हमीरपुर: निरंतर बढ़ रहे औद्योगीकरण और हाइड्रो प्रोजेक्ट से हिमालय क्षेत्र में नदियों के बहाव में बदलाव से पानी की शुद्धता में चिंतनीय बदलाव दर्ज किए गए हैं. हाइड्रो प्रोजेक्ट के लिए बने डैम से गर्मियों के दिनों में नदियों में पानी की कमी और बहाव में स्थिरता आने से डिसॉल्वड ऑक्सीजन बेहद ही कम हो गई है. कमी के कारण पानी में अशुद्ध तत्व की मात्रा बढ़ गई है. एनआईटी हमीरपुर, एनआईटी सूरथकल और हिमाचल प्रदेश एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी पालमपुर (Himachal Pradesh Agricultural University Palampur) और यूनाइटेड किंगडम की क्रेन फील्ड यूनिवर्सिटी (Crane Field University UK) के शोधकर्ताओं ने यह चौंकाने वाले खुलासे किए हैं.
कुल्लू, मंडी, हमीरपुर और कांगड़ा में ब्यास नदी के तटों पर 1 से 2 किमी के दायरे में बसे सैकड़ों गांव में यह शोध किया गया है. इस शोध कार्य के लिए मिनिस्ट्री ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी (ministry of science and technology) के बायोटेक्नोलॉजी विभाग और यूनाइटेड किंगडम नेचुरल एनवायरनमेंट रिसर्च काउंसिल (United Kingdom Natural Environment Research Council) की तरफ से इस प्रोजेक्ट को फंडिंग दी गई है. 4 जिलों में सैकड़ों लोगों के समूहों पर शोध किया गया है. इस शोध का लक्ष्य नदी के किनारे बसे मानव जीवन पर जल विद्युत परियोजनाओं, औद्योगीकरण, बाढ़ के कारण सामाजिक और आर्थिक दृष्टि से आए बदलाव का अध्ययन करना था.
क्या है डिसॉल्वड ऑक्सीजन की कमी, क्या हैं इसके नुकसान- नदी के पानी में डिसॉल्वड ऑक्सीजन की कमी को सरल भाषा में घुलित या विघटित ऑक्सीजन का कम होना कहा जा सकता है. इसके कम होने से नदी के पानी में अन्य घातक तत्वों की अधिकता हो जाती है. पानी में डिसॉल्वड ऑक्सीजन होने से ही यह पीने लायक होता है और यदि इसकी कमी होती है तो इस पानी के इस्तेमाल से कई नुकसान उठाने पड़ सकते हैं. इस कमी युक्त पानी को यदि कोई व्यक्ति पीता है तो यह पाचन क्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव डालता (river flow affects human health) है. स्टडी में यह सामने आया है कि जब पानी में ठहराव होता है तो नदी में पानी को स्वतः शुद्ध करने की क्षमता बेहद कम हो जाती है. ऐसे में स्टडी में शामिल किए गए लोगों की यह समस्या को लेकर जताई जा रही चिंता तर्कसंगत कही जा सकती है.
साल 2018 में शुरू हुआ था सर्वे- मिनिस्ट्री ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी भारत सरकार के बायोटेक्नोलॉजी विभाग ने साल 2018 में सर्वे के लिए 31.38 लाख की फंडिंग और यूनाइटेड किंग्डम इन नेचुरल एनवायरमेंट रिसर्च काउंसिल की तरफ से 60 लाख के लगभग फंडिंग दी गई थी. 31 मार्च तक शोध कार्य को करने वाले विशेषज्ञ सर्च रिपोर्ट को मंत्रालय और एजेंसी को सौपेंगे. इस प्रोजेक्ट में एनआईटी हमीरपुर सिविल विभाग के प्रोफेसर विजय शंकर डोगरा, एनआईटी एनआईटी सूरथकल कर्नाटक के प्रोफेसर अजॉनी अडानी, हिमाचल प्रदेश एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी पालमपुर के अंतर्गत चलने वाले हिल एग्रीकल्चर एक्सटेंशन सेंटर ने कार्यरत डॉ. बृजबाला और यूनाइटेड किंग्डम की क्रेनफील्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर रॉबर्ट ग्रवोशकी शामिल हैं.
