हमीरपुर: विलुप्त होने की कगार पर पहुंच चुकी पांरपरिक औषधि लसूड़े का पेड़ (Benefits of Lasoda) अब सात नहीं बल्कि दो साल में फल देना शुरू कर देगा. औद्यानिकी एवं वानिकी महाविद्यालय, नेरी (College of Horticulture and Forestry Neri Hamirpur) के विशेषज्ञों ने ग्राफ्टिंग तकनीक के जरिए यह कमाल कर दिखाया है. लसूड़ा एक पारंपरिक फल और सब्जी के तौर पर खूब पंसद किया जाता है, जिसे देशभर में अलग-अलग नामों से जाना जाता है. इस पेड़ के फल की गिरी अथवा गुठली में कीड़ा लगने की वजह से यह अब विलुप्त होने की कगार पर है.
प्रदेश में लसूड़े (Lasuda tree) के दो तरह के पेड़ पाए जाते हैं, एक जिसका फल बेहद छोटा होता है और दूसरा वो जिसका फल तो बड़े आकार का होता है, लेकिन गुठली में कीड़ा लगने के वजह से अब यह विलुप्त होने की कगार पर पहुंच गया है. विशेषज्ञों ने इन दोनों किस्मों पर प्रयोग करते हुए छोटे आकार का फल देने वाले पेड़ का रूट स्टाॅक इस्तेमाल किया है और बड़े आकार का फल देने वाले चयिनत पेड़ को साइन वुड (कलम) के रूप में प्रयोग करके उन्नत किस्म विकसित की है. इस नई किस्म में खास बात यह है कि यह दो साल में फल देना शुरू कर देगा. जबकि पारंपरिक लसूड़े के पेड़ सात साल के बाद ही फल देना शुरू करते हैं.
औषधीय गुणों से भरपूर है ये फल: लसूड़े का फल इसके औषधीय गुणों के लिए जाना जाता है. यह फल ठंडी तासीर का होता और गर्मी में राहत के लिए बेहद कारगर होता है. गर्मी से राहत के लिए लोग इसका इस्तेमाल करते हैं. कुदरती तौर पर यह फल भी मई और जून माह में तैयार होता है. बरसात से पहले मई और जून की तपती गर्मी के बीच इस फल का इस्तेमाल शरीर के लिए अच्छा माना जाता है. कुदरती तौर पर यह गर्मियों में ही पैदा होता है और गर्मी से होने वाले रोगों में काफी हद तक राहत दिलाता है.
लसूड़े के कई इस्तेमाल: लसूड़े को हल्का पकने के बाद फल के तौर पर खाया जाता है. कच्चा होने पर यह फल हरा होता है और पकने पर हल्का पीला. पकने पर जब इस फल को खाया जाता है तो इसका स्वाद हल्का मीठा होता है. जब फल कच्चा होता है, तो इसकी सब्जी और आचार बनाया जाता है. हिमाचल में इसे 80 से 100 रुपये प्रतिकिलो के हिसाब से खरीदा जा सकता है. स्थानीय लोग इसे बाजार में बेचते हैं, हालांकि अब ये बेहद कम मात्रा में ही मिल रहा है.
कई बीमारियों में रामबाण है लसूड़े का फल: सेहत की नजर से अगर देखें तो कई बीमारियों में लसूड़े का फल बेहद कारगर है. यह फास्फोरस कैल्शियम और एंटी ऑक्साइड का भंडार है. लिवर की बीमारियों, बीपी, त्वचा रोग, ओरल हेल्थ और जोड़ों के दर्द और गठिया में भी कारगर माना जाता है. सबसे अधिक प्रभावी यह कब्ज रोग के लिए है. कब्ज होन की शिकायत पर इस फल का इस्तेमाल काफी राहत देता है. आयुर्वेद में इस फल को औषधीय फल गिना जाता है और कई बीमारियों से उपचार में यह कारगर होता है, हालांकि विशेषज्ञों की राय क मुताबिक ही इसका इस्तेमाल किया जाना चाहिए.
गुठली में कीड़े की बीमारी पर हो रहा शोध: औद्यानिकी एवं वानिकी महाविद्यालय के डीन डॉ. कमल शर्मा ने कहा कि दो तरह के पौधों की सहायता से यह उन्नत किस्त विकसित की गई है. इस उन्नत किस्म से जहां एक तरफ बड़े आकार का फल देने वाले विलुप्त हो रहे पेड़ की किस्म को संरक्षित किया जा सकेग, तो वहीं यह पेड़ महज दो साल में फल देना शुरू कर देगा. उन्होंने कहा कि दोनों ही किस्में हिमाचल में पैदा होती हैं और ग्राफ्टिंग तकनीक (Grafting Technique) का सहारा लेकर उन्नत किस्म को तैयार किया गया है.
डॉ. कमल शर्मा ने कहा कि फल की गुठली में कीड़ा लगने की वजह से यह पेड़ समय के साथ विलुप्त होने की कगार पर है. इसे संरक्षित करने के लिए यह प्रयास किया गया है, ताकि इस औषधीय फल के बारे में आने वाली पीढ़ी भी जानें और इसका इस्तेमाल करे. उन्होंने कहा कि फल की गुठली में कीड़ा न लगे और इसे कीड़ों से बचाया जा सके इस पर शोध भी किया जा रहा है.