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जब तक स्पष्ट आरोप न हों, कंपनी के चेयरमैन-निदेशक को समन नहीं किया जा सकता : SC

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी कंपनी के खिलाफ दायर आपराधिक शिकायत के मामले में चेयरमैन, निदेशक और अधिकारियों को समन जारी नहीं किया जा सकता है, जब तक कि उनके खिलाफ विशिष्ट आरोप स्पष्ट तौर पर नहीं लगाए गए हों.

सुप्रीम कोर्ट
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Published : Oct 3, 2021, 5:45 PM IST

Updated : Oct 3, 2021, 6:49 PM IST

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में फिर से दोहराया है कि किसी कंपनी के खिलाफ दायर आपराधिक शिकायत के मामले में चेयरमैन, निदेशक और अधिकारियों को समन जारी नहीं किया जा सकता है, जब तक कि उनके खिलाफ विशिष्ट आरोप न हों. जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस एएस बोपन्ना की पीठ ने यह फैसला सुनाया है.

लाइव लॉ की खबर के मुताबिक कोर्ट ने कहा कि चेयरमैन, निदेशक और अधिकारियों को कंपनी के अपराधिक कृत्यों के लिए वैकल्पिक रूप से उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता है. इस मामले में एक व्यक्ति द्वारा कंपनी मैंगलोर स्पेशल इकोनॉमिक जोन लिमिटेड और उसकी ठेकेदार कंपनी के खिलाफ एक निजी शिकायत दर्ज कराई गई थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि वह शिकायतकर्ता की संपत्ति में जबरदस्ती घुस गए और पाइप लाइन बिछाते हुए उसके परिसर की दीवार को गिरा दिया.

शिकायतकर्ता ने भारतीय दंड संहिता की धारा 406,418,420,427,447,506 और 120बी (34) के तहत दंडनीय अपराध का आरोप लगाते हुए कंपनी के निदेशकों और अन्य अधिकारियों को भी इस मामले में आरोपी बताया था. मजिस्ट्रेट ने आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई जारी कर दी है. इसके बाद सत्र न्यायालय ने इस आदेश को रद्द कर दिया. इसके बाद हाईकोर्ट ने शिकायतकर्ता द्वारा दायर रिवीजन याचिका (revision petition) को खारिज करते हुए इसे बरकरार रखा था. इसके बाद शीर्ष अदालत में याचिका दायर की गई थी.

याचिका में शिकायतकर्ता ने तर्क दिया कि आरोपी को समन करने के चरण में, इस बात पर विचार करने की जरूरत होती है कि क्या शिकायतकर्ता के ओथ पर दिए गए बयान और इस स्तर पर प्रस्तुत सामग्री के आधार पर प्रथम दृष्टया मामला बनता है और मैरिट के आधार पर विस्तृत जांच की आवश्यकता नहीं होती है. आरोपियों की ओर से, यह तर्क दिया गया कि न्यायालय द्वारा सम्मन/प्रक्रिया जारी करना एक बहुत ही गंभीर मामला है और इसलिए जब तक मामूली आरोपों के अलावा विशिष्ट आरोप न लगाए गए हों और प्रत्येक आरोपी की भूमिका के बारे में न बताया गया हो तब तक मजिस्ट्रेट को प्रक्रिया जारी नहीं करनी चाहिए थी.

सुप्रीम कोर्ट ने अपील खारिज करते हुए कहा कि मजिस्ट्रेट को कंपनी के प्रबंध निदेशक, कंपनी सचिव और निदेशकों के खिलाफ प्रथम दृष्टया मामले और उनकी संबंधित क्षमताओं में उनके द्वारा निभाई गई भूमिका के बारे में अपनी संतुष्टि दर्ज करनी चाहिए थी, जो आपराधिक कार्यवाही शुरू करने के लिए अनिवार्य है.

यह भी पढ़ें- सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश ने 'मी टू' आंदोलन में महिला वकीलों की भूमिका को सराहा

कोर्ट ने कहा कि शिकायत में लगाए गए आरोपों और दलीलों को देखते हुए चेयरमैन, प्रबंध निदेशक, कार्यकारी निदेशक, उप महाप्रबंधक और योजनाकार एवं निष्पादक के रूप में उनके द्वारा निभाई गई भूमिका के संबंध में कोई विशिष्ट आरोप और/या दलील नहीं हैं. सिर्फ इसलिए कि वे ए1 और ए6 के चेयरमैन, प्रबंध निदेशक/कार्यकारी निदेशक और/या उप महाप्रबंधक और/या योजनाकार/पर्यवेक्षक हैं, बिना किसी विशिष्ट भूमिका के और/ उनकी क्षमता में उनके द्वारा निभाई गई भूमिका के, उन्हें एक आरोपी के रूप में नहीं दिखाया जा सकता है. विशेष रूप से उन्हें ए1 और ए6 द्वारा किए गए अपराधों के लिए वैकल्पिक रूप से उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता है.

जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस एएस बोपन्ना की पीठ ने कहा कि क्रिमिनल लॉ को अनिवार्य रूप से लागू नहीं किया जा सकता है और मजिस्ट्रेट को समन का आदेश देते समय आरोपी के खिलाफ प्रथम दृष्टया मामले के बारे में अपनी संतुष्टि दर्ज करनी होती है.

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में फिर से दोहराया है कि किसी कंपनी के खिलाफ दायर आपराधिक शिकायत के मामले में चेयरमैन, निदेशक और अधिकारियों को समन जारी नहीं किया जा सकता है, जब तक कि उनके खिलाफ विशिष्ट आरोप न हों. जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस एएस बोपन्ना की पीठ ने यह फैसला सुनाया है.

लाइव लॉ की खबर के मुताबिक कोर्ट ने कहा कि चेयरमैन, निदेशक और अधिकारियों को कंपनी के अपराधिक कृत्यों के लिए वैकल्पिक रूप से उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता है. इस मामले में एक व्यक्ति द्वारा कंपनी मैंगलोर स्पेशल इकोनॉमिक जोन लिमिटेड और उसकी ठेकेदार कंपनी के खिलाफ एक निजी शिकायत दर्ज कराई गई थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि वह शिकायतकर्ता की संपत्ति में जबरदस्ती घुस गए और पाइप लाइन बिछाते हुए उसके परिसर की दीवार को गिरा दिया.

शिकायतकर्ता ने भारतीय दंड संहिता की धारा 406,418,420,427,447,506 और 120बी (34) के तहत दंडनीय अपराध का आरोप लगाते हुए कंपनी के निदेशकों और अन्य अधिकारियों को भी इस मामले में आरोपी बताया था. मजिस्ट्रेट ने आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई जारी कर दी है. इसके बाद सत्र न्यायालय ने इस आदेश को रद्द कर दिया. इसके बाद हाईकोर्ट ने शिकायतकर्ता द्वारा दायर रिवीजन याचिका (revision petition) को खारिज करते हुए इसे बरकरार रखा था. इसके बाद शीर्ष अदालत में याचिका दायर की गई थी.

याचिका में शिकायतकर्ता ने तर्क दिया कि आरोपी को समन करने के चरण में, इस बात पर विचार करने की जरूरत होती है कि क्या शिकायतकर्ता के ओथ पर दिए गए बयान और इस स्तर पर प्रस्तुत सामग्री के आधार पर प्रथम दृष्टया मामला बनता है और मैरिट के आधार पर विस्तृत जांच की आवश्यकता नहीं होती है. आरोपियों की ओर से, यह तर्क दिया गया कि न्यायालय द्वारा सम्मन/प्रक्रिया जारी करना एक बहुत ही गंभीर मामला है और इसलिए जब तक मामूली आरोपों के अलावा विशिष्ट आरोप न लगाए गए हों और प्रत्येक आरोपी की भूमिका के बारे में न बताया गया हो तब तक मजिस्ट्रेट को प्रक्रिया जारी नहीं करनी चाहिए थी.

सुप्रीम कोर्ट ने अपील खारिज करते हुए कहा कि मजिस्ट्रेट को कंपनी के प्रबंध निदेशक, कंपनी सचिव और निदेशकों के खिलाफ प्रथम दृष्टया मामले और उनकी संबंधित क्षमताओं में उनके द्वारा निभाई गई भूमिका के बारे में अपनी संतुष्टि दर्ज करनी चाहिए थी, जो आपराधिक कार्यवाही शुरू करने के लिए अनिवार्य है.

यह भी पढ़ें- सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश ने 'मी टू' आंदोलन में महिला वकीलों की भूमिका को सराहा

कोर्ट ने कहा कि शिकायत में लगाए गए आरोपों और दलीलों को देखते हुए चेयरमैन, प्रबंध निदेशक, कार्यकारी निदेशक, उप महाप्रबंधक और योजनाकार एवं निष्पादक के रूप में उनके द्वारा निभाई गई भूमिका के संबंध में कोई विशिष्ट आरोप और/या दलील नहीं हैं. सिर्फ इसलिए कि वे ए1 और ए6 के चेयरमैन, प्रबंध निदेशक/कार्यकारी निदेशक और/या उप महाप्रबंधक और/या योजनाकार/पर्यवेक्षक हैं, बिना किसी विशिष्ट भूमिका के और/ उनकी क्षमता में उनके द्वारा निभाई गई भूमिका के, उन्हें एक आरोपी के रूप में नहीं दिखाया जा सकता है. विशेष रूप से उन्हें ए1 और ए6 द्वारा किए गए अपराधों के लिए वैकल्पिक रूप से उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता है.

जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस एएस बोपन्ना की पीठ ने कहा कि क्रिमिनल लॉ को अनिवार्य रूप से लागू नहीं किया जा सकता है और मजिस्ट्रेट को समन का आदेश देते समय आरोपी के खिलाफ प्रथम दृष्टया मामले के बारे में अपनी संतुष्टि दर्ज करनी होती है.

Last Updated : Oct 3, 2021, 6:49 PM IST
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