हैदराबाद : मंगलवार 12 अक्टूबर को दिल्ली में वीर 'सावरकर: हू कुड हैव प्रिवेंटेड पार्टिशन' नाम की किताब का विमोचन हुआ. इस कार्यक्रम में केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह और संघ प्रमुख मोहन भागवत भी मौजूद थे. दोनों ने सावरकर को लेकर कुछ ऐसे बयान दिए जिसके बाद फिलहाल सियासत का पहिया फिर से सावरकर के इर्द गिर्द ही घूम रहा है. गांधी और सावरकर को लेकर दिए गए राजनाथ सिंह के बयान की सच्चाई क्या है ? सावरकर पर क्यों छिड़ जाता है सियासी संग्राम ? इन सवालों के जवाब से पहले जानिये कि
राजनाथ सिंह ने क्या कहा ?
"विचारधारा के चश्मे से देखकर विनायक दामोदर सावरकर के योगदान की उपेक्षा करना और उन्हें अपमानित करना क्षमा योग्य और न्यायसंगत नहीं है, सावरकर के खिलाफ झूठ फैलाया गया, बार-बार ये बात कही गई कि उन्होंने अंग्रेजी सरकार के सामने अनेको दया याचिका दायर की.
सावरकर: हू कुड हैव प्रिवेंटेड पार्टिशन पुस्तक के विमोचन कार्यक्रम में राजनाथ सिंह और मोहन भागवत राजनाथ सिंह ने कहा कि सच्चाई ये है कि उन्होंने दया याचिका खुद को बचाने के लिए नहीं की थी, ये एक कैदी का अधिकार होता है. महात्मा गांधी के कहने पर सावरकर ने दया याचिका दी थी. महात्मा गांधी ने कहा था कि सावरकर जी को रिहा किया जाना चाहिए, जैसे हम शांतिपूर्ण तरीके से आजादी हासिल करने के लिए आंदोलन चला रहे हैं वैसे ही सावरकर जी भी आंदोलन चलाएंगे"
मोहन भागवत ने क्या कहा ?
"आजादी के बाद से ही वीर सावरकर को बदनाम करने की मुहिम चलाई जा रही है और ऐसा करने वाले लोग सावरकर को ठीक से जानते नहीं हैं" मोहन भागवत ने आरोप लगाया कि आजादी के बाद संघ और वीर सावरकर को बदनाम करने की मुहिम तेजी से चलाई गई. वीर सावरकर को सच्चा राष्ट्रवादी बताते हुए मोहन भागवत ने कहा कि आज उनकी सारी भविष्यवाणियां सच साबित हो रही हैं.
राजनाथ सिंह और मोहन भागवत ने सावरकर को लेकर कही बड़ी बातें कौन से माफीनामे की बात कर रहे हैं राजनाथ सिंह ?बीजेपी जहां सावरकर के साथ खड़ी नजर आती है तो कांग्रेस इसके विरोध में झंडा बुलंद किए रहती है. जनवरी 2020 की शुरुआत में भोपाल में कांग्रेस सेवा दल का कार्यक्रम हुआ था जिसमें सावरकर को लेकर एक बुकलेट बांटी गई थी. जिसका शीर्षक था 'वीर सावरकर कितने वीर?' इस किताब में सावरकर को लेकर कई विवादित बातें लिखीं गई थी. इसमें गोडसे और सावरकर के रिश्तों पर आपत्तिजनक टिप्पणी से लेकर अल्पसंख्यकों को लेकर सावरकर की सोच पर सवाल उठाए गए थे.
इसी किताब के विमोचन के लिए गए थे राजनाथ सिंह और मोहन भागवत इसके अलावा इसमें वीर सावरकर के माफीनामे का भी जिक्र था. किताब में बताया गया था कि सावरकर ने जेल से बाहर आने के लिए अंग्रेजों से लिखित में माफी मांगी और आश्वासन दिया था कि वो दोबारा किसी राजनीतिक गतिविधि में शामिल नहीं होंगे. इस वक्त भी बीजेपी ने इसपर विरोध दर्ज किया था और कांग्रेस को आड़े हाथ लिया था जबकि कांग्रेस ने कहा था कि सावरकर ने अंग्रेजों से माफी मांगी थी ये जगजाहिर है. ये सब साहित्य है, जिसे कांग्रेस ने नहीं साहित्यकारों ने लिखा है.इसके बाद महाराष्ट्र कांग्रेस की मराठी पत्रिका शिदोरी के फरवरी अंक में सावरकार पर दो लेख छपे जिसमें एक एक का शीर्षक था 'स्वतंत्रतावीर नहीं, माफीवीर'. यह लेख मराठी की एक मासिक पत्रिका साम्य योग साधना से लिया गया था.
इस सवाल पर भारत सरकार ने क्या कहा था ?
