चंबा: देश में पहली बार भालू का डीएनए टेस्ट होगा. दुर्लभ प्रजाति के ब्राउन बियर के सैंपल हासिल कर इस कार्य को अब अंजाम तक पहुंचाया जाएगा. गौर रहे कि इससे पहले देश टाइगर का डीएनए टेस्ट हो चुका है और इसके बेहतर परिणाम भी सामने आए थे. लिहाजा भूरे भालू के 100 सैंपल लेकर इंटरनेशनल बियर एसोसिएशन इस पर कार्य कर रही है. हाल ही में विशेषज्ञों की एक टीम ने हिमाचल प्रदेश की दूसरी सबसे बड़ी वाइल्ड लाइफ सेंचुरी कुगती में मौजूद ब्राउन बियर की बीट के 100 सैंपल एकत्रित किए हैं.
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बता दें कि भूरा भालू हिमाचल प्रदेश के चंबा जिले के पांगी और भरमौर वैली के अलावा लाहौल-स्पीति, किन्नौर और कुल्लू के ऊंचाई वाले हिस्सों में पाए जाते हैं. जानकारी के अनुसार इंटरनेशनल बियर एसोशियसन की टीम में शामिल डीएनए स्पेशलिस्ट डॉ. मार्ट अन्य सहयोगियों डॉक्टर संदीप, डॉ तृष्णा और भूरे भालू पर शोध करने वाले देश के इकलौते वन्य प्राणी विशेषज्ञ डॉ विपन राठौर ने कुगती में डीएनए टेस्ट के लिए बीट के सैंपल एकत्रित किए हैं और डीएनए एक्सपर्ट फ्रांस भी रवाना हो गए हैं.
एकत्रित किए गए भूरे भालू के फिकल मेटर का स्लोवेनिया प्रयोगशाला में विश्लेषण किया जाएगा. बहरहाल अक्तूबर माह तक इसके परिणाम सामने आ जाएंगे. इस अध्ययन से भूरे भालू की संख्या सहित मेल व फीमेल और बच्चों की संख्या का भी पत चलेगा. गौर रहे कि डॉ. संदीप और डा. तृष्णा भारतीय हैं और मौजूदा समय में जर्मनी के एक विश्वविद्यालय में स्टडी कर रहे हैं. ये लोग पहले टाइगर के डीएनए से जुड़े प्रोजेक्ट पर भी काम कर चुके हैं.
इंटरनेशनल बियर एसोसिएशन का यह प्रोजेक्ट पायलट बेस पर है। लिहाजा इसे सफलता मिलती है तो बड़े पैमाने पर यह प्रोजेक्ट चलाया जा सकेगा। अहम है कि चंबा जिले से संबंध रखने वाले डा. विपिन राठौर देश के इकलौते शोघ करने वाले है। वह पिछले डेढ़ दशक से भी अधिक समय से भूरे भालू पर शोघ कर रहे है और इस दौरान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विश्व के विभिन्न देशों में भूरे भालू पर अपने शोध पत्र प्रस्तुत कर चुके हैं। डॉक्टर विपिन राठौर द्वारा गुरु पर किए जा रहे हैं कार्यों की बदौलत ही इंटरनेशनल बियर एसोसिएशन भूरे भालू के फिकल मेटर से डीएनए का अध्ययन करने जा रही है.
भूरा भालू हिमाचल समेत 23 संरक्षित क्षेत्रों में हैं मौजूद
भूरा भालू भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 की अनुसूची एक में शामिल हैं. भूरे भालू की आबादी जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश व उत्तराखंड में 23 संरक्षित क्षेत्रों में है. वनमंडल अधिकारी वन्य प्राणी विंग निशांत मढ़ोत्रा का कहना है कि काला भालू समुद्र तल से दो हजार मीटर की ऊंचाई से नीचे रहना पसंद करता है. फसलों को नुकसान पहुंचाने के साथ-साथ झुंड में रहना इसकी आदत में शुमार है.
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भूरा भालू आमतौर पर समुद्र तल से 2500 मीटर की ऊंचाई से नीचे कभी नहीं आता है. यह झुंड के बजाय अकेला ही रहता है. मात्र प्रसव के दौरान ही यह झुंड में रहता है. भूरे भालुओं में मात्र दस फीसदी ही मांसाहारी होते हैं, जबकि 90 फीसदी भोजन के रूप में जड़ी-बूटियों का इस्तेमाल करते हैं. भूरा भालू अमेरिकी भालू की तुलना में अपेक्षाकृत छोटा होता है. इसका भार एक से डेढ़ क्विंटल तक होता है और जब यह इंसानों की तरह खड़ा होता है तो इसकी लंबाई छह फुट के करीब होती है.