हमीरपुर: हिमाचल में लंपी वायरस (Lumpy Virus in Himachal) का कहर थमने का नाम नहीं ले रहा है. वहीं, जिला हमीरपुर में लंपी वायरस से 5 पशुओं की मौत हो गई है. जिलाभर के विभिन्न क्षेत्रों में 540 से अधिक पशु इस रोग की चपेट (animals infected with lumpi virus in hamirpur) में आ गए है. जिला में इस बीमारी से पशुओं के बचाव के पशुपालन विभाग ने वैक्सीनेशन का कार्य शुरू कर दिया लेकिन मक्खी व मच्छरों की वजह से यह बीमारी तेजी से जिले में फैल रही है.
हमीरपुर जिला में पशुपालन विभाग को 10 हजार वैक्सीनेशन की डोज प्राप्त हुई है. विभाग के अधिकारियों ने जिलाभर में टीम सक्रिय करते हुए पशुओं के वैक्सीनेशन के युद्व स्तर पर अभियार चलाया है. विभाग के कर्मचारियों के अवकाश भी फिलहाल बंद कर दिए गए हैं ताकि इस बीमारी नियंत्रण पाया जा सके. जिला हमीरपुर में नादौन ब्लॉक में 3, भोरंज में 1 और बड़सर में 1 पशु की लंपी वायरस से मौत हुई है. अभी तक जिले में 540 पशु के करीब इस बीमारी से ग्रस्त हैं.
पशु रोग विशेषज्ञ पंकज लखनपाल का कहना है कि बीमारी की चपेट में आए पशुओं को दूसरे पशुओं से अलग रखें. इस बीमारी में पशुओं को तेज बुखार होता है. मक्खी मच्छरों की वजह से एक दूसरे पशुओं में तेजी से फैल रहा है.
तीन हजार पशुओं का अभी तक टीकाकरण: पशुपालन विभाग के डिप्टी डायरेक्टर मनोज कुमार का कहना है कि विभाग के पास करीब 10 हजार वैक्सीन पहुंच गई हैं. जिले में अभी तक 3 हजार पशुओं का टीकाकरण कर दिया गया है. फिलहाल पहले पालतु पशुओं की वैक्सीनेशन की जा रही हैए इसके बाद गोशाला में रह रहे पशुओं को वैक्सीन लगाई जाएगी. बीमारी अधिकतर मक्खी व मच्छरों से फैल रही है. उन्होंने लोगों से अपील की है कि बीमारी से अपने पशुओं को बचा कर रखें. शरीर पर इसके लक्षण दिखने पर तुरंत विभाग को सूचित करें.
क्या है लंपी वायरस: लंपी वायरस, पशुओं (what is lampi virus) में फैलने वाला एक चर्म रोग (Lampi Skin Desease) है. इस बीमारी से ग्रसित जानवरों के शरीर पर सैकड़ों की संख्या में गांठे उभर आती हैं. साथ ही तेज बुखार, मुंह से पानी टपकना शुरू हो जाता है. इससे पशुओं को बहुत ज्यादा कमजोरी महसूस होती है. उसे चारा खाने और पानी पीने में भी परेशानी होती है. यह एक संक्रामक बीमारी है जो मच्छर, मक्खी और जूं आदि के काटने या सीधा संपर्क में आने से फैलती है. कम प्रतिरोधक क्षमता वाली गायें शीघ्र ही इस वायरस की शिकार हो जाती है. बाद में यह वायरस एक से दूसरे पशुओं में फैल जाता है.
लंपी वायरस से ऐसे बचाएं अपने पशुओं को: खास तौर से गायों में लगातार फैल रहे लंपी वायरस ने किसानों की चिंता (Symptoms of Lumpy Virus) बढ़ा दी है. गौशालाओं के बाहर पशुपालकों के पशु भी लंपी वायरस की चपेट में आने लगे हैं. राज्य सरकार इस वायरस पर नियंत्रण पाने के प्रयास कर रही है, लेकिन फिलहाल यह काबू में नहीं आया है. सरकार ने पशुपालकों से अपील की है कि वे जागरूकता बरतते हुए अपनी गायों को इस वायरस की चपेट में आने से बचाएं. यह बीमारी लाइलाज है. ऐसे में एहतियात बरतना बेहद जरूरी है.
विभाग ने पशुपालकों से अपील की है कि इस बीमारी से पैनिक होने की जरूरत नहीं है बल्कि एहतियात बरतने की जरूरत है. पशुओं को मक्खी और मच्छरों से बचाकर रखें. विभाग की डिस्पेंसरियों से दवा लेकर छिड़काव करें. पशु में बीमारी के कोई भी लक्षण दिखने पर तुरंत पशुपालन विभाग के कर्मी को सूचित करें. अभी तक जांच में यह पाया गया है कि संक्रमण फैलने का मुख्य कारण मक्खी और मच्छर है.
यदि कोई मक्खी मच्छर किसी संक्रमित पशु के संपर्क में आता है और बाद किसी अन्य पशु को काटता है तो दूसरा पशु भी इसकी चपेट में आ जाएगा. हमीरपुर जिले में चार अगस्त को पहला मामला लंपी वायरस का रिपोर्ट हुआ था. हिमाचल के हमीरपुर में पशुओं में फैले लंपी वायरस की रोकथाम के लिए पशुपालको को जागरूक भी किया जा रहा है. पशुपालन विभाग के कर्मियों ने जोलसप्पड़ पंचायत में को करीब 12 पशुओं का वैक्सीनेशन लगाने के साथ ही जागरूक भी किया है.
बचाव ही इलाज है-
- इस बीमारी के प्रारंभिक लक्षण (Symptoms of Lumpy Virus) नजर आने पर पशुओं को दूसरे जानवरों से अलग कर दें. इलाज के लिए नजदीकी पशु चिकित्सा केन्द्र से संपर्क करें.
- बीमार पशु को चारा पानी और दाने की व्यवस्था अलग बर्तनों में करें.
- रोग ग्रस्त क्षेत्रों में पशुओं की आवाजाही रोकें.
- जहां ऐसे पशु हों, वहां नीम के पत्तों को जलाकर धुआं करें, जिससे मक्खी, मच्छर आदि को भगाया जा सके.
- पशुओं के रहने वाली जगह की दीवारों में आ रही दरार या छेद को चूने से भर दें. इसके साथ कपूर की गोलियां भी रखी जा सकती हैं, इससे मक्खी, मच्छर दूर रहते हैं.
- जानवरों को बैक्टीरिया फ्री करने के लिए सोडियम हाइपोक्लोराईट के 2 से 3 फीसदी घोल का छिड़काव करें.
- मरने वाले जानवरों के संपर्क में रही वस्तुओं और जगह को फिनाइल और लाल दवा आदि से साफ कर दें.
- संक्रामक रोग से मृत पशु को गांव के बाहर लगभग डेढ़ मीटर गहरे गड्ढे में चूने या नमक के साथ दफनाएं.
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