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'जल्दबाजी' में नियुक्ति पर SC नाराज, कहा- 'पसंदीदा के चयन' का स्पष्ट संकेत

उच्चतम न्यायालय ने रिक्त पद की भर्ती न होने और राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण (एनसीएलएटी) के कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में न्यायमूर्ति एम वेणुगोपाल की नियुक्ति में जल्दबाजी पर नाराजगी जताई.

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Published : Sep 15, 2021, 4:52 PM IST

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण (एनसीएलएटी) के कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में न्यायमूर्ति एम वेणुगोपाल की नियुक्ति में 'जल्दबाजी' और देश भर के न्यायाधिकरणों में रिक्त पद नहीं भरे जाने पर नाराजगी व्यक्त की है.

कोर्ट ने कहा कि जिस तरह से नियुक्तियां की गई हैं, वे 'अपनी पसंद के लोगों का चयन' किए जाने का स्पष्ट संकेत देती हैं.

न्यायालय ने केंद्र को दो सप्ताह के भीतर उन न्यायाधिकरणों में नियुक्तियां करने का निर्देश दिया है, जहां पीठासीन अधिकारियों के साथ- साथ न्यायिक एवं तकनीकी सदस्यों की भारी कमी है. न्यायालय ने केंद्र से यह भी कहा कि यदि अनुशंसित सूची में शामिल व्यक्तियों को नियुक्त नहीं किया जाता है, तो वह इसका कारण बताए.

प्रधान न्यायाधीश एन वी रमण, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव की पीठ ने कहा कि न्यायाधिकरणों में रिक्तियों के कारण स्थिति 'दयनीय' है और वादियों को अधर में नहीं छोड़ा जा सकता.

पीठ ने अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल से कहा, 'जारी किए गए नियुक्ति पत्र इस ओर स्पष्ट इशारा करते हैं कि उन्होंने चयन सूची से अपनी पसंद से तीन लोगों और प्रतीक्षा सूची से अन्य लोगों को चुना तथा चयन सूची में अन्य नामों को नजरअंदाज किया. सेवा कानून में आप चयन सूची को नजरअंदाज करके प्रतीक्षा सूची से नियुक्ति नहीं कर सकते. यह किस प्रकार का चयन एवं नियुक्ति है?'

वेणुगोपाल ने पीठ को आश्वासन दिया कि केंद्र खोज और चयन समिति द्वारा अनुशंसित व्यक्तियों की सूची से दो सप्ताह में न्यायाधिकरणों में नियुक्तियां करेगा.

वरिष्ठ वकील अरविंद दातार ने कहा कि आयकर अपीलीय अधिकरण (आईटीएटी) के लिए खोज एवं चयन समिति ने 41 लोगों की सिफारिश की, लेकिन केवल 13 लोगों को चुना गया और यह चयन किस आधार किया गया, यह 'हम नहीं जानते'.

पीठ ने कहा, 'यह कोई नई बात नहीं है. हर बार की यही कहानी है.'

पढ़ें :- न्यायाधीशों की नियुक्तियों में आ रही कमी

प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों ने कोविड-19 के दौरान नामों का चयन करने के लिए व्यापक प्रक्रिया का पालन किया और सभी प्रयास व्यर्थ जा रहे हैं.

उन्होंने कहा, 'हमने देशभर की यात्रा की. हमने इसमें बहुत समय दिया. कोविड-19 के दौरान आपकी सरकार ने हमसे जल्द से जल्द साक्षात्कार लेने का अनुरोध किया. हमने समय व्यर्थ नहीं किया.'

प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि ताजा नियुक्ति के तहत सदस्यों का कार्यकाल केवल एक साल होगा और उन्होंने कहा, 'एक साल के लिए कौन सा न्यायाधीश यह काम करेगा?'

चयन समिति द्वारा अनुशंसित नामों को अस्वीकार किए जाने के मामले पर वेणुगोपाल ने कहा कि सरकार के पास सिफारिशों को स्वीकार नहीं करने का अधिकार है.

प्रधान न्यायाधीश ने कहा, 'हम एक लोकतांत्रिक देश हैं, जहां कानून के शासन का पालन किया जाता है और हम संविधान के तहत काम कर रहे हैं. आप यह नहीं कह सकते कि मैं स्वीकार नहीं करता.'

