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8 साल में 80 किलोमीटर चली भानुपल्ली-बिलासपुर-लेह रेल लाइन, वक्त पर पूरी हो पाएगी योजना ?

भानुपल्ली-बिलासपुर-लेह रेल लाइन (Bhanupali Bilaspur Leh Rail Line) का कार्य तय समय पर पुरा होता नजर नही आ रहा है. हालांकि इस कार्य को पूरा करने का लक्ष्य 2025 तक है, लेकिन 465 किलोमीटर लंबी इस रेल लाइन में अभी 80 किलोमीटर का ही कार्य पूरा हो पाया है. वहीं, भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया धीमी होने के चलते इस कार्य में और देरी हो रही है. इस पूरे प्रोजेक्ट पर 83, 360 करोड़ रूपये खर्च होने हैं. जबकि, पूरी रेल लाइन पर 74 सुरंगें, 124 बड़े पुल और 396 पुलिया बनेगी.

Bhanupali Bilaspur Leh Rail Line
भानुपल्ली बिलासपुर लेह रेल लाइन
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Published : Jan 29, 2022, 8:28 PM IST

बिलासपुर: केंद्र और प्रदेश सरकार के लाख दावों के बावजूद सामरिक महत्व की भानुपल्ली-बिलासपुर-लेह ब्राॅडगेज रेल लाइन (Bhanupali Bilaspur Leh Rail Line) का कार्य पूरा करने का 2025 का लक्ष्य समयबद्ध परवान चढ़ता नजर नहीं आ रहा है. भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया धीमी होने के चलते छुक-छुक गाड़ी का इंतजार और बढ़ सकता है. धरोट से लेकर बिलासपुर के बध्यात तक 32 किलोमीटर एरिया में 26 में से 16 गांव ऐसे हैं, जहां अभी भी मोल भाव में पेंच फंसा होने की वजह से भूमि अधिग्रहण का कार्य शुरू नहीं हो पाया है.

ऐसे हालात में जब दावों व वादों की यह रेल बिलासपुर के पहाड़ ही नहीं चढ़ पा रही है, तो यह रेल लेह तक मीलों का फासला कब पूरा करेगी. जानकारी के मुताबिक शुरूआती 20 किलोमीटर के अंतराल 7 में से 5 टनल ब्रेक थ्रू हो चुकी हैं, जबकि पांच ब्रिज का कार्य जोरों पर चला हुआ है. वहीं, आगे के 32 किलोमीटर एरिया के जिन 26 गांवों में भू-अधिग्रहण को लेकर पेंच फंसा हुआ है. उन गांवों की निजी जमीन के अधिग्रहण के लिए प्रशासन ने राइट टू फेयर कंपनसेशन इन लैंड एक्विजिशन एक्ट के तहत एक स्वतंत्र एजेंसी के माध्यम से स्टडी करवाई है.

Construction of tunnel on railway line.
रेल लाइन पर होते टनल का निर्माण.

इस समय उपायुक्त की अध्यक्षता में गठित कमेटी के एक्सपर्ट ग्रुप रिपोर्ट तैयार कर रहे हैं और अगले 15 दिन में यह रिपोर्ट सरकार को सौंपी जाएगी. उसके बाद तय औपचारिकताएं पूरी होने के बाद सरकार की ओर जारी आदेशों के बाद भू-अधिग्रहण का कार्य रफ्तार पकड़ेगा. वहीं, जिला प्रशासन ने अभी तक 518.14 बीघा जमीन एक्वायर कर ली है. जिसके तहत प्रभावितों को 182.16 करोड़ रूपये की राशि मुआवजे के रूप में जारी की जा चुकी है. उधर, बिलासपुर से आगे लेह तक सर्वेक्षण हुआ है. लेकिन, अब बताया जा रहा है कि जो डीपीआर तैयार की गई है, उस पर मंथन चल रहा है. इसके बाद फरवरी माह तक इसकी डीपीआर केंद्र सरकार को सौंपी जाएगी.

Engineers working in Tunnel.
टलन में काम करते इंजीनियर्स.

एक करोड़ मांग रहे लोग: धरोट से बध्यात तक चिन्हित 26 गांवों में से तीन क्लीयर हो चुके हैंं और आठ गांवों में 96 बीघा 14 बिस्वा जमीन अधिग्रहण को लेकर प्रोसेस चल रहा है. जबकि 16 गांव ऐसे है, जहां अभी तक पूरी जमीन अधिग्रहण की जानी है. वहीं, बाकी गांवों में राजस्व विभाग की ओर से प्रक्रिया जारी है और मोल भाव तय करने की कोशिश हो रही है.

