नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि मेडिकल कॉलेज घोटाला मामले में घूसखोरी के आरोपों की जांच एसआईटी से कराने की मांग करने वाले एक गैर-सरकारी संगठन पर लगाये गये 25 लाख रुपये के जुर्माने को चंदा करार दिये जाने संबंधी प्रार्थना पर उसकी तीन सदस्यीय पीठ विचार करेगी.
शीर्ष अदालत ने संबंधित याचिका खारिज करते हुए याचिकाकर्ता एनजीओ पर 25 लाख रुपये का जुर्माना लगाया था. न्यायालय ने पुनर्विचार याचिका और सुधारात्मक याचिका भी खारिज कर दी थी.
शीर्ष अदालत ने एक दिसंबर, 2017 को न्यायिक जवाबदेही और सुधार अभियान (सीजेएआर) द्वारा दायर एक याचिका को अवमाननापूर्ण करार देते हुए खारिज कर दिया था और याचिकाकर्ता को छह सप्ताह के भीतर रजिस्ट्री में 25 लाख रुपये जमा करने का आदेश दिया था. इसने कहा था कि यह राशि सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (एससीबीए) के अधिवक्ता कल्याण कोष में ट्रांसफर की जाएगी.
न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति सी टी रविकुमार की खंडपीठ ने मंगलवार को कहा कि दिसम्बर 2017 का आदेश तीन-सदस्यीय पीठ द्वारा दिया गया था और उचित यह होगा कि सीजेएआर की प्रार्थना पर तीन-सदस्यीय पीठ ही विचार करे.
सीजेएआर की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने शीर्ष अदालत में कहा कि यह संगठन वास्तव में सेवानिवृत्त न्यायाधीशों, वरिष्ठ अधविक्ताओं और अन्य लोगों का एक मंच है तथा जुर्माना कई व्यक्तियों पर एक प्रकार का धब्बा साबित होगा.
उन्होंने कहा, 'हमें इस बात को लेकर कोई समस्या नहीं है कि पैसा कहां जाता है और न ही हम पैसे वापस चाह रहे हैं.' उन्होंने आगे कहा कि वह मामले के गुण-दोष पर प्रश्न नहीं खड़े कर रहे हैं.
धवन ने कहा कि प्रार्थी केवल इतना चाहता है कि राशि को जुर्माने के रूप में नहीं, बल्कि चंदा करार दिया जाए. एटॉर्नी जनरल के. के. वेणुगोपाल ने कहा कि प्रार्थी का मानना है कि अदालत की ओर से मांगी गई राशि जुर्माने की प्रकृति की है और इसलिए वह चाहता है कि पहले ही जमा करा दी गयी राशि को चंदा समझा जाए.
वेणुगोपाल ने कहा, 'हम, सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन, के सदस्य यह राशि प्राप्त करके बहुत आह्लादित होंगे, और इसलिए, मुझे व्यक्तिगत तौर पर इस राशि को चंदा करार दिये जाने में कोई आपत्ति नहीं है.'
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