पीठ ने कहा, 'यदि सरकार को ही अंतिम फैसला करना है, तो प्रक्रिया की शुचिता क्या है? चयन समित नामों को चुनने की लिए एक विस्तृत प्रक्रिया का पालन करती है.'

विभिन्न प्रमुख न्यायाधिकरणों और अपीली न्यायाधिकरणों में लगभग 250 पद रिक्त हैं. शीर्ष अदालत न्यायाधिकरणों में रिक्तियों संबंधी याचिकाओं और अर्ध न्यायिक निकायों को नियंत्रित करने वाले नए कानून संबंधी मामले से जुड़ी याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी.

एम वेणुगोपाल की नियुक्ति को लेकर मांग जवाब

प्रधान न्यायाधीश एन वी रमना की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि बृहस्पतिवार को इस मुद्दे पर सुनवाई होगी और अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल से इस मुद्दे पर जवाब देने के लिए भी कहा.

पीठ में न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव भी शामिल हैं.

पीठ ने वेणुगोपाल से कहा, 'हम आपको कल पेश होने के लिए पहले से बता रहे हैं, यह मामला एनसीएलएटी के अध्यक्ष न्यायमूर्ति चीमा की समयपूर्व सेवानिवृत्ति के बारे में है. ऐसा लगता है कि उन्हें हटा दिया गया है. इसमें कहा गया है कि एनसीएलएटी के अध्यक्ष श्री चीमा की सेवानिवृत्ति से 10 दिन पहले श्री वेणुगोपाल को नियुक्त किया गया. हमें नहीं पता कि यह कैसे हो रहा है.'

केंद्र ने शनिवार को राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण (एनसीएलटी) में आठ न्यायिक सदस्यों और 10 तकनीकी सदस्यों की नियुक्ति के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी.

न्यायमूर्ति एम वेणुगोपाल को एनसीएलएटी का कार्यवाहक अध्यक्ष बनाया गया है. अपीलीय न्यायाधिकरण डेढ़ साल से अधिक समय से स्थायी प्रमुख के बिना है.

पिछले सप्ताह शीर्ष अदालत ने यह कहते हुए चिंता जताई थी कि केंद्र अर्ध-न्यायिक निकायों में अधिकारियों की नियुक्ति नहीं करके न्यायाधिकरणों को 'निष्क्रिय' कर रहा है.

(पीटीआई-भाषा)

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण (एनसीएलएटी) के कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में न्यायमूर्ति एम वेणुगोपाल की नियुक्ति में 'जल्दबाजी' और देश भर के न्यायाधिकरणों में रिक्त पद नहीं भरे जाने पर नाराजगी व्यक्त की है.

कोर्ट ने कहा कि जिस तरह से नियुक्तियां की गई हैं, वे 'अपनी पसंद के लोगों का चयन' किए जाने का स्पष्ट संकेत देती हैं.

न्यायालय ने केंद्र को दो सप्ताह के भीतर उन न्यायाधिकरणों में नियुक्तियां करने का निर्देश दिया है, जहां पीठासीन अधिकारियों के साथ- साथ न्यायिक एवं तकनीकी सदस्यों की भारी कमी है. न्यायालय ने केंद्र से यह भी कहा कि यदि अनुशंसित सूची में शामिल व्यक्तियों को नियुक्त नहीं किया जाता है, तो वह इसका कारण बताए.

प्रधान न्यायाधीश एन वी रमण, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव की पीठ ने कहा कि न्यायाधिकरणों में रिक्तियों के कारण स्थिति 'दयनीय' है और वादियों को अधर में नहीं छोड़ा जा सकता.

पीठ ने अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल से कहा, 'जारी किए गए नियुक्ति पत्र इस ओर स्पष्ट इशारा करते हैं कि उन्होंने चयन सूची से अपनी पसंद से तीन लोगों और प्रतीक्षा सूची से अन्य लोगों को चुना तथा चयन सूची में अन्य नामों को नजरअंदाज किया. सेवा कानून में आप चयन सूची को नजरअंदाज करके प्रतीक्षा सूची से नियुक्ति नहीं कर सकते. यह किस प्रकार का चयन एवं नियुक्ति है?'

