शिमला: अकसर राजभवन और सरकार के बीच कई मसलों पर टकराव की खबरें सुनने को मिलती रहती हैं. बीते कुछ समय में भी तमिलनाडु से लेकर दिल्ली और पश्चिम बंगाल तक राज्य सरकार और राज्यपाल आमने-सामने आए हैं. हिमाचल भी इसका अपवाद नहीं है. हिमाचल प्रदेश में भी दो फैसलों पर सरकार और राजभवन के बीच टकराव की स्थिति पैदा हुई है.
सुख आश्रय योजना- पहला मामला मौजूदा सुखविंदर सिंह सरकार के ड्रीम प्रोजेक्ट से जुड़ा है. हिमाचल में सुखविंदर सिंह सरकार ने अनाथ बच्चों की सहायता के लिए मुख्यमंत्री सुख आश्रय कोष योजना लाई थी. इसका बिल विधानसभा में लाया गया था, लेकिन अब इस मामले में पेंच फंस गया है. राजभवन ने इस बिल को लेकर कुछ आपत्तियां जताई हैं. ऐसे में राज्य सरकार को बिल को राष्ट्रपति के पास भेजना पड़ा है. वहीं, नियमों के तहत राजभवन ने भी बिल को केंद्रीय गृह मंत्रालय को भेजा है.
लोकतंत्र प्रहरी सम्मान योजना- दूसरा मामला पूर्व की भाजपा सरकार के उस बिल से जुड़ा है, जिसके तहत विधानसभा में बिल पास करके हिमाचल में इमरजेंसी के दौरान जेल गए नेताओं को सम्मान राशि दी जा रही थी. कांग्रेस की सुखविंदर सरकार ने सत्ता में आने के बाद लोकतंत्र प्रहरी सम्मान बिल को निरस्त कर दिया था. इसके बाद बिल को राज्यपाल के पास भेजा गया था. राजभवन से इस पर भी आपत्ति आई है. ऐसे में दोनों बिलों को लेकर पेंच फंस गया है. अब इन मामलों में राजभवन और राज्य सरकार के बीच टकराव देखने को मिल सकता है.
राजभवन ने केंद्रीय गृह मंत्रालय को भेजा बिल- सत्ता संभालने के बाद सीएम सुखविंदर सिंह ने अनाथ बच्चों के लिए सुखाश्रय कोष शुरू किया था. 100 करोड़ रुपए की आरंभिक राशि से ये कोष आरंभ किया गया. बाद में विधानसभा में इसे बिल के रूप में पारित किया गया. कानूनी औपचारिकताओं को पूरा करने के लिए सदन में पारित बिल राजभवन की मंजूरी के लिए जाता है. उसके बाद विधेयक कानून की शक्ल लेता है और लागू माना जाता है. अब राजभवन ने इस बिल पर लॉ सेक्रेटरी की सलाह ली और इसे केंद्रीय गृह मंत्रालय के पास भेजा है. चूंकि कानून व नियमों के अनुसार ऐसे मामलों को गृह मंत्रालय देखता है. लिहाजा अब केंद्रीय गृह मंत्रालय इस बिल को लेकर जो-जो विभाग जुड़े हैं, उनसे सलाह करेगा. बाद में केंद्र से इसका जवाब आएगा.
सरकार ने राष्ट्रपति के पास भेजा बिल- वहीं, इस मामले में राज्य सरकार की भूमिका पर भी जानकारी देना जरूरी है उस जानकारी से पहले ये बता दें कि बजट सत्र में सुखविंदर सिंह सरकार ने पांच अप्रैल 2023 को मुख्यमंत्री सुखाश्रय विधेयक सदन में रखा था. विपक्षी दल भाजपा की आपत्तियों के बावजूद इस बिल को 6 अप्रैल 2023 को पारित किया गया था. विपक्ष ने इस बिल में जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के प्रावधान शामिल करने पर ऐतराज जताया था. सुख आश्रय बिल अनाथ बच्चों की सहायता के लिए है और इसमें जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के प्रावधान भी शामिल हैं. ऐसे में एक्ट के चुनिंदा प्रावधानों की वजह से हिमाचल सरकार के लॉ डिपार्टमेंट ने सरकार को सलाह दी कि इस मसले पर राष्ट्रपति की मंजूरी ली जाए. लॉ डिपार्टमेंट का कहना है कि सुख आश्रय योजना को लेकर देश के संविधान के अनुच्छेद-207 के तहत हिमाचल विधानसभा को कानून बनाने का अधिकार है, लेकिन बिल को राष्ट्रपति की सहमति के लिए भेजना पड़ता है. यही कारण है कि बिल को राष्ट्रपति के पास भेजा गया है.
