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कांगड़ा में लगेंगे भूस्खलन अलर्ट यूनिट अर्ली वा‌र्निंग सिस्टम, आईआईटी मंडी के साथ MOU साइन

कांगड़ा जिले में अब भूकंप पूर्व चेतावनी प्रणाली तथा सिंथेटिक एपर्चर रडार स्थापित करने को लेकर प्रक्रिया अमल (Early warning system in kangra) में लाई जा रही है. इसी कड़ी में सोमवार को कांगड़ा जिला प्रशासन और आईआईटी मंडी के बीच भूकंप, भूस्खलन जैसी प्राकृतिक खतरों से बचाव तथा मॉनिटरिंग के लिए कांगड़ा जिला के दस विभिन्न स्थानों के लिए पूर्व चेतावनी प्रणाली तथा सिंथेटिक एपर्चर रडार आधारित कांगड़ा जिला का प्रोफाइल विकसित करने के लिए एमओयू साइन किया गया.

Landslide Alert Unit Early Warning System in kangra
कांगड़ा में लगेंगे भूस्खलन अलर्ट यूनिट अर्ली वा‌र्निंग सिस्टम
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Published : Jan 31, 2022, 7:27 PM IST

धर्मशाला: कांगड़ा जिला प्रशासन और आईआईटी मंडी के बीच भूकंप, भूस्खलन जैसी प्राकृतिक खतरों से बचाव तथा मॉनिटरिंग के लिए कांगड़ा जिला के दस विभिन्न स्थानों के लिए पूर्व चेतावनी प्रणाली (Landslide Alert Unit Early Warning System) तथा सिंथेटिक एपर्चर रडार आधारित कांगड़ा जिला का प्रोफाइल विकसित करने के लिए एमओयू साइन किया गया. यह जानकारी देते हुए उपायुक्त कांगड़ा डॉ. निपुण जिंदल ने बताया कि कांगड़ा जिला भूकंप की दृष्टि से संवेदनशील जोन में आता है. इसके साथ ही भूस्खलन के कारण भी हर वर्षों लाखों का नुकसान झेलना पड़ता है.

डीसी ने कहा कि भूस्खलन तथा भूकंप की पूर्व चेतावनी प्रणाली विकसित (early warning system developed ) होने से नुकसान को काफी हद तक कम किया जा सकता है. इसी को ध्यान में रखते हुए राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान कमांद जिला मंडी के वैज्ञानिकों के साथ एक एमओयू साइन किया गया है. उन्होंने बताया कि एमओयू के तहत सिंथेटिक एपर्चर रडार के माध्यम से भूकंप, भूस्खलन जैसे प्राकृतिक खतरों तथा कुछ जटिल प्रक्रियाओं को मापा जा सकता है. इसी तकनीक को कांगड़ा जिला के लिए भी विकसित करने के बारे में एमओयू साइन किया गया. इसके साथ ही कांगड़ा जिला के दस विभिन्न जगहों पर आधुनिक तकनीक से लैस पूर्व चेतावनी प्रणाली विकसित करने पर भी सहमति बनी है. इसके साथ ही विभिन्न जगहों में चेतावनी के लिए हूटर तथा ब्लींकर्स भी स्थापित करने के लिए एमओयू साइन किया गया है.

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डॉ. निपुण जिंदल ने कहा कि पूर्व चेतावनी के टेक्स्ट मैसेज की व्यवस्था करने के लिए भी कहा गया है. ताकि समय रहते लोगों तक सूचना पहुंच सके उन्होंने कहा कि आईआईटी मंडी के वैज्ञानिक (early warning system developed by iit mand) इस प्रोजेक्ट के तहत भूस्खलन एवं प्राकृतिक आपदाओं के डाटा का अनुसंधान के लिए भी उपयोग कर सकते हैं. ताकि प्राकृतिक आपदाओं से आम जनमानस के बचाव के लिए भविष्य में बेहतर कार्य किया जा सके. उन्होंने कहा कि इस प्रोजेक्ट की फंडिंग आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के माध्यम से की जाएगी. इसके लिए समय भी निर्धारित किया गया है. इस अवसर पर एडीएम रोहित राठौर भी उपस्थित थे, जबकि आईआईटी कमांद प्रशासन की ओर से वर्चअल तौर पर एमओयू साइन किया गया.