वेणुगोपाल ने पीठ को आश्वासन दिया कि केंद्र खोज और चयन समिति द्वारा अनुशंसित व्यक्तियों की सूची से दो सप्ताह में न्यायाधिकरणों में नियुक्तियां करेगा.

वरिष्ठ वकील अरविंद दातार ने कहा कि आयकर अपीलीय अधिकरण (आईटीएटी) के लिए खोज एवं चयन समिति ने 41 लोगों की सिफारिश की, लेकिन केवल 13 लोगों को चुना गया और यह चयन किस आधार किया गया, यह 'हम नहीं जानते'.

पीठ ने कहा, 'यह कोई नई बात नहीं है. हर बार की यही कहानी है.'

पढ़ें :- न्यायाधीशों की नियुक्तियों में आ रही कमी

प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों ने कोविड-19 के दौरान नामों का चयन करने के लिए व्यापक प्रक्रिया का पालन किया और सभी प्रयास व्यर्थ जा रहे हैं.

उन्होंने कहा, 'हमने देशभर की यात्रा की. हमने इसमें बहुत समय दिया. कोविड-19 के दौरान आपकी सरकार ने हमसे जल्द से जल्द साक्षात्कार लेने का अनुरोध किया. हमने समय व्यर्थ नहीं किया.'

प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि ताजा नियुक्ति के तहत सदस्यों का कार्यकाल केवल एक साल होगा और उन्होंने कहा, 'एक साल के लिए कौन सा न्यायाधीश यह काम करेगा?'

चयन समिति द्वारा अनुशंसित नामों को अस्वीकार किए जाने के मामले पर वेणुगोपाल ने कहा कि सरकार के पास सिफारिशों को स्वीकार नहीं करने का अधिकार है.

प्रधान न्यायाधीश ने कहा, 'हम एक लोकतांत्रिक देश हैं, जहां कानून के शासन का पालन किया जाता है और हम संविधान के तहत काम कर रहे हैं. आप यह नहीं कह सकते कि मैं स्वीकार नहीं करता.'

पीठ ने कहा, 'यदि सरकार को ही अंतिम फैसला करना है, तो प्रक्रिया की शुचिता क्या है? चयन समित नामों को चुनने की लिए एक विस्तृत प्रक्रिया का पालन करती है.'

विभिन्न प्रमुख न्यायाधिकरणों और अपीली न्यायाधिकरणों में लगभग 250 पद रिक्त हैं. शीर्ष अदालत न्यायाधिकरणों में रिक्तियों संबंधी याचिकाओं और अर्ध न्यायिक निकायों को नियंत्रित करने वाले नए कानून संबंधी मामले से जुड़ी याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी.

एम वेणुगोपाल की नियुक्ति को लेकर मांग जवाब

प्रधान न्यायाधीश एन वी रमना की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि बृहस्पतिवार को इस मुद्दे पर सुनवाई होगी और अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल से इस मुद्दे पर जवाब देने के लिए भी कहा.

पीठ में न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव भी शामिल हैं.

पीठ ने वेणुगोपाल से कहा, 'हम आपको कल पेश होने के लिए पहले से बता रहे हैं, यह मामला एनसीएलएटी के अध्यक्ष न्यायमूर्ति चीमा की समयपूर्व सेवानिवृत्ति के बारे में है. ऐसा लगता है कि उन्हें हटा दिया गया है. इसमें कहा गया है कि एनसीएलएटी के अध्यक्ष श्री चीमा की सेवानिवृत्ति से 10 दिन पहले श्री वेणुगोपाल को नियुक्त किया गया. हमें नहीं पता कि यह कैसे हो रहा है.'

केंद्र ने शनिवार को राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण (एनसीएलटी) में आठ न्यायिक सदस्यों और 10 तकनीकी सदस्यों की नियुक्ति के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी.

न्यायमूर्ति एम वेणुगोपाल को एनसीएलएटी का कार्यवाहक अध्यक्ष बनाया गया है. अपीलीय न्यायाधिकरण डेढ़ साल से अधिक समय से स्थायी प्रमुख के बिना है.

पिछले सप्ताह शीर्ष अदालत ने यह कहते हुए चिंता जताई थी कि केंद्र अर्ध-न्यायिक निकायों में अधिकारियों की नियुक्ति नहीं करके न्यायाधिकरणों को 'निष्क्रिय' कर रहा है.

(पीटीआई-भाषा)

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