सावरकर के माफी के मुद्दे ने तूल पकड़ा तो सवाल संसद में भी उठ गया. लोकसभा में सवाल पूछा गया कि क्या सावरकर ने सेल्युलर जेल में रहते हुए ब्रिटिश हुकुमत से माफी मांगी थी. जिसके जवाब में संस्कृति मंत्री प्रहलाद पटेल ने कहा था कि अंडमान-निकोबार प्रशासन के पास ऐसा कोई रिकॉर्ड नहीं है, जिसमें इस बात की पुष्टि हुई हो.
क्या सावरकर ने लिखा था माफीनामा ?साल 1910 में सावरकर को नासिक के कलेक्टर की हत्या में संलिप्त होने के आरोप में लंदन से गिरफ्तार किया गया था. जिसके बाद उनपर मुकदमा चला और उन्हें 50 साल की सजा सुनाई गई. अंग्रेजों ने सावरकर को उस वक्त अंडमान की जेल में भेज दिया था जिसे काले पानी की सजा कहा जाता था.सावरकर पर शोध करने वाले निरंजन तकले के मुताबिक "11 जुलाई 1911 को सावरकर अंडमान की सेल्युलर जेल ले जाए गए और सिर्फ डेढ महीने बाद 29 अगस्त को उन्होंने अपना पहला माफीनामा लिखा. इसके बाद 9 साल में 6 बार अंग्रेजी हुकूमत 6 बार माफीनामा भेजा गया. वो बताते हैं कि अपनी दया याचिका में सावरकर ने खुद को भारत की किसी जेल में भेजने की मांग की थी और इसके बदले वो किसी भी तरह से सरकार के लिए काम करने को तैयार थे."
क्या गांधी के कहने पर सावरकर ने लिखा ब्रिटिश हुकूमत को माफीनामा ? "सावरकर ने ये भी कहा था कि अंग्रेजों द्वारा उठाए गए कदमों से उनकी सेवैधानिक व्यवस्था में आस्था पैदा हुई है और उन्होंने अब हिंसा का रास्ता छोड़ दिया है. शायद इसी का परिणाम था कि काला पानी की सजा काटते हुए सावरकर को 30 और 31 मई 1919 को अपनी पत्नी और छोटे भाई से मिलने की इजाजत दी गई" बाद में सावरकर ने खुद बताया कि माफी मांगना उनकी रणनीति का हिस्सा था, जिसकी वजह से उन्हें जेल में कुछ रियायतें मिलीं.अपनी आत्मकथा में भी सावरकर ने लिखा कि "अगर मैंने जेल में हड़ताल की होती तो भारत चिट्ठी भेजने का मेरा अधिकार भी छीन लिया जाता"
सावरकर के भाई ने मांगी थी गांधी से मदद'सावरकर-एक भूले बिसरे अतीत की गूंज' में लेखकर विक्रम संपत ने एक किस्से का जिक्र किया है. जिसमें वीर सावरकर के भाई नारायण राव द्वारा महात्मा गांधी को लिखे तमाम पत्रों का जिक्र किया गया है. 18 जनवरी 1920 को अपने पहले पत्र में ब्रिटिश हुकूमत से माफी के तहत अपने भाइयों की रिहाई सुनिश्चित करने के लिए महात्मा गांधी से सलाह और मदद मांगी थी.
विनायक दामोदर सावरकर ने काटी थी काला पानी की सजा दरअसल विनायक दामोदर सावरकर के साथ उनके बड़े भाई को भी सजा हुई थी और दोनों सेल्युलर जेल में थे. उस दौरान सबसे छोटे भाई नारायण राव ने महात्मा गांधी को चिट्ठी लिखकर बताया था कि 17 जनवरी को मुझे सरकार की ओर से सूचना मिली कि रिहा किए गए कैदियों में सावरकर बंधुओं का नाम नहीं है. जिसपर नारायण राव ने महात्मा गांधी से सलाह मांगी थी कि वो आगे क्या करें. क्योंकि सावरकर बंधु करीब 10 साल की सजा काट चुके थे लेकिन राजनीतिक बंदियों की रिहाई की सूची में उनका नाम नहीं था.महात्मा गांधी ने नारायण राव की चिट्ठियों के जवाब में कहा था कि वो अपने स्तर पर भी इस मामले को उठा रहे हैं. महात्मा गांधी ने सलाह दी थी कि एक याचिका तैयार करें, जिसमें तथ्यों की जानकारी दी गई हो कि आपके भाइयों द्वारा किया गया अपराध पूरी तरह से राजनीतिक था. 26 मई 1920 को महात्मा गांधी ने यंग इंडिया में 'सावरकर बंधु' नाम से एक लेख लिखकर उनकी रिहाई की मांग की थी.
