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कर्ज का 'घी' पी रहा हिमाचल, वीरभद्र सरकार ने 19,200 करोड़ तो जयराम ने लिया 19,498 करोड़ का लोन

हिमाचल में बीजपी और कांग्रेस की सरकार बारी-बारी से रही है लेकिन कर्ज के लेकर दोनों दल एक दूसरे को कटघरे में खड़ा करते हैं. कांग्रेस आरोप लगाती है कि बीजेपी ने प्रदेश को कर्ज में डुबो दिया. तो वहीं, हिमाचल के कर्ज के लिए बीजेपी कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराती है. आंकड़ों से समझते हैं कर्ज का मर्ज...(Debt on Himachal Pradesh)

debt on Himachal
हिमाचल पर कर्ज
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Published : Oct 18, 2022, 10:35 AM IST

शिमला: विधानसभा चुनाव में कर्ज एक बड़ा मुद्दा है. हिमाचल में कांग्रेस और भाजपा बारी-बारी से सत्ता में आते रहे हैं. कर्ज के मर्ज को लेकर दोनों दल एक-दूसरे को कटघरे में खड़ा करते हैं. कांग्रेस आरोप लगाती है कि भाजपा ने प्रदेश को कर्ज में डुबो दिया, तो भाजपा का कहना है कि हिमाचल के कर्ज की इकलौती जिम्मेदार कांग्रेस पार्टी है. आंकड़ों की जुबानी देखें तो हिमाचल पर इस समय 67,404 करोड़ रुपए का कर्ज है. जयराम सरकार ने पांच साल में कुल 19,498 करोड़ रुपए का लोन लिया है. वहीं, वीरभद्र सिंह की सरकार के दौरान वर्ष 2012 से 2017 तक की अवधि में कुल 19,200 करोड़ रुपए का कर्ज लिया गया. इस तरह देखा जाए तो जयराम सरकार ने पूर्व की सरकार के मुकाबले अधिक कर्ज लिया है, लेकिन भाजपा सरकार का कहना है कि उसने वीरभद्र सिंह सरकार के समय एक वित्तीय खामी को दुरुस्त कर बकाया रकम चुकाई थी. (code of conduct implemented in himachal) (debt on Himachal)

विधानसभा में कैबिनेट मंत्री सुरेश भारद्वाज की तरफ से एक आंकड़ा पेश किया गया था कि प्रेम कुमार धूमल के नेतृत्व वाली सरकार ने 2012 में जब सत्ता छोड़ी थी तो हिमाचल पर 28760 करोड़ रुपए का कर्ज था. बाद में कांग्रेस सरकार के समय यह कर्ज 47,906 करोड़ रुपए हो गया. इस तरह वर्ष 2017 में वीरभद्र सिंह सरकार हिमाचल पर 47,906 करोड़ का कर्ज छोड़ गई थी. तब पांच साल में यानी 2012 से 2017 तक 19146 करोड़ रुपए का कर्ज लिया गया. आंकड़ों की इस बाजीगिरी के बीच ये तथ्य और सत्य है कि हिमाचल की गाड़ी कर्ज के सहारे चल रही है. जयराम सरकार ने भी अपने कार्यकाल का संभवत: आखिरी लोन लिया है. ये लोन 2500 करोड़ रुपए के रूप में है. (Himachal assembly elections 2022 )

सरकार ने सितंबर महीने के पहले पखवाड़े में ये कर्ज लिया है. किश्तों में लिए गए इस कर्ज की देनदारी दशकों तक रहेगी. सरकार के खाते में 14 सितंबर 2022 को लोन की रकम आई और अक्टूबर महीने में वेतन तथा एरियर पर खर्च भी हो गई. कुल 2500 करोड़ रुपए का ये लोन अलग-अलग चार मदों में लिया गया है. पहली मद में 500 करोड़ रुपए का कर्ज 11 साल के लिए, फिर से 500 करोड़ रुपए का कर्ज 12 साल के लिए, 700 करोड़ का लोन 14 साल के लिए और फिर 800 करोड़ रुपए का कर्ज 15 साल के लिए लिया गया.

