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अब भूस्खलन का मिलेगा रियल टाइम अपडेट, NIT हमीरपुर के विशेषज्ञ तैयार करेंगे SPECIAL APP

भूस्खलन और अन्य आपदाओं का रियल टाइम डाटा एकत्र करने के लिए एनआईटी हमीरपुर के विशेषज्ञ एप तैयार करेंगे. हिमाचल प्रदेश सरकार की एजेंसी काउंसिल फॉर साइंस, टेक्नोलॉजी एंड एनवायरमेंट की तरफ से यह प्रोजेक्ट एनआईटी हमीरपुर को सौंपा गया है. इस शोध कार्य पर लाखों रुपये खर्च किए जा रहे हैं. इस एप के माध्यम से डाटा एकत्र कर वार्निंग सिस्टम आगामी दिनों में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के आधार पर किया जा सकेगा.

एनआईटी हमीरपुर
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Published : Oct 14, 2021, 10:36 AM IST

Updated : Jan 4, 2022, 3:44 PM IST

हमीरपुर: सोशल मीडिया(social media) के इस दौर में लोगों तक सही सूचना पहुंचाना अपने आप में एक बड़ी चुनौती है. खासकर आपदाओं के समय में अफवाहें अधिक फैलती हैं. ऐसे में लोगों तक सही सूचना(information) पहुंचना सरकार और प्रशासन के लिए मुश्किल साबित होता है. इसी समस्या के समाधान के लिए प्रदेश में अब भूस्खलन और अन्य आपदाओं का रियल टाइम डाटा(real time data) एकत्र करने के लिए एनआईटी हमीरपुर(nit hamirpur) के विशेषज्ञ(Specialists in NIT Hamirpur) एप तैयार करेंगे. स्मार्टफोन(smartphone) की उपलब्धतता को देखते हुए एनआईटी हमीरपुर ने यह निर्णय लिया है.

हिमाचल प्रदेश सरकार(himachal pradesh government) की एजेंसी काउंसिल फॉर साइंस, टेक्नोलॉजी एंड एनवायरमेंट(agency council for science, technology and environment) की तरफ से यह प्रोजेक्ट एनआईटी हमीरपुर(nit hamirpur) को सौंपा गया है. इस शोध कार्य पर लाखों रुपये खर्च किए जा रहे हैं. इस एप के माध्यम से डाटा एकत्र(data collect) कर वार्निंग सिस्टम(warning system) आगामी दिनों में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस(artifical intelligence) के आधार पर किया जा सकेगा. एप में ऐसे फीचर भी शामिल किए जाएंगे, जिससे कि आगामी दिनों में सेटेलाइट डाटा के आधार पर एरिया की मैपिंग होगी.

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भूस्खलन होने पर सैटेलाइट इमेज(satellite image) के आधार पर इसके कारणों का शोध भी संभव हो सकेगा. यह एप भूस्खलन होने पर तुरंत राहत और बचाव कार्य करने वाली एंजेसियों को सूचना देगी. एप को इस हिसाब से डिजाइन किया जा रहा है कि पर्यटक और आम लोगों को यह जानकारी मिल सके कि भूस्खलन के कारण किस एरिया में कौन सी सड़क बाधित है और उनके पास कौन सा वैकल्पिक मार्ग(alternative route) मौजूद है. सिटीजन अथवा मॉडर्न साइंस(modern science) के आधार पर इस शोध कार्य को आगे बढ़ाया जा रहा है. इस एप को महज भूस्खलन के अपडेट तक सीमित न रखकर अन्य आपदाओं के डाटा को शामिल करने की संभावनाओं को खुला रखा जाएगा.

एनआईटी हमीरपुर में तैनात सिविल विभाग(civil department) के प्रो.डॉ. चंद्र प्रकाश(Prof. Dr.chandra prakash) का कहना है कि हिमाचल प्रदेश काउंसिल फॉर साइंस, टेक्नोलॉजी एंड एनवायरमेंट(Himachal Pradesh Council for Science, Technology and Environment) की तरफ से यह प्रोजेक्ट मिला है. इसमें वह अपनी टीम के साथ मिलकर कार्य कर रहे हैं. इस एप को बनाने के पीछे सोच यह है कि लोगों को रियल टाइम अपडेट मिले. लोग अफवाहों के जंजाल में फंसने के बजाय सही सूचनाओं से अवगत हो सके. अलर्ट सिस्टम(alert system) के साथ ही इस एप में लोगों की तरफ से भी अपडेट दिए जाने और फीचर शामिल किया जाएगा. संबंधित एंजेसियां इन अपडेट पर चेक रखेंगी और इस रियल टाइम अपडेट से राहत और बचाव कार्य में भी गति मिलेगी.

