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हिमाचल हाइकोर्ट का आदेश: 'CPS को ना मंत्रियों वाली सुविधाएं मिलेगी, ना ही मंत्री की तरह काम करेंगे' - Himachal High Court

Himachal High Court Orders CPS will not get minister facilities: हिमाचल प्रदेश में सीपीएस को किसी मंत्री की तरह सुविधाएं नहीं मिलेंगी और ना ही सीपीएस मंत्री की तरह काम करेंगे. ये बड़ा फैसला हिमाचल हाइकोर्ट ने सुनाया है. पूरा मामला जानने के लिए पढ़ें

Himachal High Court
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Jan 3, 2024, 5:55 PM IST

Updated : Jan 3, 2024, 7:11 PM IST

शिमला: हिमाचल प्रदेश हाइकोर्ट ने सीपीएस यानी मुख्य संसदीय सचिव नियुक्त करने के मामले में बड़ा फैसला सुनाया है. हाईकोर्ट ने साफ किया है कि सीपीएस को ना तो मंत्रियों वाली सुविधाएं मिलेंगी और ना ही वो मंत्रियों की तरह काम करेंगे. हिमाचल हाइकोर्ट ने बुधवार को इस मामले में अंतरिम आदेश जारी किए हैं. इस मामले की अगली सुनवाई 12 मार्च को होगी.

गौरतलब है कि हिमाचल में दिसंबर 2022 में कांग्रेस की सरकार बनी थी. जिसके बाद जनवरी 2023 में सुक्खू सरकार ने 6 विधायकों को सीपीएस बना दिए. जिसके बाद भाजपी विधायक सतपाल सत्ती समेत अन्य विधायकों ने हाइकोर्ट का रुख किया था और सीपीएस की नियुक्ति पर सवाल उठाए थे. दोनों पक्षों की दलील के बाद हाइकोर्ट ने आदेश पारित किया कि सीपीएस ना तो मंत्री की तरह काम करेंगे और ना ही उन्हें मंत्रियों वाली सुविधाएं मिलेंगी.

हाइकोर्ट में चल रही थी सुनवाई- बीते दो दिन से हाइकोर्ट में सीपीएस की नियुक्ति को चैलेंज करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई हो रही थी. मामले की सुनवाई जस्टिस विवेक ठाकुर और जस्टिस संदीप शर्मा की बैंच ने की है. बीजेपी विधायकों की ओर से वकील सत्यपाल जैन ने पैरवी की. वहीं सरकार की ओर से पूर्व एडवोकेट जनरल श्रवण डोगरा ने इस मामले में सरकार की तरफ से दलीलें पेश की. सत्यपाल जैन ने बताया कि अब हिमाचल में कोई भी मुख्य संसदीय सचिव (सीपीएस) मंत्रियों जैसा काम नहीं कर पाएगा.

"हाइकोर्ट ने सीपीएस को मंत्रियों के दर्जे पर काम और सुविधा लेने पर रोक लगाई है. अब हिमाचल के 6 सीपीएस को मंत्री की सुविधाएं नहीं मिलेंगी. इन्हें अपनी सभी सुविधाओं को छोड़ना होगा. इस मामले की सुनवाई अब 12 मार्च को होगी." - सतपाल जैन, वरिष्ठ अधिवक्ता

बीजेपी नेता और वरिष्ठ अधिवक्ता सतपाल जैन ने बताया कि "हमने हाइकोर्ट में एक स्टे एप्लीकेशन दी गई थी. जिसमें सीपीएस के कार्यों पर रोक लगाने का निवेदन किया गया था जिसपर आज फैसला आया है. उन्होंने बताया कि हमने असम, मणिपुर और पंजाब की जजमेंट भी हाइकोर्ट में पेश की, जिसमें सीपीएस की नियुक्ति के खिलाफ फैसला सुनाया गया है"

"हमने अपनी याचिका में कहा कि सीपीएस का संविधान में कोई प्रावधान नहीं है. संविधान के आर्टिकल 164 के अंतर्गत प्रदेश में 15% से ज्यादा मंत्री नहीं बनाए जा सकते हैं. इस हिसाब से हिमाचल में कुल 12 मंत्री बन सकते हैं. पर सीपीएस बनाने के बाद ये संख्या 17-18 पहुंचती है." - सतपाल जैन, वरिष्ठ अधिवक्ता