सरकार ने नए वेतनमान की सिफारिशों को लागू किया है. कर्मचारियों को संशोधित वेतनमान का एरियर दिया गया. एरियर की पहली किश्त देने में ही एक हजार करोड़ रुपए का खर्च हुआ. इस 2500 करोड़ रुपए के कर्ज से पहले मौजूदा सरकार ने अब तक के कार्यकाल में 16,998 करोड़ का लोन लिया था. वहीं, पांच साल के अंतराल में यानी 2012 से 2017 तक वीरभद्र सिंह सरकार ने 19200 करोड़ रुपए का कर्ज लिया था. मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के अनुसार पूर्व कांग्रेस सरकार के समय में लोन लेने की वृद्धि दर 67 फीसदी थी.

इस सरकार के समय लोन लेने की वृद्धि दर 35 फीसदी रही है. हिमाचल प्रदेश में बजट का अधिकांश हिस्सा सरकारी कर्मचारियों के वेतन और पेंशनर्स की पेंशन पर खर्च होता है. इसके अलावा लिया गया लोन चुकाने और लोन पर चढ़े ब्याज को चुकाने में भी भारी रकम खर्च होती है. आंकड़ों के अनुसार सरकारी कर्मियों के वेतन पर सौ रुपए में से 25.31 रुपए खर्च हो रहे हैं. इसी तरह पेंशन पर 14.11 रुपए खर्च किए जा रहे हैं. इसके अलावा हिमाचल को ब्याज की अदायगी पर 10 रुपए, लोन की अदायगी पर 6.64 रुपए चुकाने पड़ रहे हैं.

इसके बाद सरकार के पास विकास के लिए महज 43.94 रुपए ही बचते हैं. अब यह परिस्थितियां और विकट हो गई हैं. कर्मचारियों के वेतन और पेंशनर्स की पेंशन पर खर्च बढ़ गया है. वेतन, पेंशन, कर्ज और ब्याज पर 55 रुपए खर्च हो रहे हैं. ये रकम नए वेतनमान के बाद और नए कर्ज के बाद 59 रुपए हो सकती है. ऐसे में सरकार के पास विकास के लिए बजट और सिकुड़ जाएगा.

पढे़ं- हिमाचल विधानसभा चुनाव 2022: हर 5 साल में बदलती है देवभूमि में सरकार, जानें 37 सालों का इतिहास

जयराम सरकार व भाजपा का दावा है कि केंद्र की उदार आर्थिक सहायता से हिमाचल के विकास की रफ्तार रुकने नहीं दी गई. वित्तायोग से भी रेवेन्यू डेफेसिट ग्रांट मिलती रही, जिससे सरकार का कर्मचारियों के वेतन पर होने वाला खर्च निकलता रहा. वहीं, कांग्रेस के नेता मुकेश अग्निहोत्री का आरोप है कि जयराम ठाकुर अब तक के सबसे खर्चीले मुख्यमंत्री साबित हुए हैं. हालांकि, कर्ज को लेकर दोनों दल एक-दूसरे के सिर पर ठीकरा फोड़ते हैं लेकिन चुनावी साल में विपक्ष भी फ्री के वादे करने में पीछे नहीं है. कांग्रेस ने दस गारंटियां दी हैं. उनमें से एक में ये वादा किया है कि सत्ता में आते ही कांग्रेस हर महिला के खाते में 1500 रुपए महीना डालेगी. इसके लिए पैसे का इंतजाम कहां से होगा, कांग्रेस ये स्पष्ट रूप से नहीं बताती है.

फिलहाल, कर्ज के जाल से निकलने का कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा. राज्य सरकार के पूर्व वित्त सचिव केआर भारती का कहना है कि हिमाचल के पास खुद के आर्थिक साधन सीमित हैं और कर्ज लेने के अलावा और कोई विकल्प नहीं है. पर्यटन और एग्रीकल्चर सेक्टर से इकोनॉमी को सही किया जा सकता है. इसके अलावा सरकारी खर्च पर अंकुश लगाने की जरूरत है. वरिष्ठ मीडिया कर्मी उदय सिंह का कहना है कि किसी भी सरकार ने फिजूलखर्ची पर रोक लगाने के उपाय नहीं किए. कांग्रेस सरकार के समय रिसोर्स मोबेलाइजेशन कमेटी बनी थी, लेकिन उसकी रिपोर्ट का कोई अता-पता नहीं है. फिलहाल, इस चुनाव में भी कर्ज के लिए दोनों प्रमुख दल एक-दूसरे को ही कोस रहे हैं.