बरसात में हिमाचल में बाधित रहती हैं सड़कें

बरसात में अक्सर हिमाचल में भूस्खलन(landslide in himachal) के कारण सड़क बाधित रहती है. इस दौरान अपुष्ट सूचनाएं लगातार सोशल मीडिया(social media) पर फैलती है. कोई आधिकारिक अथवा सही सूचना न मिलने के कारण खासकर प्रदेश में आने वाले पर्यटकों को खासी दिक्कत पेश आती है. इसके अलावा वह लोग भी परेशान होते हैं जो अनजान क्षेत्रों में यात्रा कर रहे होते हैं. राहत एवं बचाव कार्य करने वाली एंजेसियों को तो यह एप अलर्ट देगी, साथ ही आम लोगों को सही जानकारी पहुंचाने का एक जरिया भी बनेगी.

वैकल्पिक मार्गों का भी होगा ब्यौरा

इस एप के जरिए भूस्खलन के बाद लगने वाले जाम और वैकल्पिक मार्गों(alternative route) की जानकारी भी लोगों तक पहुंचेगी. कई दफा जाम में एंबुलेंस(ambulance) फंस जाती है और इससे मरीजों की जान पर भी बन आती है. ऐसे में यह एप न सिर्फ जाम लगने का अलर्ट देगी, बल्कि वैकल्पिक मार्गों भी उपलब्ण्ध करवाने में मददगार साबित होगी. इसके अलावा ट्रैफिक को बहाल करने के लिए जो एंजेसियां कार्य करती हैं, उनको भी एप से तुरंत रियल टाइम अपडेट(real time update) मिलेगा.

भूस्खलन की घटनाओं की स्टडी भी होगी संभव

हिमाचल में बरसात ही नहीं, अन्य मौसमों में भी होने वाले भूस्खलनों की जानकारी उपलब्ध हो पाएगी. इससे भूस्खलनों के कारणों की स्टडी करने में विशेषज्ञों को मदद मिलेगी. इस एप में रियल टाइम डाटा के आधार पर लोकेशन की स्टडी होगी. डाटा एकत्र होने के बाद यह पता चल सकेगा कि किस क्षेत्र में किस समय घटनाएं सामने आ आ रही है. इससे एक तरफ जहां अलर्ट मिलेगा तो दूसरी ओर एक डाटा तैयार होगा, जो कि बाद में विभिन्न शोध में मददगार भी साबित होगा.

ये भी पढ़ें: देश ही नहीं विदेशों में भी महक रहे हिमाचल के फूल, प्रदेश में हर साल साढ़े 12 हजार टन फूलों का उत्पादन

हमीरपुर: सोशल मीडिया(social media) के इस दौर में लोगों तक सही सूचना पहुंचाना अपने आप में एक बड़ी चुनौती है. खासकर आपदाओं के समय में अफवाहें अधिक फैलती हैं. ऐसे में लोगों तक सही सूचना(information) पहुंचना सरकार और प्रशासन के लिए मुश्किल साबित होता है. इसी समस्या के समाधान के लिए प्रदेश में अब भूस्खलन और अन्य आपदाओं का रियल टाइम डाटा(real time data) एकत्र करने के लिए एनआईटी हमीरपुर(nit hamirpur) के विशेषज्ञ(Specialists in NIT Hamirpur) एप तैयार करेंगे. स्मार्टफोन(smartphone) की उपलब्धतता को देखते हुए एनआईटी हमीरपुर ने यह निर्णय लिया है.

हिमाचल प्रदेश सरकार(himachal pradesh government) की एजेंसी काउंसिल फॉर साइंस, टेक्नोलॉजी एंड एनवायरमेंट(agency council for science, technology and environment) की तरफ से यह प्रोजेक्ट एनआईटी हमीरपुर(nit hamirpur) को सौंपा गया है. इस शोध कार्य पर लाखों रुपये खर्च किए जा रहे हैं. इस एप के माध्यम से डाटा एकत्र(data collect) कर वार्निंग सिस्टम(warning system) आगामी दिनों में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस(artifical intelligence) के आधार पर किया जा सकेगा. एप में ऐसे फीचर भी शामिल किए जाएंगे, जिससे कि आगामी दिनों में सेटेलाइट डाटा के आधार पर एरिया की मैपिंग होगी.