कौन होता है सीपीएस या मुख्य संसदीय सचिव- सरकारों द्वारा पार्टी के ज्यादा से ज्यादा विधायकों को एडजस्ट करने के लिए सीपीएस बनाया जाता है. ये पद मंत्रियों के साथ जुड़ जाता है, जिसे संबंधित विभाग के मंत्री का लेफ्टिनेंट कह सकते हैं. हालांकि सीपीएस को मंत्री जैसी पावर नहीं होती. वो ना तो कोई फैसला ले सकता है और ना किसी फाइल पर दस्तखत कर सकता है. लेकिन एक सीपीएस को मंत्री जैसी सुविधाएं मिलती हैं. इसीलिये राज्य सरकारें नाखुश, करीबी या ऐसे विधायकों को सीपीएस बना देती है, जो मंत्रीमंडल में एडजस्ट नहीं हो पाए.

सुक्खू सरकार ने बनाए हैं 6 सीपीएस
सुक्खू सरकार ने बनाए हैं 6 सीपीएस

हिमाचल सरकार ने बनाए 6 सीपीएस- 8 जनवरी 2023 में मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने अपनी कैबिनेट के गठन से पहले 6 विधायकों को सीपीएस बनाया था. जिसमें सुंदर सिंह ठाकुर, मोहन लाल ब्राक्टा, किशेरी लाल, रामकुमार चौधरी, आशीष बुटेल और संजय अवस्थी शामिल हैं. वैसे हिमाचल ही नहीं देश के कई राज्यों की सरकारों ने मुख्य संसदीय सचिव बनाए हुए हैं और मामले इसी तरह अदालतों में चल रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट में भी सीपीएस से जुड़े मामले की सुनवाई चल रही है.

याचिकाकर्ताओं की दलील- दरअसल बीजेपी विधायकों समेत जितनी भी याचिकाएं सीपीएस की नियुक्ति के खिलाफ हाइकोर्ट में दायर हुई. उसमें इनकी नियुक्ति को असंवैधानिक और प्रदेश पर वित्तीय बोझ बताया गया. याचिका में सीपीएस की नियुक्ति कानून के प्रावधान के उलट बताया गया. याचिकाकर्ताओं की तरफ से कहा गया कि सीपीएस मंत्रियों के बराबर वेतन और सुविधाएं लेते हैं. जिसपर हाइकोर्ट ने आदेश दिया है कि सीपीएस को ना तो मंत्रियों वाली सुविधाएं मिलेंगी और ना ही मंत्रियों की तरह काम करेंगे.

ये भी पढ़ें: IPS संजय कुंडू को हिमाचल डीजीपी के पद से हटाने वाले हाइकोर्ट के निर्देश पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई रोक

शिमला: हिमाचल प्रदेश हाइकोर्ट ने सीपीएस यानी मुख्य संसदीय सचिव नियुक्त करने के मामले में बड़ा फैसला सुनाया है. हाईकोर्ट ने साफ किया है कि सीपीएस को ना तो मंत्रियों वाली सुविधाएं मिलेंगी और ना ही वो मंत्रियों की तरह काम करेंगे. हिमाचल हाइकोर्ट ने बुधवार को इस मामले में अंतरिम आदेश जारी किए हैं. इस मामले की अगली सुनवाई 12 मार्च को होगी.

गौरतलब है कि हिमाचल में दिसंबर 2022 में कांग्रेस की सरकार बनी थी. जिसके बाद जनवरी 2023 में सुक्खू सरकार ने 6 विधायकों को सीपीएस बना दिए. जिसके बाद भाजपी विधायक सतपाल सत्ती समेत अन्य विधायकों ने हाइकोर्ट का रुख किया था और सीपीएस की नियुक्ति पर सवाल उठाए थे. दोनों पक्षों की दलील के बाद हाइकोर्ट ने आदेश पारित किया कि सीपीएस ना तो मंत्री की तरह काम करेंगे और ना ही उन्हें मंत्रियों वाली सुविधाएं मिलेंगी.

हाइकोर्ट में चल रही थी सुनवाई- बीते दो दिन से हाइकोर्ट में सीपीएस की नियुक्ति को चैलेंज करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई हो रही थी. मामले की सुनवाई जस्टिस विवेक ठाकुर और जस्टिस संदीप शर्मा की बैंच ने की है. बीजेपी विधायकों की ओर से वकील सत्यपाल जैन ने पैरवी की. वहीं सरकार की ओर से पूर्व एडवोकेट जनरल श्रवण डोगरा ने इस मामले में सरकार की तरफ से दलीलें पेश की. सत्यपाल जैन ने बताया कि अब हिमाचल में कोई भी मुख्य संसदीय सचिव (सीपीएस) मंत्रियों जैसा काम नहीं कर पाएगा.

