ETV Bharat / city

भारतीय स्टूडेंट मेडिकल की पढ़ाई के लिए इसलिए जाते हैं रूस-यूक्रेन, जानें वजह - यूक्रेन में मेडिकल की पढ़ाई

रूस यूक्रेन युद्ध के बीच डॉक्टरी की पढ़ाई चर्चा में है. आखिर भारतीय स्टूडेंट मेडिकल की पढ़ाई के लिए विदेशों का (medical studies in abroad) रुख क्यों करते हैं? यह सवाल इन दिनों सबके जहन में कौंध रहा है. विदेशों में भी अधिकतर रूस और यूक्रेन में इन भारतीय मेडिकल स्टूडेंट की संख्या क्यों अधिक है. इसके पीछे एक नहीं बल्कि कई कारण हैं. ईटीवी भारत के साथ मेडिकल विशेषज्ञों के साथ ही यूक्रेन से युद्ध के हालात के बीच पढ़ाई छोड़ कर लौटे मेडिकल स्टूडेंट और उनके परिजनों ने इस विषय पर बातचीत की.

medical studies in abroad
भारतीय स्टूडेंट मेडिकल की पढ़ाई के लिए जाते हैं विदेश
author img

By

Published : Mar 10, 2022, 6:13 PM IST

हमीरपुर: रूस यूक्रेन युद्ध के बीच डॉक्टरी की पढ़ाई चर्चा में है. आखिर भारतीय स्टूडेंट मेडिकल की पढ़ाई के लिए विदेशों का (medical studies in abroad) रुख क्यों करते हैं? सबसे बड़ा और तर्कसंगत कारण स्टूडेंट और परिजनों की तरफ से जो बताया गया है वह इन 2 देशों में मेडिकल की किफायती पढ़ाई और बेहतर सुविधाओं को माना जा सकता है. परिजनों और स्टूडेंट की तरफ से तो यह कारण प्रमुखता से गिनाया गया है लेकिन और भी कई वजह है जिसके चलते भारतीय मेडिकल स्टूडेंट ना सिर्फ यूक्रेन रूस की तरफ से मेडिकल की पढ़ाई के लिए रुख करते हैं बल्कि अन्य कई देशों में भी मेडिकल की पढ़ाई के लिए जाते हैं.

जानकारी के मुताबिक यूक्रेन में एमबीबीएस की पढ़ाई करने पर मात्र 25 लाख रुपए से 40 लाख खर्च होते हैं. इसके अलावा भारत के निजी मेडिकल कॉलेजों में एमबीबीएस की पढ़ाई करने पर सवा करोड़ रुपए का खर्च आता है. पिछले 10 साल में भारत में एमबीबीएस की सीट लगभग 2 गुना से अधिक हो गई है. हर साल औसतन 5 से 7 हजार स्टूडेंट्स मेडिकल की पढ़ाई पूरी कर विदेशों से वापस लौटते हैं.

भारतीय स्टूडेंट मेडिकल की पढ़ाई के लिए जाते हैं विदेश

वर्तमान समय में 50,000 के लगभग भारतीय मेडिकल स्टूडेंट यूक्रेन, रूस और चीन समेत कई देशों में मेडिकल की (medical studies in abroad) पढ़ाई कर रहे हैं. भारत में डॉक्टर बनने के लिए लगातार स्टूडेंट के बीच प्रतिस्पर्धा कड़ी होती जा रही है. पिछले साल 16 लाख के करीब विद्यार्थियों ने नेशनल टेस्टिंग एजेंसी के बैनर तले नीट का एग्जाम दिया. महज 45000 सीट के लिए लाखों मेडिकल स्टूडेंट परीक्षा में बैठे.

विदेशों में पढ़ाई के फायदे भी और नुकसान भी- विदेश में मेडिकल की पढ़ाई के स्टूडेंट को फायदे भी हैं और नुकसान भी. फायदों की अगर बात करें तो विदेश में पढ़ाई करने वाले स्टूडैंट को डॉक्टर बनने के बाद अंतरराष्ट्रीय स्तर की मान्यता भी मिलती है. विभिन्न देशों के स्टूडेंट के साथ इन स्टूडेंट को पढ़ाई करने का मौका मिलता है और इंटरनेशनल माहौल में अलग अनुभव प्राप्त होता है. यूक्रेन से लौटे अनन्य शर्मा और मेडिकल स्टूडेंट अमन कहते हैं कि यूक्रेन में मेडिकल की पढ़ाई (medical studies in ukraine) किफायती है. इसके अलावा यहां पर अंतरराष्ट्रीय माहौल में पढ़ाई करने का अनुभव भी प्राप्त होता है.