दरअसल, दिक्कत यह आ रही है कि लोग अपनी जमीन का चार गुणा मुआवजा मांग रहे है. जबकि प्रशासन की ओर से जमीन के दाम 27 से लेकर 35 लाख प्रति बीघा के दर से दिए जा रहे हैं. कोई अपनी जमीन के 60 लाख प्रति बीघा, तो कोई 90 लाख से एक करोड़ तक की मांग कर रहा है. जिसके चलते जमीन अधिग्रहण की प्रक्रिया में पेंच फंस गया है. इसके चलते प्रशासन को सोशल इंपैक्ट असेस्मेंट के लिए स्टडी करवानी पड़ी है.

मगर, पहले बिलासपुर तक तो यह रेल लाइन पहुंचे, तभी परियोजना के अगले पड़ाव पर बात हो सकेगी. इसके अगले चरण के लिए 20 से 34 किमी के लिए भूमि अधिग्रहण की सभी औपचारिकताओं को भी पूरा कर लिया गया है. इस रेल लाइन में जिन बड़ी सुरंगों का निर्माण होना है, उसमे टी-10 सुरंग भी शामिल है. इसकी लंबाई 3,800 मीटर होगी. इसके अलावा टी-8 सुरंग की लंबाई भी 2,900 मीटर होगी. पहला खंड बैरी से मंडी, दूसरा मंडी से मनाली, तीसरा मनाली से उपशी और चैथा उपशी से लेह तक का होगा.

विशेषज्ञों की टीम फिर करेगी दौरा: वहीं, उत्तर रेलवे के चीफ इंजीनियर हरपाल (Indian railway projects) सिंह ने बताया कि जल्द ही विशेषज्ञों की एक टीम भी यहां पर सर्वे करेगी, जिसे फाइनल सर्वे माना जाएगा. जानकारी के अनुसार अभी तक तुर्की से आए विशेषज्ञों की टीम ने महज बिलासपुर से मनाली तक के पहाड़ों की स्ट्रेंथ का पता लगाया है. हालांकि भौगोलिक परिस्थितियों को देखते हुए रेलवे के लिए लेह तक रेल लाइन पहुंचाना आसान नहीं होगा. जिसके चलते अभी तक रेलवे की ओर से शुरुआती दौर में केवल मात्र बिलासपुर से मनाली तक को ही फोकस किया जा रहा है.

वहीं, बिलासपुर से मनाली रेल लाइन प्रक्रिया के तहत अभी तक केवल मात्र 80 पहाड़ों तक ही तुर्की के विशेषज्ञों की टीम पहुंच पाई है. अभी भी 20 फीसदी पहाड़ ऐसे हैं, जिनकी लंबाई मापना शेष रह गई है. इस रास्ते में 20 फीसदी पहाड़ शेष हैं. वे बिलासपुर और मनाली के बीच ही स्थित हैं. जिनकी स्ट्रेंथ मापने के लिए दोबारा विशेषज्ञों की टीम दौरा करेगी. तुर्की विशेषज्ञों की टीम ने भानुपल्ली-लेह-रेललाइन के तहत बिलासपुर से मनाली के बीच पहाड़ों की स्ट्रेंथ का पता लगाया है.

इसे लेकर कई दिनों तक टीम हिमाचल में ही रही. हालांकि इस टीम ने यहां पर पहाड़ों का विजिट भी किया था. लेकिन, अभी तक इसे फाइनल सर्वे नहीं माना जा रहा है. अभी एक और सर्वे होगा. इससे पहले अलाइनमेंट सुधार के बाद डाटा प्रोसेसिंग प्रक्रिया शुरू होगी. वहीं, इसके बाद विशेषज्ञों की टीम एक बार फिर विजिट करने के लिए पहुंचेगी. बता दें कि भानुपल्ली से बिलासपुर के बीच बन रही रेल लाइन के कार्य को 2025 तक पूरा करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है.