"हाइकोर्ट ने सीपीएस को मंत्रियों के दर्जे पर काम और सुविधा लेने पर रोक लगाई है. अब हिमाचल के 6 सीपीएस को मंत्री की सुविधाएं नहीं मिलेंगी. इन्हें अपनी सभी सुविधाओं को छोड़ना होगा. इस मामले की सुनवाई अब 12 मार्च को होगी." - सतपाल जैन, वरिष्ठ अधिवक्ता

बीजेपी नेता और वरिष्ठ अधिवक्ता सतपाल जैन ने बताया कि "हमने हाइकोर्ट में एक स्टे एप्लीकेशन दी गई थी. जिसमें सीपीएस के कार्यों पर रोक लगाने का निवेदन किया गया था जिसपर आज फैसला आया है. उन्होंने बताया कि हमने असम, मणिपुर और पंजाब की जजमेंट भी हाइकोर्ट में पेश की, जिसमें सीपीएस की नियुक्ति के खिलाफ फैसला सुनाया गया है"

"हमने अपनी याचिका में कहा कि सीपीएस का संविधान में कोई प्रावधान नहीं है. संविधान के आर्टिकल 164 के अंतर्गत प्रदेश में 15% से ज्यादा मंत्री नहीं बनाए जा सकते हैं. इस हिसाब से हिमाचल में कुल 12 मंत्री बन सकते हैं. पर सीपीएस बनाने के बाद ये संख्या 17-18 पहुंचती है." - सतपाल जैन, वरिष्ठ अधिवक्ता

कौन होता है सीपीएस या मुख्य संसदीय सचिव- सरकारों द्वारा पार्टी के ज्यादा से ज्यादा विधायकों को एडजस्ट करने के लिए सीपीएस बनाया जाता है. ये पद मंत्रियों के साथ जुड़ जाता है, जिसे संबंधित विभाग के मंत्री का लेफ्टिनेंट कह सकते हैं. हालांकि सीपीएस को मंत्री जैसी पावर नहीं होती. वो ना तो कोई फैसला ले सकता है और ना किसी फाइल पर दस्तखत कर सकता है. लेकिन एक सीपीएस को मंत्री जैसी सुविधाएं मिलती हैं. इसीलिये राज्य सरकारें नाखुश, करीबी या ऐसे विधायकों को सीपीएस बना देती है, जो मंत्रीमंडल में एडजस्ट नहीं हो पाए.

सुक्खू सरकार ने बनाए हैं 6 सीपीएस
सुक्खू सरकार ने बनाए हैं 6 सीपीएस

हिमाचल सरकार ने बनाए 6 सीपीएस- 8 जनवरी 2023 में मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने अपनी कैबिनेट के गठन से पहले 6 विधायकों को सीपीएस बनाया था. जिसमें सुंदर सिंह ठाकुर, मोहन लाल ब्राक्टा, किशेरी लाल, रामकुमार चौधरी, आशीष बुटेल और संजय अवस्थी शामिल हैं. वैसे हिमाचल ही नहीं देश के कई राज्यों की सरकारों ने मुख्य संसदीय सचिव बनाए हुए हैं और मामले इसी तरह अदालतों में चल रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट में भी सीपीएस से जुड़े मामले की सुनवाई चल रही है.

याचिकाकर्ताओं की दलील- दरअसल बीजेपी विधायकों समेत जितनी भी याचिकाएं सीपीएस की नियुक्ति के खिलाफ हाइकोर्ट में दायर हुई. उसमें इनकी नियुक्ति को असंवैधानिक और प्रदेश पर वित्तीय बोझ बताया गया. याचिका में सीपीएस की नियुक्ति कानून के प्रावधान के उलट बताया गया. याचिकाकर्ताओं की तरफ से कहा गया कि सीपीएस मंत्रियों के बराबर वेतन और सुविधाएं लेते हैं. जिसपर हाइकोर्ट ने आदेश दिया है कि सीपीएस को ना तो मंत्रियों वाली सुविधाएं मिलेंगी और ना ही मंत्रियों की तरह काम करेंगे.

ये भी पढ़ें: IPS संजय कुंडू को हिमाचल डीजीपी के पद से हटाने वाले हाइकोर्ट के निर्देश पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई रोक

Last Updated : Jan 3, 2024, 7:11 PM IST
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