पढे़ं- परिवारवाद को बनाकर हथियार, भाजपा का कांग्रेस पर वार, क्या बदलेगा हिमाचल में रिवाज

शिमला: विधानसभा चुनाव में कर्ज एक बड़ा मुद्दा है. हिमाचल में कांग्रेस और भाजपा बारी-बारी से सत्ता में आते रहे हैं. कर्ज के मर्ज को लेकर दोनों दल एक-दूसरे को कटघरे में खड़ा करते हैं. कांग्रेस आरोप लगाती है कि भाजपा ने प्रदेश को कर्ज में डुबो दिया, तो भाजपा का कहना है कि हिमाचल के कर्ज की इकलौती जिम्मेदार कांग्रेस पार्टी है. आंकड़ों की जुबानी देखें तो हिमाचल पर इस समय 67,404 करोड़ रुपए का कर्ज है. जयराम सरकार ने पांच साल में कुल 19,498 करोड़ रुपए का लोन लिया है. वहीं, वीरभद्र सिंह की सरकार के दौरान वर्ष 2012 से 2017 तक की अवधि में कुल 19,200 करोड़ रुपए का कर्ज लिया गया. इस तरह देखा जाए तो जयराम सरकार ने पूर्व की सरकार के मुकाबले अधिक कर्ज लिया है, लेकिन भाजपा सरकार का कहना है कि उसने वीरभद्र सिंह सरकार के समय एक वित्तीय खामी को दुरुस्त कर बकाया रकम चुकाई थी. (code of conduct implemented in himachal) (debt on Himachal)

विधानसभा में कैबिनेट मंत्री सुरेश भारद्वाज की तरफ से एक आंकड़ा पेश किया गया था कि प्रेम कुमार धूमल के नेतृत्व वाली सरकार ने 2012 में जब सत्ता छोड़ी थी तो हिमाचल पर 28760 करोड़ रुपए का कर्ज था. बाद में कांग्रेस सरकार के समय यह कर्ज 47,906 करोड़ रुपए हो गया. इस तरह वर्ष 2017 में वीरभद्र सिंह सरकार हिमाचल पर 47,906 करोड़ का कर्ज छोड़ गई थी. तब पांच साल में यानी 2012 से 2017 तक 19146 करोड़ रुपए का कर्ज लिया गया. आंकड़ों की इस बाजीगिरी के बीच ये तथ्य और सत्य है कि हिमाचल की गाड़ी कर्ज के सहारे चल रही है. जयराम सरकार ने भी अपने कार्यकाल का संभवत: आखिरी लोन लिया है. ये लोन 2500 करोड़ रुपए के रूप में है. (Himachal assembly elections 2022 )

सरकार ने सितंबर महीने के पहले पखवाड़े में ये कर्ज लिया है. किश्तों में लिए गए इस कर्ज की देनदारी दशकों तक रहेगी. सरकार के खाते में 14 सितंबर 2022 को लोन की रकम आई और अक्टूबर महीने में वेतन तथा एरियर पर खर्च भी हो गई. कुल 2500 करोड़ रुपए का ये लोन अलग-अलग चार मदों में लिया गया है. पहली मद में 500 करोड़ रुपए का कर्ज 11 साल के लिए, फिर से 500 करोड़ रुपए का कर्ज 12 साल के लिए, 700 करोड़ का लोन 14 साल के लिए और फिर 800 करोड़ रुपए का कर्ज 15 साल के लिए लिया गया.

सरकार ने नए वेतनमान की सिफारिशों को लागू किया है. कर्मचारियों को संशोधित वेतनमान का एरियर दिया गया. एरियर की पहली किश्त देने में ही एक हजार करोड़ रुपए का खर्च हुआ. इस 2500 करोड़ रुपए के कर्ज से पहले मौजूदा सरकार ने अब तक के कार्यकाल में 16,998 करोड़ का लोन लिया था. वहीं, पांच साल के अंतराल में यानी 2012 से 2017 तक वीरभद्र सिंह सरकार ने 19200 करोड़ रुपए का कर्ज लिया था. मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के अनुसार पूर्व कांग्रेस सरकार के समय में लोन लेने की वृद्धि दर 67 फीसदी थी.

