बड़सर/हमीरपुर: राधा स्वामी चैरिटेबल अस्पताल भोटा को कोविड-19 आइसोलेशन सेंटर बनाने के बाद से ही क्षेत्र के लाखों लोगों को मिलने वाली स्वास्थ्य सुविधाओं पर ताला लग गया है. कोविड आइसोलेशन सेंटर बनने से यहां ओपीडी को बंद कर दिया गया है, जिससे हमीरपुर, ऊना और बिलासपुर जिलों के लगभग 4 लाख लोग स्वास्थ्य सुविधाओं से महरूम हो रहे हैं.
राधा स्वामी चैरिटेबल अस्पताल भोटा को कोविड सेंटर बनाने से सबसे ज्यादा क्षेत्र के उन गरीब लोगों को नुकसान उठाना पड़ रहा है, जिन्हें यहां निशुल्क स्वास्थ्य सुविधाएं मिल रही थी. क्षेत्र की प्रभावित जनता लगतार इस अस्पताल को आम जनता के लिए खोलने की सरकार से मांग कर रही है. वहीं, लोगों को होने वाली असुविधाओं को ध्यान में रखकर स्थानीय विधायक इंद्रदत्त लखनपाल ने भी राधा स्वामी अस्पताल में आम जनता के लिए ओपीडी को सुचारू रूप से खोलने के लिए मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर से मांग की है.
विधायक इंद्रदत्त लखनपाल ने सरकार को एक पत्र के माध्यम से अवगत करवाते हुए कहा है कि राधा स्वामी चैरिटेबल अस्पताल भोटा तीन जिलों के लाखों लोगों को निशुल्क स्वास्थ्य सविधाएं प्रदान करता है, जिसका सबसे ज्यादा फायदा गरीब और असहाय लोगों के लिए होता है. कोविड-19 सेंटर बनाए जाने के बाद से अस्पताल में ओपीडी को बिल्कुल बंद कर दिया गया है, जिससे गरीब वर्ग प्रभावित हो रहा है.
विधायक लखनपाल ने मुख्यामंत्री जयराम ठाकुर से मांग की है कि गरीब जनता को निशुल्क स्वास्थ्य सुविधाएं देने बाले क्षेत्र के एकमात्र अस्पताल को कोविड सेंटर से हटाकर फिर से ओपीडी को खोला जाए ताकि लोगों को सुविधाएं मिल सके. उन्होंने बताया कि राधा स्वामी अस्पताल में कोविड के औसतन तीन से चार लोगो भर्ती हो रहे हैं, जिससे लाखों लोगों को नुकसान उठाना पड़ रहा है.
राधा स्वामी अस्पताल भोटा से कोविड सेंटर हटाकर जिला आयुर्वैदिक अस्पताल में शिफ्ट करने की मांग भी स्थानीय विधायक ने रखी. विधायक का कहना है कि ऐसा करने से भोटा अस्पताल की ओपीडी खुल सकती है और लाखों लोगों का निशुल्क इलाज हो सकता है. इसके साथ ही जिला आयुर्वेदिक अस्पताल को कोविड सेंटर बनने से यहां एडमिट होने वाले मरीजों का सही से इलाज और देखभाल भी हो जाएगी.
बता दें कि राधा स्वामी चैरिटेबल अस्पताल भोटा को कोविड सेंटर बनाने के खिलाफ शुरुआत से ही आवाज उठती रही है. स्थानीय लोगों और विधायक इंद्रदत्त लखनपाल ने सरकार के इस फैसले को लेकर कई बार विरोध कर चुके हैं, लेकिन लोगों की सुनवाई के तौर पर अभी तक सरकार की ओर से कोई कदम नहीं उठाया जा रहा है.