुमार ने समाज सेवा के लिए अविवाहित रहने का निर्णय लिया. जब भी उन्हें पता चलता है कि कहीं पर लावारिस शव पड़ा तो वह अपने मकसद के लिए निकल पड़ते हैं और शव का अंतिम संस्कार करवाने के बाद हरिद्वार में अस्थियां विसर्जन करके वापस लौटते हैं.
समाज सेवा के लिए मिला सम्मान: शांतनु को समाज सेवा के क्षेत्र में बेहतर कार्य करने के लिए कई सामाजिक संगठनों ने शांतनु कुमार को सम्मानित भी किया है प्रदेश सरकार की तरफ से भी विभिन्न मंचों पर उनको सम्मान दिया गया है. शांतनु ने इनाम में मिली हजारों रुपये की राशि को भी अपने पास नहीं रखा और उसे भी चैरिटी में दान कर दिया. शांतनु कुमार का कहना है कि समाज सेवा करके अलग सी अनुभूति होती है और इस काम के लिए मदर टेरेसा को प्रेरणा स्त्रोत मानते हैं.
शांतनु कुमार कोरोना काल में भी मिशन से पीछे नहीं हटे हैं. वर्तमान समय में भी महामारी के कारण आर्थिक मंदी से जूझ रहे शांतनु कुमार अपने समाज सेवा के कार्य में जुटे हुए हैं. लावारिस शवों का अंतिम संस्कार करने के साथ ही वह हर साल सामूहिक श्राद्ध हुई करते हैं. जब वह पाबंदियों के कारण हरिद्वार नहीं जा सके तो उन्होंने बिल्केश्वर महादेव में ब्यास नदी के घाट पर अस्थि विसर्जन किया.
सरकार और प्रशासन की तरफ से मदद नहीं मिलने का मलाल: सरकार और प्रशासन की तरफ से मदद न मिलने का समाजसेवी शांतनु कुमार को मलाल है उनका कहना है कि वह हरिद्वार अस्थि विसर्जन के लिए जाते थे तो इसके लिए उन्होंने एचआरटीसी के फ्री बस पास के महीने में एक बार की मांग की थी, लेकिन अभी तक उनकी मांग पूरी नहीं हुई है जिसका उन्हें मलाल है.
आपको बता दें कि शांतनु मूल रूप से बंगाल के रहने वाले हैं. उन्होंने बताया कि वो सन् 1990 से समाज सेवा शुरू की. वो 1980 में में हमीरपुर आए. उन्होंने बताया कि उनके अंदर समाज सेवा की भावना हमीरपुर में हुए एक हादसे के बाद शुरू हुई थी. उन्होंने लोगों से अपील की है, अगर कोई भी गरीब परिवार अस्तियां विसर्जन करने में असमर्थ है तो वह उनसे संपर्क कर सकता है.
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