वाटर टेस्टिंग के जरिए भी प्रोजेक्ट में जुटाए गए हैं तथ्य- साल 2018 में चले इस शोध कार्य में हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर मंडी कांगड़ा और कुल्लू जिले के दर्जनों गांव और सैकड़ों लोगों को इस सर्वे में शामिल किया गया. सर्वे टीम ने बाकायदा इसके लिए एक विस्तृत प्रश्नावली तैयार की थी. टीम ने सैकड़ों लोगों से सवाल जवाब किए हैं. हिमाचल प्रदेश का एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी पालमपुर के हिल एग्रीकल्चर एक्सटेंशन सेंटर बजौरा में तैनात डॉक्टर बृजबाला ने लगभग 500 लोगों से प्रश्नावली के मुताबिक सवाल जवाब किए हैं. इसके अलावा कई गांव में जाकर सेमीनार आयोजित कर लोगों के विचार जाने गए. ब्यास नदी के किनारे बसे इन लोगों से जीवन में आए बदलाव को लेकर बातचीत की गई है.
नदी के किनारे बसे लोगों से टीम ने पूछे थे कई सवाल- विशेषज्ञों ने सर्वे के दौरान लोगों से यह पूछा था कि हाइड्रो प्रोजेक्ट लगने के बाद उनके जीवन में किस तरह के बदलाव आए? लगातार हो रहे बदलाव से उन्हें क्या फायदा हुआ है? सरकार की तरफ से इन बदलावों से होने वाले नुकसान से बचाओ के लिए क्या कदम उठाए गए हैं? लोगों को इस सर्वे में शामिल करने के साथ ही वाटर टेस्टिंग भी ब्यास के कई जगहों पर की गई है. इस कार्य को एनआईटी हमीरपुर के प्रोफेसर विजय शंकर डोगरा ने किया है.
गर्मी और बरसात में की गई थी वाटर टेस्टिंग- वाटर टेस्टिंग में लोगों द्वारा दिए गए इनपुट्स को ध्यान में रखा गया है. यह वाटर टेस्टिंग मॉनसून और गर्मियों में मुख्यता की गई है. गर्मियों में ब्यास नदी में जब पानी का बहाव हाइड्रो प्रोजेक्ट के डैम में पानी रुकने की वजह से स्थिर हो जाता है तब यह टेस्टिंग की गई. मॉनसून के सीजन में जब नदी उफान पर थी तब भी यह टेस्टिंग की गई है. मंडी, नादौन और सुजानपुर में यह टेस्टिंग की गई है. टेस्टिंग के बाद सामने आए नतीजों और लोगों की प्रतिक्रियाओं इस प्रोजेक्ट के सर्वे रिपोर्ट को तैयार किया गया है.
स्टडी रिपोर्ट के कईं महत्वपूर्ण बिंदुओं पर सुझाव देंगे विशेषज्ञ- एनआईटी हमीरपुर के सिविल विभाग के प्रोफेसर विजय शंकर डोगरा ने कहा कि इस स्टडी में लोगों की प्रतिक्रियाओं और सर्वे में दिए गए सुझावों को स्टडी रिपोर्ट में शामिल कर कई महत्वपूर्ण बिंदुओं को पेश किया जाएगा. उन्होंने कहा कि डिसॉल्वड ऑक्सीजन की कमी पानी में ठहराव के कारण पाई जाती है. स्टडी में शामिल लोगों का कहना था कि गर्मियों के दिनों में अक्सर हाइड्रो प्रोजेक्ट के डैम में पानी रुक जाता है. जिससे नदी में पानी बेहद कम हो जाता है और पानी में ठहराव ही नजर आता है. ऐसे में रिपोर्ट में यह सुझाव दिया जाएगा कि नदियों में पानी के बहाव को निरंतर संतुलित रखा जाए. इसके अलावा किसानों और बागवानों की फसलों को बाढ़ से होने वाले नुकसान के लिए नदियों के किनारे क्रेटवॉल लगाने तथा सरकार नदी के किनारे बसे गांव का अलग से अतिरिक्त सर्वे करवाने का सुझाव भी दिया जाएगा. हाइड्रो प्रोजेक्ट के अलावा हर साल नदियों में आने वाली बाढ़ और अवैध खनन तथा औद्योगिकरण को लेकर भी विस्तृत चर्चा इस स्टडी रिपोर्ट में की गई हैं.