हमीरपुर: अब भारत में भी गर्म पानी के प्राकृतिक स्रोतों से बिजली तैयार की जाएगी. इस तकनीक में महारत हासिल कर चुके देशों की इसमें मदद ली जाएगी. नॉर्वे और आइसलैंड की तकनीक पर यह कार्य किया जाएगा और प्रथम चरण में लद्दाख में इस कार्य में कुछ हद तक सफलता भी हाथ लगी है. नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी हमीरपुर (National Institute of Technology Hamirpur) के विशेषज्ञ प्रोफेसर राजेश्वर सिंह बांशटू जियो थर्मल एनर्जी (Geo thermal energy) के एक प्रोजेक्ट पर साल 2017 से कार्य कर रहे हैं.
माइनस डिग्री तापमान वाले लद्दाख के चूमाथंग में भी गर्म पानी के स्रोत से नॉर्वे और आइसलैंड की तकनीक पर ही कार्य करते हुए गर्म पानी के स्रोत की हीट का इस्तेमाल कमरों को गर्म करने के लिए किया जा रहा है. यहां पर स्थित एक रेस्टोरेंट के करीब 2 कमरों तथा एक हॉल को माइनस 20 डिग्री तापमान में भी गर्म किया जा रहा है. बाहर तापमान माइनस डिग्री में है, जबकि इन कमरों में तापमान 20 डिग्री के लगभग गर्म पानी के स्रोत से निकल रही हीट से मेंटेन रखा गया है. इस प्रोजेक्ट पर लगभग 17 लाख रुपए खर्च किए गए हैं.
आईसलैंड और नॉर्वे देशों में गर्म पानी के स्रोत (Hot Water Sources) से ही बिजली सालों से तैयार की जा रही है. यहां पर गर्म पानी के स्रोत से बिजली (Electricity from hot water source) तैयार करने की तकनीक बेहद उन्नत है. इस तकनीक के जरिए ही लद्दाख में स्थित चुमाथंग गर्म पानी के स्रोत (Chumathang Hot Spring) में आइसलैंड और नॉर्वे से आयात किए गए अत्याधुनिक उपकरण स्थापित किए गए हैं. हीट एक्सचेंजर तकनीक (Heat Exchanger Technology) के जरिए ही गर्म पानी के स्रोत से हिट को इस रेस्टोरेंट तक पहुंचाया जा रहा है.
भारत सरकार के डिपार्टमेंट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी (Department of Science and Technology) ने एनआईटी हमीरपुर (NIT Hamirpur) के विशेषज्ञ प्रोफेसर राजेश्वर सिंह, आइसलैंड सरकार के जूलॉजिकल सर्वे (Zoological survey of Iceland) और नॉर्वे सरकार के जियो टेक्निकल इंस्टीट्यूट (Geo Technical Institute of Norway) की मदद से इस प्रोजेक्ट को स्थापित किया है. चूमाथंग में गर्म पानी के स्रोत में सफल रूप से प्रोजेक्ट स्थापित करने के बाद अब नोमेडिक रेजिडेंशियल स्कूल पुगा (Nomadic Residential School Puga) में गर्म पानी के स्रोत का इस्तेमाल करने की योजना है. यदि भारत सरकार की तरफ से इसके लिए कदम उठाए जाते हैं तो आने वाले दिनों में स्कूल में रहने वाले दर्जनों छात्रों को माइनस डिग्री तापमान में भी गर्म वातावरण मिल पाएगा.
लद्दाख में गर्म पानी के स्रोतों से बिजली तैयार करने में सफलता मिलती है तो यहां ग्लोबल वार्मिंग में भी कुछ हद तक राहत मिलेगी. ग्लोबल वार्मिंग से लगातार ग्लेशियर पिघल रहे हैं. ऐसे में यदि कार्बन फुटप्रिंट को कम करना है, तो बिजली का उत्पादन यहां पर अहम कदम हो सकता है. इसके लिए यहां पर एक मात्र विकल्प गर्म पानी के स्रोतों से बिजली तैयार करना बेहतर विकल्प माना जा रहा है, लेकिन इसके लिए आइसलैंड और नॉर्वे की मदद भी भारत सरकार को लेनी होगी.
लद्दाख के साथ ही पर्वतीय क्षेत्र हिमाचल में भी गर्म पानी के स्रोतों से बिजली पैदा करने की संभावना अधिक है. हिमाचल में भी मणिकर्ण और तत्तापानी में गर्म पानी के स्रोत हैं. लद्दाख जैसे ठंडे इलाकों में जियो थर्मल एनर्जी के जरिए बिजली पैदा करने की संभावना अन्य विकल्पों से बेहतर है. ऐसे में आइसलैंड और नॉर्वे की तकनीक का इस्तेमाल करते हुए यहां पर गर्म पानी के स्रोतों में बिजली तैयार करने की संभावनाओं पर शोध किया जाएगा.
प्रोफेसर राजेश्वर सिंह बांशटू ने इस विषय पर जानकारी देते हुए कहा कि गर्म पानी के स्रोतों में बिजली तैयार करने की संभावनाओं पर शोध करने के लिए भारत सरकार के डिपार्टमेंट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी को एक प्रपोजल भेजा जाएगा. उन्होंने कहा कि ग्लोबल वार्मिंग (Control of Global Warming ) पर कुछ हद तक नियंत्रण पाने के लिए यह बेहद अहम साबित हो सकता है. कार्बन फुटप्रिंट को भी इससे कम किया जा सकता है, क्योंकि लद्दाख में स्थानीय लोग और आर्मी अपनी जरुरतों को पूरा करने के लिए केरोसिन तेल का इस्तेमाल कर रहे हैं. ऐसे में यदि गर्म पानी के स्रोतों से बिजली तैयार होती है तो यह बड़ी सफलता होगी.