देश के मुख्य राष्ट्रीय प्रोजेक्ट्स में शामिल है यह रेल लाइन: भानुपल्ली-बिलासपुर-बैरी रेल लाइन एक मुख्य राष्ट्रीय प्रोजेक्ट है. उत्तर रेलवे ने भी इस परियोजना को अपनी प्राथमिकता में शामिल किया है. यह देश की सबसे बड़ी और महत्वपूर्ण रेल लाइन प्रोजेक्टों में शामिल है. इस रेल लाइन के शुरू होने से यहां पर तैनात देश की सेना को सबसे अधिक लाभ मिलेगा. क्योंकि सेना को अपना महत्वपूर्ण सामान पहुंचाने व ले जाने में आसानी होगी. इस रेल लाइन की घोषणा 2008 में यूपीए सरकार के समय हुई थी. जबकि, 2013 में इस रेल लाइका काम शुरू हुआ था और 9 सालों में सिर्फ 80 किलोमीटर तक ही ये काम पहुंच पाया है. वहीं, इस रेल लाइन को पूरा करने में अभी 350 से ज्यादा का फासला अभी और तय करना है.

Rail line map.
रेल लाइन का नक्शा.

दुनिया की सबसे उंची रेल लाइन : बता दें कि भानुपल्ली-बिलासपुर-लेह रेल लाइन का प्रस्तावित खर्च 83,360 करोड़ रूपये है. यह 465 किलोमीटर लंबी लाइन होगी. प्रोजेक्ट पूरा होने के बाद यह दुनिया की सबसे ऊंची रेल लाइन होगी. निर्माण के बाद इस लाइन की उंचाई समुद्री सतह से 5,360 मीटर होगी. थोड़ी बहुत इसकी बराबरी चिंगहई तिब्बत रेल लाइन (Qinghai Tibet rail line) से की जा सकती (Highest rail line in the world) है, क्योंकि चीन में स्थित यह रेल लाइन भी समुद्री सतह से 5,072 मीटर की उंचाई पर है.

सबसे लंबी सुरंग 27 किलोमीटर की होगी: बिलासपुर से लेह को जोड़ने वाली यह रेल लाइन सुंदरनगर, मंडी, मनाली, केलांग, कोकसर, दर्चा, उपशी और कारू से गुजरेगी. सभी स्टेशन हिमाचल प्रदेश और जम्मू और कश्मीर के होंगे. इस रेल लाइन से सुरक्षा बलों को काफी मदद मिलेगी. साथ ही लदाख क्षेत्र में पर्यटन को भी बढ़ावा मिलेगा. 465 किलोमीटर लंबी इस रेल लाइन का 52 फीसदी हिस्सा सुरंग से होकर गुजरेगा. इसमें सबसे लंबी सुरंग 27 किलोमीटर की होगी. सुरंग के अंदर से कुल 244 किलोमीटर लाइन गुजरेगी. पहले फेज में सर्वे के मुताबिक 74 सुरंग, 124 बड़े पुल और 396 पुलिया बनेगी. यह रेल लाइन बिलासपुर में पंजाब बॉर्डर के साथ लगते भानुपल्ली से लेह तक जाएगी.

ये भी पढ़ें: चंबा में ट्राउट मछली उत्पादन ने बदली पिता-पुत्र की किस्मत, सालाना कमा रहा लाखों रुपये

बिलासपुर: केंद्र और प्रदेश सरकार के लाख दावों के बावजूद सामरिक महत्व की भानुपल्ली-बिलासपुर-लेह ब्राॅडगेज रेल लाइन (Bhanupali Bilaspur Leh Rail Line) का कार्य पूरा करने का 2025 का लक्ष्य समयबद्ध परवान चढ़ता नजर नहीं आ रहा है. भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया धीमी होने के चलते छुक-छुक गाड़ी का इंतजार और बढ़ सकता है. धरोट से लेकर बिलासपुर के बध्यात तक 32 किलोमीटर एरिया में 26 में से 16 गांव ऐसे हैं, जहां अभी भी मोल भाव में पेंच फंसा होने की वजह से भूमि अधिग्रहण का कार्य शुरू नहीं हो पाया है.

ऐसे हालात में जब दावों व वादों की यह रेल बिलासपुर के पहाड़ ही नहीं चढ़ पा रही है, तो यह रेल लेह तक मीलों का फासला कब पूरा करेगी. जानकारी के मुताबिक शुरूआती 20 किलोमीटर के अंतराल 7 में से 5 टनल ब्रेक थ्रू हो चुकी हैं, जबकि पांच ब्रिज का कार्य जोरों पर चला हुआ है. वहीं, आगे के 32 किलोमीटर एरिया के जिन 26 गांवों में भू-अधिग्रहण को लेकर पेंच फंसा हुआ है. उन गांवों की निजी जमीन के अधिग्रहण के लिए प्रशासन ने राइट टू फेयर कंपनसेशन इन लैंड एक्विजिशन एक्ट के तहत एक स्वतंत्र एजेंसी के माध्यम से स्टडी करवाई है.