ऑल इंडिया फेडरेशन ऑफ गवर्नमेंट डॉक्टर एसोसिएशन के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ. पुष्पेंद्र वर्मा ने कहा कि सबसे बड़ा विदेशों की तरफ रुख करने का कारण यह है कि यहां पर पढ़ाई तुलनात्मक किफायती है. ऐसा नहीं है कि भारत में मेडिकल सीट की कमी है. भारत में 45 हजार के लगभग सीट हैं. उन्होंने बताया कि रूस और यूक्रेन की तरफ भारतीय मेडिकल स्टूडेंट का अधिक रुख करने का कारण जानने के लिए हमें इतिहास को भी देखना पड़ेगा.

जब भारत में मेडिकल कॉलेज नाममात्र थे तो यूएसएसआर के वक्त इंडो सोवियत कल्चरल सोसायटी (Indo Soviet Cultural Society) भारत समेत अन्य कई देशों के मेडिकल स्टूडेंट को एमबीबीएस की पढ़ाई के लिए ले जाते थे. भारत के अलावा अन्य कई देशों से स्टूडेंट भी यहां पर पढ़ाई के लिए जाते थे. विश्व में आज भी कई ऐसे देश है जिनमें अपने मेडिकल कॉलेज नहीं हैं और वह यहां पर पढ़ाई कर रहे हैं. ऐसा नहीं है कि वहां पर मेडिकल की पढ़ाई आसान है.

अनन्य शर्मा के पिता संजीव शर्मा और अमन के पिता संजीव का कहना है कि नीट की परीक्षा में हर साल विद्यार्थियों की तादाद बढ़ती जा रही है. भारत में प्राइवेट कॉलेज में फीस इतनी अधिक है कि एक करोड़ के लगभग खर्च करना पड़ता है और खाने-पीने का और रहने का खर्चा अलग रहता है. भारत सरकार को इस ओर ध्यान देना चाहिए. भारत में जो प्राइवेट कॉलेज हैं उनमें फीस बहुत अधिक है यही कारण है कि उन्हें बच्चे यूक्रेन पढ़ाई के लिए भेजने पड़ते हैं.

ये भी पढ़ें : चंबा में एक डिपो होल्डर पर गिर सकती है गाज, जानें आखिर क्या है वजह

हमीरपुर: रूस यूक्रेन युद्ध के बीच डॉक्टरी की पढ़ाई चर्चा में है. आखिर भारतीय स्टूडेंट मेडिकल की पढ़ाई के लिए विदेशों का (medical studies in abroad) रुख क्यों करते हैं? सबसे बड़ा और तर्कसंगत कारण स्टूडेंट और परिजनों की तरफ से जो बताया गया है वह इन 2 देशों में मेडिकल की किफायती पढ़ाई और बेहतर सुविधाओं को माना जा सकता है. परिजनों और स्टूडेंट की तरफ से तो यह कारण प्रमुखता से गिनाया गया है लेकिन और भी कई वजह है जिसके चलते भारतीय मेडिकल स्टूडेंट ना सिर्फ यूक्रेन रूस की तरफ से मेडिकल की पढ़ाई के लिए रुख करते हैं बल्कि अन्य कई देशों में भी मेडिकल की पढ़ाई के लिए जाते हैं.

जानकारी के मुताबिक यूक्रेन में एमबीबीएस की पढ़ाई करने पर मात्र 25 लाख रुपए से 40 लाख खर्च होते हैं. इसके अलावा भारत के निजी मेडिकल कॉलेजों में एमबीबीएस की पढ़ाई करने पर सवा करोड़ रुपए का खर्च आता है. पिछले 10 साल में भारत में एमबीबीएस की सीट लगभग 2 गुना से अधिक हो गई है. हर साल औसतन 5 से 7 हजार स्टूडेंट्स मेडिकल की पढ़ाई पूरी कर विदेशों से वापस लौटते हैं.