आपत्ति क्या है ?- इसी मामले में राजभवन ने बिल को केंद्रीय गृह मंत्रालय को भेज दिया है. यही नहीं, राजभवन से औपचारिक रूप से इसकी सूचना लॉ डिपार्टमेंट के साथ ही सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग को भी दे दी गई है. राजभवन ने कहा है कि राष्ट्रपति की स्वीकृति आने तक इस विधेयक को रिजर्व किया जा रहा है. चूंकि यह बिल एक तरह का मनी बिल है और इसके कानून का रूप लेने पर राज्य सरकार को सालाना 272 करोड़ रुपए अनाथ बच्चों पर खर्च करने हैं, लिहाजा इस बिल का नाम हिमाचल प्रदेश सुखाश्रय (राज्य के बालकों की देखरेख, संरक्षण और आत्मनिर्भरता) विधेयक 2023 रखा गया. अब इस विधेयक के कानून बनने को राष्ट्रपति भवन के अगले कदम तक इंतजार करना होगा.
लोकतंत्र प्रहरी सम्मान बिल को लेकर राजभवन की आपत्ति- पूर्व की जयराम सरकार इमरजेंसी में जेल जाने वाले नेताओं के लिए लोकतंत्र प्रहरी सम्मान बिल लाई थी. सत्ता में आने पर कांग्रेस सरकार ने इसे निरस्त कर दिया. राजभवन ने इस मामले में सवाल किया है कि वर्तमान में इसकी स्थिति क्या है? बिल में दर्ज है कि ये पहली अप्रैल 2023 से लागू हो गया है. वहीं, एक तथ्य ये है कि सदन से ये बिल उक्त तिथि के बाद पारित किया गया. राजभवन ने सरकार से ये भी पूछा है कि जिस मकसद के तहत इस बिल को लाया गया और कानून बनाया गया था, क्या वो मकसद पूरा हो गया है? सुखविंदर सिंह सरकार ने अपने पहले बजट सत्र में 3 अप्रैल 2023 को जयराम सरकार के समय लाए गए बिल को रिपील कर दिया था. नियमों के अनुसार सदन से रिपील हुए बिल को गवर्नर की मंजूरी के लिए भेजा जाता है और फिर मंजूरी के बाद नोटिफिकेशन जारी होती है. अब सरकार को राजभवन की आपत्तियों का जवाब देना है. उसके बाद राजभवन अगला कदम उठाएगा.
गौरतलब है कि इससे पहले भी खेल विधेयक को लेकर वीरभद्र सिंह सरकार और राजभवन में तीखा टकराव हो चुका है. कानून के जानकार विक्रांत ठाकुर के मुताबिक सदन में पारित किसी भी बिल को लेकर राजभवन सवाल पूछ सकता है अथवा आपत्ति जता सकता है. चूंकि सुख आश्रय बिल में कुछ प्रावधान ऐसे हैं जिनमें केंद्रीय गृह मंत्रालय की भी भूमिका है, लिहाजा ऐसे केस में बिल राष्ट्रपति को भेजा जाता है. ये नियमित प्रक्रिया है. बिल को लेकर सरकार और राजभवन के बीच आपत्तियां आती है. ये एक नियमित प्रक्रिया का ही हिस्सा है. अब देखना होगा कि हिमाचल में बिलों पर सरकार और राजभवन के बीच टकराव कहां तक जाता है.
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