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भोरंज में भेड़-बकरियों के साथ गद्दी समुदाय के लोगों की दस्तक, इस समय जाएंगे वापस - भोरंज गद्दी लोग पहुंचे

प्रदेश के चंबा, कांगड़ा और भरमौर इलाके में हिमपात के बाद गद्दी समुदाय ने निचले इलाकों का रुख किया है. गद्दी समुदाय भोरंज क्षेत्र में भी अपनी सैकड़ों भेड़ों और बकरियों के साथ यहां हर साल आते हैं और मार्च तक प्रवास करते हैं.

nomadic Gaddi community
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Published : Dec 13, 2020, 8:41 PM IST

भोरंज/हमीरपुर: हिमाचल प्रदेश के चंबा, कांगड़ा और भरमौर इलाके में हिमपात के बाद गद्दी समुदाय ने निचले इलाकों का रुख किया है. गद्दी समुदाय भोरंज क्षेत्र में भी अपनी सैकड़ों भेड़ों और बकरियों के साथ यहां हर साल आते हैं और मार्च तक प्रवास करते हैं. फिर मौसम बदलते ही पहाड़ों की ओर लौट जाते हैं.

समुदाय का लंबा हिमाचली कोट, सिर पर हिमाचली टोपी, पीठ पर भारी बोझा, कमर में लपेटी हुई काली डोरी और पीछे चलता भेड़ों व बकरियों के हजूम की रखवाली के लिए गद्दी नस्ल का कुत्ता इनकी खास पहचान है. पूरी सर्दी का मौसम ये आसमान के नीचे ही गुजारते हैं. इनका डेरा ही जंगली इलाके में रहता है. सर्दी में बारिश हो तब भी खुले आसमान के तले रहना इनकी कठिन जिंदगी का एहसास कराता है. ऐसे मौसम में आग जलाना और खाना बनाना कितना मुश्किल है.

वीडियो.

युवा पीढ़ी बना रही दूरी

गद्दी समुदाय के मेहरू ने बताया कि बकरियों की वंशवृद्धि से ही आमदनी होती है. उन्होंने कहा कि अगली पीढ़ी के युवा इस मुश्किल धंधे में पड़ना नहीं चाहते हैं. यह धंधा घुमंतू है. उन्होंने बताया हमारा जीवन चलते रहना ही है. आराम का तो कभी सोचा ही नहीं. हर रोज 10 से 15 किलोमीटर पैदल चलना और भार उठाना मुश्किल कार्य है. उन्होंने कहा उन्हें एक समस्या है. अब लोगों ने तालाब और पोखरों की देखभाल बंद कर दी है. लिहाजा इन बेजुबानों को पीने के लिए पानी की भी दिक्कत हो गई है.

ये भी पढ़ें- हिमाचल में बर्फबारी से मौसम हुआ खुशनुमा, कई इलाकों में थमे वाहनों के पहिए

ये भी पढ़ें- हिमाचल में बर्फबारी के बाद पहाड़ों पर खिली धूप, केलांग में माइनस में पहुंचा पारा

भोरंज/हमीरपुर: हिमाचल प्रदेश के चंबा, कांगड़ा और भरमौर इलाके में हिमपात के बाद गद्दी समुदाय ने निचले इलाकों का रुख किया है. गद्दी समुदाय भोरंज क्षेत्र में भी अपनी सैकड़ों भेड़ों और बकरियों के साथ यहां हर साल आते हैं और मार्च तक प्रवास करते हैं. फिर मौसम बदलते ही पहाड़ों की ओर लौट जाते हैं.

समुदाय का लंबा हिमाचली कोट, सिर पर हिमाचली टोपी, पीठ पर भारी बोझा, कमर में लपेटी हुई काली डोरी और पीछे चलता भेड़ों व बकरियों के हजूम की रखवाली के लिए गद्दी नस्ल का कुत्ता इनकी खास पहचान है. पूरी सर्दी का मौसम ये आसमान के नीचे ही गुजारते हैं. इनका डेरा ही जंगली इलाके में रहता है. सर्दी में बारिश हो तब भी खुले आसमान के तले रहना इनकी कठिन जिंदगी का एहसास कराता है. ऐसे मौसम में आग जलाना और खाना बनाना कितना मुश्किल है.

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युवा पीढ़ी बना रही दूरी

गद्दी समुदाय के मेहरू ने बताया कि बकरियों की वंशवृद्धि से ही आमदनी होती है. उन्होंने कहा कि अगली पीढ़ी के युवा इस मुश्किल धंधे में पड़ना नहीं चाहते हैं. यह धंधा घुमंतू है. उन्होंने बताया हमारा जीवन चलते रहना ही है. आराम का तो कभी सोचा ही नहीं. हर रोज 10 से 15 किलोमीटर पैदल चलना और भार उठाना मुश्किल कार्य है. उन्होंने कहा उन्हें एक समस्या है. अब लोगों ने तालाब और पोखरों की देखभाल बंद कर दी है. लिहाजा इन बेजुबानों को पीने के लिए पानी की भी दिक्कत हो गई है.

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