Construction of tunnel on railway line.
रेल लाइन पर होते टनल का निर्माण.

इस समय उपायुक्त की अध्यक्षता में गठित कमेटी के एक्सपर्ट ग्रुप रिपोर्ट तैयार कर रहे हैं और अगले 15 दिन में यह रिपोर्ट सरकार को सौंपी जाएगी. उसके बाद तय औपचारिकताएं पूरी होने के बाद सरकार की ओर जारी आदेशों के बाद भू-अधिग्रहण का कार्य रफ्तार पकड़ेगा. वहीं, जिला प्रशासन ने अभी तक 518.14 बीघा जमीन एक्वायर कर ली है. जिसके तहत प्रभावितों को 182.16 करोड़ रूपये की राशि मुआवजे के रूप में जारी की जा चुकी है. उधर, बिलासपुर से आगे लेह तक सर्वेक्षण हुआ है. लेकिन, अब बताया जा रहा है कि जो डीपीआर तैयार की गई है, उस पर मंथन चल रहा है. इसके बाद फरवरी माह तक इसकी डीपीआर केंद्र सरकार को सौंपी जाएगी.

Engineers working in Tunnel.
टलन में काम करते इंजीनियर्स.

एक करोड़ मांग रहे लोग: धरोट से बध्यात तक चिन्हित 26 गांवों में से तीन क्लीयर हो चुके हैंं और आठ गांवों में 96 बीघा 14 बिस्वा जमीन अधिग्रहण को लेकर प्रोसेस चल रहा है. जबकि 16 गांव ऐसे है, जहां अभी तक पूरी जमीन अधिग्रहण की जानी है. वहीं, बाकी गांवों में राजस्व विभाग की ओर से प्रक्रिया जारी है और मोल भाव तय करने की कोशिश हो रही है.

दरअसल, दिक्कत यह आ रही है कि लोग अपनी जमीन का चार गुणा मुआवजा मांग रहे है. जबकि प्रशासन की ओर से जमीन के दाम 27 से लेकर 35 लाख प्रति बीघा के दर से दिए जा रहे हैं. कोई अपनी जमीन के 60 लाख प्रति बीघा, तो कोई 90 लाख से एक करोड़ तक की मांग कर रहा है. जिसके चलते जमीन अधिग्रहण की प्रक्रिया में पेंच फंस गया है. इसके चलते प्रशासन को सोशल इंपैक्ट असेस्मेंट के लिए स्टडी करवानी पड़ी है.

मगर, पहले बिलासपुर तक तो यह रेल लाइन पहुंचे, तभी परियोजना के अगले पड़ाव पर बात हो सकेगी. इसके अगले चरण के लिए 20 से 34 किमी के लिए भूमि अधिग्रहण की सभी औपचारिकताओं को भी पूरा कर लिया गया है. इस रेल लाइन में जिन बड़ी सुरंगों का निर्माण होना है, उसमे टी-10 सुरंग भी शामिल है. इसकी लंबाई 3,800 मीटर होगी. इसके अलावा टी-8 सुरंग की लंबाई भी 2,900 मीटर होगी. पहला खंड बैरी से मंडी, दूसरा मंडी से मनाली, तीसरा मनाली से उपशी और चैथा उपशी से लेह तक का होगा.

विशेषज्ञों की टीम फिर करेगी दौरा: वहीं, उत्तर रेलवे के चीफ इंजीनियर हरपाल (Indian railway projects) सिंह ने बताया कि जल्द ही विशेषज्ञों की एक टीम भी यहां पर सर्वे करेगी, जिसे फाइनल सर्वे माना जाएगा. जानकारी के अनुसार अभी तक तुर्की से आए विशेषज्ञों की टीम ने महज बिलासपुर से मनाली तक के पहाड़ों की स्ट्रेंथ का पता लगाया है. हालांकि भौगोलिक परिस्थितियों को देखते हुए रेलवे के लिए लेह तक रेल लाइन पहुंचाना आसान नहीं होगा. जिसके चलते अभी तक रेलवे की ओर से शुरुआती दौर में केवल मात्र बिलासपुर से मनाली तक को ही फोकस किया जा रहा है.