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भूस्खलन होने पर सैटेलाइट इमेज(satellite image) के आधार पर इसके कारणों का शोध भी संभव हो सकेगा. यह एप भूस्खलन होने पर तुरंत राहत और बचाव कार्य करने वाली एंजेसियों को सूचना देगी. एप को इस हिसाब से डिजाइन किया जा रहा है कि पर्यटक और आम लोगों को यह जानकारी मिल सके कि भूस्खलन के कारण किस एरिया में कौन सी सड़क बाधित है और उनके पास कौन सा वैकल्पिक मार्ग(alternative route) मौजूद है. सिटीजन अथवा मॉडर्न साइंस(modern science) के आधार पर इस शोध कार्य को आगे बढ़ाया जा रहा है. इस एप को महज भूस्खलन के अपडेट तक सीमित न रखकर अन्य आपदाओं के डाटा को शामिल करने की संभावनाओं को खुला रखा जाएगा.

एनआईटी हमीरपुर में तैनात सिविल विभाग(civil department) के प्रो.डॉ. चंद्र प्रकाश(Prof. Dr.chandra prakash) का कहना है कि हिमाचल प्रदेश काउंसिल फॉर साइंस, टेक्नोलॉजी एंड एनवायरमेंट(Himachal Pradesh Council for Science, Technology and Environment) की तरफ से यह प्रोजेक्ट मिला है. इसमें वह अपनी टीम के साथ मिलकर कार्य कर रहे हैं. इस एप को बनाने के पीछे सोच यह है कि लोगों को रियल टाइम अपडेट मिले. लोग अफवाहों के जंजाल में फंसने के बजाय सही सूचनाओं से अवगत हो सके. अलर्ट सिस्टम(alert system) के साथ ही इस एप में लोगों की तरफ से भी अपडेट दिए जाने और फीचर शामिल किया जाएगा. संबंधित एंजेसियां इन अपडेट पर चेक रखेंगी और इस रियल टाइम अपडेट से राहत और बचाव कार्य में भी गति मिलेगी.

बरसात में हिमाचल में बाधित रहती हैं सड़कें

बरसात में अक्सर हिमाचल में भूस्खलन(landslide in himachal) के कारण सड़क बाधित रहती है. इस दौरान अपुष्ट सूचनाएं लगातार सोशल मीडिया(social media) पर फैलती है. कोई आधिकारिक अथवा सही सूचना न मिलने के कारण खासकर प्रदेश में आने वाले पर्यटकों को खासी दिक्कत पेश आती है. इसके अलावा वह लोग भी परेशान होते हैं जो अनजान क्षेत्रों में यात्रा कर रहे होते हैं. राहत एवं बचाव कार्य करने वाली एंजेसियों को तो यह एप अलर्ट देगी, साथ ही आम लोगों को सही जानकारी पहुंचाने का एक जरिया भी बनेगी.

वैकल्पिक मार्गों का भी होगा ब्यौरा

इस एप के जरिए भूस्खलन के बाद लगने वाले जाम और वैकल्पिक मार्गों(alternative route) की जानकारी भी लोगों तक पहुंचेगी. कई दफा जाम में एंबुलेंस(ambulance) फंस जाती है और इससे मरीजों की जान पर भी बन आती है. ऐसे में यह एप न सिर्फ जाम लगने का अलर्ट देगी, बल्कि वैकल्पिक मार्गों भी उपलब्ण्ध करवाने में मददगार साबित होगी. इसके अलावा ट्रैफिक को बहाल करने के लिए जो एंजेसियां कार्य करती हैं, उनको भी एप से तुरंत रियल टाइम अपडेट(real time update) मिलेगा.

भूस्खलन की घटनाओं की स्टडी भी होगी संभव

हिमाचल में बरसात ही नहीं, अन्य मौसमों में भी होने वाले भूस्खलनों की जानकारी उपलब्ध हो पाएगी. इससे भूस्खलनों के कारणों की स्टडी करने में विशेषज्ञों को मदद मिलेगी. इस एप में रियल टाइम डाटा के आधार पर लोकेशन की स्टडी होगी. डाटा एकत्र होने के बाद यह पता चल सकेगा कि किस क्षेत्र में किस समय घटनाएं सामने आ आ रही है. इससे एक तरफ जहां अलर्ट मिलेगा तो दूसरी ओर एक डाटा तैयार होगा, जो कि बाद में विभिन्न शोध में मददगार भी साबित होगा.

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Last Updated : Jan 4, 2022, 3:44 PM IST
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