ये है सेल्युलर जेल, जहां होती थी काला पानी की सजा सावरकर और बीजेपीसावरकर का ना तो कभी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से कोई रिश्ता रहा और ना ही जनसंघ से लेकिन आज संघ में उनका नाम यदा-कदा गूंजता रहता है. सावरकर को भारत रत्न दिलाने की पहल भी की जा चुकी है, बीते महाराष्ट्र चुनाव के दौरान बीजेपी के घोषणापत्र में सावरकर को भारत रत्न की सिफारिश का जिक्र था. इससे पहले बीजेपी के साथ रही शिवसेना भी ऐसी ही मांग कर चुकी है. साल 2000 में तत्कालीन वाजपेयी सरकार ने भी राष्ट्रपति के आर नारायणन के पास सावरकर को भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान देने का प्रस्ताव भेजा था लेकिन स्वीकार नहीं हुआ.आज देश में बीजेपी की सरकार है और खुद प्रधानमंत्री नेरेंद्र मोदी सावरकर की जयंती पर ट्वीट करने से लेकर उन्हें श्रद्धांजलि तक देते हैं और फिर इसी रवायत को उनके मंत्रियों से लेकर संगठन तक निभाया जाता है. संघ प्रमुख मोहन भागवत भी वक्त-वक्त पर सावरकर का जिक्र छेड़ ही देते हैं.
अंडमान के एयरपोर्ट का नाम आज सावरकर के नाम पर है सावरकर बीजेपी की जरूरत है ?हिंदुत्व को लेकर सावरकर के विचार ही बीजेपी के आकर्षण की वजह कही जा सकती है. मौजूदा दौर में हिंदुत्व की झंडाबरदार बीजेपी का एजेंडा सावरकर की विचारधारा से मेल खाता है. करीब 10 साल की सजा काटकर सावरकर लौटे तो उन्होंने 'हिंदुत्व-हू इज़ हिंदू?' नाम की किताब लिखी. जिसमें उन्होंने पहली बार हिंदुत्व को एक राजनीतिक विचारधारा के तौर पर पेश किया.
संघ और जनसंघ से नाता ना होने के बावजूद भी बीजेपी के हैं सावरकर आरएसएस-आइकॉन्स ऑफ़ द इंडियन राइट लिखने वाले नीलांजन मुखोपाध्याय के मुताबिक सावरकर कहते थे कि इस देश का इंसान मूल रूप से हिंदू है. यहां का नागरिक वही हो सकता है जिसकी पितृ भूमि, मातृ भूमि और पुण्य भूमि यही हो.हिंदुत्व के मोर्चे पर बीजेपी और सावरकर एक साथ खड़े नजर आते हैं ऐसे में वो सावरकर के लिए भारत रत्न की मांग भी करते हैं और उनके विचारों को बढ़ावा देने की बात भी करती है. इसके अलावा कालापानी में बिताए सावरकर के दिनों को भी खूब प्रचारित किया जाता है. सावरकर को महान क्रांतिकारी और अंग्रेजों के खिलाफ झंडा बुलंद कर काला पानी की सजा काटने वाला बताया जाता है.
सावरकर के नाम का डाक टिकट कांग्रेस और सावरकर
बीजेपी और कांग्रेस देश की सियासत के दो ध्रुव हैं. ऐसे में बीजेपी और संघ सावरकर के साथ खड़ी दिखती है तो कांग्रेस उसके खिलाफ झंडा उठाए रहती है. 30 अक्टूबर 1948 को महात्मा गांधी की हत्या के बाद सावरकर की छवि सवालों में रही है. महात्मा गांधी की हत्या में शामिल लोगों में उनकी भी गिरफ्तारी हुई थी, हालांकि उन्हें बरी कर दिया गया था. गांधी की हत्या को लेकर कांग्रेस बार-बार सावरकर पर सवाल उठाती रही है. इसके अलावा जेल में रहकर ब्रिटिश हुकूमत से माफी मांगने पर भी कांग्रेस बीजेपी के खिलाफ खड़ी दिखती है.
उधर AIMIM के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने सावरकर पर दिए राजनाथ सिंह के बयान पर निशाना साधते हुए कहा है कि देश में इतिहास को गलत तरीके से गढ़ा जा रहा है. अगर ऐसा ही जारी रहा तो वे महात्मा गांधी की जगह सावरकर को राष्ट्रपिता बना देंगे.
सियासत की मजबूरी है सावरकर ? सब सियासत है, चुनावों के वक्त सावरकर की एंट्रीकुल मिलाकर सावरकर को लेकर बीजेपी बनाम अन्य दल आमने-सामने रहते हैं. पर ये पूरी तरह से विचारधारा की जंग है. फिर चाहे कांग्रेस सावरकर को 6 बार माफी मांगने वाला बताए या बीजेपी सावरकर को राष्ट्रभक्त और महान क्रांतिकारी, लेकिन ये सियासत है जिसमें अपने मुफीद हर चीज को अपनाया जाता है. महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव हों या फिर यूपी समेत आगामी दिनों में होने वाले 5 राज्यों के चुनाव, देश में पिछले कुछ सालों से चुनावी दौर में सावरकर की एंट्री चुनावों से ऐन पहले हो ही जाती है.
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