वहीं, बिलासपुर से मनाली रेल लाइन प्रक्रिया के तहत अभी तक केवल मात्र 80 पहाड़ों तक ही तुर्की के विशेषज्ञों की टीम पहुंच पाई है. अभी भी 20 फीसदी पहाड़ ऐसे हैं, जिनकी लंबाई मापना शेष रह गई है. इस रास्ते में 20 फीसदी पहाड़ शेष हैं. वे बिलासपुर और मनाली के बीच ही स्थित हैं. जिनकी स्ट्रेंथ मापने के लिए दोबारा विशेषज्ञों की टीम दौरा करेगी. तुर्की विशेषज्ञों की टीम ने भानुपल्ली-लेह-रेललाइन के तहत बिलासपुर से मनाली के बीच पहाड़ों की स्ट्रेंथ का पता लगाया है.

इसे लेकर कई दिनों तक टीम हिमाचल में ही रही. हालांकि इस टीम ने यहां पर पहाड़ों का विजिट भी किया था. लेकिन, अभी तक इसे फाइनल सर्वे नहीं माना जा रहा है. अभी एक और सर्वे होगा. इससे पहले अलाइनमेंट सुधार के बाद डाटा प्रोसेसिंग प्रक्रिया शुरू होगी. वहीं, इसके बाद विशेषज्ञों की टीम एक बार फिर विजिट करने के लिए पहुंचेगी. बता दें कि भानुपल्ली से बिलासपुर के बीच बन रही रेल लाइन के कार्य को 2025 तक पूरा करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है.

देश के मुख्य राष्ट्रीय प्रोजेक्ट्स में शामिल है यह रेल लाइन: भानुपल्ली-बिलासपुर-बैरी रेल लाइन एक मुख्य राष्ट्रीय प्रोजेक्ट है. उत्तर रेलवे ने भी इस परियोजना को अपनी प्राथमिकता में शामिल किया है. यह देश की सबसे बड़ी और महत्वपूर्ण रेल लाइन प्रोजेक्टों में शामिल है. इस रेल लाइन के शुरू होने से यहां पर तैनात देश की सेना को सबसे अधिक लाभ मिलेगा. क्योंकि सेना को अपना महत्वपूर्ण सामान पहुंचाने व ले जाने में आसानी होगी. इस रेल लाइन की घोषणा 2008 में यूपीए सरकार के समय हुई थी. जबकि, 2013 में इस रेल लाइका काम शुरू हुआ था और 9 सालों में सिर्फ 80 किलोमीटर तक ही ये काम पहुंच पाया है. वहीं, इस रेल लाइन को पूरा करने में अभी 350 से ज्यादा का फासला अभी और तय करना है.

Rail line map.
रेल लाइन का नक्शा.

दुनिया की सबसे उंची रेल लाइन : बता दें कि भानुपल्ली-बिलासपुर-लेह रेल लाइन का प्रस्तावित खर्च 83,360 करोड़ रूपये है. यह 465 किलोमीटर लंबी लाइन होगी. प्रोजेक्ट पूरा होने के बाद यह दुनिया की सबसे ऊंची रेल लाइन होगी. निर्माण के बाद इस लाइन की उंचाई समुद्री सतह से 5,360 मीटर होगी. थोड़ी बहुत इसकी बराबरी चिंगहई तिब्बत रेल लाइन (Qinghai Tibet rail line) से की जा सकती (Highest rail line in the world) है, क्योंकि चीन में स्थित यह रेल लाइन भी समुद्री सतह से 5,072 मीटर की उंचाई पर है.

सबसे लंबी सुरंग 27 किलोमीटर की होगी: बिलासपुर से लेह को जोड़ने वाली यह रेल लाइन सुंदरनगर, मंडी, मनाली, केलांग, कोकसर, दर्चा, उपशी और कारू से गुजरेगी. सभी स्टेशन हिमाचल प्रदेश और जम्मू और कश्मीर के होंगे. इस रेल लाइन से सुरक्षा बलों को काफी मदद मिलेगी. साथ ही लदाख क्षेत्र में पर्यटन को भी बढ़ावा मिलेगा. 465 किलोमीटर लंबी इस रेल लाइन का 52 फीसदी हिस्सा सुरंग से होकर गुजरेगा. इसमें सबसे लंबी सुरंग 27 किलोमीटर की होगी. सुरंग के अंदर से कुल 244 किलोमीटर लाइन गुजरेगी. पहले फेज में सर्वे के मुताबिक 74 सुरंग, 124 बड़े पुल और 396 पुलिया बनेगी. यह रेल लाइन बिलासपुर में पंजाब बॉर्डर के साथ लगते भानुपल्ली से लेह तक जाएगी.

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