इस सरकार के समय लोन लेने की वृद्धि दर 35 फीसदी रही है. हिमाचल प्रदेश में बजट का अधिकांश हिस्सा सरकारी कर्मचारियों के वेतन और पेंशनर्स की पेंशन पर खर्च होता है. इसके अलावा लिया गया लोन चुकाने और लोन पर चढ़े ब्याज को चुकाने में भी भारी रकम खर्च होती है. आंकड़ों के अनुसार सरकारी कर्मियों के वेतन पर सौ रुपए में से 25.31 रुपए खर्च हो रहे हैं. इसी तरह पेंशन पर 14.11 रुपए खर्च किए जा रहे हैं. इसके अलावा हिमाचल को ब्याज की अदायगी पर 10 रुपए, लोन की अदायगी पर 6.64 रुपए चुकाने पड़ रहे हैं.

इसके बाद सरकार के पास विकास के लिए महज 43.94 रुपए ही बचते हैं. अब यह परिस्थितियां और विकट हो गई हैं. कर्मचारियों के वेतन और पेंशनर्स की पेंशन पर खर्च बढ़ गया है. वेतन, पेंशन, कर्ज और ब्याज पर 55 रुपए खर्च हो रहे हैं. ये रकम नए वेतनमान के बाद और नए कर्ज के बाद 59 रुपए हो सकती है. ऐसे में सरकार के पास विकास के लिए बजट और सिकुड़ जाएगा.

पढे़ं- हिमाचल विधानसभा चुनाव 2022: हर 5 साल में बदलती है देवभूमि में सरकार, जानें 37 सालों का इतिहास

जयराम सरकार व भाजपा का दावा है कि केंद्र की उदार आर्थिक सहायता से हिमाचल के विकास की रफ्तार रुकने नहीं दी गई. वित्तायोग से भी रेवेन्यू डेफेसिट ग्रांट मिलती रही, जिससे सरकार का कर्मचारियों के वेतन पर होने वाला खर्च निकलता रहा. वहीं, कांग्रेस के नेता मुकेश अग्निहोत्री का आरोप है कि जयराम ठाकुर अब तक के सबसे खर्चीले मुख्यमंत्री साबित हुए हैं. हालांकि, कर्ज को लेकर दोनों दल एक-दूसरे के सिर पर ठीकरा फोड़ते हैं लेकिन चुनावी साल में विपक्ष भी फ्री के वादे करने में पीछे नहीं है. कांग्रेस ने दस गारंटियां दी हैं. उनमें से एक में ये वादा किया है कि सत्ता में आते ही कांग्रेस हर महिला के खाते में 1500 रुपए महीना डालेगी. इसके लिए पैसे का इंतजाम कहां से होगा, कांग्रेस ये स्पष्ट रूप से नहीं बताती है.

फिलहाल, कर्ज के जाल से निकलने का कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा. राज्य सरकार के पूर्व वित्त सचिव केआर भारती का कहना है कि हिमाचल के पास खुद के आर्थिक साधन सीमित हैं और कर्ज लेने के अलावा और कोई विकल्प नहीं है. पर्यटन और एग्रीकल्चर सेक्टर से इकोनॉमी को सही किया जा सकता है. इसके अलावा सरकारी खर्च पर अंकुश लगाने की जरूरत है. वरिष्ठ मीडिया कर्मी उदय सिंह का कहना है कि किसी भी सरकार ने फिजूलखर्ची पर रोक लगाने के उपाय नहीं किए. कांग्रेस सरकार के समय रिसोर्स मोबेलाइजेशन कमेटी बनी थी, लेकिन उसकी रिपोर्ट का कोई अता-पता नहीं है. फिलहाल, इस चुनाव में भी कर्ज के लिए दोनों प्रमुख दल एक-दूसरे को ही कोस रहे हैं.

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