भूस्खलन दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी प्राकृतिक आपदा- भूस्खलन दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी प्राकृतिक आपदा है. इनमें से सर्वाधिक भारत में होती है. दरअसल देश के 15 प्रतिशत क्षेत्रों में भूस्खलन का खतरा बना रहता है. पूरी दुनिया में हर साल भूस्खलन में 5,000 से अधिक लोग जिंदा दफन हो जाते हैं और भूस्खलन से सालाना 26,000 करोड़ रुपये से अधिक का आर्थिक नुकसान होता है.

ये भी पढ़ें: हिमाचल बजट 2022: 4 मार्च को कार्यकाल का आखिरी बजट पेश करेंगे जयराम ठाकुर

धर्मशाला: कांगड़ा जिला प्रशासन और आईआईटी मंडी के बीच भूकंप, भूस्खलन जैसी प्राकृतिक खतरों से बचाव तथा मॉनिटरिंग के लिए कांगड़ा जिला के दस विभिन्न स्थानों के लिए पूर्व चेतावनी प्रणाली (Landslide Alert Unit Early Warning System) तथा सिंथेटिक एपर्चर रडार आधारित कांगड़ा जिला का प्रोफाइल विकसित करने के लिए एमओयू साइन किया गया. यह जानकारी देते हुए उपायुक्त कांगड़ा डॉ. निपुण जिंदल ने बताया कि कांगड़ा जिला भूकंप की दृष्टि से संवेदनशील जोन में आता है. इसके साथ ही भूस्खलन के कारण भी हर वर्षों लाखों का नुकसान झेलना पड़ता है.

डीसी ने कहा कि भूस्खलन तथा भूकंप की पूर्व चेतावनी प्रणाली विकसित (early warning system developed ) होने से नुकसान को काफी हद तक कम किया जा सकता है. इसी को ध्यान में रखते हुए राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान कमांद जिला मंडी के वैज्ञानिकों के साथ एक एमओयू साइन किया गया है. उन्होंने बताया कि एमओयू के तहत सिंथेटिक एपर्चर रडार के माध्यम से भूकंप, भूस्खलन जैसे प्राकृतिक खतरों तथा कुछ जटिल प्रक्रियाओं को मापा जा सकता है. इसी तकनीक को कांगड़ा जिला के लिए भी विकसित करने के बारे में एमओयू साइन किया गया. इसके साथ ही कांगड़ा जिला के दस विभिन्न जगहों पर आधुनिक तकनीक से लैस पूर्व चेतावनी प्रणाली विकसित करने पर भी सहमति बनी है. इसके साथ ही विभिन्न जगहों में चेतावनी के लिए हूटर तथा ब्लींकर्स भी स्थापित करने के लिए एमओयू साइन किया गया है.

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डॉ. निपुण जिंदल ने कहा कि पूर्व चेतावनी के टेक्स्ट मैसेज की व्यवस्था करने के लिए भी कहा गया है. ताकि समय रहते लोगों तक सूचना पहुंच सके उन्होंने कहा कि आईआईटी मंडी के वैज्ञानिक (early warning system developed by iit mand) इस प्रोजेक्ट के तहत भूस्खलन एवं प्राकृतिक आपदाओं के डाटा का अनुसंधान के लिए भी उपयोग कर सकते हैं. ताकि प्राकृतिक आपदाओं से आम जनमानस के बचाव के लिए भविष्य में बेहतर कार्य किया जा सके. उन्होंने कहा कि इस प्रोजेक्ट की फंडिंग आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के माध्यम से की जाएगी. इसके लिए समय भी निर्धारित किया गया है. इस अवसर पर एडीएम रोहित राठौर भी उपस्थित थे, जबकि आईआईटी कमांद प्रशासन की ओर से वर्चअल तौर पर एमओयू साइन किया गया.

भूस्खलन दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी प्राकृतिक आपदा- भूस्खलन दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी प्राकृतिक आपदा है. इनमें से सर्वाधिक भारत में होती है. दरअसल देश के 15 प्रतिशत क्षेत्रों में भूस्खलन का खतरा बना रहता है. पूरी दुनिया में हर साल भूस्खलन में 5,000 से अधिक लोग जिंदा दफन हो जाते हैं और भूस्खलन से सालाना 26,000 करोड़ रुपये से अधिक का आर्थिक नुकसान होता है.

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