भारतीय स्टूडेंट मेडिकल की पढ़ाई के लिए जाते हैं विदेश

वर्तमान समय में 50,000 के लगभग भारतीय मेडिकल स्टूडेंट यूक्रेन, रूस और चीन समेत कई देशों में मेडिकल की (medical studies in abroad) पढ़ाई कर रहे हैं. भारत में डॉक्टर बनने के लिए लगातार स्टूडेंट के बीच प्रतिस्पर्धा कड़ी होती जा रही है. पिछले साल 16 लाख के करीब विद्यार्थियों ने नेशनल टेस्टिंग एजेंसी के बैनर तले नीट का एग्जाम दिया. महज 45000 सीट के लिए लाखों मेडिकल स्टूडेंट परीक्षा में बैठे.

विदेशों में पढ़ाई के फायदे भी और नुकसान भी- विदेश में मेडिकल की पढ़ाई के स्टूडेंट को फायदे भी हैं और नुकसान भी. फायदों की अगर बात करें तो विदेश में पढ़ाई करने वाले स्टूडैंट को डॉक्टर बनने के बाद अंतरराष्ट्रीय स्तर की मान्यता भी मिलती है. विभिन्न देशों के स्टूडेंट के साथ इन स्टूडेंट को पढ़ाई करने का मौका मिलता है और इंटरनेशनल माहौल में अलग अनुभव प्राप्त होता है. यूक्रेन से लौटे अनन्य शर्मा और मेडिकल स्टूडेंट अमन कहते हैं कि यूक्रेन में मेडिकल की पढ़ाई (medical studies in ukraine) किफायती है. इसके अलावा यहां पर अंतरराष्ट्रीय माहौल में पढ़ाई करने का अनुभव भी प्राप्त होता है.

ऑल इंडिया फेडरेशन ऑफ गवर्नमेंट डॉक्टर एसोसिएशन के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ. पुष्पेंद्र वर्मा ने कहा कि सबसे बड़ा विदेशों की तरफ रुख करने का कारण यह है कि यहां पर पढ़ाई तुलनात्मक किफायती है. ऐसा नहीं है कि भारत में मेडिकल सीट की कमी है. भारत में 45 हजार के लगभग सीट हैं. उन्होंने बताया कि रूस और यूक्रेन की तरफ भारतीय मेडिकल स्टूडेंट का अधिक रुख करने का कारण जानने के लिए हमें इतिहास को भी देखना पड़ेगा.

जब भारत में मेडिकल कॉलेज नाममात्र थे तो यूएसएसआर के वक्त इंडो सोवियत कल्चरल सोसायटी (Indo Soviet Cultural Society) भारत समेत अन्य कई देशों के मेडिकल स्टूडेंट को एमबीबीएस की पढ़ाई के लिए ले जाते थे. भारत के अलावा अन्य कई देशों से स्टूडेंट भी यहां पर पढ़ाई के लिए जाते थे. विश्व में आज भी कई ऐसे देश है जिनमें अपने मेडिकल कॉलेज नहीं हैं और वह यहां पर पढ़ाई कर रहे हैं. ऐसा नहीं है कि वहां पर मेडिकल की पढ़ाई आसान है.

अनन्य शर्मा के पिता संजीव शर्मा और अमन के पिता संजीव का कहना है कि नीट की परीक्षा में हर साल विद्यार्थियों की तादाद बढ़ती जा रही है. भारत में प्राइवेट कॉलेज में फीस इतनी अधिक है कि एक करोड़ के लगभग खर्च करना पड़ता है और खाने-पीने का और रहने का खर्चा अलग रहता है. भारत सरकार को इस ओर ध्यान देना चाहिए. भारत में जो प्राइवेट कॉलेज हैं उनमें फीस बहुत अधिक है यही कारण है कि उन्हें बच्चे यूक्रेन पढ़ाई के लिए भेजने पड़ते हैं.

ये भी पढ़ें : चंबा में एक डिपो होल्डर पर गिर सकती है गाज, जानें आखिर क्या है वजह

ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.